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आखिरकार चीन ने कबूल की गलवान में अपने सैनिकों की मौत की बात

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आखिरकार चीन ने दुनिया के सामने मान लिया है कि गलवान घाटी संघर्ष में उसके सैनिक मारे गए थे। चीन ने पहली बार माना है कि पिछले साल जून में लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प में उसके चार सैनिक मारे गए थे। एक चीनी अखबार में कहा गया है कि चीन ने न सिर्फ ये बात मानी है बल्कि इन जवानों को मरणोपरांत पदक देने का भी एलान किया है। चीन ने अब अपने मारे गए सैनिकों के नाम भी शेयर किए हैं- पीएलए शिनजियांग मिलिट्री कमांड के रेजीमेंटल कमांडर क्यूई फबाओ, चेन होंगुन, जियानगॉन्ग, जिओ सियुआन और वांग ज़ुओरन।

पिछले साल गलवान घाटी में हुई झड़प में चीन का काफी नुकसान हुआ था, लेकिन चीन ने कभी नहीं माना कि उसके सैनिक हताहत हुए हैं। झड़प के बाद एक अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन के करीब 30-40 सैनिक मारे गए हैं। हाल ही में रूसी सामाचार एजेंसी तॉस ने दावा किया कि झड़प में कम से कम 45 चीनी सैनिक मारे गए थे। भारत ने भी चीन के 40 से ज्यादा सैनिक के मारे जाने का दावा किया था, लेकिन चीन ने आधिकारिक तौर पर अपने सैनिकों के मरने की बात नहीं कबूली थी।

गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत और चीन के संबंध में काफी तनाव आ गए। संघर्ष में भारत के भी 20 जवान शहीद हुए थे। इसके बाद भारत ने चीन के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए हैं। चीन एप पर प्रतिबंध के साथ चीन से होने वाले व्यापार पर भी सख्ती की गई है। उस समय चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात कर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कहा था कि गलवान में जो कुछ भी हुआ, उसे चीन ने काफी सोची-समझी और पूर्वनियोजित रणनीति के तहत अंजाम दिया। ताकि भारतीय सेना को पेट्रोलिंग पॉइंट 14 से हटाकर एलएसी को बदला जा सके। इसके साथ ही काराकोरम मार्ग और डीबीओ रोड पर भारतीय सेना के वाहनों की आवाजाही को रोका जा सके। लेकिन भारतीय सैनिकों ने अपना बलिदान देककर इस साजिश को नाकाम कर दिया।

दरअसल चीन की सेना की ओर से भारत के पेट्रोलिंग पॉइंट 14 पर निगरानी चौकी बनाए जाने की वजह से भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हुए तो चीन के 40 से अधिक सैनिक मारे गए।

यदि इस पोस्ट को हटाया नहीं जाता तो चीन की सेना ना केवल काराकोरम की तरफ भारतीय सेना की आवाजाही पर नजर रख सकती थी, बल्कि दारबुक-श्योक-दौलतबेग ओल्डी (डीबीओ) रोड पर सेना के वाहनों की आवाजाही को रोकने की क्षमता मिल जाती। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस पोस्ट को भारतीय सीमा में एलएसी के इस पार बनाया गया था। अगर चीनी सेना अपनी साजिश में सफल हो जाती तो यह भारतीय हितों के लिए बहुत बड़ा नुकसान होता।

पॉइंट 14 को भारतीय सेना ने 1978 में स्थापित किया था। यह एक चोटी पर है जहां से गलवान नदी घाटी और गलवान नदी पर नजर रखी जा सकती है, जो श्योक नदी में मिल जाती है। इसी के किनारे भारतीय सेना के इंजिनीयर्स डीएसबीओ रोड का निर्माण कर रहे हैं।

सेना के उच्च अधिकारियों और पूर्व कमांडर्स के साथ बातचीत के मुताबिक 6 जून को मिलिट्री कमांडर्स की बैठक में यह तक तय किया गया था कि पॉइंट 14 तक हर पोस्ट पर कितने सैनिक रह सकते हैं। लेकिन जिस समय सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया चल रही थी चीनी सैनिकों ने पॉइंट 14 के करीब निगरानी पोस्ट बनाने की कोशिश की। इसका 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू ने विरोध किया।

सोमवार 15 जून को सूर्यास्त के समय कर्नल संतोष और उनके कंपनी कमांडर पॉइंट 14 पर पहुंचे और पीएलए के अपने समकक्षों को ढांचा हटाने को कहा। दोनों पक्षों में जोरदार बहस होने लगी। दोनों तरफ से और सैनिक पहुंच गए और हाथ-पैर चलने लगे। गलवान नदी के पास चोटी के नीचे चाइनीज पीएलए का बेस कैंप है, वहां से बड़ी संख्या में चीनी सैनिक हथियारों के साथ पहुंच गए। शुरुआत में भारतीय सैनिकों की संख्या अच्छी खासी थी लेकिन चीनी उनसे अधिक संख्या में आ गए।

चीनी सेना वहां निगरानी पोस्ट बनाकर एलएसी को बदलना चाहती थी। झड़प से पहले चीनी अधिकारियों ने भारतीय अधिकारियों से कहा था कि एलएसी पाइंट 14 के पार है। चीन का यह अवैध पोस्ट पॉइंट 14 पर भारत की मौजूदगी को कमजोर कर देता। इससे चीनी सेना को बड़ा अडवांटेज मिल जाता।

 

 

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