बहुलतावादी संस्कृति देश की ताकत है, लेकिन बीते 70 वर्षों में इसी मिश्रित संस्कृति को राजनीति का आधार बनाकर कांग्रेस ने देश को कमजोर करने की लगातार कोशिश की है। दरअसल अंग्रेज तो 1947 में ही देश छोड़कर चले गए, परन्तु उनकी सरपरस्ती में पले-बढ़े कांग्रेसी नेताओं ने उनकी नीतियां जरूर अपना लीं। सत्तालोलुपता में कांग्रेस पार्टी देश को वंशवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद की आग में लगातार झोंकती रही है।
देश-समाज में विभाजन और बंटवारे की बीज बोती आ रही कांग्रेस ने कर्नाटक के अलग झंडे को मंजूरी देकर क्षेत्रवाद की आग को एक बार फिर हवा देने की कोशिश की है और देश में एक नया ‘कश्मीर’ बनाने की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है।
सिद्धारमैया ने अलग झंडे को दी मंजूरी
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रदेश के अलग झंडे को मंजूरी देकर एक बार फिर राजनीतिक रोटी सेंकने की कुत्सित कोशिश की है। झंडे को मंजूरी देते हुए उन्होंने कहा, ”कन्नड़ भाषी लोगों की अस्मिता को प्रतीक स्वरूप दर्शाने के लिए एक ध्वज बनाने का फैसला हुआ था। इसका उद्देश्य कन्नड़ भाषियों की राय और आवाज बनना था। हमने इसे आज कर दिया है। सभी (कुछ कन्नड़ संगठनों) ने इस पर मुहर लगाई है।”
केंद्र सरकार ने पहले ही किया है इनकार
कर्नाटक के संदर्भ में ये मांग 2012 में भी उठी थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की तत्कालीन राज्य सरकार ने देश की एकता-अखंडता के विरुद्ध बताते हुए खारिज कर दिया था। वर्तमान केंद्र सरकार भी कई मौकों पर स्पष्ट कर चुकी है कि देश का ध्वज सिर्फ तिरंगा है। केंद्र ने स्पष्ट कहा, ”ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जिसमें राज्यों के लिए अलग झंडे की बात कही गई हो या फिर अलग ध्वज को प्रतिबंधित करता हो।” जाहिर है सवाल उठ रहे हैं कि तो फिर कर्नाटक सरकार द्वारा अलग झंडे को मंजूरी देने का क्या कारण है? क्या सिद्धारमैया सरकार का ये कदम देश की संप्रभुता और एकता एवं अखंडता के लिए खतरनाक नहीं है?
कश्मीर समस्या कांग्रेस की देन
जम्मू-कश्मीर में आज जो भी हालात हैं उसकी एक बड़ी वजह उसे मिला विशेष दर्जा है। गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के तहत देश में अभी सिर्फ जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग झंडा है। हालांकि इसका परिणाम आज पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है। एक अलग संविधान और एक अलग झंडे के कारण ही वहां अलगाववाद की भावना पनपती रहती है।
दरअसल कश्मीर की वर्तमान समस्या देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की देन है। उन्होंने अपनी मनमानी करके कश्मीर की ऐसी स्थिति बना दी, जिसे सुधारने में आज बहुत मुश्किल हो रही है। उन्होंने हमेशा से देशभक्तों को किनारे करके उन कश्मीरियों का साथ लिया, जिनके खून में अलगाववाद का उबाल था।
दूसरे राज्यों से मांग उठी तो क्या होगा?
कर्नाटक को अगर अपना झंडा मिल गया तो दूसरे राज्यों से भी ऐसी ही मांगें उठ सकती हैं। क्या ये भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए उचित है? क्या ऐसी अनर्गल मांगों से देश की अखंडता के खंडित होने की आशंका पैदा नहीं होगी? जब कुछ स्वार्थी तत्वों की वजह से भाषा और पानी जैसा मुद्दा भी काफी गंभीर हो जाता है तो ऐसे में राष्ट्रवादी भावनाओं को बांटने की क्या आवश्यकता पड़ गई है?
