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मोदी राज में भारत की एक और कूटनीतिक जीत, हंबनटोटा बंदरगाह में नहीं रूका चीनी जहाज, श्रीलंका ने मानी भारत की बात

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रभाव में काफी वृद्धि हुई है। आज भारत दूसरे देशों के लिए संकटमोचक के रूप में उभर कर सामने आया है। इसका असर श्रीलंका की आर्थिक बदहाली और चीन के जहाज हंबनटोटा के मामले में देखने को मिला है। भारत ने आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की खुलकर मदद की है। इसका परिणाम है कि भारत आज श्रीलंका से अपनी बात मनवाने में कामयाब रहा। श्रीलंका ने चीनी रिसर्च शिप को अपने हंबनटोटा पोर्ट पर रूकने की अनुमति नहीं दी। इसे भारत की कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।

दरअसल भारत ने चीनी रिसर्च शिप की श्रीलंका में संभावित मौजूदगी को लेकर चिंता व्यक्त की थी। श्रीलंका ने भारत की बात का मान रखते हुए चीन को साफ इनकार कर दिया। इसके बाद चीन का जहाज श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर नहीं रुका। श्रीलंकाई अधिकारियों ने गुरुवार (11 अगस्त, 2022) को बताया कि उच्च तकनीक वाला चीनी रिसर्च शिप तय कार्यक्रम के मुताबिक बंदरगाह नहीं पहुंचा। शिप के गुरुवार को हंबनटोटा पहुंचने की योजना थी। चीनी शिप 11 से 17 अगस्त तक हंबनटोटा बंदरगाह पर लंगर डालने वाला था।

‘न्यूजफर्स्ट डॉट एलके’ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, हंबनटोटा बंदरगाह के ‘हार्बर मास्टर’ ने कहा कि कोई भी जहाज उनकी अनुमति के बिना बंदरगाह में प्रवेश नहीं कर सकता। ‘हार्बर मास्टर’ ने कहा था कि चीनी बैलिस्टिक मिसाइल और उपग्रह निगरानी जहाज ‘युआन वांग 5’ गुरुवार को हंबनटोटा बंदरगाह नहीं पहुंचेगा। पिछले हफ्ते, भारत द्वारा व्यक्त की गई सुरक्षा चिंताओं के कारण श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने बीजिंग से ‘युआन वांग 5’ के आगमन को टालने के लिए कहा था।

‘युआन वांग 5’ चीन से 14 जुलाई को रवाना हुआ था और अब तक इसने अपने रास्ते में एक भी बंदरगाह में प्रवेश नहीं किया है। जहाज लगभग 28 दिनों से यात्रा पर है। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने 12 जुलाई को हंबनटोटा बंदरगाह पर जहाज को लंगर डालने के लिए मंजूरी दी थी। आठ अगस्त को, मंत्रालय ने कोलंबो में चीनी दूतावास को लिखे एक पत्र में जहाज के तय कार्यक्रम के मुताबिक ठहराव को स्थगित करने का अनुरोध किया। 

पहले श्रीलंका ने भारत सरकार के अनुरोध को गंभीरता से नहीं लिया था। वहां की सरकार का कहना था कि, जहाज के हंबनटोटा में रुकने की मुख्य वजह ईंधन है। इस तरह के जहाज समय-समय पर भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे विभिन्न देशों से आते रहे हैं और इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। लेकिन भारत के बढ़ते दबाव के बाद श्रीलंका ने चीन को पत्र लिखकर जहाज को रोकने का अनुरोध किया।

गौरतलब है कि हंबनटोटा के बंदरगाह को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। बंदरगाह को बड़े पैमाने पर चीनी कर्ज की मदद से विकसित किया गया है। वहीं युआन वांग 5 एक डबल यूज वाला जासूसी पोत है, जो अंतरिक्ष और उपग्रह ट्रैकिंग के लिए बनाया गया है। यह बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च में भी सक्षम है। शिप में 400 लोगों का क्रू है। साथ ही इस पर एक बड़ा सा पाराबोलिक एंटिना लगा हुआ है और कई तरह के सेंसर मौजूद हैं।

