भारत दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश है और यह अब दुनिया भर के बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मोदी सरकार की किसान हितैषी नीतियों की वजह से भारतीय केला जल्द ही दुनिया के बाजारों में छा जाएगा। इसकी बानगी इसी से समझी जा सकती है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले अप्रैल-मई 2013 में 26 करोड़ रुपये मूल्य के केले का निर्यात हुआ था जबकि अप्रैल-मई 2022 में 213 करोड़ रुपये के केले का निर्यात किया गया, यानी केला निर्यात में 703 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आज भारत सलाना आधार पर 600 करोड़ रुपये से अधिक का केला निर्यात करता है और इसके साथ नए बाजारों की तलाश का काम भी जारी है। अभी हाल ही में कनाडा को केला निर्यात पर सहमति बनी है। पीएम मोदी के किसानों की आय दोगुना करने और किसान हित की योजनाएं लागू करने की वजह से यह परिवर्तन आया है। यह परिवर्तन इसलिए भी आया है कि पीएम मोदी के न्यू इंडिया आह्वान से युवा, किसानों, कारोबारियों एवं सभी वर्ग में कुछ अलग हटकर और नया करने का जज्बा और जोश आया है।
Making the World Go Bananas ?
India’s banana exports grow 8 fold in 9 years during the April-May period.
The rising exports benefit our farmers immensely while enhancing India’s agricultural exports earnings. pic.twitter.com/nhrXFSiTn7
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) July 12, 2022
देश ने बेचा 600 करोड़ से ज्यादा का केला
बीते कुछ सालों में वैश्विक स्तरीय कृषि प्रक्रियाओं को अपनाने के चलते भारत का केला निर्यात तेजी से बढ़ा है। ये वृद्धि मात्रा और मूल्य दोनों के संदर्भ में देखी गई है। वर्ष 2018-19 में देश का कुल केला निर्यात 1.34 लाख टन था और इसका मूल्य 413 करोड़ रुपये था। वर्ष 2019-20 में ये बढ़कर 1.95 लाख टन हो गया और इसका मूल्य 660 करोड़ रुपये रहा। वर्ष 2020-21 में कोरोना महामारी और उसके चलते लगे प्रतिबंधों के बावजूद देश का केला निर्यात अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के बीच 1.91 लाख टन रहा और इसका मूल्य 619 करोड़ रुपये है।
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा केला उत्पादन करने वाला देश है। पूरी दुनिया के उत्पादन में भारत का रकबा 15 फीसदी है, लेकिन विश्व के कुल उत्पादन में भारत का योगदान 25.88 फीसदी है। केला ऐसा फल है जो लगभग पूरे साल बिकता है। सेहत बनाने वाला ये फल किसानों के लिए नगदी फसल भी है। केले की एक एकड़ खेती में एक लाख से डेढ़ लाख रुपए की लागत आती है, और अगर सही तरीके से खेती की जाए तो इतनी ही खेत से डेढ़ से दो लाख रुपए का मुनाफा भी हो सकता है।
दुनिया के कुल उत्पादन में 25 प्रतिश हिस्सेदारी के साथ भारत, विश्व का सबसे बड़ा केला उत्पादक है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, यूपी और एमपी का देश के केला उत्पादन में 70 प्रतिशत से अधिक योगदान है।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में सबसे ज्यादा खेती आंध्र प्रदेश में होती है। इससे पहले तमिलनाडु केला उत्पादन में पहले स्थान पर था। दक्षिण भारत केले की खेती में अव्वल है। उत्पादन के मामले से आंध्र प्रदेश पहले, महाराष्ट्र दूसरे, तीसरे पर गुजरात, चौथे पर तमिलनाडु और पांचवें नंबर पर उत्तर प्रदेश और छठे नंबर पर कर्नाटक है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में केले के उत्पादन में 8.35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल 2017-18 में 883.8 हजार हेक्टेयर में 30807.5 हजार टन केला हुआ तो साल 2020-21 में 922.9 हजार हेक्टेयर में 33379.4 टन होने का अनुमान जताया गया था। देश में औसतन 875 से-900 हजार हेक्टेयर में केले की खेती होती है।
केले की खेती के लिए बागवानी मिशन, ड्रिप और स्प्रिकंलर, जैसी योजनाओं का फायदा किसानों को दिया जाता है। सरकार ने कहा कि किसानों को सामेकित बागवानी विकास मिशन (MIDH), एक जिला एक उत्पाद, पीएम कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पीएम किसान सम्मान निधि, किसान रेल, कृषि अवसंरचना फंड, एफपीओ, किसान रेल, आदि के जरिए किसानों को लाभ दिया जाता है।
सामेकित बागवानी विकास मिशन के तहत किसानों को केले की पौध, टिशु कल्चर पौध, रोपण सामग्री, ड्रिप इरीगेशन के लिए छूट, एकीकृत पोषन प्रबंधन, एकीकृत कीट प्रबंधन आदि पर आने वाली कुल लागत जो 2-3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर होती है, उसमें अधिकतम लागत के 40 फीसदी तक का भुगतान किया जाता है। ये सब्सिडी अलग-अलग योजनाओं और राज्यों में अलग-अलग हो सकती है। इसके अलावा किसानों को बागवानी के अंतर्गत कटाई, छंटाई, ग्रेडिंग और पैकिंग के साथ कूलिंग चैंबर स्थापना में भी अलग-अलग स्तर पर मदद मिलती है।
