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योगी जी, आपने थोड़ी जल्दी तो नहीं कर दी!

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फिल्मी पटकथा का एक पॉपुलर पंक्ति है- पब्लिक है सब जानती है!  इसका लब्बोलुआब ये है कि जनता बहुत अच्छी है, लोग बहुत अच्छे हैं… बस नालायक तो नेता ही हैं। हालांकि ये बात हमेशा फिट नहीं बैठती है। कुछ अच्छे नेता भी होते हैं बस यही है कि पब्लिक उन्हें पहचानती नहीं है।

उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के परिणाम तो कुछ यही कहते हैं ! अब देखिये न यूपी के योगी आदित्यनाथ ने दिन रात मेहनत की… बेमतलब!…. परिणाम क्या हुआ?… अरे भाई यहां तो सब उल्टा-पल्टा हो गया…

जनता है… जनतंत्र है भाई, जरूरी नहीं कि उन्हें केवल सब अच्छा.. अच्छा ही चाहिए। अरे कुछ सहूलियत भी चाहिए… काम करने वालों को हार मिली और जीते वो जो बस तिकड़मी तालमेल करते रहे।  बहरहाल हम भी जानने प्रयास करते हैं कि आखिर योगी ने ऐसा क्या कर दिया कि… उनकी फजीहत हो गई!

नकल पर रोक क्यों लगाई भाई!
उत्तर प्रदेश में 10वीं और 12वीं की परीक्षा में 66 लाख 37 हजार परीक्षार्थी बड़े अरमानों के साथ शामिल हो रहे थे। अन्य प्रदेशों के छात्र भी उम्मीद मेें थे कि छूट मिलेगी, लेकिन योगी जी को जानेें क्या सूझी- केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए, नकलचियों को पकड़ने के लिए उड़दस्ते बना दिए, यूपी एसटीएफ को भी अभियान पर लगा दिया और जिन केंद्रों पर ज्यादा नकल की शिकायत थी, उन्हें रद्द कर दिया गया… नतीजा हुआ कि 11 लाख नकलची विद्यार्थियों ने परीक्षा ही छोड़ दी।

योगी जी आपने इस राजनीति को समझा ही नहीं, क्योंकि सामने भी तो नेता ही थे… अखिलेश भैया कह रहे थे कि आने दो हमें… हम नकल करवाएंगे। नकल तो हमारा ‘जन्मसिद्ध अधिकार’ है। देखो हम भी थोड़ी बहुत नकल करते थे…यूरोप में भी होता है… तब भी सूबे के सीएम बने कि नहीं। भाई योगी जी आप भी ये ‘इमोशनल टच’ देने वाला गुर सीख गए होते तो आज उपचुनाव में भी जीत का स्वाद चखे होते!

अपराधियों को छुट्टा क्यों नहीं छोड़ा !
सिर्फ विद्यार्थी ही तो वोटर नहीं है न… समाज का अन्य तबका भी तो वोट डालता है.. जीत-हार तय करता है। योगी जी ने जरा जल्दी कर दी… सत्ता में आते ही कानून-व्यवस्था को सुधारने के लिए पुलिस को निर्देश दिए। उसके बाद तो एनकाउंटर का दौर शुरू हुआ… एक के बाद एक एनकाउंटर… अपराधियों का सफाया… इनामी हो या गैर इनामी… कांट्रेक्ट किलर हो या कुख्यात… किसी की खैर नहीं छोड़ी। 10 महीने में ही योगी सरकार 921 से ज्यादा एनकाउंटर करके 2000 से अधिक अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया,  31 को मार भी गिराया। बदमाश तो खुद ही सरेंडर करने लगे, जेल से जमानत पर भी बाहर नहीं निकलना चाहते थे अपराधी… अब ये ज्यादती नहीं तो और क्या है योगी जी। इतना भी कहीं डर पैदा किया जाता है…

एक वो समय भी तो था… अखिलेश भैया का!  सरेआम छेड़छाड़, रेप, रंगदारी, हत्या जैसे वारदात तो रूटीन बन गए थे। अच्छी खासी कमाई भी थी… किसी बदमाश में कोई खौफ नहीं था… बस जेएनयू के कुछ लोग जैसे ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ मनाते थे, वैसे ही प्रदेश में बदमाशों को ‘अपराध की आजादी’ थी। अब इसपर नकेल कसियेगा तो हारियेगा ही न!

सभी जिलों में बराबर बिजली क्यों दी!
योगी जी, आपने तो एक और गलती कर दी। प्रदेश के सभी जिलों में बराबर बिजली देने लगे! … अरे आम और खास में कोई अंतर ही नहीं किया… ये भी कोई बात है। आप समझे ही नहीं, इसपर तो कुछ खास जिलों और गांवों का ही अधिकार था…आाजमगढ़, मैनपुरी, रामनगर… लेकिन आपने तो इसे सबको दे दिया। पहले 4 जिलों में बिजली मिलती थी, अब सबको बराबर बिजली मिलती है। हर जिला मुख्यालय को 23 से 24 घंटे बिजली देने लगे, ग्रामीण इलाकों में भी 16 से 18 घंटे तक बिजली देना शुरू कर दिया। भाई ‘भेदभाव’ रोकियेगा तो हारियेगा ही।

विकास को तेज गति क्यों दी!
योगी जी, आप इतने जल्दी में क्यों हैं। एक साल के भीतर-भीतर ही प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त कर दिया, ये तो सालों साल तक चलने वाला काम था। किसानों से किया वादा भी एक सत्ता संभालने के एक महीने में ही पूरा कर दिया। गन्ना किसानों को 25 हजार करोड़ रुपये का बकाया भुगतान कर दिया। गेहूं का समर्थन मूल्य भी ज्यादा दिया, सिंचाई योजना के लिए बजट में 54 प्रतिशत रकम बढ़ा दी। 11 लाख गरीबों को आवास भी दे दिया और 25 लाख परिवारों को फ्री बिजली कनेक्शन भी…  और तो और आपने सैफई महोत्सव जैसे आयोजनों की जगह इन्वेस्टर्स समिट जैसा काम कर दिया… प्रदेश के लिए 4.28 लाख करोड़ निवेश करवाने के समझौते भी कर लिए… भाई वाह!  इतना कुछ इतनी जल्दी, आदत नहीं है भाई!

जातिवाद भी तो कोई चीज है!
योगी जी… नकल, क्राइम, करप्शन पर रोक लगा दी, अपराधियों को सत्ता का संरक्षण खत्म कर दिया… जातिवाद के जहर पर भी चोट कर दिया… सर्वसमाज की स्थापना करने की सोची। ऐसा क्यों? आप नहीं जानते हैं कि जातिवाद ऐसा कीड़ा है जो इतनी जल्दी थोड़े न निकलेगा… आप न सन्यासी हैं, आप न महंत हैं.. आप जाति-पाति से ऊपर उठे हुए हैं… पब्लिक थोड़े न है। पब्लिक उठना भी चाहे तो क्या नेता उसको जातिवाद से उठने देंगे… आप तो सबका राजनीति ही बंद करने पर तुल गए… ये सब इतना आसान नहीं है भाई!  कुछ बुआ-बबुआ से भी तो सीखिए… जात-जमात का कॉंबिनेशन बनाना सीखिए… नहीं सीखे तो हारियेगा ही!

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