चीनी रिसर्च शिप ‘युआन वांग 5’ की सबसे खास बात यह है कि यह परमाणु ऊर्जा संयत्रों की भी जासूसी कर सकता है। ऐसे में भारत के लिए खतरा और बढ़ जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक हंबनटोटा बंदरगाह से भारत के कलपक्कम और कूडनकुलम परमाणु ऊर्जा स्टेशनों की दूरी 750 किलोमीटर है। इसके अलावा दक्षिणी भारत के 6 बंदरगाहों की दूरी भी ज्यादा नहीं है। ऐसे में इन सबकी “जासूसी” होने का खतरा था। यही वजह है कि इस पूरे घटनाक्रम पर भारत काफी नजदीक से नजर बनाए हुए था। 

आइये देखते हैं पिछले आठ सालों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने विश्व क्षितिज पर किस तरह दमदार उपस्थिति दर्ज की है और वैश्विक ताकत बन गया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में देश का नेतृत्व संभालने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत के अग्रदूत बने हुए हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मंचों पर भारत की भागीदारी बढ़ी है। वैश्विक कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध से तीसरे विश्व युद्ध की आहट के बीच भारत की स्वतंत्र विदेश नीति ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। उसने बता दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी का नया भारत बिना किसी दबाव में अपने देश के हित में फैसले लेता है। भारत के खिलाफ उठने वाली हर अंतरराष्ट्रीय आवाज का मुंहतोड़ जवाब देता है।  

ग्लोबल लीडर बने प्रधानमंत्री मोदी
एक दौर वह भी था जब भारत विश्व की महाशक्तियों के भरोसे रहता था। आज भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। दरअसल दुनिया में इस समय किसी नेता की सबसे ज्यादा पूछ है तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। प्रधानमंत्री मोदी की शख्सियत और व्यक्तित्व की पूरी दुनिया कायल है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले आठ सालों में जिस तरह से भारत की छवि को पूरी दुनिया में पेश किया है, उसने दुनिया भर के नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी का मुरीद बना दिया है। आज पूरी दुनिया प्रधानमंत्री मोदी के दमदार व्यक्तित्व और शानदार प्रतिनिधित्व का कायल है। घरेलू राजनीति में वे जितने लोकप्रिय हैं वैसे ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ चुके हैं। आलम यह है कि विश्व के तमाम राजनेता उन्हें एक ग्लोबल लीडर मानते हैं।

वर्ल्ड लीडर्स में पहले पायदान पर पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों कोरोना संकट के दौरान जिस प्रकार से देश की 130 करोड़ जनता की रक्षा करते हुए पूरी दुनिया के लिए मदद के हाथ बढ़ाए हैं, उसने उन्हें एक बार फिर दुनिया का सबसे लोकप्रिय और शीर्ष नेता बना दिया है। अमेरिकी रिसर्च एजेंसी मॉर्निग कंसल्ट के ताजा सर्वे के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय और शीर्ष नेता बने हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग बढ़कर 77 प्रतिशत हो गई है और यह रेटिंग दुनिया के शीर्ष 13 नेताओं में सबसे ज्यादा है। प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया भर में वयस्कों के बीच सबसे ज्यादा रेटिंग मिली है। 18 मार्च, 2022 को ग्लोबल लीडर अप्रूवल ट्रैकर मॉर्निंग कंसल्ट ने अपना लेटेस्ट डेटा जारी किया था।