महाराष्ट्र के स्पेशल ‘जलगांव केला’ की डिमांड दुनिया के कई देशों में है। महाराष्ट्र के जलगांव जिले के इस केले को GI Tag मिला हुआ है। बीते साल इस स्पेशल केले की 22 मीट्रिक टन की खेप को दुबई के बाजार में भेजा गया था। देश की कृषि निर्यात नीति के तहत जलगांव की पहचान केला क्लस्टर के रूप में की गई है। महाराष्ट्र का ‘जलगांव केला’ अन्य केलों की तुलना में अधिक फाइबर और मिनरल युक्त होता है। इसकी इसी खासियत के चलते इसे वर्ष 2016 में GI टैग दिया गया। ये जीआई टैग जलगांव के निसर्गराज कृषि विज्ञान केन्द्र के साथ रजिस्टर्ड है।
भारत के किसानों के लिए खुशखबरी है। दरअसल, भारत से कनाडा को ताजा केला (Banana) निर्यात करने के लिए विदेशी बाजार तक पहुंच मिल गई है। नेशनल प्लांट प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (National Plant Protection Organisations of India) और कनाडा सरकार के बीच हुई बातचीत के बाद कनेडियन मार्केट में भारत के केलों और बेबी कॉर्न की बिक्री की मंजूरी मिली है। इस कदम से केला एवं बेबी कॉर्न उगाने वाले भारतीय किसानों को लाभ होने और देश की निर्यात आय में वृद्धि होने की उम्मीद है। कनाडा ने ताजा केले के निर्यात को तत्काल प्रभाव से मंजूरी दी है।
पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में तेजी से केले का रकबा बढ़ा है। बाराबंकी, कौशांबी, फैजाबाद, बहराइच समेत कई जिलों में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है। यूपी में साल साल 2017-18 में केले का रकबा 69.4 हजार हेक्टेयर था जो 2020-21 में बढ़कर 73.08 हजार हेक्टेयर हो गया है वहीं समान अवधि में उत्पादन 3172.3 हजार टन से बढ़कर 3387.5 हजार टन हो गया है।
जीआई टैग से आशय Geographical Indication से है। ये टैग क्षेत्र के विशेष के उत्पादों को दिया जाता है जो उसकी विशेष भौगोलिक पहचान सुनिश्चित करते हैं। जैसे जलगांव केला, दार्जिलिंग चाय, चंदेरी साड़ी, सोलापुर की चादर, मैसूर सिल्क, भागलपुरी सिल्क और बीकानेरी भुजिया को जीआई टैग मिला हुआ है और ये नाम इन उत्पादों की विशेष पहचान जाहिर करते हैं।
केले के पौधों की जून से जुलाई तक रोपाई होती है। प्रति एकड़ करीब 1200 पौधे लगाए जाते हैं। पौधे से पौधे के बीच दूरी 6 फीट होती है। केले की फसल 13-14 महीने में तैयार होती है। केले में पानी (सिंचाई) की जरुरत ज्यादा होती है, हर 15-20 दिन पर सिंचाई (मिट्टी के अनुरूप) करनी पड़ती है, लेकिन जलभराव नहीं होना चाहिए। जलभराव से इसमें रोग लग सकता है।
भारत कृषि प्रधान देश है। मोदी सरकार ने आठ साल के कार्यकाल में अन्नदाता किसानों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है जिससे उन्हें न केवल लाभ पहुंचा है बल्कि उनके जीवन स्तर में भी सुधार आया है। इन योजनाओं में पीएम किसान मानधन योजना, पीएम किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कुसुम योजना(फ्री सोलर पैनल योजना), ऑपरेशन ग्रीन योजना, मत्स्य सम्पदा योजना, e-NAM – राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना, राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना विशेष तौर पर उल्लेखनीय हैं। यही वजह है कि खाद्यान्न उत्पादन में आज हम काफी आगे बढ़े हैं। पीएम मोदी ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए हर तरह से कोशिश की है। खेती किसानी के लिए विभिन्न योजनाओं को लांच करने के अलावा पीएम मोदी ने जीरो बजट खेती मंत्र भी दिया है। पीएम मोदी के विजन और इन योजनाओं का ही कमाल है कि कोरोना काल में वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र विपरीत परिस्थितियों में भी विकास दर को संभाला। जब जीडीपी नकारात्मक हो गई थी तब भी कृषि की दर 3.6 प्रतिशत रही। कभी विदेशों से खाद्यान्न मंगाने के लिए विवश रहने वाला भारत अब कई देशों को अनाज और अन्य फसलों का निर्यात करता है। वर्ष 2020-21 में कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात 22.62 प्रतिशत बढ़ा है। अदरक, काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, हल्दी एवं केसर के निर्यात में 2020-21 में बड़ी वृद्धि दर्ज की गई।
कृषि उत्पादों के निर्यात से जहां किसानों को लाभ हुआ है और उनमें खुशहाली आई है वहीं देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई है। कृषि उत्पादों के अलावा पेट्रोलियम उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुओं, रत्न एवं आभूषण और रसायन क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का वस्तुओं का निर्यात 418 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। मार्च, 2022 में देश ने 40 अरब डॉलर का निर्यात किया जो एक महीने में निर्यात का सर्वोच्च स्तर है। इसके पहले मार्च, 2021 में निर्यात का आंकड़ा 34 अरब डॉलर रहा था। वर्ष 2021-22 के दौरान भारत का वस्तु व्यापार (निर्यात एवं आयात) एक खरब डॉलर के पार चला गया क्योंकि देश का आयात भी 610 अरब डॉलर के अब तक के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गया। भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 में 292 अरब डॉलर का निर्यात किया था। वर्ष 2021-22 में निर्यात आंकड़ा बड़ी बढ़त के साथ 418 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। गत 23 मार्च को देश ने 400 अरब डॉलर के निर्यात आंकड़े को पार कर लिया था।