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उत्तर प्रदेश के किसानों की कर्जमाफी पर हायतौबा क्यों है?

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उत्तर प्रदेश के 87 लाख सीमांत किसानों के एक लाख रुपये तक के कर्ज माफ करने का वादा भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में किया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 1 सितंबर से इस संकल्प को सिद्धि में बदलना शुरु कर दिया है। इस कर्जमाफी योजना के जरिए सरकार किसानों के 36,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करेगी। लेकिन इन प्रयासों के बीच बैंकिंग प्रणाली की कुछ खामियां भी सामने आई हैं जिसमें किसानों के कर्ज महज चंद पैसों के भी हैं जिन्हें माफ करने की सूची में डाला गया है। जाहिर है अब यह राजनीति का मुद्दा बन गया है और कहा जा रहा है कि भाजपा किसानों के साथ मजाक कर रही है। लेकिन क्या यही सच है? आइये जानते हैं-

समयबद्ध तरीके से ऋण माफी
राज्य के 87 लाख किसानों के बैंक ऋण खाते और उनकी जोत का मिलान करके ऋण की रकम को निश्चित करना अपने आप में एक बड़ा काम है। उस पर इस बात का भी ध्यान रखना कि किसानों की कर्जमाफी के नाम पर कोई फर्जीवाड़ा न हो सके। इसके लिए योगी सरकार ने खातों का आधार संख्या से मिलान करने से लेकर, लेखपाल की रिपोर्ट के सत्यापन को समय पर पूरा करवाया। पूरी कर्ज माफी की प्रक्रिया पारदर्शी रहे, इसके लिए किसान ऋण मोचन पोर्टल को भी शुरु किया गया। इस पोर्टल पर सभी जानकारियों को देने के साथ साथ शिकायत करने की व्यवस्था भी की गयी, ताकि किसान अपनी शिकायत तुरंत कर सकें।

कुछ किसानों का 19 पैसे बकाया क्यों था?
31 मार्च 2016 तक किसानों पर ब्याज सहित कुल बकाया धन का 1 लाख रुपये तक माफ करने के लिए 1 सितंबर से राज्य के जिलों में जिलाधिकारियों ने कैंप लगाने शुरु कर दिए। कुछ जिलों के इन कैंपों में हजारों किसानों में से कुछ किसानों की बकाया राशि 500 या 1000 रुपये से भी कम थी। कुछ किसानों पर बकाया राशि 19 पैसे तक भी थी जो पहले से चली आ रही हमारी बैंकिंग व्यवस्था पर भी सवाल उठाती है।

दरअसल इन किसानों ने बैंकों को जो ऋण वापस किये थे, उसे वापस करने के बाद बैंकों के खाते में इतने ही पैसों का ऋण बचा था, जिसे नियमों के अनुसार माफ कर दिया गया। यह सभी जानते हैं कि सरकारी खातों में 19 पैसे ही नहीं 2 पैसे के बकाये को बकाया माना जाता है, और तब तक यह शून्य नहीं होता जब तक कि इसे वापस न कर दिया जाए।


किसानों को मिला पूरा लाभ
बहुसंख्य किसानों के 90,000 से लेकर 1 लाख तक के ऋण माफ हुए हैं, लेकिन विपक्ष का इस पर ध्यान नहीं गया बल्कि उसने कर्ज माफी पर सरकार को घेरने के लिए सरकारी खातों के नियमों के आधार पर बचे हुए 19 पैसे को ही मुद्दा बनाने का प्रयास किया। इतने बड़े पैमाने पर जहां 87 लाख किसानों का ऋण माफ करना है, वहां कुछ किसानों के साथ लेखपाल या बैंक की छोटी लापरवाहियों के चलते ऋण की राशि कम हुई होगी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए, योगी सरकार ने पहले से ही आनलाइन और हेल्पलाइन पर शिकायत करने की सुविधा उपलब्ध करा दी थी।

यूपीए सरकार ने किसानों की कर्ज माफी में भी घोटाला किया

अभी हाल में मीडिया रिपोर्ट आयी है कि महाराष्ट्र में दस लाख फर्जी किसान ऋण खातों का पता चला है। इन फर्जी किसान ऋण खातों के जारिए हजारों करोड़ रुपये यूपीए सरकार के समय पचा लिए गये। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने 2008-09 के बजट में सीमांत किसानों के कर्ज को खत्म करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये का बजट पेश किया था। मार्च 2013 में जब सीएजी ने यूपीए की इस ऋण माफी की रिपोर्ट लोकसभा में पेश की तो सारी धांधलेबाजी सामने आ गयी। रिपोर्ट के अनुसार वित्त मंत्रालय ने देश के 3.62 करोड़ किसानों का 52,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया। लेकिन सीएजी ने कहा कि इसमें बड़े पैमाने पर उन लोगों के ऋण माफ किए गये, जो ऋण माफी के लिए अयोग्य थे। 3.62 करोड़ किसानों में से लगभग 90,576 किसानों के खातों का जब सीएजी ने अध्धयन किया तो पाया कि किसानों के 20,216 खातों में कमियां थी, जिनसे 164 करोड़ रुपये की कर्ज माफी की गयी, जो नियमों के खिलाफ थी। जब सीएजी के 90,576 खातों के निरिक्षण में 164 करोड़ का घोटाला निकला तो 3.62 करोड़ किसानों में कितना बड़ा घोटाला किया गया होगा।

किसानों के ऋण माफी योजना को यूपीए सरकार ने घोटाले का एक आसान रास्ता बना दिया था जिसका खामियाजा आज तक देश के किसान और मोदी सरकार झेल रही है।

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