कविता के निशाने पर होते हैं हिन्दूवादी संगठन, बीजेपी, पीएम मोदी
कविता कृष्णन सीपीआई (एमएल) की पोलित ब्यूरो सदस्य हैं, लिबरेशन का संपादन करती हैं। जेएनयू में संयुक्त सचिव रहीं पूर्व AISA की नेता कविता कृष्णन जाहिर है वामपंथी हैं। सिर्फ बायां ही देखती हैं, दाएं से मानों उनको नफरत है। रंग भी उनको लाल पसंद है, केसरिया पर दूसरे रंग छींटती रहती हैं। कोई ऐसा मौका वे नहीं छोड़तीं जिसमें वो हिन्दू, हिन्दू धर्म, हिन्दू संगठन, हिन्दूवादी विचार, बीजेपी, पीएम मोदी और बीजेपी की राज्य सरकारों कोसा जा सके, बल्कि उन पर आरोप मढ़ने का बहाना ढूंढ़ती हैं।
हमेशा ‘बायीं आंख’ से देखती हैं कविता
सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाती हैं, सेना के जवान मारे जाएं वह ट्वीट नहीं करतीं, सेना के सशस्त्र जवान पिटाई खाने की बहादुरी दिखलाए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, कश्मीरी हिन्दुओं को बेघर किया जाए तब भी वह चुप रहती हैं। किसी भी मुद्दे को हिन्दू-मुस्लिम बना देना, दलित-सवर्ण बना देना और बहुसंख्यक यानी हिन्दुओं को या उससे जुड़े संगठनों को गुनहगार ठहरा देना उनकी आदत है। यही उनका बायां पक्ष है।
कविता का नया टर्म- ‘जम्मू के दक्षिणपंथी आतंकवादी’
कविता कृष्णन का एक ट्वीट है। जम्मू की घटना किसी वेबसाइट में छपी है उसका जिक्र करते हुए वह लिखती हैं-‘जम्मू के दक्षिणपंथी आतंकवादी’ तकरीबन मर चुके मुस्लिम परिवार के सामने ‘जय श्री राम’का नारा लगा रहे हैं। वैसे तो जम्मू-कश्मीर में वायरल वीडियो पर भरोसा करना मुश्किल है कि कौन सही है, कौन गलत। फिर भी ऐसे वीडियो और इसमें दिखती घटनाएं गलत हैं। इसे एक घटना के तौर पर इसकी निन्दा, पीड़ितों की मदद और सबक के रूप में लिया जाना चाहिए। पर, कविता कृष्णन इसे फैलाने में, बताने में और सबसे बडी बात कि इस बहाने हिन्दुओं को बदनाम करने में यकीन रखती हैं। अगर उत्पातियों को आतंकवादी कहेंगे, तो आतंकवादियों को क्या कहेंगे कविताजी। आपकी सोच में ही खोट है।
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 24, 2017
सहारनपुर के एसएसपी को बिना मांगे समर्थन की अपील की
कविता कृष्णन यूपी के सहारनपुर में एक एसएसपी के घर हुए हमले से भी दुखी दिखीं। वजह ये थी कि आरोपी उन्हीं के शब्दों में संघी थे। यानी राजनीतिक हमले का मौका मिला नहीं कि पीड़ितों के लिए सहानुभूति का टैंकर लेकर पहुंच गयीं। इस मामले में सरकार ने सख्त कार्रवाई की है। दस लोग गिरफ्तार हुए हैं। उन सब बातों का जिक्र क्यों करेंगी कविता मैम। संघ के खिलाफ नफरत फैलाता उनका ट्वीट देखिए।
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 23, 2017
लफंगों के कमेंट्स को हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बना दिया
दिल्ली मेट्रो में किस तरह दो लफंगों की एक सीनियर सिटिजन को सीट नहीं देने और उसकी बकवास बहस को मुसलमान और पाकिस्तान से जोड़ते हुए कविता ने बड़ा मुद्दा गढ़ने की कोशिश की। कविता ने ट्वीट किया कि एक मुस्लिम बुजुर्ग के समर्थन में एक नागरिक आया। हालांकि वह यह नहीं बतातीं कि वो नागरिक उनका ही सहयोगी कामरेड था। मामला वहीं डांट-डपट कर खत्म हो सकता था, हालांकि शिकायत थाने में हुई। पर, मसला ये है कि बुजुर्ग मुस्लिम व्यक्ति ने उन दो युवकों को कम उम्र का मानते हुए माफ कर दिया। अब तो मुद्दा ही खत्म। बेचारी कविता कृष्णन। तब उन्होंने इस घटना को ‘असहिष्णुता’ के उदाहरण के तौर पर पेश किया। आप ट्वीट पढ़िए, ट्वीट से फेसबुक तक पहुंचिए। अखबारों में छपी छपाई जा रही खबरें पढ़िए। तब समझ में आ जाएगा कविता की करतूत। एक मर चुके मुद्दे को उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के तौर पर पेश करके मामले को हवा देने की कोशिश की।
