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इंटरनेट बंदी के चलते करोड़ों का कारोबार प्रभावित होने से सरकार से व्यापारी नाराज, बड़ा सवाल- डिजिटल इमरजेंसी लगाने के बाद भी माफिया तक कैसे पहुंच जाते हैं पेपर?

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राजस्थान में एक प्रचलित लोक कहावत अक्सर कही जाती है- ‘कबूतर ने कुओं ही दीखे’। इसका मतलब है कि कबूतरों को हमेशा कुएं में घौंसला बनाना भाता है, क्योंकि उनको लगता है कि वो यहां सुरक्षित हैं और किसी का खतरा नहीं है। राजस्थान में ‘कबूतर बनी’ गहलोत सरकार के लिए भी इंटरनेट उसी कुएं की तरह बना हुआ है। युवाओं का भविष्य संवारने के लिए परीक्षाएं कराने में अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए उसे ’इंटरनेट इमरजेंसी’ ही सबसे सुरक्षित कुआं लगता है। यही वजह है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा प्रदेश का सरकारी तंत्र ये भूल जाता है कि इंटरनेट बंद करना आमजन के फंडामेंटल राइट (मौलिक अधिकार) की हत्या करने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट तक इस तरह की नेटबंदी को गलत घोषित कर चुका है। इसके बावजूद सरकार ने इंटरनेट बंद कराके एग्जाम कराए, लेकिन पेपर फिर भी लीक हुए, खुलेआम नकल हुई। पेपर रद्द हुए। कांग्रेस सरकार यह क्यों नहीं समझती कि पेपर अलमारी से लीक होते हैं, इंटरनेट से नहीं। अलमारियों से लीक करने वाले उन्हीं के अफसर हैं, जिनपर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बड़ा सवाल यही है कि इंटरनेट बंद करना अगर इस समस्या का समाधान है तो नेटबंदी के बावजूद पेपर क्यों लीक हो जाते हैं? हर बार लाखों लोग और करोड़ों का कारोबार प्रभावित होता है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

इंटरनेट मौलिक अधिकार, डिजिटल इमरजेंसी को सुप्रीम कोर्ट ने भी बताया है गलत
राजस्थान में भर्ती परीक्षा अब हर बार आम लोगों की ‘परीक्षा’ ही लेनी लगी है। एक बार फिर REET मुख्य परीक्षा में इसकी बानगी सामने आई है। गहलोत सरकार ने परीक्षा के चलते इंटरनेट बैन कर दिया है। ये डिजिटल इमरजेंसी है। आतंक प्रभावित जम्मू-कश्मीर के बाद देश में राजस्थान ही ऐसा राज्य है, जिसमें सरकार सबसे ज्यादा इंटरनेट बंद करती है। वो भी सही परीक्षा न करा पाने की अपनी विफलता पर पर्दा डालने के लिए आम जन से लेकर, छात्रों, नौकरीपेशा और व्यापारियों तक को परेशान किया जाता है। 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने देश में इमरजेंसी लगाई थी। तब कोई सरकार के खिलाफ न कुछ बोल सकता था, न लिख सकता था। देश अदृश्य जेल में था। आम आदमी के सारे अधिकार सस्पेंड कर दिए गए थे। 48 साल बाद इस इंटरनेट युग में राजस्थान में कुछ-कुछ वैसा ही माहौल है। पुलिस-प्रशासन का सिस्टम फेल्योर बार-बार सामने आता है, लेकिन उसकी सजा आम लोगों को इंटरनेट इमरजेंसी लगाकर दी जा रही है। कांग्रेस सरकार अगर इंटरनेट को फंडामेंटल राइट (मौलिक अधिकार) नहीं मानती तो उसे सुप्रीम कोर्ट की जनवरी 2020 में की गई टिप्पणी दोबारा पढ़नी चाहिए, जिसमें कहा गया है- इंटरनेट संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है। इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता।

सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए इंटरनेट बंदी को बना रही हथियार
ये पहली बार नहीं है, हर बार सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए इंटरनेट बंदी को ही हथियार बना रही है। पेपर लीक नहीं रोक पाते तो इंटरनेट बंद। इंटेलिजेंस फेल्योर के कारण करौली, जोधपुर में दंगे होते हैं तो इंटरनेट बंद। अन्य राज्यों में दंगे हुए तो वहां इंटरनेट इमरजेंसी लगाने की नौबत ही नहीं आई। कश्मीर के बाद राजस्थान दूसरा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा इंटरनेट बंद होता है। इंटरनेट बंदी जनता पर डिजिटल इमरजेंसी थोपने जैसा है। अपनी नाकामियों और कमजोरियों को छुपाने के लिए किया गया ये सबसे बेतुका प्रयोग है। अगर सरकारों को पेपर लीक रोकना हो या कानून का राज स्थापित करना हो तो उन्हें ऐसा तंत्र बनाना होगा, जो मजबूत प्रहार को सहन कर सके। अभी जो दीमक सुरक्षित तिजोरियों को चट कर रही है, वहां सख्त कार्रवाई का कीटनाशक छिड़ककर ट्रीटमेंट करना होगा।6 करोड़ से अधिक मोबाइल यूजर्स का 120 करोड़ का डेटा लॉस
राजस्थान में 6.28 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर्स हैं। अलग-अलग कंपनियों के इंटरनेट प्लान का औसत निकाला जाए तो 1 दिन का इंटरनेट का खर्च होता है 10 रुपए। इस हिसाब से इन यूजर्स को 2 दिन में 120 करोड़ का नुकसान हो चुका है। नुकसान का आंकड़ा और भी बढ़ सकता है, क्योंकि अभी तय नहीं है, इंटरनेट कब चालू होगा। सरकार के इस बेतुके फैसले से हजारों लोगों को ट्रैवलिंग में परेशानी झेलनी पड़ी है। इंटरनेट बंदी के चलते 5 हजार कैब ड्राइवर की कमाई रुक गई। जयपुर, कोटा, उदयपुर सहित राजस्थान के कई शहरों में कैब सर्विस हैं। इन 5 हजार कैब में रोज 40 हजार लोग सफर करते हैं। इंटरनेट बंद होने से दोनों को परेशानी झेलनी पड़ी।

नेटबंदी ने 600 करोड़ का कारोबार रोका, 30 सर्विसेज तीन दिन से प्रभावित
राजस्थान में आमजन सहित बड़े व्यापारी सहित रोज 600 करोड़ से अधिक का डिजिटल लेनदेन करते हैं। इंटरनेट बंद होने से लोग डिजिटल पेमेंट नहीं कर पाए। यही वजह है कि एटीएम के बाहर आम दिनों से ज्यादा भीड़ थी। इंटरनेट बंदी के चलते 30 से ज्यादा सर्विसेज भी प्रभावित हुई हैं। इनमें डेबिट, क्रेडिट कार्ड भुगतान सिस्टम, ई वॉलेट ट्रांजेक्शन, मूवी टिकट बुकिंग, मोबाइल बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग, ऑनलाइन टैक्सी सर्विस, ऑनलाइन होम डिलीवरी, ऑनलाइन फूड ऑर्डर, पानी, बिजली के बिल जमा, ऑनलाइन शॉपिंग, होटल बुकिंग, फ्लाइट बुकिंग, रेल यात्रा बुकिंग, कार्ड स्वाइप मशीन, ऑनलाइन मॉन्यूमेंट बुकिंग, मनी ट्रांसफर सहित 30 से ज्यादा सर्विसेज तीन दिन से बंद हैं।

प्रदेश के व्यापारियों में नाराजगी,  नेटबंदी के बजाए कोई और उपाय करे सरकार
•राजस्थान चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के पदाधिकारियों के मुताबिक नेटबंदी से रोजाना 5 से 6 हजार करोड़ रुपए तक का कारोबार प्रभावित है। नेटबंदी से रोजाना के मुकाबले 40 फीसदी से भी कम लेन-देन या कारोबार ही बच पाता है।
•फेडरेशन ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज (फोर्टी) के अध्यक्ष के मुताबिक एक दिन की नेटबंदी राज्य सरकार के खजाने में 500 करोड़ रुपए जाने से रोक देती है। गतिविधियां सामान्य होने पर ही ये राशि सरकार को मिलती है।
•फेडरेशन ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री यूथ विंग के पदाधिकारियों लगभग सभी व्यापारिक संस्थाओं का कहना है कि सरकार को पेपर लीक रोकने या अन्य किसी वजब से नेटबंदी करने के बजाय कोई और उपाय करने चाहिए।
•बड़ा सवाल ये भी है कि इंटरनेट का सहारा राजस्थान सरकार ही क्यों लेती है? मध्यप्रदेश के खरगोन में पिछले साल रामनवमी के जुलूस के दौरान दंगा भड़का। वहां तीन दिन कर्फ्यू रहा। इसके बाद ईद पर भी कर्फ्यू लगाया, लेकिन एक भी दिन इंटरनेट बंद नहीं किया।

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