तिरंगे को तार-तार करने की कोशिश
तिरंगा हमारी एकता और अखंडता का प्रतीक है। इसी तिरंगे ने पूरे भारत वर्ष को जोड़ रखा है, लेकिन कांग्रेस देश की इस आन-बान और शान पर भी बट्टा लगाने पर तुल गई है, क्योंकि उसे तो इसी वर्ष होने वाला राज्य विधानसभा चुनाव नजर आ रहा है। शायद पार्टी को लगता है कि अपने काम के दम पर तो वो सत्ता में वापसी करने से रही, इसीलिए इस तरह के भावनात्मक मुद्दों को सुलगाने में लग गई है।
अलगाववाद की जहर बोती कांग्रेस
साठ सालों तक सत्ता में काबिज रही कांग्रेस देश की समस्याओं का हल तो ढूंढ नहीं पाई… उल्टे क्षेत्रवाद और प्रांतवाद की राजनीति को बढ़ावा ही दिया है। मई 2017 में केरल कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने सरेआम गाय काटा तो देश में विरोध के स्वर सुनाई देने लगे। उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच विभेद पैदा करने की कुत्सित कोशिश की गई। ट्विटर और सोशल मीडिया पर ‘द्रविनाडु’ यानि दक्षिण भारत के चारों प्रमुख राज्यों को मिलाकर अलग देश निर्माण की मांग को हवा दी गई।
राज्यों को आपस में लड़वाती कांग्रेस
नदियों के जल बंटवारे का मामला हो या फिर राज्यों के सीमांकन का… कांग्रेस ने यहां भी राजनीति की है। इसी का नतीजा है कि आज भी जल बंटवारे के नाम पर तमिलनाडु और कर्नाटक आमने-सामने होते हैं तो पंजाब, हिमाचल और राजस्थान भी एक दूसरे के खिलाफ तलवारें निकाल लेते हैं। हालांकि मोदी सरकार इन समस्याओं के समाधान की तरफ बढ़ तो रही है लेकिन कांग्रेस ने इसे उलझा कर रख दिया है। दूसरी ओर सीमांकन के नाम पर यूपी-बिहार, बिहार-बंगाल, असम-बंगाल के बीच तनातनी की शिकायतें आती रहती हैं।
बीते 70 वर्षों के इतिहास पर गौर करें तो ऐसी विभाजनकारी कुत्सित कृत्यों की जड़ में कोई है तो वो कांग्रेस ही है।
‘दूध में दरार’ डालने की साजिश
यूपीए की सरकार जब देश की सत्ता में थी तो सेना के गैर राजनीतिक और धर्मनिरपेक्ष चरित्र को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की गई। सच्चर कमेटी के माध्यम से सेना में मुसलमानों की संख्या की गिनती कराए जाने की योजना बनाई जाने लगी। कांग्रेस ये जानती है कि सेना में धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर नौकरियां नहीं दी जाती हैं और इन सब के बारे में कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता। बावजूद इसके कांग्रेस ने दूध में दरार यानि भाई-भाई में संघर्ष की साजिश रची थी।
सच्चर कमेटी के नाम पर ‘वर्ग संघर्ष’ की बुनियाद
कांग्रेस नीत सरकार ने सच्चर कमेटी का गठन तो किया था मुसलमानों के पिछड़ेपन की वजह जानने के लिए। लेकिन इस कमेटी के जरिये कांग्रेस ने वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने का काम किया। इसके लिये राजेन्द्र सच्चर के जिम्मे एक विशेष काम लगाया था। वह काम था प्रत्येक स्थान पर इस बात की जांच करना की वहां कितने मुसलमान हैं, उनके साथ वहां क्या व्यवहार हो रहा है? यदि किसी स्थान पर मुसलमान कम हैं तो इसका क्या कारण है? जाहिर है कांग्रेस की कुत्सित सोच ने एक नेक काम में भी राजनीति करनी चाही।
कांग्रेस ने की मुसलमानों के आरक्षण की मांग
वर्ष 2017 में जमात ए इस्लाम हिंद जैसे संगठन मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस भी उसी की भाषा बोलेगी ये कोई नहीं सोच सकता था। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश में सरकारी नौकरियों और अलीगढ़ में पीजी कोर्सेज में मुसलमानों को आरक्षण की मांग पहले कांग्रेस ने ही की थी। इसी मांग पर बढ़ते हुए तेलंगाना सरकार ने भी तुष्टिकरण का कार्ड खेलते हुए मुसलमानों को अलग से आरक्षण की व्यवस्था बहाल कर दी है।
तुष्टिकरण के आसरे कांग्रेस की राजनीति
कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति का ही नतीजा है कि आज मुसलमानों की निष्ठा को ही संदेह के घेरे में ला दिया है। दरअसल कांग्रेस नीत गिरोह
