भगवान के नाम पर धोखा देकर जनता से धन लूटने वाले धार्मिक गुरुओं के खिलाफ, यदि सीबीआई छापेमारी करती है, तो उसे इस तर्क पर गलत नहीं कहा जाता कि यह व्यक्ति की आस्था पर हमला है, बल्कि यह स्वीकार्य तर्क होता है कि जनता के धन को लूटने का काम करना अनैतिक ही नहीं, कानूनन अपराध है, फिर वह कोई धार्मिक गुरु करे या समाज के संस्थानों के ऊंचे पदों पर बैठा हुआ व्यक्ति। मीडिया हाउस के मालिक यदि जनता का धन(बैंक) येन केन प्राकरेण लूट लेते हैं, और सीबीआई (राजसत्ता) उसे जनता को वापस दिलवाना चाहती है, तो उसे इस तर्क से गलत नहीं ठहराया जा सकता कि यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला है। गलत कर्मों की सजा सुनिश्चित करना, सुशासन का महत्वपूर्ण मापदंड है।
मीडिया मालिकों का असली चेहरा
एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय और राधिक राय के घर पर सीबीआई की छापेमारी को कुछ स्थापित पत्रकार और पूरा विपक्ष, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर मोदी सरकार का हमला बता कर, हंगामा बरपाने की कोशिश कर रहे हैं।
Those who value media freedom must speak out & act ’cause they know that while nothing will happen in the end the process is the punishment. https://t.co/t3d1vAEGQ0
— N. Ram (@nramind) June 5, 2017
लेकिन जो आज पत्रकारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और लोकतंत्र पर हंगामा खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, उनको यह भी देखना होगा कि इतिहास में ऐसे कई मौके आये हैं, जब इन्हीं मीडिया हाउसों ने धन के लिए पूर्ववर्ती सरकार से सांठगांठ की और धन के लालच में हजारों पत्रकारों को चंद घंटों में सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। इनमें से कुछ उदाहरण हैं-
- 2013 के अगस्त में जब राजदीप सरदेसाई और आज के आप प्रवक्ता आशुतोष, आईबीएन 7 और सीएनएन आईबीएन के सर्वेसर्वा थे तो एक शाम में 350 पत्रकारों को सड़कों पर निकाल फेंक दिया गय़ा। तब सब मौन क्यो थे?
- पिछले दो सालों से अधिक, सहारा न्यूज चैनल के हजारों कर्मियो को सैलरी नहीं मिल रही है। सैलरी न मिलने के दबाव में कितनों के परिवार तबाह हो रहे हैं, तो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के मसीहा कहां हैं।
- इसी तरह लाइव इंडिया और मी मराठी न्यूज के हजारों कर्मियों को सालों से सैलरी नहीं मिल रही है, इन परिवारों का क्या हाल है, क्या उन लोगों में से किसी ने आवाज बुलंद की, जो आज एनडीटीवी के मालिक के लिए रो रहे हैं।
- न्यूज एक्सप्रेस चैनल, एक ही दिन में अचानक बंद हो जाने से हजारों पत्रकार सड़क पर आ गये, क्या उनका हाल पूछने के लिए आज के रक्षकों को नहीं जाना चाहिए था।
- पी 7 न्यूज चैनल भी एक ही दिन में अचानक बंद हो गया, यहां से भी हजारों पत्रकार बिना किसी सैलरी के सड़कों पर आ गये, क्या जो आज प्रजातंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बता रहे हैं, उन्होंने हाल पूछा था।
तब मौन थे अब मुखर क्यों?