क्वाड सम्मेलन में बाइडेन ने की पीएम मोदी की तारीफ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 23 मई,2022 को दो दिवसीय क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जापान की राजधानी टोक्यो पहुंचे। इस दौरान भारतीय समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी का भव्य स्वागत किया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सम्मेलन के दौरान कोरोना महामारी से लोकतांत्रिक तरीके से निपटने में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका की जमकर प्रशंसा की, वहीं चीन पर विफलता का आरोप लगाया। यह सम्मेलन भारत की दृष्टि से काफी सफल रहा। अमेरिका ने भारत के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। हिंद महासागर क्षेत्र में क्वाड का सहयोग भारत को एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा। इसका उपयोग भारत इस क्षेत्र की शांति के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए कर सकेगा। गौरतलब है कि नवंबर 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को चीन के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने के लिये ‘क्वाड’ समूह की स्थापना की गई थी।  

आईपीईएफ कार्यक्रम में शामिल हुए प्रधानमंत्री मोदी 
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 23 मई, 2022 को टोक्यो में इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF- आईपीईएफ) कार्यक्रम में भाग लिया। इस कार्यक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ आर बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो भी शामिल हुए। बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत एक समावेशी और लचीले ‘इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक मॉडल’ के निर्माण के लिए आप सभी के साथ काम करेगा। उन्होंने कहा, ‘भारत आईपीईएफ के लिए सभी हिन्‍द-प्रशांत देशों के साथ काम मिलकर काम करेगा। मेरा मानना है की हमारे बीच लचीली आपूर्ति श्रृंखला के तीन मुख्य आधार होने चाहिए- Trust (विश्वास), Transparency (पारदर्शिता) और Timeliness (समयबद्धता)। मुझे विश्वास है कि यह फ्रेमवर्क इन तीनों स्तंभों को मजबूत करने में सहायक होगा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विकास, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।’

रूस-यूक्रेन युद्ध : वैश्विक कूटनीति में बढ़ी भारत की धमक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रभाव में काफी वृद्धि हुई है। इसका असर रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान देखने को मिल रहा है। युद्ध की वजह से दुनिया में मची उथल-पुथल के बीच भारत अचानक वैश्विक कूटनीति के केंद्र में आ गया है। एक महीने में 20 से अधिक ग्लोबल लीडर्स के भारत दौरे ने साबित किया कि आज वैश्विक कूटनीति में भारत का कद काफी बढ़ा है। भारत की राजधानी दिल्ली में रशिया के विदेश मंत्री सर्गी लावरोव, ब्रिटेन की विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रस और अमेरिका के डिप्टी एनएसए दिलीप सिंह की मौजूदगी से भारत की कूटनीतिक ताकत के बारे में पता चला। भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जो रशिया से भी बात कर रहा है और अमेरिका से भी बात कर रहा है।

रूस – यूक्रेन युद्ध और भारत की तटस्थ विदेश नीति
भारत ने अभी तक यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना नहीं की है और उसने रूसी आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्तावों पर संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर मतदान में हिस्सा लेने से परहेज किया है। यूक्रेन में मानवीय संकट को लेकर और अन्य मुद्दों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के खिलाफ पेश प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भारत अनुपस्थित रहा। अमेरिका और अन्य देशों की नाराजगी की परवाह किए बिना भारत राष्ट्रीय हित में पूरी तरह तटस्थ बना हुआ है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी रूस और यूक्रेन, दोनों देशों के नेताओं के संपर्क में रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से टेलीफोन पर 24 फरवरी, 2 मार्च और 7 मार्च को बात की। वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से दो बार बात कर चुके हैं।

‘ऑपरेशन गंगा’ की सफलता के पीछे भारत का बढ़ता कद 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल और दमदार नेतृत्व से वैश्विक स्तर पर आज भारत अपने देश और उसके नागरिकों की सुरक्षा के लिए बिना संकोच अपनी बात रखने में सक्षम है। इसका फिर प्रमाण रूस-यूक्रेन युद्ध में मिला है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा को लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी बात की और उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराया। इससे दोनों देशों ने भारतीयों की सुरक्षित निकासी का आश्वासन दिया। जहां अमेरिका जैसे ताकतवर देश अपने नागरिकों को युद्धग्रस्त युक्रेन से निकालने में असमर्थ था, वहीं भारत ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत 20 हजार से अधिक अपने नागरिकों को निकालने में सफल रहा। इस सफलता के पीछे वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते प्रभाव, प्रधानमंत्री मोदी, चार केंद्रीय मंत्रियों और सुपर 30 का प्रमुख योगदान रहा है।

