Home झूठ का पर्दाफाश पिछली सरकारों ने गोरखपुर को शिशुओं के लिये ‘शापित’ कर दिया!

पिछली सरकारों ने गोरखपुर को शिशुओं के लिये ‘शापित’ कर दिया!

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गोरखपुर के एक सरकारी अस्पताल में कई बच्चों की मौत पर पूरा देश स्तब्ध है। लेकिन ये दर्दनाक स्थिति अचानक पैदा नहीं हुई है। इस बड़ी घटना का तात्कालिक कारण जो भी रहा हो, लेकिन इसके लिये पिछली सरकारों की लापरवाही और अकर्मण्यता को ही जिम्मेदार माना जा सकता है। मीडिया का एक वर्ग किसी खास एजेंडे के तहत भले ही उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार को दोषी ठहराने की कोशिशों में जुटा हुआ है। लेकिन सच्चाई ये है कि गोरखपुर जिला पिछले कई दशकों से मासूमों की अकाल मौत का जिला बना हुआ है। यही नहीं, अबकी बार तो केंद्र सरकार की दखल और यूपी सरकार की सजगता से हालात को जल्द संभालने का प्रयास चल रहा है।

गोरखपुर शिशु मृत्यु दर के लिये विश्व में कुख्यात
गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला भले ही अभी गर्माया हुआ हो, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गोरखपुर जिला आज से नहीं पिछले कई दशकों से बच्चों की मौत के लिये कुख्यात रहा है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों को देखें तो देश में अगर एक साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का दर प्रति 1000 बच्चों में 40 है तो यूपी में ये दर 48 है। जबकि गोरखपुर में ये दर सर्वाधिक यानि 62 है। इस हिसाब से अगर हम गोरखपुर को वैश्विक आंकड़ों में फिट करने की कोशिश करें तो वो दुनिया के उन 20 देशों में से 18वें स्थान पर शामिल हो सकता है जहां शिशु मृत्यु दर सर्वाधिक है।

‘इंसेफलाइटिस से पीड़ित ज्यादातर बच्चे कुपोषण के शिकार’
जानकारी के अनुसार इतनी ज्यादा शिश मृत्यु दर का कारण कुपोषण, अधूरा टीकाकरण, खुले में शौच और गंदे पानी की समस्या है। जाहिर है कि ये तमाम समस्या सिर्फ चंद महीनों के शासन में कोई भी सरकार दुरुस्त नहीं कर सकती। जानकारों के मुताबिक कुपोषण और अधूरे टीकाकरण के चलते ही बच्चों में इंसेफलाइटिस का खतरा बढ़ जाता है। रिपोर्ट्स के अनुसार इंसेफलाइटिस से पीड़ित 70 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार थे।

पीएम मोदी ने तुरंत सक्रियता दिखाई
गोरखपुर की घटना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अंदर से आहत किया है। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकॉनोमिक्स टाइम्स के अनुसार उन्हें जैसे ही इसकी गंभीरता के बारे में सूचना दी गई उन्होंने दिल्ली से तीन बड़े डॉक्टरों को वहां के लिये रवाना कर दिया। दिल्ली से जिन डॉक्टरों को गोरखपुर भेजा गया है उनमें सफदरजंग अस्पताल और लेडी हार्डिंग अस्पताल के प्रमुख और राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के उपायुक्त शामिल हैं। ये बड़े डॉक्टर हर मरीज को स्वयं देख रहे हैं। पीएम मोदी के कहने पर ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल का दौरा किया और मरीजों एवं उनक परिजनों से बातचीत की।

रीजनल रिसर्च सेंटर को मंजूरी
इस घटना को लेकर मोदी सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोरखपुर में Acute Encephalitis Syndrome पर शोध के लिये तत्काल रीजनल रिसर्च सेंटर को भी मंजूरी दी गई है। इस सेंटर के लिये प्रधानमंत्री ने 85 करोड़ रुपये के अनुदान को भी मंजूरी दी है।

बच्चों की मौत पर राजनीति कर रहा है विपक्ष
सवाल यहां तक उठ रहे हैं कि जिस तरह से तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर मीडिया गोरखपुर हादसे को पेश कर रहा है उसके पीछे कोई साजिश तो नहीं है। क्योंकि गोरखपुर, यूपी के सीएम की कर्मभूमि रही है। अपने क्षेत्र के लिये उनकी चिंता किसी से छिपी नहीं है। तथ्य ये है कि पिछले 9 तारीख को ही सीएम ने इंफेलाइटिस की चिंता को लेकर ही इस अस्पताल का दौरा भी किया था। तब अस्पताल प्रशासन की ओर से किसी ने ऑक्सीजन बिल के बकाये के बारे में कोई शिकायत नहीं की थी। यही कारण है कि आदित्यनाथ इस घटना से बहुत ही अधिक आहत हैं। उन्होंने कहा भी है कि मासूमों की मौत पर उनसे ज्यादा दुखी कौन हो सकता है। उन्होंने Acute Encephalitis Syndrome से हजारों बच्चों को मरते देखा है। वो इसके खिलाफ दो दशकों से भी अधिक समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। बताया जाता है कि एक बार यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद भी बीआरडी अस्पताल पहुंचे थे। तब उन्होंने बच्चों की मौत पर ये कहकर हाथ खड़े कर दिये थे कि ये राज्य का मसला है, वो कुछ नहीं कर सकते। लेकिन अब उनकी कांग्रेस पार्टी मासूमों की मौत पर सियासत कर रही है।

कुल मिलाकर इस दर्दनाक हादसे की बुनियाद दशकों के कुशासन पर खड़ी की गई है। इस कुशासन के लिये राज्य में समाजवादी पार्टी और बहुजन पार्टी की सरकारों के साथ केंद्र की कांग्रेसी सरकारें ही जिम्मेदार रही हैं। अभी भी दोनों पार्टियां मोदी विरोध के नाम पर कांग्रेस की ही पिच्छलग्गू बनी हुई हैं, जिन्होंने हमेशा ही आदित्यनाथ की कर्मस्थली को पिछड़ा बनाये रखनी की साजिशें रची हैं।

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