पश्चिम बंगाल में चल रहे मतादाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया में करीब 50 लाख संदिग्ध नामों ने ममता बनर्जी सरकार पर सवालिया निसान खड़े कर दिए हैं। अब तक मिले 50 लाख हटाने योग्य नामों में से 23 लाख से ज्यादा लोगों के नाम ‘मृत मतदाता’ श्रेणी में आते हैं, जिनके मतदाता पहचान पत्र जारी हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर ‘स्थानांतरित’ मतदाता हैं, जिनकी संख्या 18 लाख से अधिक है। इसके अलावा 7 लाख से ज्यादा मतदाता ‘लापता’ हैं। जबकि शेष नाम ‘दोहराव’ या अन्य कारणों से ‘फर्जी’ पाए गए हैं। दूसरी ओर टीएमसी से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने शनिवार (6 दिसंबर) को मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की नींव रखकर ममता बनर्जी के लिए नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। ऐसे हालात में तृणमूल कांग्रेस की राजनीति इस समय एक ऐसे खतरनाक मोड़ पर है, जहां हर कदम ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी बनता जा रहा है। कभी खुद को अल्पसंख्यक वोट बैंक की निर्विवाद चैंपियन बताने वाली ममता आज उसी वोट बैंक के भीतर उठी बगावत की आग में घिर गई हैं। इस बीच हुमायूं कबीर ने दावा किया है कि जिस वोट बैंक के दम पर ममता इतने सालों से पश्चिम बंगाल में राज कर रही हैं, वह उससे बेहद नाराज है। इसलिए अगले साल के विधानसभा चुनाव में ममता किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी।
दोहरे आक्रमण ने ममता सरकार में राजनीतिक तूफान खड़ा किया
राज्य में मतदाता सूची में 50 लाख संदिग्ध वोटरों का खुलासा, TMC से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर की खुली चुनौती, और मुर्शिदाबाद में नई ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखे जाने का विवाद, इन तीनों ने मिलकर ममता सरकार के सामने एक ऐसा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसकी पकड़ से निकल पाना फिलहाल तो उनके लिए संभव नजर नहीं आता। दरअसल, बंगाल की वोटर लिस्ट में 50 लाख संदिग्ध नामों की मौजूदगी कोई छोटी बात नहीं। विपक्ष का आरोप है कि TMC ने अपने चुनावी हितों को साधने के लिए मतदाताओं की सूची को ऐसे भर दिया है कि फर्क करना मुश्किल हो गया है कि वास्तविक वोटर कौन है और ‘राजनीतिक रूप से पोषित’ नाम कौन से हैं। यदि वोटर लिस्ट पर ही भरोसा टूट जाए तो चुनावी लोकतंत्र कागज की तरह बिखर जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अविश्वास का निशाना सीधा ममता बनर्जी की सरकार है, क्योंकि यह पूरा तंत्र राज्य प्रशासन के दायरे में आता है।
अगले साल चुनाव में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी- कबीर
इस बीच TMC के लिए असली झटका मुर्शिबाद से आया है। मुर्शिदाबाद के विधायक हुमायूं कबीर, जिन्हें पार्टी ने निलंबित किया है, अब खुले तौर पर ममता बनर्जी के बड़े मुस्लिम वोट बैंक को चुनौती दे रहे हैं। शनिवार (6 दिसंबर) के दिन कबीर ने एक नई बाबरी मस्जिद की नींव रखी। इतिहास को देखते हुए जिसे स्थानीय लोग ‘बाबरी-स्टाइल’ मस्जिद कहने लगे हैं। यह कदम केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह एक राजनीतिक ऐलान है कि बंगाल में मुस्लिम राजनीति अब TMC की मोनोपॉली में नहीं रहेगी। कबीर ने यह कहकर TMC नेतृत्व के होश उड़ा दिए हैं कि 2026 में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी और वे स्वयं 90 मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर धार्मिक राजनीति की नई धारा खड़ी करेंगे।
