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मोदी सरकार के फैसले पर कोर्ट की मुहर, कहा- आर्टिकल 370 अस्थायी था, एजेंडाधारी एक बार फिर हारे

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सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 370 अस्थायी प्रावधान था। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मोदी सरकार के फैसले को सही करार दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि भारत में विलय के साथ ही जम्मू-कश्मीर ने अपनी संप्रभुता खो दी थी। लिहाजा भारत के राष्ट्रपति का आदेश अंतिम और सर्वमान्य होगा। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए 2019 में जब संसद में बिल लाया गया था तब कांग्रेस पार्टी ने ही इसका जोरदार विरोध किया था। इसके अलावा महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और तुष्टिकरण में जुटी रहने वाली कुछ अन्य पार्टियों ने तो यहां तक कहा था कि 370 को हटाया ही नहीं जा सकता। आज का फैसला उन सभी के मुंह पर तमाचा है जो देश की एकता को मजबूत करने की जगह विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे थे। कोर्ट की सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने तो राज्य में जनमत संग्रह की मांग कर दी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनुच्छेद 370 हटाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखने पर इसे ऐतिहासिक करार दिया है।

कांग्रेस व लेफ्ट लिबरल को अनुच्छेद 370 सहित दर्जनों मामलों में मिली हार
कांग्रेस पार्टी, विपक्षी दल और लेफ्ट लिबरल अब तक मोदी सरकार के खिलाफ दर्जनों में मामलों में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं और अनुच्छेद 370 की ही तरह हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है। ये लोग अब तक जीएसटी, सी.ए.ए, सीबीआई, ईवीएम, पीएमएलए, यूएपीए, आधार, पेगासस, राम मंदिर, राफेल डील, तीन तलाक, गुजरात दंगे, सेंट्रल विस्टा, पीएम केयर्स फंड, नोटबंदी और ईडी की कार्रवाई के खिलाफ अदालत जा चुके हैं और हर बार हार का सामना करना पड़ा है।

यह एक कानूनी फैसला नहीं, आशा की किरण हैः पीएम मोदी
अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पीएम मोदी ने खुशी जाहिर की है। पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘अनुच्छेद 370 हटाने पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला ऐतिहासिक है। जिसमें भारतीय संसद द्वारा 5 अगस्त 2019 को लिए गए फैसले की संवैधानिकता बरकरार रखी गई है। यह उम्मीदों, विकास और जम्मू कश्मीर, लद्दाख के हमारे भाई-बहनों की एकता की गूंज है। अदालत ने हमारी एकता के मूल के सार को मजबूत किया है, जिसे हम भारतीय सबसे ऊपर रखते हैं। आज का फैसला सिर्फ एक कानूनी फैसला नहीं है बल्कि यह आशा की किरण है। यह उज्जवल भविष्य का वादा है और हमारे उन एकजुट प्रयासों का सबूत है, जिनसे हम एक मजबूत और एकजुट भारत बनाएंगे।’

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को सही माना
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को सही माना। इस मामले में 5 सितंबर 2023 को अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। राज्य के बारे में केंद्र सरकार और राष्ट्रपति फैसला ले सकते हैं। अदालत ने माना कि विधानसभा निरस्त होने के बाद संसद को जम्मू-कश्मीर के मामले में कानून बनाने का अधिकार था।

370 को स्थायी व्यवस्था कहने वाली याचिका खारिज 
फैसला सुनाने की शुरुआत करते हुए CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने साफ कर दिया कि अनुच्छेद 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपना-अपना फैसला सुनाया है। 5 जजों की बेंच में तीन अलग-अलग फैसले थे मगर निष्कर्ष एक ही था। अनुच्छेद 370 को स्थायी व्यवस्था कहने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अनुच्छेद 370 पर अपना फैसला सुनाते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र, राष्ट्रपति की भूमिका के तहत सरकार की शक्ति का प्रयोग कर सकता है। याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद या राष्ट्रपति उद्घोषणा के तहत किसी राज्य की विधायी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं।

राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 खत्म करने की शक्ति थी
अनुच्छेद 370 पर फैसला सुनाते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत में शामिल होते ही जम्मू कश्मीर की संप्रभुता खत्म हो गई थी। CJI ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास कोई आंतरिक संप्रभुता भी नहीं थी। इसका संविधान भारत के संविधान के अधीन था। राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 खत्म करने की शक्ति थी।

अस्थायी प्रावधान था संविधान का अनुच्छेद 370
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारा मानना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। हस्तांतरण के उद्देश्य से इसे लागू किया गया था। राज्य विधानसभा के गठन के लिए इसे अंतरिम तौर पर लागू किया गया था। सीजेआई ने कहा कि राज्य में युद्ध के हालात के चलते विशेष परिस्थितियों में इसे लागू किया गया था। इसके लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं। राष्ट्रपति के आदेश की संवैधानिकता पर सीजेआई ने कहा कि फैसले के वक्त राज्य की विधानसभा भंग थी, ऐसे में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का नोटिफिकेश जारी करना राष्ट्रपति की शक्तियों के तहत आता है।

जम्मू-कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान में कहीं इसका उल्लेख नहीं है कि जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता है। युवराज कर्ण सिंह की साल 1949 में की गई उद्घोषणा और संविधान से इसकी पुष्टि होती है। संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत ही जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया था। भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं बची थी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रपति की रोजमर्रा के कामकाज संबंधी शक्तियों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। संविधान के अनुच्छेद 357 के तहत राज्य की विधानसभा की कानून निरस्त करने या संशोधित करने की शक्ति को संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम के संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए।

जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़ने की प्रक्रिया मजबूत हुई
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रपति के लिए यह जरूरी नहीं था कि वह जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश के बाद ही 370 पर कोई आदेश जारी करें। अनुच्छेद 370 को बेअसर कर नई व्यवस्था से जम्मू-कश्मीर को बाकी भारत के साथ जोड़ने की प्रक्रिया मजबूत हुई।

न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने फैसले अलग-अलग दिए
वहीं, न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 370 का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को धीरे-धीरे अन्य भारतीय राज्यों के बराबर लाना था। उन्होंने राज्य और राज्येतर तत्वों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए एक सत्य-और-सुलह आयोग के गठन का निर्देश दिया।

4 साल, 4 महीने और 6 दिन चली कानूनी बहस
4 साल, 4 महीने और 6 दिनों की मैराथन कानूनी बहस के बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की खंडपीठ ने 5 अगस्त 2019 को उठाए गये मोदी सरकार के उस कदम को सही करार दिया, जिसमें अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए को समाप्त कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 याचिकाओं पर की सुनवाई
CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि सुनवाई 2 अगस्त 2023 को शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली 22 याचिकाओं पर सुनवाई की है। मामले में एक याचिकाकर्ता आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने 20 सितंबर 2022 को अपनी याचिका वापस ले ली थी। फैसल ने यह कदम अप्रैल 2022 में उन्हें आईएएस के रूप में बहाल किए जाने और बाद में संस्कृति मंत्रालय में उप सचिव के रूप में नियुक्त होने के कुछ महीनों बाद उठाया था।

मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई में 5 जजों की खंडपीठ ने की सुनवाई
अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के लिए 5 जजों की खंडपीठ गठित की गई थी। जिसकी अगुवाई भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ कर करे थे। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत समेत पांच जज इस संविधान पीठ के सदस्य थे। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए। वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पेश की।

30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र ने जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने को लेकर प्रस्तुतीकरण दिया है, उसके मुताबिक निर्देश दिया जाता है कि जल्द से जल्द जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि 30 सितंबर 2024 तक राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाएं।

