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काले कारनामों से बचने के लिए मीडिया नहीं हो सकता कोई रक्षा कवच, दैनिक भास्कर छापेमारी पर जानिए अंदर की बात

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इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने गुरुवार को दैनिक भास्कर के आवासीय और व्यावसायिक परिसरों पर छापेमारी की। मुंबई, दिल्ली, भोपाल, इंदौर, जयपुर, कोरबा, नोएडा और अहमदाबाद सहित 32 से ज्यादा परिसरों में छापे मारे गए। ये छापे टैक्स चोरी के आरोपों के साथ आयकर अधिनियम की धारा 132 के तहत मारे गए। लेकिन छापे के साथ ही विपक्ष और सरकार विरोधी पक्षकारों ने प्रेस की आजादी पर हमला और इमरजेंसी जैसे हालात का विधवा विलाप करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस के करीबी वामपंथी मीडिया हाउस एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में दैनिक भास्कर के एडिटर ओम गौड़ ने कहा कि इनकम टैक्स वालों ने उन्हें काम करने से रोका। वो आए और बैठ गए। उन्होंने खबर पब्लिश करने से पहले दिखाने के लिए कहा। उन्होंने स्टोरी देखी, बदलाव करने के लिए कहा और उसके बाद ही पब्लिश की गई।

इस इंटरव्यू के वायरल होने के बाद आयकर विभाग ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर इन आरोपों को खारिज कर दिया है। विभाग ने ट्वीट किया है कि मीडिया के कुछ वर्गों की ओर से ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि एक प्रकाशन के दफ्तरों में तलाशी के दौरान आयकर विभाग के अफसरों ने खबरों में बदलाव करने को कहा और संपादकीय से जुड़े फैसले खुद लेने लगे। ये आरोप बिल्कुल झूठे हैं और आईटी विभाग द्वारा इसका पूरी तरह से खंडन किया जाता है।

अगले ट्वीट में इनकम टैक्स विभाग ने कहा है कि विभाग के प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए जांच टीम ने सिर्फ कर चोरी से संबंधित समूह के वित्तीय दस्तावेजों और लेन-देन की पड़ताल की है।

एक और ट्वीट में विभाग ने एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू का जिक्र करते हुए लिखा कि मीडिया को दिए अपने साक्षात्कार के अनुसार ओम गौड़ लखनऊ में हैं। आयकर विभाग इस बात पर जोर देकर कह रहा है कि समूह के लखनऊ दफ्तर पर छापेमारी ही नहीं की गई है। ओम गौड़ से पूछताछ तक नहीं किए गए हैं। जो आरोप लगाए जा रहे हैं वे बिलकुल निराधार हैं और प्रायोजित लग रहे हैं।

दैनिक भास्कर ग्रुप पर छापेमारी को लेकर जो विपक्षी नेता और पक्षकार सवाल उठा रहे हैं उनके लिए यह जानना जरूरी है कि यह समूह मीडिया बिजनेस के साथ ही दूसरे कारोबार से भी जुड़ा हुआ है। दैनिक भास्कर समूह का कारोबार विभिन्न क्षेत्रों में है। समूह में होल्डिंग और सहायक कंपनियों सहित 100 से अधिक कंपनियां हैं। यह मीडिया संस्थान के अलावा कई अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी संचालित करता है। इनमें मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा भोपाल स्थित डीबी सिटी मॉल, फैक्ट्री, ज्वेलरी, कपड़ा, बिजली, नमक, माइनिंग, रियल स्टेट आदि व्यवसाय शामिल हैं। यह व्यवसाय मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात के साथ देश के अलग-अलग स्थानों पर किए जाते हैं।

दैनिक भास्कर समूह सालाना 6000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है। बताया जा रहा है कि फर्जी खर्च और शेल संस्थाओं के जरिए समूह पर भारी कर चोरी के आरोप हैं। आरोप है कि समूह ने कर चोरी के लिए अपने कर्मचारियों के साथ शेयरधारकों और निदेशकों के रूप में कई पेपर कंपनियां बनाई हैं। सूत्रों के अनुसार मॉरीशस स्थित संस्थाओं के माध्यम से शेयर प्रीमियम और विदेशी निवेश के रूप में निकाले गए धन को विभिन्न व्यक्तिगत और व्यावसायिक निवेशों में वापस भेज दिया जाता है। पनामा लीक मामले में परिवार के सदस्यों के नाम भी सामने आए हैं।

