कोरोना काल में दुनियाभर में जब त्राहिमाम मचा हुआ था। कोरोना की पहली वैक्सीन बनाने वाली अमेरिका की फार्मा कंपनी फाइजर पूरे विश्व में अपना वैक्सीन बेचने के प्रयास कर रही थी। फाइजर ने भारत को भी वैक्सीन बेचने के तमाम प्रयास किए थे लेकिन उसकी कुछ शर्तें भी थी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानने से इनकार कर दिया था। उस वक्त मोदी सरकार के वैक्सीन नहीं खरीदने के फैसले पर राहुल गांधी सहित कांग्रेस के नेताओं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ ही लेफ्ट लिबरल गैंग के सदस्यों ने सवाल उठाए थे। अक्टूबर 2022 में फाइजर कंपनी के एक अधिकारी ने यूरोपियन यूनियन की संसद के सामने ये कबूल किया कि जब उनकी वैक्सीन को बाजार में उतारा गया था तो उन्हें भी ये पता नहीं था कि ये वैक्सीन कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में कितनी कारगर है। यानि वे फर्जी वैक्सीन को बेच रहे थे। फाइजर की वैक्सीन के साइड इफेक्ट होने की खबरें भी लगातार आती रही हैं कि इसकी वजह से स्ट्रोक्स और हार्ट अटैक के मामले सामने आए हैं। अब एक ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि फाइजर वैक्सीन से 86 प्रतिशत बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इससे यह बात समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फाइजर वैक्सीन को मंजूरी न देकर कितना दूरदर्शी फैसला किया था।
फाइजर वैक्सीन का 86 प्रतिशत बच्चों पर पड़ा बुरा असर
अब एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन बच्चों को फाइजर का कोविड टीका मिला, उनमें से 86 प्रतिशत बच्चों को प्रतिकूल प्रभाव का सामना करना पड़ा। जबकि इसी फाइजर ने कोरोना काल के दौरान एक स्टडी करवाई थी जिसमें बच्चों के लिए इस वैक्सीन को 100 फीसदी कारगर होने की बात कही गई थी।
फाइजर वैक्सीन कितना प्रभावी, इसका कभी टेस्ट नहीं किया
इससे पहले फार्मा कंपनी फाइजर की एक वरिष्ठ कार्यकारी, Janine Small ने 13 अक्टूबर 2022 को खुलासा किया था कि Pfizer Covid-19 mRNA vaccine का वायरस को फैलने से रोकने के लिए कभी टेस्ट किया ही नहीं गया था। यूरोपीय संघ की संसदीय सुनवाई के दौरान, डच संसद सदस्य रॉब रोस द्वारा पूछताछ के दौरान, अंतरराष्ट्रीय विकास बाजारों के फाइजर की अध्यक्ष जेनाइन स्मॉल ने यूरोपीय संसद के COVID-19 सलाहकार बोर्ड के सामने ये चौंकाने वाला खुलासा किया।
विदेश कंपनियों की मनमानी के सामने नहीं झुका भारत
नवंबर 2020 में भारत में कोरोनावायरस की पहली लहर पीक पर थी। रोजाना तकरीबन 1 लाख केस आ रहे थे और इसी वक्त मॉडर्ना और फाइजर वैक्सीन बेचने के लिए भारत सरकार से मोल भाव कर रही थी। दूसरे शब्दों में कहें तो यह मोलभाव नहीं था बल्कि ब्लैकमेल था। उन्हें लगता था कि भारत कभी वैक्सीन बना नहीं पाएगा अपनी बड़ी आबादी के लिए हमसे किसी भी शर्त पर वैक्सीन खरीदने के लिए तैयार हो जाएगा। जैसा कि पहले की सरकारों में होता था। भारत के सामने इन विदेशी वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने ऐसी ऐसी शर्तें रखी कि उन्हें मानना आसान नहीं था। और तब मोदी सरकार ने ये फैसला किया कि वो मनमानी शर्तों के आगे नहीं झुकेगा। ये फैसले लेते वक्त भारत को बहुत मुश्किल आई, ये आलोचना भी झेलनी पड़ी कि भारत अपने लोगों को वैक्सीन कभी नहीं दिलवा पाएगा। लेकिन भारत ने न केवल अपनी खुद की वैक्सीन बना ली बल्कि कई देशों को वैक्सीन बांटी भी। भारत सरकार चाहती थी कि विदेशी वैक्सीन कंपनियां भारत के लिए वैक्सीन का निर्माण भारत में ही करें। लेकिन ये किसी कंपनी को मंज़ूर नहीं था।
सिर्फ लाभ कमाने के चक्कर में थी फाइजर कंपनी
कोरोना महामारी के पहले दौर में फाइजर ने अपना टीका भारत को बेचने का प्रस्ताव दिया था। कंपनी ने 2021 में एमआरएनए आधारित टीका विकसित करने की घोषणा की थी। वार्ता के दौरान कंपनी ने केंद्र सरकार से क्षतिपूर्ति शर्त से छूट देने की मांग की थी। हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मांग को मानने से इनकार कर दिया था। क्षतिपूर्ति शर्त के तहत यदि किसी दवा या टीके का विपरीत प्रभाव होता है, तो उत्पादक कंपनी को जवाबदेही लेनी होती है। फाइजर टीके से लाभ तो कमाना चाहती थी, लेकिन जवाबदेही नहीं लेना चाहती थी।
