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भ्रष्टाचार के इन गंभीर आरोपों से घिरे होने की वजह से गई सीबीआई चीफ आलोक वर्मा की कुर्सी

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सीबीआई में कुछ समय से चल रही उठापटक का पटाक्षेप हो गया है। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को आखिरकार पदमुक्त कर दिया गया है। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार चयन समिति ने सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को हटा दिया। रिश्वतखोरी और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही जैसे गंभीर आरोपों के आधार पर उन्हें हटाने का फैसला हुआ। पीएम मोदी की अगुआई वाली समिति ने 2:1 से यह फैसला लिया। पीएम मोदी और समिति के दूसरे सदस्य सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी, आलोक वर्मा को हटाए जाने के पक्ष में थे। वहीं, समिति के तीसरे सदस्य और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सीबीआई चीफ को हटाए जाने के खिलाफ थे। आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी की रिपोर्ट के बावजूद राजनीति से प्रेरित होकर खड़गे, वर्मा को पद पर बनाए रखने के पक्ष में थे।

1979 बैच के आईपीएस अफसर आलोक वर्मा को अब सिविल डिफेंस, फायर सर्विसेस और होम गार्ड विभाग का महानिदेशक बनाया गया है। वहीं, नागेश्वर राव दोबारा सीबीआई चीफ बन गए हैं।

समिति ने सीवीसी की रिपोर्ट के इन पहलुओं पर गौर किया

  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की इस रिपोर्ट पर गौर किया कि मीट कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ सीबीआई के नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना जांच कर रहे थे। सीबीआई इस मामले में हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना को आरोपी बनाना चाहती थी, लेकिन आलोक वर्मा ने कभी इसकी मंजूरी नहीं दी।
  • सीबीआई को यह भी सबूत मिले कि मोइन कुरैशी के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी। दो करोड़ रुपए की रिश्वत लिए जाने के भी सबूत थे। इस मामले में वर्मा की भूमिका संदेहास्पद थी। प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ मामला बन रहा था।
  • सीवीसी की रिपोर्ट में रिसर्च और एनालिसिस विंग (रॉ) द्वारा पकड़े गए फोन कॉल के इंटरसेप्ट्स का भी जिक्र था। इस बातचीत में ‘सीबीआई के नंबर वन अफसर को पैसे सौंपे जाने’ की चर्चा हुई थी।
  • सीवीसी के मुताबिक, गुड़गांव में एक जमीन खरीदने के मामले में भी वर्मा का नाम सामने आया था। इस डील में 36 करोड़ रुपए का लेनदेन होने का आरोप है।
  • लालू प्रसाद से जुड़े आईआरसीटीसी से जुड़े एक केस में भी सीवीसी ने पाया कि आलोक वर्मा ने एक अफसर को बचाने के लिए एफआईआर में जानबूझकर उसका नाम शामिल नहीं किया।
  • सीवीसी के मुताबिक, आलोक वर्मा दागी अफसरों को सीबीआई में लाने की कोशिश कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने समिति को फैसला करने को कहा था

आलोक वर्मा और जांच एजेंसी में नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना के बीच विवाद के बाद केंद्र सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था। इस फैसले के खिलाफ वर्मा की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 76 दिन बाद बहाल तो कर दिया था, लेकिन उन्हें नीतिगत फैसले लेने से रोक दिया था। साथ ही कहा था कि उच्चाधिकार चयन समिति ही वर्मा पर लगे आरोपों के बारे में फैसला करेगी। 

बहाल होते ही वर्मा ने पांच अफसरों का तबादला किया था

सीबीआई निदेशक पद पर बहाली के दूसरे दिन ही आलोक वर्मा ने जांच एजेंसी के पांच आला अफसरों का तबादला कर दिया। इनमें दो ज्वाइंट डायरेक्टर, दो डीआईजी और एक असिस्टेंट डायरेक्टर शामिल हैं। इससे पहले उन्होंने अंतरिम निदेशक एल नागेश्वर राव के ज्यादातर ट्रांसफर आदेशों को रद्द कर दिया था। वर्मा को छुट्टी पर भेजने के केंद्र के फैसले के बाद राव को अंतरिम निदेशक बनाया गया था। 

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