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एप्सटीन फाइल्स से ‘विदेशी साजिश’ तक: ऐसे गढ़ा गया पीएम मोदी और केंद्र सरकार के खिलाफ फेक नैरेटिव

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देश में लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम के माध्यम से मनमाफिक फेक नैरेटिव गढ़ने की आदत काफी पुरानी है। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक संगठित, योजनाबद्ध और अंतरराष्ट्रीय साजिश के साथ सामने आई है। ‘एप्सटीन फाइल्स’ के नाम पर पीएम मोदी और मोदी सरकार को जानबूझकर घसीटने की कोशिश उसी रणनीति की ताजा कड़ी है। सोशल मीडिया से लेकर कुछ चुनिंदा डिजिटल प्लेटफॉर्म तक यह झूठ इस तरह फैलाया गया है, मानो कोई अकाट्य सच सामने आ गया हो। जबकि तथ्य यह है कि जिन दस्तावेजों और सूचियों का हवाला दिया गया, उनमें पीएम मोदी का नाम था ही नहीं। सवाल यह नहीं कि झूठ पकड़ा गया, सवाल यह है कि यह झूठ गढ़ा किसने, क्यों गढ़ा और किस मकसद से गढ़ा गया। यह दिलचस्प और ध्यान देने योग्य अकाट्य तथ्य है कि जब-जब भारत वैश्विक मंच पर मजबूत होता नजर आता है, वह चाहे जी-20 की अध्यक्षता हो, रणनीतिक साझेदारियां हों, आत्मनिर्भर भारत की नीति हो या फिर तेजी से बढ़ती इकोनॉमी हो, तब-तब इकोसिस्टम के जरिए ऐसे नैरेटिव तेज हो जाते हैं।

पीएम मोदी का नाम महज संयोग नहीं, खतरनाक षड्यंत्र
पहले जरा यह जान लेते हैं कि यह ‘एप्सटीन फाइल्स’ आखिर हैं क्या। जेफरी एप्सटीन एक अमेरिकी अपराधी था, जिस पर यौन शोषण और मानव तस्करी जैसे गंभीर आरोप लगे। उसकी जांच से जुड़े कई दस्तावेज, संपर्क और अदालती कागजात समय-समय पर सार्वजनिक होते रहे हैं। लेकिन इन फाइल्स का इस्तेमाल एक राजनीतिक हथियार की तरह करने की साजिशें रची जा रही हैं। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि इस खतरनाक षड्यंत्र में भारत के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी का नाम घसीटा जा रहा है। इस खेल के पीछे वही लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम दिखाई देता है, जो वर्षों से ‘अर्बन नक्सल’, ‘इंटेलेक्चुअल डिसेंट’ और ‘एक्टिविस्ट जर्नलिज्म’ के नाम पर भारत की संस्थाओं, सेना, लोकतंत्र और अब सीधे प्रधानमंत्री को निशाना बनाता रहा है।

लेफ्ट लिबरल गैंग सोशल मीडिया की साजिशों में लिप्त
दरअसल चुनावी हार, जनसमर्थन की कमी और वैचारिक दिवालियापन ने इस गैंग को सड़क की राजनीति से सोशल मीडिया की साजिशों तक सीमित कर दिया है। जब देश के भीतर मुद्दे नहीं मिलते, तब विदेशों में बैठकर ‘विदेशी रिपोर्ट’, ‘लीक दस्तावेज’ और ‘अज्ञात सूत्रों’ के सहारे भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश होती है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि मोदी सरकार को बदनाम करने से इन्हें मिलेगा क्या? जवाब साफ है: राजनीतिक पुनर्जीवन की उम्मीद। जिस नेतृत्व को बार-बार जनता ने नकार दिया हो, उसके लिए नैरेटिव वॉर आखिरी हथियार बचा है। हालांकि इसमें भी उसे बुरी तरह मात मिली है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की साख को चोट पहुंचाना, निवेशकों में भ्रम फैलाना और देश के भीतर अविश्वास का माहौल बनाना यही इस पूरी मुहिम का लक्ष्य है।

आइए, देखते हैं कि एक शानदार थ्रेड के माध्यम से इस सुनियोजित साजिश का कैसे पर्दाफाश हुआ है। @StarBoy2079 नाम के इस X हैंडल पर विस्तार से एप्सटीन फाइल्स विवाद की पोल खोली गई है…

