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बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत से बौखलाए विरोधी करा रहे हैं बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्याएं

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देश के मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी को जो प्रचंड बहुमत दिया, उसे कुछ राजनीतिक दल नहीं पचा पा रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में चुनाव के बाद बढ़ोतरी हुई है। जिन राज्यों में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया है, वहां ऐसे हमले तेज हो गए हैं। चाहे गांधी परिवार का पुराना गढ़ अमेठी हो, ममता बनर्जी की तानाशाही वाले राज्य पश्चिम बंगाल का बैरकपुर हो या फिर कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश का इंदौर- बीजेपी कार्यकर्ताओं पर कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थक लगातार हमले कर रहे हैं। सिर्फ चुनाव के बाद की हिंसा की बात करें, तो इन हमलों में अब तक चार बीजेपी कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।  

उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश में हत्याओं का दौर

अमेठी में स्मृति ईरानी की ऐतिहासिक जीत के बाद वहां एक बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई। भाजपा की जीत के जश्न के एक समारोह में शामिल होकर लौटते हुए बीजेपी कार्यकर्ता सुरेन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई। सुरेन्द्र की हत्या के शोक में शामिल होने स्मृति ईरानी न सिर्फ अमेठी पहुंची, बल्कि उन्होंने सुरेन्द्र सिंह की शवयात्रा में शामिल होकर उनकी अर्थी को कंधा भी दिया। इसके एक ही दिन बाद पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के भाटापारा में भी अज्ञात हमलावरों ने भाजपा कार्यकर्ता चंदन शॉ की हत्या कर दी। वहां बीजेपी के अर्जुन सिंह ने टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी को एक नजदीकी मुकाबले में हरा दिया था। रात साढ़े दस बजे घर लौटते हुए चंदन पर बम से हमला कर उनकी हत्या कर दी गई।

उधर, मध्य प्रदेश के इंदौर में बीजेपी कार्यकर्ता नेमिचंद तंवर की हत्या कर दी गई। नेमिचंद के परिवार के लोगों का कहना है कि परिवार ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया था, इसलिए नेमिचंद की हत्या कर दी गई। 65 वर्षीय नेमिचंद की हत्या बीते रविवार को की गई। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री कमलनाथ पर मध्य प्रदेश को पश्चिम बंगाल बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया।

गौरतलब है कि अमेठी और बैरकपुर दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत मिली। स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया तो बैरकपुर में बीजेपी के अर्जुन सिंह ने टीएमसी के दिनेश त्रिवेदी को हराया। चुनाव के दौरान भी पश्चिम बंगाल में हिंसा का भयावह दौर चला था, जिसमें कई लोग मारे गए थे। मतदान समाप्त होने और मतगणना शुरू होने के दौरान भी पश्चिम बंगाल में एक बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई, जबकि एक अन्य कार्यकर्ता की दुकान जला दी गई।  

पश्चिम बंगाल में तो राजनीतिक हत्याओं का पुराना इतिहास रहा है। चाहे लेफ्ट का शासन रहा हो या टीएमसी का, वहां राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला कभी थमा नहीं। पश्चिम बंगाल में भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से डरी ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा और दमन पर उतारू रही है। आइए,एक नजर डालते हैं, पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों पर।

लोकसभा चुनाव के छठे चरण के मतदान के दौरान भी हिंसा की कई खबरें मिलीं। मतदान से पहले पश्चिम बंगाल के झारग्राम जिले में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता रमन सिंह का शव मिला। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उनके घर में घुसकर हत्या की। वहीं एक दूसरी घटना में राज्य के भगबानपुर और पूर्वी मेदिनीपुर में दो भाजपा कार्यकर्ताओं को गोली मार दी गई। इसके बाद दोनों कार्यकर्ताओं को जख्मी हालात में अस्पताल में भर्ती कराया गया।