जानबूझकर मुसलमानों के मनोविज्ञान को बदलने का प्रयास करते रहे हैं। ये स्थापित करने की कोशिश की जाती रही है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है, और वह इसलिए हो रहा है क्योंकि वे मुसलमान हैं। भारत का नागरिक न कह कर यह साबित करने की कोशिश होती रही कि आप मुसलमान हैं। जाहिर है कांग्रेस किस मंशा से करती रही है ये सब जानते हैं।
‘भगवा आतंकवाद’ पर हिंदुओं को बदनाम किया
जिस हिंदू संस्कृति और सभ्यता की सहिष्णुता को पूरी दुनिया सराहती है, उसे भी बदनाम करने में कांग्रेस ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 2007 में हुए समझौता एक्सप्रेस धमाके के संदिग्ध पाकिस्तानी आरोपी को साजिश के तहत छोड़ दिया गया और उनके स्थान पर निर्दोष हिन्दुओं को गिरफ्तार किया गया। समझौता विस्फोट में यूपीए ने राजनीतिक लाभ के लिए सोनिया गांधी, अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, शिवराज पाटिल और सुशील कुमार शिंदे ने हिंदू आतंकवाद का जाल बुना और एक पूरे के पूरे समुदाय को बदनाम किया।
पहनावे और बोली पर भी बांटती है कांग्रेस
भारत की विविधता पूरी दुनिया में इसे विशिष्ट पहचान रखती है, लेकिन कांग्रेस सरकार इस आधार पर भी भेद करती रही है। पूर्वोत्तर और कश्मीर की जनता इस बात को लेकर आज भी परेशान हैं कि उन्हें भारतीय नहीं माना जाता। जाहिर है बीते साठ सालों के शासन में कांग्रेस ने देश से जुड़ने का वह माहौल पैदा नहीं किया। कश्मीर समस्या तो ‘कांग्रेस’ की ‘कपटी’ राजनीति का ही नतीजा है, वहीं पूर्वोत्तर के लोगों का शेष भारत से विलगाव भी कांग्रेस की ही देन है। हालांकि पूर्वोत्तर के राज्यों ने कांग्रेस को इस कृत्य की सजा दी है और आठ राज्यों में से महज एक राज्य मिजोरम में ही उसकी सरकार बची है।
जहर की राजनीति करती है कांग्रेस
वर्ष 2017 में कांग्रेस ने सुनियोजित तरीके से समाज में ‘जहर’ फैलाने की राजनीति की। बहुसंख्यक समाज में विभेद के कुत्सित कृत्य किए गए। ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति को एक बार फिर राजनीति का आधार बनाया जा रहा है। इस साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग चेहरों का सहारा लिया जा रहा है।
दलितों को भड़काने की राजनीति
वर्ष 2017 में सहारनपुर में किस तरह सवर्णों और दलितों के बीच टकराव स्थापित करने की सियासत की गई ये सब जानते हैं। ये भी साफ हो गया है कि कांग्रेस की शह पर सहारनपुर में इस संघर्ष की साजिश रची गई और उनके कई नेताओं का इस मामले में हाथ भी सामने आ रहे हैं। इसी तरह गुजरात के ऊना में दलित पिटाई की भी कांग्रेस ने साजिश रची थी और भाजपा पर दोष मढ़ने का प्रयास किया था।
किसानों को भड़काती है कांग्रेस
साठ सालों तक सत्ता में रही कांग्रेस ने किसानों को ठगने का काम किया है। हर स्तर पर पंगु बनाकर रखने की नीति पर चलते हुए किसानों के नाम पर राजनीति भी खूब करती है। लेकिन मध्य प्रदेश में मंदसौर की घटना ने कांग्रेस की पोल खोल कर रख दी। किसान कल्याण के नाम पर राजनीति कर रही कांग्रेस किस तरह किसानों को भड़काती है वो जगजाहिर हो चुका है। कांग्रेस के विधायक, नेता किसानों का नेतृत्व करने के नाम पर आगे आते हैं और किसानों को गोलियां खाने को छोड़ भाग जाती है।
देश को टुकड़ों में बांटने की कांग्रेसी राजनीति
कांग्रेस पार्टी की फितरत रही है कि वह देश को टुकड़ों में बांट कर अपनी सत्ता कायम रखे। हालांकि देश की जनता ने उनकी इस मंशा को लगातार खारिज किया है किन्तु कांग्रेस लगातार ऐसे प्रयास करती है कि विभेद पैदा हो और उनकी राजनीति चलती रहे। हुर्रियत को पालना हो या फिर उनके नेताओं द्वारा पाकिस्तान की धरती से भारत की आलोचना करना हो। जेएनयू में देश विरोधी ताकतें जब भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाती हैं तो पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक उनके समर्थन में खड़े हो जाते हैं। द्नविड़नाडु जैसे विभाजनकारी आंदोलन का साथ देना और कर्नाटक के अलग झंडे को मंजूरी भी कांग्रेस की इसी बंटवारे की सोच को इंगित करता है।