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प्रधानमंत्री मोदी की ‘उड़ान’ योजना को लगे पंख, स्वदेशी विमान के व्यावसायिक उपयोग को मंजूरी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालते ही ‘मेक इन इंडिया’ और स्वदेशी योजनाओं को आगे बढ़ाने के भरपूर प्रयास किए हैं। समंदर की गहराइयों से लेकर आसमान की ऊंचाइयों तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां मोदी सरकार के कार्यकाल में मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया की बदौलत भारत ने कामयाबी के झंडे न गाड़े हों। सारे प्रयासों के पीछे प्रधानमंत्री का एकमात्र लक्ष्य होता है, देश के गरीब, मध्यम वर्ग या आम जनता का कल्याण। इसके लिए उन्होंने शासन का एक ही मंत्र दिया है- सबका साथ, सबका विकास। अपने इस सपने को साकार करने के लिए वे जीन-जान से जुटे हुए हैं और जरूरत पड़ने पर अपने पड़ोसियों को भी नहीं भूलते हैं। इसका ताजा उदाहरण डॉर्नियर 228 विमान के यात्री सेवाओं के लिए भी मंजूरी देना है। इसका फायदा आने वाले समय में नेपाल और श्रीलंका को भी मिलने की संभावना है।

स्वदेशी ‘डॉर्नियर 228’ से बदलेगी एविएशन सेक्टर की सूरत
इसी साल छोटे-छोटे शहरों के बीच हवाई सेवा ‘UDAN’की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, कि वे हवाई चप्पल वाले व्यक्ति को हवाई जहाज में यात्रा करते देखना चाहते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक डीजीसीए ने देश में निर्मित ‘डोर्नियर-228’ विमान के घरेलू रूट पर व्यवसायिक उड़ान को हरी झंडी दे दी है। इसका मतलब प्रधानमंत्री मोदी के सपने को साकार करने में इससे बहुत मदद मिल सकती है। हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित ‘डोर्नियर-228’ 19 सीटों वाला एक छोटा विमान है, जिसका उपयोग अबतक रक्षा के क्षेत्र में ही होता था।

स्वदेशी INS कलवरी दुश्मनों का निकालेगा दम
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी इसी महीने 14 दिसंबर को मुंबई में भारत में निर्मित पनडुब्‍बी आईएनएस कलवरी को राष्‍ट्र को समर्पित किया था। इसे ‘मेक इन इंडिया’ की एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। इस परियोजना को फ्रांस के सहयोग से चलाया जा रहा है। आईएनएस कलवरी एक डीजल- इलेक्ट्रिक युद्धक पनडुब्‍बी है, जिसे भारतीय नौसेना के लिए मझगांव डॉक शिपबिल्‍डर्स लिमिटेड ने बनाया है। यह उन 6 पनडुब्बियों में से पहली पनडुब्‍बी है, जिसे भारतीय नौसेना में शामिल किया जाना है। भारत की पहली पनडुब्बी का नाम भी आईएनएस कलवरी था। आठ दिसंबर 1967 को पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी नौसेना में शामिल हुई थी। इस पनडुब्बी को 31 मई 1996 को रिटायर कर दिया गया था। यह पनडुब्बी हिंद महासागर में भारत की ताकत बढ़ाने का काम करेगी। यह 17 साल बाद संभव हुआ जब भारतीय नेवी को उसकी पारंपरिक पनडुब्बी मिली।

स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग पर जोर
रक्षा क्षेत्र में विदेशी निर्भरता खत्म करने के लिए मेक इन इंडिया के तहत लगातार कोशिशों की जा रही हैं। पिछले कुछ सालों में इसका बहुत ही अधिक लाभ भी मिल रहा है। पिछले कुछ समय में रक्षा मंत्रालय ने भारत में निर्मित कई उत्पादों का अनावरण किया है, जैसे HAL का तेजस (Light Combat Aircraft), composites Sonar dome, Portable Telemedicine System (PDF),Penetration-cum-Blast (PCB), विशेष रूप से अर्जुन टैंक के लिए Thermobaric (TB) ammunition, 95% भारतीय पार्ट्स से निर्मित वरुणास्त्र (heavyweight torpedo) और medium range surface to air missiles (MSRAM)।

