Home चटपटी कहीं भारतीयता खत्म न कर दें मोदी!!!

कहीं भारतीयता खत्म न कर दें मोदी!!!

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आजादी के बाद के 70 सालों में कांग्रेस ने भारत को विशिष्ट भारतीयता की जो सौगात दी थी, मोदीजी तो उसके पीछे लोटा लेकर पड़ गए हैं। सुरेमनपुर गांव का खानदानी कांग्रेसी बसेसर मोदीजी की इस हरकत से बहुत कोफ्त में है। घर में शौचालय बन चुका है, सुरेमनपुर गांव में सार्वजनिक शौचालय भी बन चुका है लेकिन बसेसर को बंद, तंग शौचालय में घुटन होती है। ये भी कोई बात है जो आनंद लोटा लेकर खेत जाने में हैं वो घुटन वाले शौचालय में भला कहां। खेत में दिशा जाने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि बैठकर कूखने की जरूरत नहीं पड़ती। लोटा लो उसमें पानी डालो खेत की तरफ बढ़ चलो, जहां लगे कि अब जोर नहीं चलेगा लुंगी उठाओ बैठो और जोर से भड़भड़ा दो। मिट्टी से बना शरीर मिट्टी से ही पावन होता है। खेत में तो माटी ही माटी है। उठा के मल लो हाथ लोटा सब पुन: पवित्र!!!

जाने क्यों बसेसर आज बहुत दुखी है। उसे लग रहा है कि चार साल पहले खेत की माटी की जो खूशबू(पखाना मिश्रित) फिजाओं में चहुंओर घुली रहती थी, वो मोदीजी के खामख्वाह के स्वच्छता अभियान में कहीं खो सी रही है। दिशा कर्म से निवृत होने के बाद लौटते हुए कांग्रेस के शासनकाल को याद कर बसेसर भावुक हुए जा रहा है। इसी भावुकता में आगे बढ़ते ध्यान ऐसा खोया कि बसेसर का पैर चप्प किसी ताजे छोड़े गए माल पर पड़ा। खैर!! ये सब तो होता रहता है। माटी में पैर रगड़ लो सब दुरुस्त। गांधीजी कहते भी थे कि मिट्टी का लेप बहुत फायदेमंद होता है। इसी उधेड़बुन और हर 12-13 कदम बाद पैर को मिट्टी में उलट-पलट कर रगड़ता हुआ बसेसर पहुंच गया बड़का टोला में कुएं की जगत पर। जगत के सामने जयभगवान की चाय की दुकान गांव में राजनीतिक बहस की सबसे मुफीद जगह मानी जाती है।