फाइजर और मॉडर्ना ने शर्त रखी थी- वैक्सीन से मौत होने पर भी कंपनी पर केस नहीं होगा
भारत के सामने वैक्सीन खरीदने के लिए फाइजर और मॉडर्ना ने ऐसी शर्त रखी थी जो कि पीएम मोदी के नेतृत्व में नए भारत कतई मंजूर नहीं था। अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने भारत सरकार के सामने शर्त रखी कि वो वैक्सीन बेचेगी और वो भी शर्तों के साथ। मॉडर्ना ने indemnity against liability clause रखा। यानी वैक्सीन की वजह से कोई साइड इफेक्ट हो जाए या वैक्सीन की वजह से किसी की मौत हो जाए तो कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इसी तरह फाइज़र कंपनी की शर्त थी कि उन्हें Sovereign immunity waiver मिले। मोटे तौर पर इस Waiver का मतलब ये है कि भारत के कानून के तहत कंपनी पर कोई केस नहीं चलाया जा सकेगा।
राहुल, केजरीवाल सहित विपक्षी नेताओं ने भारतीय वैक्सीन पर संदेह जताया और फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन की वकालत की
फाइजर और मॉडर्ना ने भारत को वैक्सीन बेचने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया और पानी की तरह पैसा बहाया। लेकिन पीएम मोदी के सामने उनकी दाल नहीं गली। लेकिन उसी समय राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव जैसे तमाम विपक्षी नेताओं पर भारतीय वैक्सीन पर संदेह जाहिर कर भारतवासियों को भ्रम में डालने की कोशिश की और अप्रत्यक्ष रूप सरकार पर विदेशी वैक्सीन खऱीदने का दबाव बनाया।
केजरीवाल ने कहा था- बच्चों के लिए जल्द से जल्द खरीदें जाएं फाइजर के टीके
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बच्चों को टीका लगाने के लिए जल्द से जल्द फाइजर का कोविड-19 रोधी टीका खरीदने की 27 मई 2021 को मांग की थी उन्होंने यह मांग तब की जब इससे पहले अमेरिकी दवा कंपनी ने भारत में अपने टीकों को जल्द से जल्द मंजूरी दिए जाने की मांग की थी। अमेरिकी कंपनी ने भारतीय प्राधिकारियों को बताया कि उसका टीका 12 साल या उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों के लिए उचित है।
He was no other than Delhi Chief Minister, chauthi paas CM – Arvind Kejriwal
He abused Modi govt for not importing Pfizer vaccine for Indian kids pic.twitter.com/UEWO58zFkV
— STAR Boy (@Starboy2079) July 16, 2023
फाइजर से सीधी डील शुरू कर चुके थे केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो अमेरिकी कंपनी फाइजर से सीधी डील करना शुरू कर दिया था लेकिन कंपनी ने उन्हें टीका देने से मना कर दिया था। कंपनी ने कहा था कि वह केंद्र सरकार से सीधे तौर पर बात करना चाहती हैं।
सिसोदिया ने फाइजर की वकालत में कई ट्वीट किए
यहां तक कि केजरीवाल के करीबी और केजरीवाल के मुताबिक, विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मंत्री जो कि आजकल जेल में हैं उन्होंने भी फाइजर वैक्सीन आयात करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्हें देश में 12वीं क्लास के 1.4 करोड़ स्कूली बच्चों की सबसे ज्यादा चिंता थी। उनके ट्वीट देखकर आप इसे समझ सकते हैं वे कितने चिंतित थे। लेकिन अब वे क्या कहेंगे जब स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि 86 प्रतिशत बच्चों पर फाइजर वैक्सीन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
राहुल गांधी ने कहा- फाइजर टीका हर भारतीय को दिया जाना चाहिए
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कोरोना वायरस के प्रभाव को कम करने वाले टीके फाइजर को लेकर कहा है कि हर भारतीय को ये टीका उपलब्ध कराया जाना चाहिए। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि भारत सरकार को उस रणनीति के बारे में बताना चाहिए जिससे कि वह हर भारतीय तक यह टीका पहुंचाएगी। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि “फाइजर ने कारगर वैक्सीन का निर्माण कर लिया है, ऐसे में हर भारतीय को इसे उपलब्ध कराने के लिए लॉजिस्टिक्स पर काम करने की जरूरत है।”
Even though Pfizer has created a promising vaccine, the logistics for making it available to every Indian need to be worked out.