रूस पर प्रतिबंध के बावजूद भारत ने खरीदा कच्चा तेल
यूक्रेन पर रूस के हमले के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और अमेरिका की नसीहत के बावजूद भारत ने रूस से रियायती कच्चा तेल खरीदने का फैसला किया। भारत के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी व्यापार आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अप्रैल में 20.19 बिलियन डॉलर का पेट्रोलियम खरीदा, जबकि पिछले साल इसी महीने में यह 10.76 बिलियन डॉलर था। भारत रूस से 70 डॉलर प्रति बैरेल तेल खरीदने लगा। हालांकि इसकी यूरोपीय देशों ने खूब आलोचना की। जिसके बाद भारत ने भी पश्चिमी देशों को दो टूक जवाब दिया। परिणाम सामने है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हित को ध्यन में रखते हुए मात्र चार महीने में रूस से 1 प्रतिशत तेल की जगह 17 प्रतिशत तेल खरीदने लगा। भारत अब रूस से कच्चा तेल मंगवाकर जामनगर की फैक्ट्री में पेट्रोल-डीजल तेल तैयार करता है और यूरोपीय देशों को बेचता है।

अमेरिका के दबाव के बावजूद रूस से S-400 की आपूर्ति 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले आठ साल के शासन में आत्मविश्वास से लबरेज एक ‘न्यू इंडिया’ का उदय हुआ है, जो हर चुनौती से टकराने का साहस और सामर्थ्य रखता है। भारत अब दूसरे देशों की सोच और उनके दबाव में नहीं, बल्कि अपने संकल्प से चलता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर समझौता नहीं करता। इसका प्रमाण चीन से तनाव के बीच रूस से आधुनिक ब्रह्मास्‍त्र कहे जाने वाले एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम की आपूर्ति शुरू होने से मिलता है। इस सिस्टम की दो खेप भारत पहुंच चुकी है और तीसरी खेप भी जल्द मिलने वाली है। गौरतलब है कि दिसंबर में मिले पहले मिसाइल डिफेंस सिस्टम को सेना ने पंजाब सेक्टर में तैनात किया है। भारत ने रूस के साथ पांच एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 खरीदने के लिए 5.43 बिलियन डॉलर यानि 40 हजार करोड़ रुपये में सौदा किया था। अक्टूबर 2023 तक भारतीय वायुसेना को एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल की कुल पांच रेजीमेंट मिलनी है। 

सफल कूटनीति से विश्व में भारत का दबदबा
पिछले कुछ समय से चीन परेशान था कि भारत अमेरिका का पिछलग्गू बन गया है। लेकिन अब चीन को विश्वास हो गया है कि भारत किसी भी देश के करीब हो सकता है, उसका पिछलग्गू नहीं है। भारत की सफल कूटनीति के कारण पूरे विश्व में भारत की एक अलग पहचान बनती जा रही है, जिसके कारण चीन जैसे शत्रु देश भी अब भारत से संबंध बेहतर करने के लिए लालायित है। मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि सफल कूटनीति से विश्व में दबदबा कायम किया जा सकता है। 

कोरोना के खिलाफ जंग में मिली वैश्विक सराहना
प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना से जंग में पूरी दुनिया को रास्ता दिखाया है। विश्व के तमाम संगठनों ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में निर्णयकारी नेतृत्व निभाने वाले प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत बताया है। कई दिग्गज अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सर्वे में भी प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही की गई है। मशहूर अमेरिकी पत्रकार थॉमस फ्रायडमैन ने भी माना कि मोदी सरकार ने कोरोना वायरस को परास्त करने में बेहतरीन काम किया है। इससे विश्व स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारत का सम्मान बढ़ा है। वैश्विक कोरोना संकट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ना सिर्फ देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकटमोचक बन गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर दुनिया के तमाम देशों में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए मदद भेजी जा रही है। वैक्सीन के साथ कई देशों को मोदी सरकार ने दवाएं और चिकित्सीय उपकरण भेजे हैं।