अयोध्या की तर्ज पर ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखी, दो लाख लोग शामिल
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा में TMC से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने शनिवार को अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनने वाली मस्जिद की आधारशिला रखी। कबीर ने मंच पर मौलवियों के साथ फीता काटा और आधारशिला रखने की औपचारिकता पूरी की। इस दौरान नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर के नारे लगाए गए। कार्यक्रम में 2 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जुटने के दावे किए गए। बंगाल के अलग-अलग जिलों से आए लोगों में कोई अपने सिर, कोई ट्रैक्टर-ट्रॉली तो कोई रिक्शा या वैन से ईंट लेकर कार्यक्रम में पहुंचे। हुमायूं कबीर ने 25 नवंबर को कहा था कि वे 6 दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के 33 साल पूरे होने पर बाबरी मस्जिद की आधारशिला रखेंगे। TMC ने 4 दिसंबर को हुमायूं कबीर को पार्टी से सस्पेंड कर दिया था।
हाईकोर्ट ने मस्जिद निर्माण पर रोक से इनकार किया था
कोलकाता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मस्जिद निर्माण पर रोक लगाने से इनकार किया था। कोर्ट ने कहा कि कार्यक्रम के दौरान शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। हाईकोर्ट के इस निर्देश के बाद हुमायूं कबीर मस्जिद की नींव रख रहे हैं। बेलडांगा समेत आसपास का इलाका आज हाई अलर्ट पर रहा। बेलडांगा और रानीनगर थाने के इलाका और उसके आसपास सेंट्रल आर्म्ड फोर्स की 19 टीमें, रैपिड एक्शन फोर्स, बीएसएफ, स्थानीय पुलिस की कई टीमों समेत 3 हजार से ज्यादा जवान तैनात किए हैं। विधायक हुमायूं कबीर ने मस्जिद निर्माण को लेकर कहा कि अब बेलडांगा में बाबरी मस्जिद को बनने से कोई भी ताकत इसे रोक नहीं सकती। कबीर ने दावा किया कि हिंसा भड़काकर कार्यक्रम को बाधित करने की साजिशें रची जा रही हैं। बंगाल के विभिन्न जिलों से लाखों लोग ऐसी कोशिशों को नाकाम कर देंगे। हुमायूं ने बताया कार्यक्रम में सऊदी अरब से भी धार्मिक नेता आ रहे हैं।

ममता बनर्जी मुस्लिम हितों की वास्तविक संरक्षक नहीं रहीं
दरअसल, विधायक हुमायूं कबीर की यह चुनौती इसलिए मामूली नहीं है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट करीब 25-27 प्रतिशत हैं और लंबे समय से इनका बड़ा हिस्सा TMC के साथ है। लेकिन घरेलू असंतोष, प्रशासनिक पक्षपात और स्थानीय स्तर पर TMC नेतृत्व की खामियों ने इस वोट बैंक को भीतर से खोखला कर दिया है। कबीर जैसे नेता इसी असंतोष को भुना रहे हैं। यह पहली बार है जब TMC के भीतर से ही कोई नेता मुस्लिम समुदाय को यह संदेश दे रहा है कि ममता बनर्जी उनके वास्तविक हितों की संरक्षक नहीं रहीं। दरअसल, ममता बनर्जी के सामने असली समस्या यह नहीं है कि कबीर ने मस्जिद की नींव रखी, बल्कि यह है कि उसने इसे बाबरी मस्जिद की यादों से जोड़कर भावनात्मक मुद्दा बना दिया है। यह वही मुर्शिदाबाद है जो TMC के लिए कभी एक सुरक्षित ‘राजनीतिक गढ़’ माना जाता था और अब वहीं से पार्टी की दीवार में गहरी दरार पड़ गई है।
नया मुस्लिम ध्रुवीकरण तैयार होने से ममता की मुश्किलें दोगुनी हुईं
