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अपराधों को घटाने की ऐसी “ट्रिक” अपना रही है गहलोत सरकार, फ्री रजिस्ट्रेशन के दावों के बावजूद राजस्थान में 6 लाख एफआईआर तो दर्ज ही नहीं

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राजस्थान की गहलोत सरकार अपने ही बुने जाल में फंस रही है। रेपिस्तान बने राजस्थान में जब भी देश में सबसे ज्यादा रेप होने की बात आती है तो राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बचाव के लिए फ्री रजिस्ट्रेशन की आड़ लेने लगते हैं। वे दावा करते हैं कि राजस्थान ने 2019 ने फ्री रजिस्ट्रेशन लागू किया था, इसलिए राज्य में रेप और अन्य अपराधों के केस ज्यादा हैं। सीएम गहलोत तर्क गढ़ते हैं कि अन्य राज्यों में ऐसा न होने के कारण वहां अपराधों के केस कम दर्ज होते हैं, इसके कारणों राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो जब आंकड़े जारी करता है तो राजस्थान रेंकिंग में ऊपर नजर आता है।

रेपिस्तान से बचाव को सीएम जिस फ्री रजिस्ट्रेशन की आड़ लेते हैं, वो तो कागजी साबित
राजस्थान की हकीकत मुख्यमंत्री के दावों के विपरीत है। पहले आप ये जान लीजिए कि ये फ्री रजिस्ट्रेशन है क्या बला। दरअसल, उसके तहत राज्य भर की पुलिस को पाबंद किया गया कि थाने-चौकियों में आने वाली पर आपराधिक शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाए। वास्तविकता में फ्री रजिस्ट्रेशन के यह आदेश जिनकी आड़ सीएम लेते रहे हैं, वे कागजी साबित हो रहे हैं। अब चौंकाने वाले आंकड़े यह सामने आए हैं कि राज्य में 5-10 हजार नहीं, बल्कि छह लाख एफआईआर को पुलिसकर्मियों ने दर्ज ही नहीं किया है।

थानों में बिना सिफारिश के पीड़ितों की एफआईआर दर्ज ही नहीं हो पा रही है
गहलोत सरकार भले ही अपराधों के फ्री रजिस्ट्रेशन का दावा कर रही है, लेकिन सच यही है कि पुलिस थानों में अब भी बिना सिफारिश के पीड़ितों की एफआईआर दर्ज ही नहीं हो पा रही है। प्रदेश में आपराधिक वारदात हर साल 10% बढ़ रही हैं। सरकार और पुलिस के अफसर दावा करते हैं कि फ्री रजिस्ट्रेशन की नीति के चलते अपराध के आंकड़े बढ़े हैं। हकीकत यह है कि एक तो सभी शिकायतें दर्ज ही नहीं हो रही हैं, दूसरी ओर पुलिस ने बिना जांच के ही तीन लाख में तो एफआर ही लगा दी।तीन लाख पीड़ितों के परिवाद तो पुलिस ने बिना जांच के ही निस्तारित कर दिए
राज्य में पिछले साल 2021 में ही पुलिस ने 6 लाख पीड़ितों की तो एफआईआर तक दर्ज नहीं की। जिनका परिवाद ही दर्ज हुआ, उनमें से 3 लाख पीड़ितों यानी 50% का केस तो बिना जांच के ही निस्तारित कर दिया गया। जबकि पीड़ितों को यह तक पता नहीं कि उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई की गई। जबकि फ्री रजिस्ट्रेशन के तहत यानी थाने में परिवादी की शिकायत पर तत्काल एफआईआर दर्ज करने और नहीं करने पर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। लेकिन एफआईआर दर्ज न करने पर कार्रवाई के मामले सामने नहीं आए हैं।

राजधानी में ही स्कूल में बेटे की मौत, फिर भी एफआईआर दर्ज नहीं
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मारपीट से लेकर मौत तक, अवैध निर्माण से लेकर रेप-यौन उत्पीड़न तक के मामलों की एफआईआर नहीं लिखी जा रही है। इसी अप्रैल के दूसरे सप्ताह में करधनी थाना इलाके में एक छात्र ने स्कूल की छत से कूदकर सुसाइड कर लिया था। पिता का आरोप था कि स्कूल प्रशासन ने उनके बेटे को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। पुलिस ने एफआईआर दर्ज ही नहीं की। क्या कार्रवाई चल रही है, परिवादी को नहीं पता। इसी प्रकार मार्च 2022 में लालकोठी थाने को नगर निगम किशनपोल जोन उपायुक्त हंसा मीणा ने शरदिन्दु नाथ झा के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए पत्र लिखा। आरोपी ने अवैध निर्माण के संबंध में जाली दस्तावेज पेश किए थे। पुलिस ने सिर्फ परिवाद दर्ज किया। अब तक एफआईआर हुई और न ही बयान दर्ज करने के लिए किसी ने संपर्क किया।

जब परिवाद की गंभीरता देखकर एफआईआर होनी है तो फ्री रजिस्ट्रेशन की नौटंकी क्यों?
आपको याद ही होगा कि दुष्कर्म में राजस्थान के नं. 1 होने के बाद सीएम और डीजीपी ने कहा था- यहां फ्री रजिस्ट्रेशन के कारण हर केस दर्ज होता है, इसलिए दुष्कर्म के आंकड़े राजस्थान में ज्यादा बढ़े हैं। अब 6 लाख एफआईआर दर्ज नहीं होने पर डीजीपी एमएल लाठर का कहना है कि जरूरी नहीं है कि हर परिवादी की एफआईआर दर्ज हो, मामले की गंभीरता देखना भी जरूरी है और इसी आधार पर एफआईआर होती है। परिवाद दर्ज करके सुनवाई हो रही है। लाख टके का सवाल यही है कि जब परिवाद की गंभीरता देखकर या पिक एंड चूज के आधार पर ही एफआईआर दर्ज होनी है तो राज्य में फ्री रजिस्ट्रेशन की नौटंकी का क्या मतलब है?

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