‘वैक्सीन मैत्री’ के तहत 98 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति
कोरोना महामारी से बचाव के लिए सबसे जरूरी वैक्सीन के साथ दवा की आपूर्ति को लेकर भारत अभी दुनिया का सबसे अग्रणी देश बन गया है। भारत ने अपने ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम के जरिए 98 देशों को 200 मिलियन कोविड वैक्सीन की डोज सप्लाई की है। इसकी तारीफ कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने की। 55 से अधिक देशों को भारत ने दवा की आपूर्ति की। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देशों से लेकर गुआना, डोमिनिक रिपब्लिक, बुर्कीनो फासो जैसे गरीब देश भी हैं, जिन्हें भारत ने अनुदान के तौर पर दवाओं की आपूर्ति की। भारत ने मालदीव, मॉरीशस, सेशेल्स, मेडागास्कर और कोमोरोस और अन्य पड़ोसी देशों को खाद्य सामग्री और दवाएं भेजकर मदद की। 

विदेशी दौरों में द्विपक्षीय संबंधों को दिया नया आयाम
प्रधानमंत्री मोदी दुनिया की महाशक्तियों के प्रमुखों समेत अपने पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात में द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देने के साथ ही वह भारत की नीतियों को प्रमुखता से बताने में सफल रहे हैं। इससे दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं और देश का सिर सम्मान से ऊंचा उठा और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।

अमेरिका ने दिया रणनीतिक सहयोगी देश का दर्जा
प्रधानमंत्री मोदी के दमदार नेतृत्व के कारण ही अमेरिका ने भारत को रणनीतिक सहयोगी देश का दर्जा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) के सदस्य देशों के साथ कारोबार के तर्ज पर ही वरीयता दी जाएगी। इस फैसले के बाद भारत को अब अमेरिका से उच्चतम रक्षा तकनीक लाइसेंसिंग प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा। अमरीका ने भारत को एसटीए-वन दर्जे वाले देशों में शामिल करने की घोषणा की। यह निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत की स्थिति में बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव है। इस दर्जे के बाद भारत को अमेरिका से अत्याधुनिक रक्षा तकनीक हासिल करने में छूट मिलेगी। इससे भारत को अमरीका के निकटतम सहयोगियों और भागीदारों की तरह अमरीका से अधिक उन्नत और संवेदनशील प्रौद्योगिकी उत्‍पादों को खरीदने की अनुमति होगी। भारत सूची में एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है।

अमेरिका और रूस से एक साथ दोस्ती
अमेरिका और रूस की अदावत सभी जानते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की के कूटनीतिक कौशल के कारण आज दोनों ही देश भारत के साथ खड़े दिखते हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में जिस तरह से रुस ने भारत का साथ देते हुए चीन की हेकड़ी गुम कर दी वह काबिले तारीफ है। ठीक इसी तरह पाकिस्तान परस्त रहे अमेरिका को भारत की तरफ ले आना भी बड़ी बात है। आज अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका ने भारत से दोस्ती की खातिर आज पाकिस्तान को हर मंच पर अकेला छोड़ दिया है।