राज्यसभा में 5 अगस्त और लोकसभा में 6 अगस्त 2019 को पारित हुआ था 370 बिल
भारत सरकार के 5 अगस्त 2019 के ऐतिहासिक संविधान संशोधन और प्रस्ताव पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2023 को फैसला सुना दिया। 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को बेअसर करने को लेकर लाए गए भारत सरकार के प्रस्ताव और राज्य पुनर्गठन बिल को लंबी बहस के बाद ऊपरी सदन से पारित करा लिया गया। समर्थन में 125 तो विरोध में 61 सांसदों ने वोटिंग की थी। वहीं अगले दिन 6 अगस्त को लोकसभा में यह प्रस्ताव और विधेयक चर्चा के लिए रखा गया। दिन भर की बहस के बाद जम्मू कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित करने वाला बिल यहां 370 के समर्थन से पारित हो गया। विरोध में इसके 70 लोगों ने मतदान किया था। वहीं 370 को लगभग निरस्त करने और राज्य को मिले विशेषाधिकार को छीनने वाले प्रस्ताव को निचले सदन में 351 सांसदों का साथ मिला जबकि 72 सांसदों ने सरकार के कदम को अनुचित बताते हुए रिजॉल्यूशन के खिलाफ मतदान किया था।

नुच्छेद 370 को लेकर मोदी सरकार को इन दलों का मिला था साथ
भारतीय जनता पार्टी की सरकार को अनुच्छेद 370 को लेकर 2019 में कुछ ऐसे भी दलों का साथ मिला था जो परंपरागत तौर पर बीजेपी की पार्टी लाइन के खिलाफ वोटिंग करते रहे हैं या फिर वह थोड़ा तटस्थ रुख अपनाते हैं। मायावती की बहुजन समाज पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी, के चंद्रशेखर रॉव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब की भारत राष्ट्र समिति) ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर लाए गए बिल का समर्थन किया था। इनके अलावा ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक यानी एआईएडीएमके, शिवसेना, शिरोमणी अकाली दल ने भी सरकार का साथ दिया था।

कांग्रेस ने किया था अनुच्छेद 370 का सबसे ज्यादा विरोध 
अनुच्छेद 370 को लेकर भारत सरकार के कदम का विरोध करने वाली सबसे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस थी लेकिन समय के साथ कांग्रेस पार्टी का इस मुद्दे पर पुराना स्टैंड थोड़ा नरम पड़ता चला गया। कांग्रेस के अलावा ज्यादातर जम्मू कश्मीर के क्षेत्रीय दल जिनमें नेशनल कांफ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपल्स कांफ्रेंस ने पुरजोर तरीके से भारत सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया था. साथ ही सीपीआई, सीपीआईएम, डीएमके, एमडीएमके और राष्ट्रीय जनता दल ने भी बेधड़क बिल के खिलाफ वोटिंग की थी।

अनुच्छेद 370 पर वोटिंग के दौरान ये दल रहे गैरहाजिर
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (भारतीय जनात पार्टी की सहयोगी होते हुए भी) ने संसद में लाए गए प्रस्ताव का विरोध किया था लेकिन पार्टी वोटिंग में शामिल नहीं हुई। जदयू ने वोटिंग के समय संसद से वॉकआउट कर दिया था। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी जदयू ही की तरह दोनों सदनों में सरकार का इस मुद्दे पर खिलाफत की थी लेकिन बिल पर वोटिंग के दौरान टीएमसी के सांसद सदन से बाहर चले गए। नेशनल कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी ने भी विरोध का रास्ता चुना और सदन से बाहर चली गई।

महाराजा हरि सिंह ने किए थे 1947 विलय पत्र पर हस्ताक्षर
उल्लेखनीय है कि 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू और कश्मीर के आखिरी शासक महाराजा हरि सिंह ने भारत में शामिल होने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। वह संसद की ओर से तीन विषयों पर शासन किए जाने पर सहमत हुए थे और संघ की शक्तियों को विदेशी मामलों, रक्षा और संचार तक सीमित कर दिया था।

जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का मूल कारण था अनुच्छेद 370
जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का मूल कारण अनुच्छेद 370 ही था और इसने राज्य को तबाह कर दिया। तीन परिवारों ने जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को समृद्ध नहीं होने दिया। इसी वजह से राज्य में आतंकवाद फला-फूला और गरीबी बनी रही। अगर जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 नहीं होता तो घाटी में 41,000 से अधिक लोग अपनी जान नहीं गंवाते। अनुच्छेद 370 और 35ए की वजह से जमीन खरीदने पर रोक लगने के कारण जम्मू कश्मीर में पर्यटन का विकास नहीं हो पाया। इसी के कारण जम्मू कश्मीर में भ्रष्टाचार बढ़ा, फला-फूला, गरीबी घर करती गई, वहां के लोगों को आरोग्य की सुविधा नहीं मिली, वहां पर विकास नहीं हुआ, वहां के लोगों को बेहतर शिक्षा भी नहीं मिली। इसी की वजह से जम्मू कश्मीर में कोई उद्योग स्थापित नहीं हो सका।

जम्मू-कश्मीर में अब नहीं होती पत्थरबाजी की घटनाएं
अनुच्छेद-370 और 35ए हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में स्पष्ट तौर पर बदलाव देखने को मिल रहा है। 2021 के बाद पत्थरबाजी की घटनाएं बंद हो गई है। केंद्र शासित प्रदेश में जहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं, वहीं आतंकियों और पत्थरबाजों की कमर टूटी है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने 2021 में कहा कि पत्थरबाजी की घटनाओं में 90 प्रतिशत की गिरवाट दर्ज की गई है। पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह के मुताबिक 2020 में सिर्फ 255 पथराव की घटनाएं हुईं, जो 2019 की तुलना में 87.13 प्रतिशत कम है। जबकि 2016 की तुलना में 2020 में पत्थरबाजी की घटनाओं में 90 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है। दिलबाग सिंह ने कहा कि कानून और व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में है। 2021 के लिए हमारा संकल्प जम्मू और कश्मीर में शांति बनाए रखना और स्थिति को नियंत्रित एवं मजबूत करना है। दिलबाग सिंह के अनुसार, 2019 में पत्थरबाजी की 1,999 घटनाएं हुईं, जिनमें से 1,193 केंद्र द्वारा उस साल अगस्त में जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन राज्य की विशेष स्थिति को रद्द करने की घोषणा के बाद हुई थी। वर्ष 2018 में 1,458 और 2017 में 1,412 बार पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं थीं। जबकि वर्ष 2016 में 2,653 पत्थरबाज़ी के मामलों की सूचना मिली थी। 2016 में सबसे अधिक पत्थरबाजी की घटनाएं हुई, जब आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के एक कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद पूरे कश्मीर में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। जबकि, 2015 में, जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की 730 घटनाएं हुईं थीं। सेना ने बताया था कि नोटबंदी के बाद भी पत्थरबाजी की घटनाओं में भारी कमी आई थी। गौरतलब है कि घाटी में आतंकियों पर शिकंजा कसने और उग्रवादी घटनाओं में कमी आने के बाद पाकिस्तान परस्त अलगाववादियों ने पत्थर को एक ‘लोकप्रिय’ हथियार का विकल्प बना दिया। पत्थरबाजी का हथियार जम्मू-कश्मीर में 2008 के अमरनाथ-भूमि आंदोलन के बाद से प्रचलित हुआ। इसके बाद से देशभर के कई हिस्सों में समुदाय विशेष ने पत्थरबाजी को अपने विरोध का एक सुलभ जरिया बनाया है। यही नहीं, दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों में पत्थरों का भारी मात्रा में इस्तेमाल किया गया। 