आज एनडीटीवी पर सीबीआई के छापे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला कहने वाले, इतिहास की इन सभी घटनाओं पर मौन थे। मौन थे उस धृतराष्ट्र की तरह जो यह नहीं देख पा रहा था कि उन्हीं के सामने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के रक्षक कहे जाने वाले, जीवन जीने के अधिकार का भक्षण कर रहे थे, तो क्या आज के पत्रकार बने मालिकों ने सोचा था कि जब पत्रकारों का जीवन ही नहीं रहेगा तो, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार कौन अक्षुण्ण रखेगा। आज जब पत्रकार बने मालिकों के काले कारनामे बाहर आ रहे हैं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बताया जा रहा है।
सवालों में रहा है मीडिया उद्योग
यह बात सही है, कि प्रजातंत्र की शक्ति और निरतंरता नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से पोषित और पल्लवित होती है, इस शास्वत सत्य को हम सभी स्वीकार करते हैं. लेकिन देश में ‘नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार’ के नाम पर जिस विशालकाय उद्योग ने अपनी जड़ें जमा ली हैं, और इस उद्योग को उसी तरह से चलाया जा रहा है जैसे कि अन्य उद्योग चालाये जाते हैं, तो अन्य सभी तर्क वास्तविकता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
इस उद्योग की खासियत है कि इसमें मुनाफे के साथ साथ जनता और सत्ता से सम्मान का सुख भी मिलता है। मीडिया उद्योग से मिलने वाले इस मुनाफे और सत्ता सुख के लिए कई चिट फंड कंपनियों के साथ साथ रियल एस्टेट की कंपनियों और राजनीति से जुड़े व्यक्तियों ने अपने व्यवसाय इस क्षेत्र में स्थापित किये। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं—
- पी-7
- न्यूजएक्सप्रेस
- महुआ
- लाइव इंडिया
- सहारा इंडिया
- आईएनएक्स मीडिया
- फोकस, इत्यादि
देश में 400 से अधिक चैनेलों में से ऐसे ढेरों चैनल हैं, जिनके मालिकों ने सत्ता से गठजोड़ के लिए न्यूज चैनल के व्यवसाय में प्रवेश किया जिनका उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सुरक्षित रखने से अधिक धन और सत्ता सुख प्राप्त करना था।
क्यों हुई मीडिया समूहों पर छापेमारी?
16 मई 2017 को आईएनएक्स मीडिया के मालिक पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी के घर पर भी सीबीआई ने छापा मारा था, क्योंकि पीटर मुखर्जी ने यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी चिदाम्बरम के बेटे कार्ती चिदम्बरम की कंपनी के जरिए विदेश से 350 करोड़ रुपये अपनी कंपनी में निवेश करवाने के लिए मंगवाया। आजकल पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी दोनों ही अपनी बेटी शीना बोरा की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं।
इसी तरह 5 जून 2017 को एनडीटीवी के मालिक प्रणय राय और राधिक राय के घर पर सीबीआई ने छापे मारी की, क्योंकि इन दोनों ने पेपर पर एक कंपनी बनायी, आऱआऱपीआऱ होल्डिंगस प्राइवेट लिमिटेड, जिसके पूरे शेयर इन्हीं दोनों, पति-पत्नी, के थे। इस कंपनी का कोई कारोबार नहीं था, फिर भी इस कंपनी को आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रुपये का लोन एनडीटीवी को बैंक के पास गिरवी रख कर ले लिया और इसी धन से एनडीटीवी के लगभग 29 प्रतिशत शेयर खरीद लिए। इस खेल में बैंक और एनडीटीवी के मालिकों ने सेबी और आरबीआई के नियमों की खूब धज्जियां उड़ायी। सीबीआई ने अपने 88 पेज के एफआई आर में इन बातों का उल्लेख किया, सीबीआई के एफआईआर का संक्षिप्त सार है-
एनडीटीवी के मालिकों ने धन के लालच में गैरकानूनी काम किया है तो इसकी सीबीआई जांच कैसे प्रजातंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला हो सकता है। अपने पाप छुपाने के लिए पवित्र सत्य का सहारा लेकर सरकार को कठघरे में शामिल करना और अन्य मीडिया हाउस को यह डर दिखाकर उकसाना कि यदि उसने अभी सरकार का विरोध नहीं किया, तो उनका भी जल्दी ही नबंर आएगा, पर कोई विश्वास नहीं कर सकता क्योंकि कर्म, झूठ और लालच को साबित कर रहे हैं।