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इलेक्टोरल बॉन्ड पर कांग्रेस पार्टी बोल रही है झूठ, जानिए अब कितनी अधिक पारदर्शी है चुनावी चंदे की प्रक्रिया

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कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर झूठे आरोप लगाकर मोदी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की है। दरअसर, कांग्रेस का चरित्र ही ऐसा है कि जब वो सत्ता में होती है तो भ्रष्टाचार करती है और जब विपक्ष में होती है तो झूठ बोलकर सरकार को बदनाम करने की साजिश रचती है। कांग्रेस पार्टी ने अब चुनावी बॉन्ड को लेकर झूठी बोला है। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने अपने फायदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड निकाले थे और इसके जरिए कॉरपोरेट का करोड़ों रुपया भाजपा को चंदे के रूप में मिला। कांग्रेस के मुताबिक इसके जरिए जबरदस्त घोटाला किया गया है। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। सच्चाई ये है कि चुनावी बॉन्ड जारी हो ने के बाद राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। कांग्रेस के जमाने में करोड़ों रुपये का बेनामी चंदा लिया जाता था, जबकि अब ऐसा संभव नहीं है। आपको कुछ ऐसे ही कुछ बड़े अंतर बताते हैं।

  • कांग्रेस शासन के समय बेनामी और फर्जी नामों से जमकर चुनावी चंदा दिया जाता था। लेकिन अब चुनावी चंदा देने वालों को केवाईसी अनिवार्य है, यानि चंदा देने वाले की पूरी जानकारी सरकार को पता होती है।
  • पहले चुनावी चंदे में ब्लैकमनी का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब केवाईसी होने की वजह से कालेधन को चुनावी चंदे के रूप में नहीं दिया जा सकता है।
  • कांग्रेस शासन में चुनावी चंदा देने की कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं थी, करोड़ों रुपये कैश में चंदे के रूप में ले लिया जाता था। लेकिन अब चंदा देने वाले या तो चेक के माध्यम से या फिर ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के जरिए ही चंदा दे सकते हैं। नई व्यवस्था में सिर्फ दो हजार रुपये तक की राशि ही कैश के रूप में दी जा सकती है।
  • कांग्रेस के शासन में कोई भी व्यक्ति या संस्था चेक के जरिए नंबर एक की रकम से चुनावी चंदा नहीं देना चाहती थी, क्योंकि नाम उजागर होने की वजह से उसके उत्पीड़न का डर था। वहीं अब मोदी सरकार के समय में जो व्यवस्था की गई है, उसमें दानदाता का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है। यानि कोई भी बगैर किसी भय के चाहे जितनी रकम चंदे के रूप में दे सकता है।
  • यूपीए की सरकार के दौरान जो तथाकथित सुधार किए गए थे, उसके बाद चुनावी चंदे को लेकर पारदर्शिता में लोगों को विश्वास नहीं था। जबकि अब लोगों में चुनावी चंदा देने को लेकर न सिर्फ सरकार द्वारा स्थापित की गई इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था पर विश्वास है, बल्कि लोग दिल खोलकर चंदा दे रहे हैं। यही वजह है कि 2017 के बाद से 12 बार में विभिन्न राजनीतिक दलों को लगभग 6,129 करोड़ रुपये का चंदा मिल चुका है।
  • मोदी सरकार ने जो इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था स्थापित की है उसके तहत ये सिर्फ रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को ही दिए जाते हैं और उस दल की बैंक खाते में ही भुनाए जा सकते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड को किसी दूसरे को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है और ये सिर्फ 15 दिन के लिए ही मान्य होते हैं।
  • इतना ही नहीं पहले चुनावी चंदे की ऑडिट का कोई प्रावधान नहीं था, बल्कि अब एकॉउंट में चंदा मिलने की वजह से इसका कभी भी ऑडिट किया जा सकता है। यानि अब चुनावी चंदे में ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं बची है।

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