हुमायूं कबीर की यह बगावत ममता बनर्जी के पूरे राजनीतिक कैलकुलेशन को झकझोर रही है। मुस्लिम वोट पहले ही AIMIM, ISF और छोटे स्थानीय समूहों के कारण खिसक रहे थे। अब TMC के ही विधायक ने एक नया मुस्लिम ध्रुवीकरण तैयार करने की कोशिश से ममता की मुश्किलें दोगुनी कर दी हैं। TMC ने जिसे निलंबित किया, वे अब खुद को ‘नई मुस्लिम राजनीति’ का चेहरा बनाने में जुटे हैं। वास्तविकता यह है कि ममता की राजनीति उन्हीं हथकंडों के वजन से दबने लगी है जिन्हें उन्होंने वर्षों तक सहारा बनाया था। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति इतनी ज्यादा केंद्रीकृत थी कि अब उसी समुदाय के भीतर असंतोष पनप गया है। TMC के भीतर कई नेता शिकायत करते रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, केवल चुनावी भाषणों तक बात सीमित रहती है।
हिंदू वोटर भाजपा के साथ, मुस्लिम वोटर होने लगा विभाजित
बंगाल के राजनीतिक समीकरणों में एक नई हकीकत तेजी से उभर रही है। ममता बनर्जी चुनावी मैदान में अब दो तरफ से छिटकते वोटों से घिरी हैं। एक तरफ हिन्दू वोट जो पहले ही बीजेपी की ओर खिसक चुका है और दूसरी तरफ मुस्लिम वोट जो अब विभाजित होता दिख रहा है। बंगाल की सत्ता की चाबी इन्हीं दोनों समुदायों के संतुलन में छिपी हुई है। यदि यह संतुलन ही टूट जाए, तो TMC की राजनीति का पहिया चरमराना तय है। इसलिए 2026 का चुनाव अब TMC के लिए ‘रूटीन चुनाव’ नहीं रहेगा। यह ममता बनर्जी के राजनीतिक भविष्य का निर्णायक मोड़ बनेगा। यदि मुस्लिम वोट बैंक दो या तीन हिस्सों में टूट गया और मतदाता सूची विवाद उनकी सरकार पर अविश्वास को और गहरा कर गया तो ममता बनर्जी बंगाल की सत्ता में लौटना असंभव जैसा हो जाएगा। क्योंकि विपक्ष से लड़ना तो आसान है, लेकिन पार्टी में बगावत, अपने ही वोट बैंक का टूटना, और प्रशासनिक तंत्र पर अविश्वास यह तीनों मिलकर किसी भी सरकार की नींव हिला सकते हैं।
सीएम ममता बनर्जी अपने ही विधायक के राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसी
सीएम ममता बनर्जी की दिक्कत यह है कि वह कबीर को ना रोक सकती हैं और ना ही उनका समर्थन कर सकती हैं। रोकेंगी तो मुस्लिम समुदाय के भीतर नाराजगी की आग भड़केगी, और समर्थन करेंगी तो यह और साफ हो जाएगा कि ममता की राजनीति सिर्फ एकतरफा तुष्टिकरण पर टिकी है। यह ऐसी दुविधा है जिसने उन्हें एक ऐसे राजनीतिक चक्रव्यूह में घेर लिया है, जिसमें किसी भी दिशा में कदम उठाने पर नुकसान ही नुकसान है। दरअसल, हुमायूं कबीर जिस तरह बाबरी मुद्दे को बंगाल की राजनीति में उठा रहे हैं, वह साफ संकेत देता है कि वह सिर्फ एक विधायक की भूमिका में नहीं, बल्कि एक मुस्लिम नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश में हैं। यही वह बिंदु है, जो ममता बनर्जी को सबसे अधिक अस्थिर कर रहा है। बंगाल का मुस्लिम वोट लंबे समय तक टीएमसी की सत्ता का ईंधन रहा है। पर आज वही वोट-बैंक भीतर से बिखरने को तैयार खड़ा है। कबीर का अभियान मुस्लिम समुदाय के बीच एक नया संदेश दे रहा है कि टीएमसी चाहे कितनी भी बड़ी पार्टी क्यों न हो, लेकिन उनकी आवाज कहने के लिए एक “नया चेहरा” अब मैदान में उतर चुका है।

टीएमसी के भीतर वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व उभरने के संकेत
दरअसल, मुर्शिदाबाद वह जिला है जहां से ममता को वर्षों से अपराजेय समर्थन मिलता आया है। लेकिन उसी किले की दीवारों के भीतर अब दरारें दिखने लगी हैं। कबीर की यह मुहिम न केवल टीएमसी के भीतर गुटबाजी को बढ़ा रही है, बल्कि यह भी संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में टीएमसी के भीतर एक वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व उभर सकता है। ममता बनर्जी इसे अपने लिए राजनीतिक खतरा मानें या पार्टी के लिए संकट, लेकिन सच यही है कि बाबरी मस्जिद का यह विवाद अब एकतरफा नहीं रहेगा। यह पूरे राज्य के सत्ता समीकरणों में बदलाव की झनकार पैदा करेगा।