अमेरिका से लौटे पत्रकार, एप्सटीन के नाम पर शुरू हुआ विवाद
पिछले कुछ समय में भारतीय सोशल मीडिया पर यह दावा तेजी से फैलाया गया कि प्रधानमंत्री का नाम कुख्यात जेफरी एप्सटीन से जुड़ी फाइल्स में है। बाद में जब सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों में ऐसा कोई उल्लेख सामने नहीं आया, तो सवाल उठा कि यह दावा किसने और क्यों फैलाया। इसी बिंदु की गहन पड़ताल की गई। इस सोशल मीडिया थ्रेड ने पूरे घटनाक्रम को और सुनियोजित साजिश की पोल खोलकर रख दी। थ्रेड में तथ्यों के माध्यम से यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि अक्टूबर 2025 में अमेरिका से लौटे कुछ भारतीय पत्रकारों ने मिलकर कैसे साजिश को अंजाम दिया। सुनियोजित प्लानिंग के तहत इन पत्रकारों ने लगभग एक ही समय पर, समान भाषा और समान लक्ष्यों के साथ केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ वीडियो और पोस्ट जारी किए। लोगों के बीच मिलकर भ्रम फैलाया गया।

एक जैसे प्लेटफॉर्म, एक जैसा संदेश और एक ही लक्ष्य
आरोप है कि The Public India, HW News, DB Live, Jan Gan Man, Satya Hindi जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर एक ही नैरेटिव अलग-अलग रूपों में चलाया गया। थ्रेड के अनुसार, यह समानता स्वतःस्फूर्त नहीं थी, बल्कि पहले से तय संदेश-रणनीति का परिणाम थी। इससे साफ हुआ कि यह संयोग नहीं था, बल्कि बदनाम करने की समन्वित कार्ययोजना थी।

नीलू व्यास थॉमस की भूमिका पर सवाल
थ्रेड में विशेष रूप से नीलू व्यास थॉमस के कंटेंट का उल्लेख करते हुए कहा गया कि उन्होंने बिना ठोस प्रमाण के एप्सटीन फाइल्स वाले दावे को आगे बढ़ाया। दरअसल, नीलू थॉमस ने जो तर्क गढ़े, उनके पीछे कोई आधार ही नहीं था। यही वजह है कि उनके तर्क को आलोचक “तर्कहीन” बताते हैं। उनके साजिश इसलिए पूरी तरह असफल रहीं, क्योंकि फाइल्स में पीएम मोदी का दूर दूर तक नाम ही नहीं है।

कांग्रेस आईटी सेल और नेताओं की ‘एम्प्लीफिकेशन’
स्टार बॉय तरुण का लंबा थ्रेड यह भी दावा करता है कि पत्रकारों द्वारा शुरू किए गए नैरेटिव को बाद में कांग्रेस आईटी सेल और कुछ विपक्षी नेताओं ने आगे बढ़ाया। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इसके पीछे शुरू से ही कांग्रेस के आईटी सैल की अहम भूमिका थी। लेकिन वह जान बूझकर पूरी योजना के तहत पहले सामने नहीं आया। बाद में उसकी असलियत सामने आई और इसे सोशल मीडिया और राजनीतिक तंत्र के बीच तालमेल के रूप में प्रस्तुत किया गया।

अमेरिका यात्रा को साज़िश की कड़ी बताने का प्रयास
आरोपों के अनुसार, यह पूरा अभियान अक्टूबर 2025 में अमेरिका यात्रा के दौरान ही रूपरेखित किया गया। सवाल उठाया गया कि भारत के सबसे बड़े त्योहार दीपावली के समय कुछ हिंदी पत्रकारों को लंबे अमेरिकी दौरे पर किसने और क्यों आमंत्रित किया। इन पत्रकारों का ऐसे समय में अमेरिका जाने का उद्देश्य क्या था?

वॉशिंगटन डीसी और ‘Voices of the Republic’ कार्यक्रम
थ्रेड में पहला कार्यक्रम वॉशिंगटन डीसी में Global Gandhi Network द्वारा आयोजित बताए जाने का उल्लेख है। इसे गांधी-नेहरू विरासत के नाम पर आयोजित बताया गया, लेकिन आलोचकों के अनुसार इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मंच से मोदी सरकार-विरोधी नैरेटिव तैयार करना था।

IAMC और भारत विरोधी अन्य संगठनों का उल्लेख
थ्रेड में यह भी कहा गया कि कुछ वक्ता ग्लोबल गांधी नेटवर्क से जुड़े थे। इसके अलावा ऐसे संगठनों से जुड़े वक्ता भी थे, जिन पर भारत-विरोधी गतिविधियों के आरोप अक्सर लगते रहे हैं। खासकर ये लोग मोदी सरकार की खिलाफत में कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। इससे साफ हो गया कि मोदी विरोधी पत्रकारों को मंच उपलब्ध कराने की रणनीति के रूप में काम किया गया। 