‘कट्टर तिकड़ी’ को एक साथ साध गए पीएम मोदी
विदेश नीति के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की उपलब्धियां आंकी जाए तो इस बात से अंदाजा लग जाएगा कि किस तरह उन्होंने इजरायल और फिलीस्तीन जैसे आपस में दुश्मन देशों के बीच संतुलन स्थापित किया। विशेष यह कि प्रधानमंत्री ने बारी-बारी दोनों ही देशों का दौरा किया और भारत की विदेश नीति के अपने स्टैंड पर कायम रहे। दोनों ही देशों ने भारत के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब 10 फरवरी,2018 को फिलीस्तीन का दौरा किया तो ऐसा अद्भुत नजारा दिखा जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। जॉर्डन के हेलिकॉप्टर पर सवार प्रधानमंत्री मोदी फिलीस्तीन के आसमान में उड़ रहे थे और उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रही थी इजरायल की वायुसेना। विश्व राजनीति के लिए ऐसा अनोखा काम कोई और नही हो सकता है।

Asean देशों को चीन के ‘चंगुल’ से छुड़ाया
26 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के राजपथ पर विश्व ने एक और अनोखा दृश्य तब देखा जब आसियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्ष भारत की जमीन पर एक साथ दिखे। थाइलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई आसियान के नेताओं ने भारत को अपनी इस इच्छा से अवगत कराया कि रणनीतिक तौर पर अहम भारत-प्रशांत क्षेत्र में ज्यादा मुखर भूमिका निभाए। साफ है कि आसियान देशों के नेताओं का पीएम मोदी पर भरोसा व्यक्त किया जाना विश्व राजनीति में भारत के दबदबे को दिखा रहा है।

इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंधों में आई मजबूती
सऊदी अरब से लेकर यूएई सहित तमाम इस्लामिक देशों ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित भी किया। इसके अलावा इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंध भी मजबूत हुए हैं, जिसका नतीजा है कि कश्मीर मसले पर दुनिया भर के देशों ने भारत का साथ दिया। पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्रों से अपने सबंधों के बल पर भारत को आंख दिखाता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान, यूएई और सऊदी अरब के साथ भारत के सामरिक रिश्तों को मजबूत किया। इन देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के रिश्तों को एक नया आयाम दिया। यूएई ने भारत के अपराधियों को प्रत्यर्पण करने में पूरी मुस्तैदी दिखाई। इस तरह भारत ने पाकिस्तान को अलग कर दिया है। पाकिस्तान के मित्र राष्ट्रों के साथ दोस्ती करके प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के नैतिक बल को ही खत्म कर दिया है।

आतंकवाद पर दुनिया ने स्वीकारा पीएम मोदी का आह्वान
आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं। पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे साथ हैं। जी-20 हो या हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन, ब्रिक्स हो या सार्क समिट सभी ने हमारे साथ आतंकवाद को मानवता का दुश्मन बताते हुए दुनिया को इसके खिलाफ एक होने का आह्वान किया है।

प्रधानमंत्री मोदी की नीति से पस्त हुआ पाकिस्तान
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में ऐसा घिरा है कि उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। हाल में ही जब चीन ने पाकिस्तान की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर ओबीओआर को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत की साजिश की बात कही थी। दूसरी ओर अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है और वह पाकिस्तान से सहयोग में भी लगातार कटौती कर रहा है। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत को दुनिया का साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला और जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैड को तबाह किया तो विश्व समुदाय भारत के साथ खड़ा रहा। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका। इसके अलावा चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली।

लद्दाख और डोकलाम में चीन ने देखी भारत की धमक
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने लद्दाख और डोकलाम में चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया। गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के मारे जाने की संख्या को लेकर जमकर आलोचना का सामना करना पड़ा। अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक-टैंक हडसन इंस्टिट्यूट के सेंटर ऑन चाइनीज स्ट्रैटजी के डायरेक्टर माइकल पिल्स्बरी नो कहा कि चीन की बढ़ती ताकत के समक्ष मोदी अकेले खड़े हैं। दरअसल ये टिप्पणी उन्होंने ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को ध्यान में रखते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और उनकी टीम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के खिलाफ मुखर रही है। दरअसल अमेरिकी थिंक टैंक का मानना बिल्कुल सही है, क्योंकि भारत ने चीन को डोकलाम विवाद में भी अपनी दृढ़ता का परिचय करा दिया है और चीन को अपनी सेना को वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा। चीन ने भारत को युद्ध की भी धमकी दी लेकिन पीएम मोदी की नीतियों से चीन अकेला हो गया और पश्चिमी देशों ने उसे संयम बरतने की सलाह दी। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े रहे।

