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मणिपुर पर दोगलापन: बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मामलों पर चुप्पी साधने वाले दे रहे ज्ञान, आखिर इनकी मंशा क्या है?

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मणिपुर हिंसा का मामला सुर्खियों में हैं। देश भर में इसी पर चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में सड़क पर भीड़ के बीच नग्न अवस्था में दो महिलाएं दिख रही हैं। भीड़ में शामिल लोग दोनों महिलाओं को नग्न अवस्था में सड़क पर दौड़ाने के साथ ही अश्लील हरकतें भी कर रहे हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद से देश भर में बवाल मचा हुआ है। मणिपुर पुलिस ने इस मामले में मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है।

इस घटना को लेकर जहां देश भर के लोग गुस्से में हैं, वहीं इस वीडियो को लेकर हो रहे राजनीति पर सवाल भी उठ रहे हैं। लोग इसकी टाइमिंग पर भी प्रश्न खड़े कर रहे हैं। ये वीडियो 4 मई यानी दो महीने पहले का है और इसे ठीक संसद सत्र से पहले जारी किया है। इस वीडियो के जारी करने का एकमात्र मकसद संसद सत्र के दौरान सरकार को घेरना और हंगामा करना है। वीडियो के जारी करने के समय, राजनीतिक दलों के हंगामे और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने को लेकर लोगों का कहना है कि दाल में कुछ काला जरूर है।

हैरानी की बात यह है कि इसी तरह की घटना और हिंसा जब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बंगाल में होती है तो अभी हो-हल्ला करने वाले नेता और आंदोलनजीवी चुप्पी साध लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट तब संज्ञान नहीं लेता, उन्हें तब कुछ नहीं दिखता जब राजस्थान में पति के सामने गैंगरेप होता है। ये छत्तीसगढ़ में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर मुंह बंद कर लेते हैं। बंगाल हिंसा पर आंखे बंद कर लेते हैं। ऐसे में इनके दोगलापन को लेकर भी लोगों में गुस्सा है।

वैसे आपके लिए यह जानना जरूरी है कि मणिपुर में हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है। लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद से पूर्वोत्तर में विकास की बयार बहने लगी है। माहौल सामान्य होने लगा है। अगर आप 1999 के बाद से सेना के जवानों के साथ आम लोगों की मौतों की संख्या पर नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि वास्तव में यह बीजेपी सरकार ही है जो इलाके में सामान्य स्थिति बहाल कर पाने में कामयाब हो पाई है।

अगर आप सोनिया गांधी-राहुल गांधी की मनमोहन सिंह वाली यूपीए सरकार और नरेन्द्र मोदी सरकार के दौरान मणिपुर में मारे गए लोगों की संख्या को देखेंगे तो इसमें 6.3 गुना की भारी कमी आई है।

केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद मणिपुर में चाहे सुरक्षा बल हों या आम लोग मारे जाने वाले और घायल होने वाले लोगों की संख्या में काफी कमी आई है।

अगर मणिपुर में उग्रवाद की घटनाओं पर नजर डालेंगे तो आपको साफ दिखेगा कि यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार के दौरान इसमें 3 गुना की कमी आई है।

इतना ही नहीं यूपीए सरकार के कार्यकाल की तुलना में बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान मणिपुर में सुरक्षा बलों की मौत में 3 गुना की कमी आई है।

यही बात है जो दूसरे राजनीतिक दल पचा नहीं पा रहे हैं। बीजेपी शासनकाल में मणिपुर हिंसा में आई भारी कमी और माहौल का सामान्य होना इन राजनीतिक दलों को खटक रहा है। वे हालात को फिर से पहले जैसा बनाना चाहते हैं। पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के मणिपुर दौरे के बाद से राज्य में स्थिति और बिगड़ी है। ऐसे में सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं। बाकी आप खुद भी सोचिए कि इन दलों को दोगलापन के पीछे मंशा क्या है…

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