भाजपा नेता उमा भारती के बयान ने आग में घी का काम किया
इसी बीच भाजपा नेता उमा भारती के बयान ने आग में घी का काम किया है। साध्वी भारती ने साफ कहा है, “यदि बाबर के नाम वाली मस्जिद बनी तो उसका अयोध्या जैसा हाल होगा।” उन्होंने X पर लिखा, “खुदा, इबादत, इस्लाम के नाम पर मस्जिद बने हम सम्मान करेंगे। अगर बाबर के नाम से इमारत बनी तो उसका वही हाल होगा, जो 6 दिसंबर को अयोध्या में हुआ था। ईंटें तक नहीं बची थीं। मेरी ममता बनर्जी को सलाह है कि बाबर के नाम पर मस्जिद बनाने की बात कहने वालों पर कार्रवाई करें। पश्चिम बंगाल और देश में अस्मिता और सद्भाव के लिए उनकी जिम्मेवारी है।” उमा भारती के एक-एक ईंट गायब वाले बयान पर विधायक हुमायूं उन्हें मुर्शिदाबाद आने की चुनौती देते हैं। वे कहते हैं कि उमा भारती को ईंट खोलने के लिए मुर्शिदाबाद आना पड़ेगा। हिम्मत है तो आकर गिरा दें। अगर तोड़ दिया तो दोबारा बनाएंगे। उनके इस बयान ने मस्जिद के मुद्दे को बंगाल की सरहदों से निकालकर राष्ट्रीय विमर्श में ला खड़ा किया। भाजपा को यह मौका मिला कि वह ममता पर सीधे प्रहार कर सके और कह सके कि बंगाल सरकार एक पक्ष की धार्मिक राजनीति को बढ़ावा दे रही है। यह बयान टीएमसी के लिए सिर्फ राजनीतिक चुनौती नहीं, बल्कि उसकी छवि पर लगा एक गहरा राजनीतिक धब्बा भी बन गया है।
ममता बनर्जी ने हुमायूं कबीर को दूसरा औवेसी बनने का मौका दिया
हिंदू मतदाताओं के बीच यह पक्की धारणा पहले ही गहरी हो चुकी है कि ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से कभी बाहर नहीं निकलतीं। अब इस विवाद ने उस धारणा को और ठोस रूप दे दिया। टीएमसी का ढुलमुल रवैया, आधिकारिक प्रतिक्रिया का अभाव और कबीर जैसे नेताओं की स्वतंत्र बयानबाजी, इन सबने मिलकर बंगाल के हिंदू मतदाताओं को एक बार फिर यह महसूस कराया कि ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की राजनीति में उनके लिए कोई जगह नहीं। दूसरी ओर मुस्लिम मतदाता भी अब एकमत नहीं रहे। AIMIM पहले से ही बंगाल में जमीन तलाश रही थी और अब कबीर का उभार उस जमीन को और उपजाऊ बना सकता है। राजनीति का यह समीकरण ममता बनर्जी के लिए सबसे घातक है। हिंदू वोट जा चुके हैं और अब मुस्लिम वोट भी बंटने की कगार पर खड़े हैं। ऐसे में हुमायूं कबीर पश्चिम बंगाल में दूसरे औवेसी बन कर उभर सकते हैं। क्योंकि इस पूरे विवाद के बीच हुमायूं को अब TMC से निलंबित कर दिया गया है।

मुर्शिदाबाद का मुद्दा टीएमसी में एक नए शक्ति-संतुलन के रूप में उभरा
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मुर्शिदाबाद का बाबरी मस्जिद विवाद ममता बनर्जी की राजनीति के लिए सिर्फ एक मुद्दा नहीं, बल्कि एक खुली चेतावनी है। एक ऐसी चेतावनी, जो बताती है कि राजनीतिक जमीन जितनी जल्दी सिर पर चढ़ाती है, उतनी ही जल्दी पैर भी खींच लेती है। ममता की कठिनाई यह है कि यह संकट बाहर से नहीं, भीतर से उठा है। बाहरी विरोधी से लड़ना आसान होता है, लेकिन अंदर उठी आग को बुझाना सबसे मुश्किल होता है। आने वाले महीनों में यह विवाद किस दिशा में जाएगा, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए किसी राजनीति के विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं। तस्वीर शीशे की तरह साफ है। अब मुर्शिदाबाद का यह मुद्दा टीएमसी के भीतर एक नए शक्ति-संतुलन की शुरुआत कर चुका है, जिसका नुकसान ममता को और फायदा उनके विरोधियों को मिलना लगभग तय है। 