रामाधार- बसेसर भाई दातुन कर लिए हो तो चाय उबल रही है
बसेसर- आज किसी चीज का मूड नहीं है
रामाधार- पहली नजर में ही मुझे लगा कि कुछ उखड़े हुए हो, क्या बात है।
बसेसर- अब देखो ना एक बीघे में इस बार मक्के की केवल 3 क्विंटल पैदावार हुई है, अब जब इंसान खेत में मल त्याग नहीं करेगा तो मिट्टी की उर्वरा तो कम होगी ही।
रामाधार- अर्रे बसेसर ये लो दातुन और जल्दी रगड़ मारो, चाय की चुस्की में सारा गम काफूर हो जाएगा।
चाय की दुकान पर अखबार में आंख गड़ाए गयासुद्दीन के कान जाने कब उसकी आंखों पर हावी हो चुके थे। चुनांचे अखबार पर आंख होने के बावजूद उसका सारा ध्यान बसेसर-रामाधार की बहस की ओर जम चुका था। गयासुद्दीन को लगा कि बसेसर एक बुनियादी समस्या को उठाना चाहता है लेकिन मोदी भक्त रामाधार मुद्दे को जानबूझ कर भटकाना चाहता है। गयासुद्दीन मन ही मन बड़बड़ाया मोदी भक्तों की सबसे बड़ी परेशानी यही है जब सरकार की कमी बताओगे बेसाख्ता ध्यान भटका देंगे।
दातुन रगड़ते हुए बसेसर बोल पड़ा, गम काफूर कैसे हो रामाधार, मैं पूछता हूं कि 4-5 साल पहले सुबह-सुबह खेतों में जो रौनक दिखती थी अब दिखती है क्या? कहीं जनाना टीम, कहीं मर्दाना टीम, कहीं दोनों की घालमेल टीम। कितनी रुमानियत थी जिंदगी में।
रामाधार- 4 साल पहले गांव में जितनी बीमारियां थीं वो अब हैं क्या? तुम्हें पता है कि स्वच्छ भारत अभियान की वजह से गंदगी से होने वाली बीमारियों जैसे पीलिया, हैजा, उल्टी-दस्त, हेपेटाइटिस, मलेरिया में काफी कमी आई है।
गयासुद्दीन की कुढ़न इस जवाब से और बढ़ गई, मन ही मन बुदबुदाया साला मोदी भक्त।
बसेसर- ये सब सिर्फ कहने की बातें हैं।
रामाधार- कहने की बात नहीं है!! जो यूनिसेफ है न अर्रे वो संयुक्त राष्ट्र वाला। उसपर तो मोदी जी का कोई जोर नहीं है ना, उसकी रिपोर्ट है कि स्वच्छ भारत अभियान की वजह से हर भारतीय परिवार को सालाना करीब 50 हजार रुपये की बचत होनी शुरू हो गई है।
अबतक मन को जैसे तैसे जब्त किए बैठे गयासुद्दीन ने अखबार को एक ओर रखा। मुंह में दबी सुर्ती को अगूंठे और तर्जनी की मदद से बाहर निकाला, दोनों उंगलियों को अंगोछे में पोछा और बोल पड़ा- रामधार भाई अंधभक्ति की भी हद होती है, स्वच्छता अभियान की वजह से जो 50 हजार आपकी जेब में आए हैं उसमें से कुछ हमें भी मिलेगा क्या?
रामाधार- गयासुद्दीन भाई मेरी जेब में आए हैं वो मैंने कब कहा, मैं तो यूनीसेफ की रिपोर्ट का हवाला दे रहा था
गयासुद्दीन – मोदी भक्तों की दिक्कत ही यही है पहले कहेंगे और फिर पलट जाएंगे, भाई 50 हजार की बचत होगी तो जाएगा कहां? जेब में ही न!!!
बसेसर के मन की बात गयासुद्दीन के मुंह से निकली तो कोफ्त थोड़ी कम हुई!!!
बसेसर- तुम ही बताओ गयासुद्दीन भाई सोनिया गांधी से ज्यादा त्याग इस देश के लिए किसी ने किया है???
इस सवाल को सुनकर रामाधार की जिरह की सारी ऊर्जा एक झटके में ही खत्म हो गई। अब क्या बचा कि आगे बातचीत हो

स्वच्छता अभियान पर जारी इस गूढ़ बहस के बीच जयभगवान ने भगोने में उबल चुकी चाय को केतली में उड़ेला और कप में डालकर बढ़ाने लगा। रामाधार, बसेसर, गयासुद्दीन, खेदन, मुन्ना, बनवारी सबके हाथ में अब गर्मागर्म चाय का कप था।
बहस चाय के साथ भी जारी है, नतीजा आज भी नहीं निकलने वाला है। लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर जयभगवान को नहीं मालूम कि मोदी जी और कांग्रेस के शासनकाल में क्या फर्क है, हां उसे खुशी इस बात की है कि उज्ज्वला योजना के तहत उसे मुफ्त में गैस कनेक्शन मिल गया और उसी चूल्हे से अब दुकान का काम भी चल जाता है। इतना ही नहीं पत्नी ललिया को लकड़ी चुनने अब नहीं जाना पड़ता।

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