हिंसक झड़पें, बूथों पर कब्जा, सरेआम गुंडागर्दी, खून खराब, लेकिन पुलिस मौन! ये दृश्य चुनाव के दौरान सरेआम देखने को मिला। लोकसभा चुनावों में हार की बौखलाहट से राज्य में टीएमसी के कार्यकर्ता गुंडागर्दी पर उतर आए। 

  • पहले चरण की वोटिंग में दिनहाता में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमला, कूचबिहार में लेफ्ट प्रत्याशी पर हमला।
  • दूसरे चरण में रायगंज में बड़े पैमाने पर हिंसा। हंगामा कर रहे टीएमसी कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े थे।
  • तीसरे चरण में मुर्शिदाबाद में टीएमसी कार्यकर्ताओं के साथ झड़प में एक कांग्रेस नेता की मौत, बूथ पर बम फेंकने की कई घटनाएं।
  • चौथे चरण में आसनसोल में बीजेपी प्रत्याशी बाबुल सुप्रियो पर हमला, गाड़ी में तोड़फोड़। पत्रकारों के साथ भी मारपीट।

राज्य में जैसे-जैसे प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का क्रेज बढ़ता गया, ममता और उनकी पार्टी के लोगों की बौखलाहट भी बढ़ती गई। पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले भी बढ़ते गए।

झारग्राम जिले में भाजपा कार्यकर्ता रमन सिंह की हत्या से पहले पिछले साल 19 अक्टूबर को तापस के परिवार के साथ स्थानीय तृणमूल नेता कार्तिक पाल का झगड़ा हुआ था और कार्तिक पाल ने उसे देख लेने की धमकी दी थी। उसके बाद 22 अक्टूबर को तापस पाल चाय पीने की बात कहकर निकला, लेकिन वापस नहीं लौटा। बाद में उसकी लाश मयूराक्षी नदी के किनारे एक पेड़ से लटकी मिली। बताया जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उसकी हत्या कर शव को पेड़ से लटका दिया। हालांकि ममता की पुलिस पूरे मामले की लीपापोती में लगी हुई है। ये पहला मामला नहीं है जब पश्चिम बंगाल में किसी बीजेपी कार्यकर्ता की इस तरह हत्या की गई हो।

पीएम मोदी की प्रशंसा पर एक शख्स के साथ मारपीट
पश्चिम बंगाल में हालात यह हो गए हैं कि अगर ममता बनर्जी के अलावा अन्य किसी नेता की तारीफ भी कर दी तो तृणमूल कांग्रेस के गुंडे मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा ही एक बाकया राज्य के हुगली जिले में सामने आया है। यहां हरिभक्त मंडल नाम के शख्स के साथ बुरी तरह से मारपीट सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि उसने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए फेसबुक पर पोस्ट किया था। नाराज तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हरिभक्त मंडल के घर पर धावा बोल दिया और उसके घर से बाहर खींच कर बुरी तरह मारा-पीटा। इतना ही नहीं पिटाई का विरोध करने पर मंडल की मां के साथ भी मारपीट की गई।

ममता के बंगाल में खंभे पर लोकतंत्र… 
वामपंथ के कुशासन से मुक्ति के लिए पश्चिम बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को चुना था। मां, माटी और मानुष के नारे के बीच उम्मीद थी कि प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी, लेकिन प्रदेश के लोग आज ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। राजनीतिक हिंसा के क्षेत्र में ममता बनर्जी के शासन ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को भी पीछे छोड़ दिया है। सबसे खास यह कि जिस ‘लोकतंत्र खतरे में है’ गैंग को केंद्र सरकार और बीजेपी की राज्य सरकारों में हर रोज लोकतंत्र खतरे में दिखाई देता है, वो गैंग पश्चिम बंगाल पर एक भी शब्द बोलने को तैयार नहीं है।

