अपने को धर्मनिरपेक्ष और बीजेपी को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाली कांग्रस खुद इस शब्द का माखौल उड़ाती नजर आ रही है। अपने सियासी वजूद को बचाने के लिए कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के अपने सारे सिद्धांतों की तिलांजलि देकर मुस्लिम सांप्रदायिकता का सहारा ले रही है। चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में होने वाले चुनाव में कांग्रेस ने कुछ ऐसे दलों से हाथ मिलाया है, जिनपर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के आरोप लगे हैं।
बंगाल में कांग्रेस का अब्बास सिद्दीकी से गठबंधन
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट ने 50 करोड़ भारतीयों को वायरस से मारने की दुआ करने वाले फुरफुरा शरीफ के अब्बास सिद्दीकी से गठबंधन किया है। अब्बास सिद्दीकी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के प्रमुख है। सिद्दकी शुरुआत में असदुद्दीन ओवैसी के साथ जाने की तैयारी में थे, लेकिन अब कांग्रेस के साथ हो लिए हैं। अब्बास नागरिकता संशोधन अधिनियम के मुखर विरोधी रहे हैं और काफी तीखे भाषणों के लिए जाने जाते हैं।
असम में AIUDF से मिलाया हाथ
असम में कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। असम कांग्रेस के प्रमुख रिपुन बोरा को अजमल की पार्टी ‘कम्युनल’ नहीं लगती है। उन्होंने कहा कि AIUDF को ‘अछूत’ नहीं समझा जाना चाहिए। बोरा ने ऐसी दलील दी है, जिससे लगता है कि वो खुद धर्मनिरपेक्षता को लेकर कन्फ्यूज्ड है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने पीडीपी से (जम्मू कश्मीर में) गठबंधन किया था जो भारतीय ध्वज को स्वीकार नहीं करती। अगर आप अपने धर्म का सम्मान करते हैं तो आप कम्युनल नहीं हैं। बीजेपी कम्युनल है।
केरल में मुस्लिम लीग के सामने आत्मसमर्पण
दक्षिणी राज्य केरल में कांग्रेस पूरी तरह से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग पर निर्भर है। यहां कांग्रेस की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि वो मुस्लिम लीग के बिना कोई चुनाव नहीं जीत सकती है। निकाय चुनाव में यूडीएफ की करारी हार के बाद मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा था कि मुस्लिम लीग ही फ्रंट के फैसले कर रही है और कांग्रेस सिर्फ उसका अनुमोदन कर रही है।
महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ बनायी सरकार
कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता स्थान और अवसर के मुताबिक बदलती रहती है। दशकों तक सांप्रदायिक पार्टी बताकर शिवसेना पर हमला करने वाली कांग्रेस महाराष्ट्र में सत्ता के लिए हाथ मिला लिया। अब उसे शिवसेना के ‘कट्टर हिंदुत्व’ से कोई परेशानी है। जबसे महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनी है, वहां पर हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं। अब महाराष्ट्र में मुस्लिमों को आरक्षण देने की बात भी उठने लगी है।
कांग्रेस की अवसरवादी धर्मनिरपेक्षता पर उठे सवाल
कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता में राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता का अभाव है। विभिन्न राज्यों में अपनी सुविधा के मुताबिक अलग-अलग विचारधारा वाले दलों से हाथ मिला लेना और फिर खुद को ‘सेक्युलर’ बताते रहना उसके अपने नेताओं को भी रास नहीं आ रहा। राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा ने कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़ा कर दिया है और इसे पार्टी की मूल विचारधारा के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा, “सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने में कांग्रेस सिलेक्टिव नहीं हो सकती। उसके हर तरह से ऐसा करना होगा, धर्म या रंग को देखे बिना।”
Congress’ alliance with parties like ISF and other such forces militates against the core ideology of the party and Gandhian and Nehruvian secularism, which forms the soul of the party. These issues need to be approved by the CWC.
— Anand Sharma (@AnandSharmaINC) March 1, 2021
आनंद शर्मा पर बरसे अधीर रंजन चौधरी
आनंद शर्मा के इस बयान के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने उन पर बीजेपी को खुश करने वाला बयान देने का आरोप लगाया। आनंद शर्मा को खरी-खोटी सुनाते हुए अधीर रंजन ने कहा कि मुझे बहुत अजीब लग रहा है कि आनंद शर्मा हमारी पार्टी में रहते हुए किसी और की बात कैसे कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बयानों से विपक्ष मजबूत होता है। अधीर रंजन ने कहा कि जो लोग ऐसे बयान दे रहे हैं, वो वरिष्ठ लोग हैं लेकिन फिर भी ऐसी आधारहीन बात कर रहे हैं।
आनंद शर्मा को बताया ठन-ठन गोपाल
अधीर रंजन ने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल में आनंद शर्मा को कोई नहीं पहचानता, उनकी बात का कोई मोल नहीं है। यह ठन-ठन गोपाल के बोलने से क्या होगा। आनंद शर्मा ने ट्विटर पर जो लिखा कांग्रेस नेतृत्व की नजर में आने के लिए लिखा और उनकी बात एकदम आधारहीन है। अधीर रंजन ने नसीहत देते हुए कहा कि जो बीजेपी और उससे जुड़ी पार्टियों के खिलाफ लड़ना चाहते हैं उन्हें बीजेपी के एजेंडा को सूट करने वाले बयान देने की बजाय पांचों चुनावी राज्यों में कांग्रेस का समर्थन और प्रचार करना चाहिए।