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गांधी जी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को साकार कर रहे हैं राहुल

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राष्ट्रपति महात्मा गांधी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को साकार कर रहे हैं। राहुल गांधी की तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस ने अपने गढ़ कर्नाटक की सत्ता गवां दी है। इसके साथ ही राहुल के नेतृत्व में पार्टी का जनाधार सिमट कर 2.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है। कर्नाटक के नतीजे सीधे तौर पर राहुल गांधी के लिए बड़ा झटका है। विकास की जगह तुष्टिकरण की नीति के कारण राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का वोट बैंक ध्वस्त हो चुका है। जिस राहुल गांधी के भरोसे कांग्रेस 2019 में देश की सत्ता में फिर से वापसी की उम्मीद कर रही है वह बेहद कमजोर है। राहुल गांधी का रिकॉर्ड तो ये है कि अब तक उनके नेतृत्व में जितने भी चुनाव लड़े गए उसमें कांग्रेस हारती ही चली आ रही है। दरअसल, कांग्रेस अपने अस्तित्व पर संकट के दौर से गुजर रही है और एक के बाद एक बड़ी हार के जिम्मेदार राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं।

कर्नाटक में करारी हार
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का एक और किला ढह गया। कर्नाटक की सत्ता भी कांग्रेस के हाथ से फिसल गई है। अपने अपरिपक्व नेतृत्व के कारण राहुल कांग्रेस के लिए शुभ साबित नहीं हो रहे हैं। राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को गुजरात, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और कर्नाटक में हार का मुंह देखना पड़ा है। इसके पहले उपाध्यक्ष के रूप में दिल्ली, अरूणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, मणिपुर, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलांगना और 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। कहने को कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, देश पर सबसे ज्यादा वक्त तक शासन करने वाली पार्टी है, लेकिन आज इस पार्टी की हालत बेहद खराब हो चुकी है। देश में अब कांग्रेस की सरकार सिर्फ पंजाब, पुडुचेरी और मिजोरम में बची है। आइये हम देखते हैं कि कहां और कितनी बड़ी हार दिला चुके हैं राहुल।

2018: हार से नए साल का स्वागत
साल 2018 भी कांग्रेस के लिए शुभ साबित नहीं हुआ। नए साल में पूर्वोत्तर में पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए राहुल गांधी ने पूर्वोत्तर में ताबड़तोड़ कई रैलियां की, लेकिन यहां कामयाब नहीं हो सके। त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा और अब कर्नाटक में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।  

2017 में सात में से छह राज्यों में शिकस्त
पिछले वर्ष 2017 में सात राज्यों में हुए चुनाव के नतीजों ने भी राहुल की पोल खोल दी। यूपी, उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को भारी हार मिली। पंजाब में जीत कैप्टन अमरिंदर सिंह की विश्वसनीयता और मेहनत की हुई। गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सरकार बनाने में नाकाम रही। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की चमत्कारिक जीत और कांग्रेस की अब तक की सबसे करारी हार के रूप में हमारे सामने है। सवा सौ साल से भी किसी पुरानी पार्टी के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि देश के उस प्रदेश में जहां कभी उसका सबसे बड़ा जनाधार रहा हो, वहीं पर, उसे 403 में से सिर्फ 7 सीटें मिलती हों।

2015-16 में मिली जबरदस्त हार
2015 में महागठबंधन के चलते बिहार में जीत मिली, लेकिन दिल्ली में तो सूपड़ा साफ हो गया। यहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। 2016 में असम के साथ केरल और पश्चिम बंगाल में हार का मुंह देखना पड़ा। पुडुचेरी में सरकार जरूर बनी। इस स्थिति में अब साफ तौर पर देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस पार्टी कोमा में चली गई है। दरअसल कांग्रेस ने सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के विरोध को ही सबसे बड़ा काम मान लिया है। इस कारण देश की जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी कांग्रेस ने कोई खास सबक नहीं सीखा। उल्टे राहुल गांधी अपने फटे कुर्ते के प्रदर्शन की बचकानी हरकतें करते रहें, लेकिन उन्हें कोई रोकने तो दूर, टोकनेवाला भी नहीं मिला।

2014 में 44 सीटों पर सिमट गई
दरअसल कांग्रेस के लिए यह विश्लेषण का दौर है, लेकिन वह वंशवाद और परिवारवाद के चक्कर में इस विश्लेषण की ओर जाना ही नहीं चाहती है। पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की भूमिका सीमित कर दी गई है और युवा नेतृत्व के नाम पर राहुल को थोप दिया गया है। 2014 में पार्टी की किरकिरी हर किसी को याद है। जब 44 सीटों पर जीत मिलने के साथ ही पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तक नहीं बन पाई। इसी तरह महाराष्ट्र व हरियाणा से सत्ता गंवा दी। यही स्थिति झारखंड और जम्मू-कश्मीर में रही जहां करारी हार मिलने से पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। पिछले पंद्रह सालों से लगातार कोशिशें करने के बावजूद राहुल गांधी देश के राजनैतिक परिदृश्य में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और जगह बना पाने में असफल रहे हैं।

2012 में कांग्रेस की जबरदस्त हार
लगातार होती हार पर हार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान खड़े कर रही हैं। दरअसल वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी तो यूपी से 21 सांसदों के जीतने का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी खुले शब्दों में कहा कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं, लेकिन राहुल को नेतृत्व दिये जाने की बात ही चली कि पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 28 सीटें आई। वहीं पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन होने से वहां दोबारा सरकार बन गई। ठीकरा कैप्टन अमरिंदर सिंह पर फोड़ा गया। दूसरी ओर गोवा भी हाथ से निकल गया। हालांकि हिमाचल और उत्तराखंड में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बन तो गई, लेकिन वह भी हिचकोले खाती रही। इसी साल गुजरात में भी हार मिली और त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार हुई।

राहुल के कारण हार के लिए चित्र परिणाम

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