1 जून, 2018 को पश्चिम बंगाल के बलरामपुर में 32 साल के दुलाल कुमार को सिर्फ इसलिए मार दिया गया कि वह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए थे। इस कार्यकर्ता की हत्या की आशंका पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजय वर्गीय ने खुद एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अनुज शर्मा से व्यक्त की थी। बावजूद इसके दुलाल की हत्या न सिर्फ पुलिस प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़े कर रहा है बल्कि ममता राज में हर रोज हो रही लोकतंत्र की हत्या पर सत्ताधारी दल की सहमति की गवाही दे रहा है।

दरअसल, पंचायत चुनाव के बाद से ही पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला चल पड़ा है। मई महीने में ही 19 कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्या कर दी गई है। विरोधियों को न सिर्फ सरेआम मारा जा रहा है बल्कि मारकर लटका भी दिया जा रहा है। तालिबानी शासन शैली में किए जा रहे इस कृत्य के पीछे का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ यही है कि पूरे प्रदेश में यह संदेश जाए कि बीजेपी को समर्थन किया तो यही हश्र होगा।

पहले भी ममता राज में पेड़ पर लटकाया गया था लोकतंत्र
29 मई, 2018 को पुरुलिया के ही जंगल में 18 साल के त्रिलोचन महतो की हत्या कर शव को एक पेड़ से लटका दिया गया था। गौरतलब है कि दलित बिरादरी से आने वाले त्रिलोचन के पिता हरिराम महतो उर्फ पानो महतो भी भाजपा से जुड़े हैं, इसलिए उसने पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में जी-तोड़ मेहनत की थी। उसकी मेहनत के कारण बलरामपुर ब्लॉक की सभी सातों सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। जाहिर है यही सक्रियता उनके लिए जानलेवा साबित हुई और उन्हें सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। त्रिलोचन ने जो टी-शर्ट पहनी थी, उसपर एक पोस्टर चिपका मिला जिसपर लिखा था कि बीजेपी के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा।

भाजपा समर्थक महिला को निर्वस्त्र करने की कोशिश
पिछले साल अप्रैल महीने में 24 परगना जिले में तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा की महिला कार्यकर्ता की सरेआम पिटाई की। महिला प्रत्याशी पर उस समय हमला हुआ जब वह बारुईपुर एसडीओ ऑफिस में नामांकन दाखिल करने पहुंची। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने महिला को सड़क पर पटक कर मारा और उसके साथ बदसलूकी की। उसे निर्वस्त्र तक करने की कोशिश की गई। हैरानी की बात है कि महिला कार्यकर्ता की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया लोग वहां खड़े तमाशा देखते रहे।

लेफ्ट के दो पार्टी कार्यकर्ताओं को टीएमसी सपोटर्स ने जिंदा जलाया
पंचायत चुनाव के दौरान बंगाल के रायगंज में तैनात चुनाव अधिकारी राजकुमार रॉय की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने निष्पक्ष चुनाव करवाने की कोशिश की। इसी तरह उत्तर 24 परगना में पंचायत चुनाव के दौरान ही सीपीएम के एक कार्यकर्ता के घर में आग लगी दी गई। इसमें कार्यकर्ता और उसकी पत्नी इसमें जिंदा जल गई। सीपीएम ने आरोप लगया कि इसमें टीएमसी का हाथ है।

पंचायत चुनाव में ममता की पार्टी ने लोकतंत्र का किया था अपहरण
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में टीएमसी ने बिना एक वोट डाले ही 34.2 प्रतिशत सीटें जीत लीं। ऐसा इसलिए हुआ कि इन सभी ग्रामीण सीटों पर टीएमसी यानि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की दहशत के सामने कोई दूसरी पार्टी उम्मीदवार ही नहीं खड़ा कर पाई। जाहिर है राजनीतिक प्रतिशोध में मारपीट, हत्या, बलात्कार का दूसरा नाम बन चुके बंगाल में दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं जुटा सका। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पश्चिम बंगाल में जो रहा है वह लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है।

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