दैनिक भास्कर समूह के मालिक अग्रवाल बंधुओं सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल के घर सहित भास्कर के प्रमोटर्स के आवास और दफ्तरों पर भी आयकर विभाग की टीम ने छापेमारी की। बताया जाता है कि फर्जी खर्च और नकली संस्थाओं के नाम पर खरीद का दावा करके समूह ने भारी कर चोरी की है। समूह से जुड़े लोगों का नाम पनामा लीक पेपर मामले में भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि कर चोरी के मामले में आयकर विभाग समूह की तरफ से दिए गए दस्तावेजों से संतुष्ट नहीं था। इसके बाद कर चोरी मामले की जांच के लिए यह छापेमारी की गई है।

छापेमारी के बाद प्रेस की स्वतंत्रता और बोलने की आजादी पर लगाम लगाने का नारा लगा कर आप कुछ भी नहीं कर सकते। मीडिया की आड़ में आपको गैरकानूनी काम करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। देखिए भास्कर के संपादक रहे एल एन शीतल का इस बारे में क्या कहना है। उन्होंने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है-

‘मीडिया कोई पवित्र गाय नहीं, जिसे ‘रक्षाकवच’ हासिल है!
देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस – ‘भास्कर समूह’ पर IT और ED की छापेमारी को मीडिया पर हमला बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि सरकार ने भास्कर ग्रुप के सत्ताविरोधी तेवरों से चिढ़कर उसे सबक सिखाने और अन्य अख़बारों/चैनलों को डराने के लिए यह कार्रवाई की है.
ऐसा कहने वालों को मालूम होना चाहिए कि कोई भी अख़बार या न्यूज़ चैनल ऐसी कोई ‘पवित्र गइया’ बिल्कुल नहीं, जिसे रक्षा-कवच प्राप्त है.
कौन नहीं जानता कि विभिन्न अख़बार और चैनल बैनर की आड़ में तमाम तरह के ग़लत-सलत धन्धे करते हैं और अपने उन धन्धों से जुड़ी अवैध गतिविधियों की अनदेखी करने के लिए सरकारों पर अड़ी-तड़ी डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते. भास्कर सिरमौर है इनमें. अख़बार के नाम पर सरकारों से औने-पौने दामों में ज़मीनें हथियाना और फिर उन ज़मीनों का मनमाना इस्तेमाल करना विशेषाधिकार है इनका. बिल्डरों के साथ मिलकर फ्लैट-डुप्लेक्स बनवाने-बिकवाने और व्यापारियों से मिलकर उनके उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए अपने पाठकों को उकसाने का धत्कर्म करने में सबसे तेज गति वाला है यह समूह!
मीडिया भी एक इंडस्ट्री है. तो फिर किसी अन्य इंडस्ट्री की तरह उस पर भी छापे क्यों नहीं पड़ सकते? लेकिन छापे पड़ते ही कुछ लोग चीखना-चिल्लाना शुरू कर देते हैं कि बदले की कार्रवाई हो रही है. कोई मीडिया हाउस, जो ’92 में 100 करोड़ का भी नहीं था, वह ’21आते-आते हज़ारों करोड़ का कैसे हो गया, यह किसी से छिपा नहीं है. इसे समझने के लिए ज़्यादा ज्ञान की ज़रूरत नहीं है.
भास्कर सबसे ताक़तवर, सबसे बड़ा, सबसे निर्भीक और सबसे तेज रफ्तार वाला मीडिया समूह है, जैसा कि वह दावा करता है! उसकी आवाज में बहुत ज़्यादा दम है, उसकी पहुँच बहुत दूर तलक है, सरकारें उससे थर्राती हैं, ऐसा वह परोक्ष/अपरोक्ष ढंग से ध्वनित करता है!! तो फिर डर किस बात का? अगर उसने कर-चोरी नहीं की है तो वह विपक्ष के दम (?) पर संसद को हिला सकता है, महंगे से महंगे वकीलों की फ़ौज के बूते सुप्रीमकोर्ट में दमदारी से अपनी बात रख सकता है, अपने विशालतम पाठक-परिवार की ताक़त पर चुनाव नतीजों को मनमाफ़िक कर सकता है! जब वह आकाश-पाताल एक कार सकता है तो IT/ED की औकात ही क्या!!’

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