पालो आल्टो सेमिनार और सोरोस फंडिंग का दावा
दूसरे कार्यक्रम के रूप में पालो आल्टो में “Journalism in Today’s India” विषयक सेमिनार का उल्लेख है, जिसे Hindus for Human Rights द्वारा आयोजित बताया गया। थ्रेड में दावा किया गया कि इस संगठन को जॉर्ज सोरोस से जुड़े फंडिंग नेटवर्क का समर्थन मिलता है।

इंडियन ओवरसीज कांग्रेस की भूमिका
न्यू जर्सी में इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस द्वारा आयोजित ‘मीट एंड ग्रीट’ को थ्रेड कांग्रेस की प्रत्यक्ष भागीदारी के प्रमाण के रूप में पेश करता है, जहां कुछ वरिष्ठ नेता भी मौजूद बताए गए।

थिंक-टैंक और खुफिया नेटवर्क का संदर्भ
New Lines Institute, IIIT और स्ट्रैटफोर जैसे संस्थानों का उल्लेख करते हुए थ्रेड में कहा गया कि वैचारिक संगठनों और निजी खुफिया नेटवर्क के बीच संबंधों के ज़रिये कथित रूप से नैरेटिव तैयार किए जाते हैं। वाशिंगटन डीसी में 1 अक्टूबर को न्यू लाइन्स इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजी एंड पॉलिसी में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के संचालक डॉ. मुक्तादेर खान थे, जिनका एक्स अकाउंट भारत में उनके विवादास्पद विचारों और मुस्लिम ब्रदरहुड (एमबी) से संबंधों के कारण प्रतिबंधित है।

‘संयोग’ नहीं, ‘पैटर्न’ का दावा
थ्रेड का केंद्रीय तर्क यह है कि अमेरिका यात्रा, विभिन्न कार्यक्रम, वापसी के बाद एक-साथ शुरू हुए हमले और एप्सटीन फाइल्स का झूठ—ये सब एक ही श्रृंखला के हिस्से हैं। IIT मुस्लिम ब्रदरहुड का संस्थान है, जो आतंकवाद का समर्थन करता है और दुनिया भर के इस्लामी समूहों को वैचारिक सामग्री मुहैया कराता है। अहमद अलवानी को IIIT में यह पद अपने पिता से विरासत में मिला है, जो IIIT के सह-संस्थापक और अमेरिकी मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक प्रमुख व्यक्ति हैं।

विदेशी-प्रायोजित दुष्प्रचार का आरोप
अंततः पूरे घटनाक्रम को प्रधानमंत्री की छवि धूमिल करने के लिए विदेशी-फंडेड और राजनीतिक रूप से समन्वित ‘इन्फ्लुएंस ऑपरेशन’ बताया गया, जिसमें पत्रकारों को स्वतंत्र नहीं बल्कि “राजनीतिक ऑपरेटिव” कहा गया। पूरी तस्वीर इस प्रकार बनती है। कुछ भारतीय पत्रकार अक्टूबर 2025 में अमेरिका की यात्रा करते हैं। उनकी यात्रा की मेजबानी करते हैं- कांग्रेस (आईओसी), सोरोस द्वारा वित्तपोषित समूह (एचएफएचआर), पाकिस्तान के जमात-आईएसआई नेटवर्क (आईएएमसी) और मुस्लिम ब्रदरहुड (एनएलआई)। वे वापस लौटते हैं और कुछ ही दिनों में सरकार पर हमले शुरू कर देते हैं। पहले प्रधानमंत्री कार्यालय को निशाना बनाते हैं, फिर एपस्टीन फाइल्स के झूठे अभियान को चलाते हैं।

नैरेटिव सोशल मीडिया के झूठे आरोपों का संकलन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ यह पूरा नैरेटिव सोशल मीडिया पर आधारित है। इन दावों की स्वतंत्र जांच और आधिकारिक पुष्टि आवश्यक है। पत्रकारिता में आरोप और प्रमाण के बीच फर्क बनाए रखना अनिवार्य है, ताकि सार्वजनिक विमर्श तथ्यपरक और जिम्मेदार बना रहे। यह विदेशी फंडिंग से चलने वाला और राजनीतिक रूप से पोषित अभियान है, जिसका उद्देश्य दुष्प्रचार के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी की छवि को नुकसान पहुंचाना है। एपस्टीन फाइल्स का झूठ इसका नवीनतम हथियार था। लेकिन ये फुस्स साबित हुआ। क्योंकि वास्तव में ये स्वतंत्र पत्रकार नहीं हैं, बल्कि विदेशी प्रायोजकों द्वारा संचालित राजनीतिक कठपुतली हैं।

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