कश्मीर में 370 हटाने के लिए जनमत संग्रह होः कपिल सिब्बल
370 मामले पर सुनवाई के दौरान 08 अगस्त 2023 को कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की तरफ से कोर्ट में दलीलें दीं। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार को आर्टिकल 370 को हटाने से पहले जनता से राय लेनी चाहिए थी, क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं। सारे फैसले जनता के द्वारा होने चाहिए। कपिल सिब्बल ने दलील दी कि ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने वाले कानून को बनाने और किसी फैसले पर पहुंचने से पहले जनमत संग्रह कराया था, जिसे ब्रेक्जिट कहा जाता है। सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “मिस्टर सिब्बल आप हिंदुस्तान में रहते हैं, जिसका एक संविधान है। उस संविधान के मुताबिक, जनमत संग्रह यानि कि रेफरेंडम जैसी कोई बात लिखी ही नहीं है।”

महबूबा ने कहा था- कश्मीर में कोई तिरंगा उठाने वाला भी नहीं मिलेगा
पांच साल पहले जब आर्टिकल 370 की समाप्ति को लेकर अटकलें लग रही थीं, महबूबा मुफ्ती का अत्यंत गैरजिम्मेदाराना बयान आया था। 29 जुलाई 2017 को महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि अगर आर्टिकल 370 हटा तो कश्मीर घाटी में कोई भारत का झंडा थामने वाला नहीं मिलेगा। जिस समय महबूबा ने ये बयान दिया था, उस वक्त वो जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री थीं। ये बयान उस महबूबा का था, जिनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने से पहले केंद्रीय गृह मंत्री भी रह चुके थे। महबूबा का ये बयान शर्मनाक था। उससे भी शर्मनाक तब, जब महबूबा ने आर्टिकल 370 की समाप्ति के सवा साल बाद अक्टूबर 2020 में बयान दिया कि जब तक जम्मू-कश्मीर में वापस आर्टिकल 370 नहीं लग जाता, वो तिरंगा नहीं फहराएंगी।  

महबूबा को मुंह चिढ़ा रही है कश्मीर की जनता
अब कश्मीर की जनता ही महबूबा को ठेंगा दिखा रही है, उनको उनकी औकात बता रही है, देश के प्रति अपनी भावना, राष्ट्रगान और तिरंगे के प्रति सम्मान को दर्शाते हुए। जिस हुर्रियत की जगह लेने को बेचैन हैं महबूबा और जिस हुर्रियत के कार्यालय में बैठकर कभी कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश रची जाती थी, उसके गेट पर भी भारत का तिरंगा टंगे होने वाली तस्वीर देश और दुनिया ने वायरल होते हुए देखी, महबूबा ने भी देखी होगी।

पीएम मोदी ने 1991 में कश्मीर के लाल चौक पर फहराया था तिरंगा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का लक्ष्य बहुत साल पहले ही तय कर लिया था। यह इस बात से पता चलता है कि 1991 में उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता यात्रा किया था और कश्मीर में तिरंगा झंडा लहराया था। 11 दिसंबर, 1991 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में यह ​एकता यात्रा शुरू हुई थी। उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी की नेशनल इलेक्शन कमेटी के मेंबर और इस यात्रा के कोऑर्डिनेटर थे। यह एकता यात्रा 26 जनवरी, 1992 को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के साथ समाप्त हुई थी। श्रीनगर के लालचौक पर भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तिरंगा फहराया था। मोदी उस वक्त जोशी की उस टीम के सदस्य थे जो घनघोर आतंकवाद के उस दौर में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंची थी। हालात को भांपते हुए तत्कालीन प्रशासन ने मुरली मनोहर जोशी, नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं को हवाई जहाज के जरिए श्रीनगर पहुंचाया था। लालचौक पूरी तरह से युद्घक्षेत्र बना हुआ था। चारों तरफ सिर्फ सुरक्षाकर्मी ही थे। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच लगभग 15 मिनट में ही मुरली मनोहर जोशी व उनकी टीम के सदस्य के रूप में शामिल नरेंद्र मोदी व अन्य ने तिरंगा फहराया। इस दौरान आतंकियों ने रॉकेट भी दागे जो निशाने पर नहीं लगे। इसके बाद सभी नेता सुरक्षित वापस लौट गए थे।

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