TEJAS के लिए चित्र परिणाम

मेक इन इंडिया के दो स्वदेशी युद्धपोत
अभी तक सरकारी शिपयार्डों में ही युद्धपोतों के स्वदेशीकरण का काम चल रहा था, लेकिन देश में पहली बार नेवी के लिए प्राइवेट सेक्टर के शिपयार्ड में बने दो युद्धपोत पानी में उतारे गए हैं। रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ने 25 जुलाई, 2017 को गुजरात के पीपावाव में नेवी के लिए दो ऑफशोर पैट्रोल वेसेल (OPV) लॉन्च किए, जिनके नाम शचि और श्रुति हैं।

स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट
रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में भारत में बने बुलेटप्रुफ जैकेट को मंजूरी दी है। इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से हर साल कम से कम 20 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी। इस बुलेटप्रुफ जैकेट को भारतीय वैज्ञानिक ने ही बनाया है। 70 साल के इतिहास में यह पहला मौका है, जब सेना को स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट मिलेगा। यह विदेशी जैकेट से काफी हल्का और किफायती भी है। विदेशी जैकेट का वजन 15 से 18 किलोग्राम के बीच होता है जबकि स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट का वजन सिर्फ 1.5 किलोग्राम है। इस जैकेट को अमृता यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रमुख प्रोफेसर शांतनु भौमिक ने तैयार किया है। कार्बन फाइबर वाले इस जैकेट में 20 लेयर हैं। इसे 57 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी पहना जा सकता है। 1.5 लाख रुपये में मिलने वाली विदेशी जैकेट की जगह यह सिर्फ 50 हजार रुपये में ही मिलेंगे।

दक्षिण एशिया को स्वदेशी सैटेलाइट का उपहार
इसरो ने इसी साल श्रीहरिकोटा से साउथ एशिया सैटेलाइट GSAT-9 को लॉन्च किया। इस सैटेलाइट से पाकिस्तान को छोड़कर बाकी साउथ एशियाई देशों को कम्युनिकेशन की सुविधा मिल रही है। इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट पर 450 करोड़ रुपए का खर्च आया है। यह सैलेटाइट 2230 किलो का है जिससे कम्युनिकेशन की सुविधा मिलेगी। ये उपग्रह प्राकृतिक संसाधनों का खाका बनाने, टेली मेडिसिन, शिक्षा क्षेत्र, आईटी और लोगों से लोगों का संपर्क बढ़ाने के क्षेत्र में पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक वरदान साबित हो रहा है। इसके माध्यम से भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी जैसी आपदाओं के समय संवाद कायम करने में मदद मिल रही है।

स्वदेशी प्रक्षेपण यान से एक साथ 104 सैटेलाइट छोड़कर रचा इतिहास
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो ने इसी साल एक साथ 104 उपग्रह लांच करके एक नया इतिहास रच दिया। सारी दुनिया इसरो की इस सफलता को देखकर दंग रह गई। इससे पहले एक अभियान में इतने उपग्रह एक साथ कभी नहीं छोड़े गए। एक अभियान में सबसे ज्यादा 37 उपग्रह भेजने का विश्व रिकार्ड रूस के नाम था। यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। इस अभियान में भेजे गए 104 उपग्रहों में से तीन भारत के थे। विदेशी उपग्रहों में 96 अमेरिका के तथा इजरायल, कजाखिस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक थे। इससे पहले इसरो ने जून 2015 में एक मिशन में 23 उपग्रह लांच किए थे। 

मंगल ग्रह तक दिखी स्वदेशी-धमक
मंगलयान पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंचने में कामयाब रहने वाला भारत पहला देश है। अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर गार्डन में मंगलयान अभियान की सफलता का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, कि अहमदाबाद में ऑटो रिक्शा से एक किलोमीटर जाने पर 10 रुपये का खर्च आता है, लेकिन हमारे मंगलयान द्वारा तय की गई यात्रा पर तो महज सात रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च ही आया। उन्होंने कहा कि हमारे मंगल अभियान का खर्च हॉलीवुड की एक चर्चित साइंस फिक्शन फिल्म की लागत से भी कम था।

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