साधारण लोग लेकिन असाधारण काम, देश के दूर दराज के इलाके में बेहद ही कम संसाधनों के बाद भी ऐसी कोशिश, जिसने दुनिया को हैरान कर दिया। राष्ट्रपति भवन में लाल कालीन पर जब ये नंगे पांव चले, तो इन गुमनाम लोगों की कामयाबी के आगे कई कीर्तिमान फीके पड़ गए। देश के असली हीरो जिनको सम्मान देकर पद्म पुरस्कार भी अब ‘पीपुल्स पद्म’ कहे जा रहे हैं।
देश के गुमनाम नायकों को पद्म पुरस्कार
भारत रत्न के बाद पद्म पुरस्कार देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान होते हैं। देश के गुमनाम नायकों को जब पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया तो भारत के आम लोगों का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया।
पीेएम मोदी की कोशिशों से छा गया ‘पीपुल्स पद्म’
पिछले कुछ सालों से पद्म पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट में आया बदलाव सुकून देने वाला है, सोशल मीडिया पर लोग इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई दे रहे हैं। लेकिन ऐसा क्यों है इसके लिए पीएम मोदी के इस ट्वीट को ध्यान से पढ़ लीजिए। चंद महीने पहले ही पद्म पुरस्कारों के लिए पीएम मोदी ने ट्वीटर कर खास अपील की थी। पीएम मोदी ने देशवासियों से अपील करते हुए कहा था कि पद्म पुरस्कारों के लिए जमीनी स्तर काम करने वालों लोगों का नाम भेजें।
पीएम मोदी के इस पहल की देशभर में सराहना हुई थी, लोगों ने उनकी अपील की दिल खोल कर तारीफ की थी।
पीएम मोदी के अथक प्रयासों का असर इस बार के पद्म पुरस्कारों में साफ नजर आया। राष्ट्रपति भवन का ऐतिहासिक दरबार हॉल में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति समेत देश की सबसे ताकतवर हस्तियों की मौजूदगी में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब नंगे पांव देश के ये रियल हीरो पद्म सम्मान ग्रहण करने के लिए आगे बढ़े, तो एक अद्भुत समा नजर आया।
हरेकला हजब्बा
संतरे बेच कर इस साधारण से दिखने वाले शख्स ने असाधारण काम किया। अपनी मेहनत से गांव में बनवाया गया उनका स्कूल, सैकड़ों बच्चों की जिंदगी को शिक्षा की रोशनी से भर रहा है। उनका स्कूल ‘हजब्बा आवारा शैल’ यानी हजब्बा का स्कूल नाम से जाना जाता है।
तुलसी गौड़ा
लोग इन्हें ‘जंगल की इनसाइक्लोपीडिया’ के नाम भी जानते हैं। तुलसी गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन जंगल में पाए जाने वाले पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों की उनकी जानकारी लोगों को हैरान कर देती है। इलाके के लोग उन्हें ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ कहा जाता है। हलक्की जनजाति से ताल्लुक रखने वाली तुलसी गौड़ा ने 12 साल की उम्र से अबतक करीब 30 हजार पौधे लगाए हैं और अब भावी पीढ़ी को भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही हैं।
राहीबाई सोमा पोपेरे
देश के कृषि वैज्ञानिक भी ‘सीड मदर’ राहीबाई सोमा पोपेरे का लोहा मानते हैं। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पोपरे ने जैविक खेती की मिसाल कायम की है। 57 साल की पोपेरे स्वयं सहायता समूहों के जरिए 50 एकड़ जमीन पर 17 से ज्यादा देसी फसलों की खेती करती हैं। दो दशक पहले उन्होंने बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया। उनकी इस पहल की कई बार सराहना हो चुकी है।
उषा चौमार
उषा चौमार राजस्थान के उन रत्नों में शामिल हैं, जिन्हें पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होने वाली उषा चौमर कभी मैला ढोने का काम करती थीं, आज वो हर किसी के लिए मिसाल हैं। 7 साल की उम्र से मैला ढोने वाली ऊषा चौमार की कहानी देश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करने वाली है, ऊषा चौमार ने मैला ढोने की कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और एक नई मिसाल कायम की।
पुरस्कार विजेताओं से मिले पीएम मोदी
इस साल राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार 2020 समारोह का आयोजन किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान पुरस्कार विजेताओं से भी मुलाकात कर उनके काम की सराहना की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पद्म पुरस्कारों की तस्वीर तेजी से बदल रही है। चंद साल पहले तक ये पुरस्कार सत्ता के गलियारों में पहुंच रखने वाले रसूखदार लोगों के हैसियत की निशानी माने जाते थे, लेकिन अब आम लोग को पद्म पुरस्कार दिए जाने की शुरुआत से, पद्म पुरस्कारों का सम्मान भी और भी बुलंदियों पर पहुंचा रहा है।