अंतरिक्ष कूटनीति से सार्क को दी नई दिशा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरूरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

8वीं बार सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य बना भारत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विश्व के हर प्रभावशाली मंच पर भारत की दमदार उपस्थिति दिखाई दे रही है। भारत को 17 जून,2020 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का 8वीं बार अस्थाई सदस्य चुना गया। 4 जनवरी, 2021 का दिन भारत के लिए गर्व भरा रहा। इस दिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गलियारे में तिरंगा फहराया गया। इसी के साथ भारत संयुक्त राष्ट्र के इस शक्तिशाली निकाय में दो वर्षों के लिए अस्थायी सदस्य के तौर पर अपना कार्यकाल भी शुरू कर दिया। भारतीय ध्वज के साथ चार अन्य अस्थायी सदस्यों का राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया गया, जिसमें नॉर्वे, केन्या, आयरलैंड और मैक्सिको शामिल हैं। सुरक्षा परिषद में मौजूदगी से किसी भी देश की यूएन प्रणाली में दखल और दबदबे का दायरा बढ़ जाता है। ऐसे में 8 साल बाद भारत की सुरक्षा परिषद में दो साल के लिए पहुंचना खासा अहम है। 

सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता को कई देशों का समर्थन
प्रधानमंत्री मोदी ने कई विभिन्न देशों की यात्राएं की हैं। इन यात्राओं में वे तीन प्रमुख एजेंडों के साथ आगे बढ़ रहे थे। अलग-अलग देशों के साथ संबंधों में सुधार, निवेश आमंत्रित करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सीट के लिए समर्थन जीतना उनका प्रमुख उद्देश्य था। दरअसल भारतीय इतिहास में कोई और प्रधानमंत्री नहीं जिन्होंने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए इतनी मेहनत की है। अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों के राजदूत और नेताओं को भारत के पक्ष में लाकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए लगभग सभी देशों का समर्थन हासिल कर लिया। यह समर्थन इस अंतरराष्ट्रीय मंच की स्थिति के लिए भारत की पात्रता दिखाने के उनके प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम था।

ICJ में भारत का झंडा बुलंद
संयुक्त राष्ट्र में भारत को बड़ी जीत तब मिली जब दलवीर भंडारी लगातार दूसरी बार अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। दलवीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन आखिरी दौर में अपनी हार देखते हुए उन्हें नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल शुरुआती ग्यारह राउंड में दलवीर भंडारी संयुक्त राष्ट्र महासभा की वोटिंग में ग्रीनवुड पर भारी बढ़त बनाए हुए थे, लेकिन सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड आगे हो जाते थे। यूएन महासभा में दलवीर भंडारी को 183 वोट मिले, जबकि उन्हें सुरक्षा परिषद के सभी 15 वोट मिले। गौर करें तो यह जीत भंडारी की नहीं बल्कि भारत के उस बढ़े कद की है जो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ा है। कभी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन आज भारत के सामने बौना साबित हो रहा है।

भारत ने जीता अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातर बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत को एक और कामयाबी मिली। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव जीत लिया। कुल 10 सदस्यों वाले इस संगठन का भारत 1959 से सदस्य है। जो चुनाव हुआ वह अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन की एक काउंसिल के लिए हुआ। यहां वह काउंसिल कैटेगरी बी की है जिसके लिए पहली बार चुनाव हुआ। IMO यूएन की ऐसी एजेंसी है जो नौवहन के बचाव और सुरक्षा पर नजर रखती हैं। यह एजेंसी जहाजों द्वारा फैलाए जाने वाले प्रदूषण पर भी नजर रखती है। भारत और जर्मनी के साथ ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, स्पेन, ब्राजील, स्वीडन, नीदरलैंड और यूएई इसके सदस्य हैं।