GOI has to define a vaccine distribution strategy and how it will reach every Indian. pic.twitter.com/x5GX2vECnN
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 11, 2020
चिदंबरम ने की थी फाइजर, मॉडर्ना टीके की वकालत
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने 27 दिसंबर 2021 को ट्वीट किया था कि भारत में सिर्फ तीन टीके हैं-कोविशील्ड, कोवाक्सिन व स्पूतनिक। मोदी सरकार के संरक्षणवादी नीति के कारण फाइजर, मॉडर्ना के टीके भारत से बाहर हैं।
अखिलेश यादव ने कहा था- बीजेपी की वैक्सीन पर भरोसा नहीं
कोरोना महामारी में भी राजनीति चमकाने वालों में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी एक थे। अखिलेश ने वैक्सीन को बीजेपी की वैक्सीन तक कह दिया था। 2 जनवरी 2021 को अखिलेश ने कहा- मैं तो नहीं लगवाऊंगा अभी वैक्सीन, मैंने अपनी बात कह दी। अखिलेश ने कहा था कि वैक्सीन बीजेपी लगाएगी तो उसका वो भरोसा नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि अपनी सरकार आएगी तो सबको फ्री वैक्सीन लगेगी। हम बीजेपी का वैक्सीन नहीं लगवा सकते।
नमाजवादी विचारधारा
बीजेपी की वैक्सीन पर मुझे भरोसा नहीं है, इसलिए मैं वैक्सीन नही लगवाऊंगा.. हमारी सरकार आएगी तो सबको वैक्सीन फ्री में देंगे: अखिलेश यादव
अखिलेश पढ़ा लिखा है?? इसकी सोच से तो लगता है ये तेजप्रताप और तेजस्वी यादव से भी बड़ा अनपढ़ और गंवार है#योगीजी_नंबर_01 pic.twitter.com/bmbQiu5MRB
— किसान का पुत्र हूँ (@sanjay_mishra91) January 2, 2021
ममता बनर्जी भी भारतीय वैक्सीन पर जताया था संदेह
11 जनवरी 2021 को जब पीएम मोदी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ संवाद कर रहे थे तब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वैक्सीन को लेकर चिंता जाहिर की थी। ममता बनर्जी ने सवाल किया कि क्या केंद्र द्वारा दोनों टीकों (कोविशील्ड और कोवैक्सिन) को लेकर वैज्ञानिकों से पर्याप्त राय ली गई है। क्या पर्याप्त संख्या में टीकाकरण से पहले दोनों टीकों का ट्रॉयल किया गया। वैक्सीनेशन से पहले पुख्ता अध्ययन की जरूरत है। क्या वैक्सीनेशन के बाद इसका कोई दुष्प्रभाव हो सकता है?
पीएम मोदी के फैसले से भारत में करोड़ों लोगों की जान बची
अब यह समझ में आ रहा है कि पीएम मोदी के विदेशी टीके को ना कहने और स्वदेशी टीकों के निर्माण जैसे फैसले कितने अहम थे जिससे भारत में करोड़ों लोगों की जान बची। बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि अब तो यह भी सवाल उठ रहा है कि उस समय कांग्रेस के नेताओं से लेकर अरविंद केजरीवाल और लेफ्ट लिबरल गैंग के सदस्य आखिर किसकी शह पर फाइजर के टीके की तरफदारी कर रहे थे और मोदी सरकार पर इसे खरीदने के लिए दबाव बना रहे थे। यह एक बड़ा सवाल है जिसकी तह में जाकर यह देश के हर नागरिक को मनन करना चाहिए।