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सत्ता के लालच में कांग्रेस ने किया देश को बदहाल

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देश की सत्ता पर लंबे समय तक राज करने वाली राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी ने देश हित के सभी मुद्दों पर निर्णयों को लटकाए रखा। निर्णयों को किसी भी तरह लागू होने से लटकाए रखने की कांग्रेस की आदत ने देश में एक गलत परंपरा तो डाली ही, साथ ही देश को बदहाली की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। कालेधन पर एसआईटी के गठन से लेकर जीएसटी और भारत में रह रहे अवैध लोगों की पहचान को केवल इसलिए टाला कि वोटबैंक पर कोई असर न पड़े, लेकिन कांग्रेस पार्टी के इस भटकाने की चाल का जबरदस्त जवाब जनता ने 2014 के आम चुनाव में दिया। इस लेख में आपको बताएंगे कि कांग्रेस पार्टी ने किन-किन मुद्दों पर देश को किस तरह गुमराह किया।

अवैध घुसपैठियों की पहचान का मुद्दा
भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में विशेषकर असम में बांग्लादेश से आए नागरिकों के बसने की एक बड़ी समस्या है। फर्जी तरीके से आए इन लोगों के कारण उत्तरीपूर्वी राज्यों के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों में सामाजिक और आर्थिक बोझ बढ़ा, जिसके विरोध में आंदोलन हुए। असम में इनके खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हुआ, जिसको 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौते से खत्म किया। इस समझौते की बुनियाद थी कि फर्जी नागरिकों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाएगा, लेकिन इस मसले पर 2005 तक सरकार ने कुछ नहीं किया। 05 मई 2005 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने त्रिपक्षीय समझौते के तहत फर्जी नागरिकों की पहचान के लिए NRC पर काम करने का निर्णय लिया, लेकिन 2006 में होने वाले असम विधानसभा चुनाव में सत्ता बचाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ने से रोक दिया। सोनिया गांधी की नजर असम चुनाव में 27 प्रतिशत मुसलमानों के वोट पर थी और राज्य में सरकार बनाने के लिए इन फर्जी वोटों का साथ जरुरी था। इस राज का पर्दाफाश हाल ही में विकीलीक्स की एक रिपोर्ट में हुआ है। सत्ता के लालच में सोनिया गांधी द्वारा इस प्रक्रिया को रोकने से नाराज लोग 2009 में सर्वोच्च न्यायालय के पास पहुंचे। सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रक्रिया को अपने हाथों में ले लिया और 2014 से उसने अपनी निगरानी में फर्जी  नागरिकों के पहचान का काम शुरु किया, जो 30 जुलाई 2018 को पूरा हुआ। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद पता चला कि केवल असम राज्य में ही 40 लाख फर्जी नागरिक रह रहे हैं। असम में फर्जी बांग्लादेशी नागरिकों का पता चलते ही कांग्रेस की सहयोगी नेता ममता बनर्जी ने देश में गृहयुद्ध होने की बात कह ड़ाली क्योंकि पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस की सत्ता इन फर्जी नागरिकों के वोट पर टिकी हुई है।

फर्जी कंपनियों और एनजीओ को बढ़ावा देना
कांग्रेस के राज में कालेधन को देश से बाहर ले जाने के लिए बड़े पैमाने पर फर्जी कंपनियों को बनाया गया। इस बात का खुलासा नोटबंदी के दौरान मिली जानकारी से हुआ। अब तक करीब 3 लाख फर्जी कंपनियों का पता चल चुका है। इन कंपनियों का पता चलते ही मोदी सरकार ने इनके पंजीकरण को रद्द करके इनके निदेशकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया और उनके आजीवन किसी कंपनी के निदेशक बनने पर पाबंदी लगा दी। इसी तरह इस देश में करीब 20 हजार ऐसी फर्जी स्वंयसेवी संगठन बनाये गए, जो विदेशों से मनमाने ढंग से चंदा लेकर, देश विरोधी गतिविधियों में लगे हुए थे। इन सभी स्वंयसेवी संगठनों को विदेशों से मिलने वाले चंदे पर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने पूरी तरह से पाबंदी लगा दी। कांग्रेस पार्टी ने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए फर्जी नागरिकों से लेकर कालाधन बनाने वालों का साथ दिया। 

अयोध्या में मंदिर-मस्जिद पर निर्णय को लटकाना
कांग्रेस ने अपने मुस्लिम वोट बैंक को हर हाल में खुश रखने के लिए राम जन्मभूमि पर भी निर्णय को लंबे समय तक लटकाने का काम किया।  राम जन्मभूमि विवाद पर दशकों बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से 2010 में निर्णय आया, जिसमें राम जन्मभूमि को रामलला विराजमान को देने का फैसला दिया गया। इसके बाद यह मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायलय के सामने अंतिम फैसले के लिए आ गया, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय लगातार सुनवाई करके जल्द से जल्द निर्णय सुनाना चाहता है। इस केस में कांग्रेस के नेता और मुस्लिम पक्ष की तरफ से वकालत कर रहे कपिल सिब्बल ने न्यायलय से अपील की है कि इस मुकदमे का फैसला 2019 के बाद सुनाया जाए, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। कांग्रेस के लिए राम जन्मभूमि का मुद्दा भी असम के अवैध नागिरकों की पहचान के मुद्दे जैसा था, जो इसके मुस्लिम वोट बैंक को सीधा प्रभावित करता है।

आधार संख्या की योजना को लटकाना
यह कैसी विडंबना है कि कांग्रेस पार्टी ने ही देश के हर नागरिक को आधार संख्या देने का निर्णय लिया और फिर लागू करने में उसके हाथ-पांव फूलने लगे। 2014 तक इसे लागू करें या न करें की उलझन को कांग्रेस सरकार सुलझा न सकी और फिर उसके हाथ से जनता ने सत्ता छीन ली। प्रधानमंत्री मोदी ने इस योजना को पूरी तरह से लागू किया और देश के लगभग 90 प्रतिशत नागरिकों को आधार से जोड़ दिया। सरकारी योजनाओं को आधार संख्या से भी जोड़ दिया। प्रधानमंत्री मोदी की इस सफलता को देखकर कांग्रेस ने कानूनी रुप से इसका विरोध करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर दी। आधार संख्या ने कांग्रेस के फर्जी कामों पर नकेल कसने का काम कर दिया, इसलिए उसकी बिलबिलाहट स्वाभाविक थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर पूरी बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।

कांग्रेस ने देश में निर्णयों को लटकाने और योजनाओं को भटकाने की ऐसी कार्य संस्कृति पैदा की, जिससे देश आर्थिक और सामाजिक रूप से बदहाली के कगार पर पहुंच गया। आज भी कांग्रेस पार्टी अपनी उस कार्य संस्कृति से बाहर नहीं आ सकी है, इसलिए वह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हर क्षेत्र में तेजी से लागू किये जा रहे निर्णयों का विरोध करती है।

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