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Year Ender 2025: ‘स्पेस डॉकिंग’ से लेकर सबसे भारी सैटेलाइट के सफल प्रक्षेपण तक, भारत का स्वर्णिम साल

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फाइल फोटो

साल 2025 भारत के अंतरिक्ष इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया है। इंडिया स्पेस विजन 2047 की ओर कदम बढ़ाते हुए इसरो (ISRO) ने इस साल न केवल जटिल तकनीकों को साधा, बल्कि दुनिया को अपनी व्यावसायिक ताकत का भी अहसास कराया। इस साल इसरो ने न सिर्फ उपग्रह छोड़े, बल्कि अंतरिक्ष में भारतीय स्टेशन की नींव रखी, एक भारतीय को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुंचाया और साल के अंत में अपनी सबसे भारी लॉन्चिंग से दुनिया को हैरान कर दिया।

आइए देखते हैं इस साल की वो बड़ी सुर्खियां, जिन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा।

1. साल का ‘ग्रैंड फिनाले’: 6.5 टन वजनी सैटेलाइट की लॉन्चिंग
साल के खत्म होते-होते इसरो ने वह कर दिखाया जो अब तक नामुमकिन माना जाता था। 24 दिसंबर को इसरो के सबसे ताकतवर रॉकेट LVM-3 M6 ने 6.5 टन वजनी ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 (BlueBird Block-2) सैटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाया। यह भारत की धरती से भेजा गया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है। यह एक कमर्शियल मिशन था, जो अब दुनिया के उन कोनों में भी हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाएगा जहां मोबाइल नेटवर्क नहीं पहुंच पाता।

2. अंतरिक्ष में ‘दोस्ती’: स्पैडेक्स (SPADEX) का सफल डॉकिंग
जनवरी 2025 में इसरो ने अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को आपस में जोड़ने यानी ‘डॉकिंग’ का सफल प्रयोग किया। 16 जनवरी को दोनों यान अंतरिक्ष में मिले और 21 अप्रैल को इनके बीच बिजली का हस्तांतरण (Power Transfer) भी सफल रहा। यह तकनीक हमारे भविष्य के ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ के लिए सबसे बड़ी कामयाबी मानी जा रही है।

3. गगनयात्री शुभांशु शुक्ला: ISS पर लहराया तिरंगा
साल 2025 की सबसे बड़ी खबर रही शुभांशु शुक्ला का अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) दौरा। 25 जून को स्पेसएक्स के जरिए वे ISS पहुंचे और वहां 18 दिन बिताए। उन्होंने वहां सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण यानी Micro-gravity से जुड़े 7 अहम प्रयोग किए। 28 जून को जब उन्होंने अंतरिक्ष से पीएम मोदी से बात की, तो पूरा देश गौरवान्वित महसूस कर रहा था।

4. ‘स्पेस फार्मिंग’: अंतरिक्ष में खिलीं लोबिया की पत्तियां
इसरो ने क्रॉप्स-1 (CROPS-1) मिशन के जरिए अंतरिक्ष में पौधे उगाने की दिशा में कदम बढ़ाया। पीएसएलवी मिशन के दौरान लोबिया के बीजों ने अंतरिक्ष में अंकुरण किया और पांचवें दिन तक उनमें दो पत्तियां निकल आईं। भविष्य में लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले यात्रियों के लिए यह प्रयोग संजीवनी साबित होगा।

5. निसार (NISAR): भारत-अमेरिका की वैश्विक साझेदारी
30 जुलाई 2025 को इसरो और नासा का साझा उपग्रह निसार लॉन्च किया गया। यह दुनिया का सबसे आधुनिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है। यह हर 12 दिन में पूरी दुनिया को स्कैन करेगा और खेती, आपदा प्रबंधन और बर्फीली चट्टानों की हलचल पर पैनी नजर रखेगा।

6. श्रीहरिकोटा का ‘शतक’ और बुनियादी ढांचे का विस्तार
29 जनवरी 2025 को इसरो ने श्रीहरिकोटा से अपना 100वां सफल प्रक्षेपण पूरा किया। इसी साल सरकार ने तीसरे लॉन्च पैड को मंजूरी दी, जो भविष्य के मानव मिशनों में काम आएगा। साथ ही, तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम में छोटे रॉकेटों (SSLV) के लिए नए लॉन्च पैड की आधारशिला भी रखी गई।

7. स्वदेशी दिमाग: ‘विक्रम’ और ‘कल्पना’ माइक्रोप्रोसेसर
मार्च में भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स में आत्मनिर्भरता दिखाते हुए विक्रम 3201 और कल्पना 3201 माइक्रोप्रोसेसर लॉन्च किए। चंडीगढ़ की सेमीकंडक्टर लैब (SCL) में बने ये प्रोसेसर अब हमारे रॉकेटों का ‘दिमाग’ बनेंगे, जिससे विदेशी चिप पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।

8. लद्दाख की घाटी में ‘मंगल’ की तैयारी: मिशन होप (HOPE)
इसरो ने लद्दाख की त्सो कार घाटी में ‘होप’ (HOPE) एनालॉग मिशन का आयोजन किया। वहां की कठोर परिस्थितियां मंगल ग्रह जैसी हैं। यहां वैज्ञानिकों ने 10 दिन बिताकर यह समझा कि दूसरे ग्रहों पर इंसान कैसे रह पाएगा और वहां की मिट्टी व पर्यावरण का मानव शरीर पर क्या असर होगा।

9. प्राइवेट सेक्टर को मिली ताकत: SSLV का टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
इसरो ने अपनी लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) तकनीक को निजी क्षेत्र को सौंपने का ऐतिहासिक समझौता किया। अब निजी कंपनियां इसरो की तकनीक से रॉकेट बना सकेंगी, जिससे भारत ग्लोबल कमर्शियल मार्केट में बड़ा खिलाड़ी बन जाएगा। इसके अलावा, प्राइवेट स्टार्टअप स्काईरूट ने भी अपने ‘कलाम 1200’ रॉकेट मोटर का सफल परीक्षण इसरो की देखरेख में किया।

10. आपदा और कृषि में इसरो का योगदान
इस साल इसरो ने ‘इंटरनेशनल चार्टर स्पेस एंड मेजर डिसैस्टर्स’ का नेतृत्व संभाला, जिससे दुनिया को आपदाओं के समय सैटेलाइट डेटा देने में भारत सबसे आगे रहा। वहीं, इसरो के क्रॉप (CROP) फ्रेमवर्क ने गेहूं की पैदावार का सटीक अनुमान लगाकर भारतीय कृषि नीति में बड़ी भूमिका निभाई।

11. भविष्य की तकनीक: प्लाज्मा थ्रस्टर और सेमी-क्रायोजेनिक इंजन
इसरो ने भविष्य के उपग्रहों के लिए प्लाज्मा थ्रस्टर का 1000 घंटे का सफल परीक्षण किया। यह तकनीक उपग्रहों का वजन कम करेगी और उनकी उम्र बढ़ाएगी। साथ ही, सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के हॉट टेस्ट की सीरीज पूरी की गई, जो आने वाले समय में हमारे रॉकेटों की पेलोड ले जाने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देगा।

साल 2025 सिर्फ रिकॉर्ड तोड़ने का साल नहीं था, बल्कि यह भारत के आत्मविश्वास का साल था। भारी-भरकम सैटेलाइट्स की कमर्शियल लॉन्चिंग से लेकर गहरे अंतरिक्ष की रिसर्च तक, इसरो ने साबित कर दिया कि भारत अब किसी भी देश से पीछे नहीं है।

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