जलवायु परिवर्तन पर विश्व को दिया ‘पंचामृत’ का फॉर्मूला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 शिखर सम्मेलन में विश्व को लाइफ यानि Lifestyle For Environment का मंत्र दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके साथ ही विश्व को पंचामृत का फॉर्मूला भी दिया। उन्होंने कहा, ‘क्लाइमेट चेंज पर इस वैश्विक मंथन के बीच, मैं भारत की ओर से, इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं, पंचामृत की सौगात देना चाहता हूं।”
पहला- भारत, 2030 तक अपनी Non-Fossil Energy Capacity को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा।
दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत energy requirements, renewable energy से पूरी करेगा।
तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।
चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।
और पांचवां- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा। ये पंचामृत, क्लाइमेट एक्शन में भारत का एक अभूतपूर्व योगदान होंगे।

जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा
जलवायु परिवर्तन पर काम करने के लिए भारत वैश्विक नेतृत्व को प्रेरित कर रहा है क्योंकि भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरत का 40% हिस्सा 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया था, उसे नौ साल पहले ही हासिल कर लिया। भारत ने ऊर्जा के लिए कोयले से सौर की तरफ रूख करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। सौर और पवन ऊर्जा में भारी निवेश से बिजली की कीमतें भी कम हुई हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार यह साहस भी दिखाया है जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग किया तो दुनिया की नजर भारत पर ठहर गई। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व मंच पर अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज करा दी है। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर ही इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का गठन हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर बना ‘अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन’
दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए चिंता जता रही थी, लेकिन भारत ने बड़ी पहल की और वैश्विक स्तर पर अमेरिका और फ्रांस के साथ इसके लिए इनोवेशन की तरफ कदम बढ़ाया गया। 26 जनवरी, 2016 को गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया तो एक ‘नये अध्याय’ की शुरुआत हुई। दरअसल ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई पहल का परिणाम है और इसकी घोषणा भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में की गई थी। आईएसए के गठन का लक्ष्य सौर संसाधन समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और इसे बढ़ावा देना है। अब तक इस मंच से दुनिया के 86 से अधिक देश जुड़ चुके हैं।

पीएम मोदी के आह्वान से योग को दुनिया ने दिया समर्थन
प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर 21 जून, 2015 को विश्व के 192 देश जब ‘योगपथ’ पर चल पड़े तो सारे संसार में योग का डंका बजने लगा। आधुनिकता के साथ अध्यात्म का मोदी मंत्र दुनिया के देशों को भी भाया और इसी कारण पीएम मोदी की पहल को 192 देशों का समर्थन मिला। 177 देश योग के सह प्रायोजक के तौर पर इस आयोजन से जुड़ भी गए। अब पूरी दुनिया योग शक्ति से आपस में जुड़ी हुई महसूस होने लगी। प्रधानमंत्री मोदी के अनथक प्रयास से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह अनायास नहीं है कि पूरी दुनिया में योग का डंका बज रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत की नीति और भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति से प्रभावित प्रधानमंत्री मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है।

जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की एक अहम शक्ति बनकर उभरा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का अहम स्थान है, तो सामरिक क्षेत्र में भी भारत ने अपनी हनक का अहसास कराया है। सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में भारत ने जहां अपनी जिम्मेदारी निभाई है, वहीं पर्यावरण संतुलन जैसे मुद्दे पर भी भारत की पहल सराहनीय रही है। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख ने जहां देश-दुनिया को सोचने को मजबूर किया है, वहीं विश्व शांति की ओर भारत के प्रयासों को दुनिया के देशों ने मान्यता दी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। विदेश नीति के तौर पर उनकी उपलब्धियां आंकी जाए तो पीएम मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है।

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