#IStandWithYou A Citizen Stands With a Muslim Victim Of Communal Bullying on Delhi Metro https://t.co/u0mNCl60aP
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 23, 2017
‘मेनका के समर्थकों’ को घटना का दोषी बताया
एक और ट्वीट 23 अप्रैल को कविता ने किया। आरोप मेनका गांधी के समर्थक जीव प्रेमियोंं पर लगाया कि उन्होंने 3 मुस्लिम युवकों को पीटा, जो भैंस लेकर जा रहे थे। क्यों, क्या, कैसे, कहां, इन ब्योरों से उन्हें ज्यादा मतलब नहीं। मतलब की बात इतनी थी कि आरोप मेनका गांधी के लोगों पर और पीड़ित मुस्लिम युवक। कविता का तो जैसे काम बन गया।
3 Muslim youths assaulted for transporting buffaloes by members of @Manekagandhibjp group People For Animals https://t.co/H1javT3QtA
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 23, 2017
मामूली घटना को ‘कश्मीरी युवकों के खिलाफ माहौल’ बताया
कविता ने 23 अप्रैल को ही एक और ट्वीट किया कि BITS पिलानी का एक कश्मीरी छात्र कश्मीर लौट गया क्योंकि उसके दरवाजे पर नफरत भरे संदेश लिखे थे। इस ट्वीट का मकसद ये बताना था कि कश्मीरी देश से बाहर कहीं पढ़ भी नहीं सकते। निशाने पर उनके राजनीतिक विरोधी बीजेपी की सरकार। उदाहरण का असली मकसद तो बीजेपी सरकार पर निशाना साधना है। कश्मीर से बाहर देश में अनगिनत कश्मीरी युवक पढ़ रहे हैं। सब शांतिपूर्ण माहौल में हैं, सौहार्द के साथ जी रहे हैं। एक घटना घटी, तो उसे संभालने के बजाए मोहतरमा उसमें आग लगाने की कोशिश करती दिख रही हैं। न केस हुआ, न शिकायत। बस सुनी-सुनायी बात पर बना दिया सोशल मीडिया में मुद्दा।
Kashmiri student leaves BITS Pilani after hate messages posted on door https://t.co/QD9vraIWKD
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 23, 2017
शहादत की फिक्र नहीं, ‘फर्जी एनकाउन्टर’ पर रही है नज़र
किसी अखबार में नक्सलियों के खिलाफ फर्जी एनकाउन्टर के बारे में कुछ छप जाए, तो कविता कृष्णन खुश हो जाती हैं। सुकमा में नक्सलवादियों ने 29 जवानों को मार डाला, इस पर वे ट्वीट नहीं करेंगी। खुद कामरेड के खिलाफ़ एक कामरेड होकर कैसे लिखें। लेकिन हां, एनकाउन्टर के बारे में लिखना तो फर्ज बनता है।
Deconstructing the State’s Narrative in a 2012 Bastar Fake Encounter Case: https://t.co/wUg3euxFEN via @thewire_in
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 22, 2017
कविता ने नया टर्म गढ़ा- ‘गऊ गुन्डा’
कविता कृष्णन अपने राजनीतिक विरोधियों को ‘गऊ गुन्डा’ कहने का मौका भी निकाल लेती हैं। जम्मू में घटी एक घटना का जिक्र वे इसी मकसद को साधने के लिए करती हैं। यानी एजेंडा वही किसी तरह हिन्दुओं को बदनाम किया जाए।
Gau-gundas attack again and rob this family in J&K. https://t.co/43gZfJjB9l
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 22, 2017
पीएम मोदी पर हमले का बहाना ऐसे ढूंढ़ती हैं कविता
कविता कृष्णन की गिरी हुई मानसिकता का अंदाजा आप लगा सकते हैं। वह खबर साझा करती हैं कि अब भारतीय पासपोर्ट लेने के लिए शादी या तलाक के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होगी। इस खबर के साथ उनका नरेंद्र मोदी पर हमला हो जाता है। वह लिखती हैं कि जसोदाबेन जैसी महिला को अब पोसपोर्ट मिलना आसान हो जाएगा। यानी निशाना हमेशा नरेंद्र मोदी, बीजेपी, संघ होता है। बस मौका चाहिए, किसी भी खबर को इनके खिलाफ इस्तेमाल कर लो।
Marriage/divorce certificates no longer needed to get Indian passports. So women like Jashodaben will now find it easier to get passports pic.twitter.com/lGpvMt1srg
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 22, 2017
कविता चाहती हैैं कि उनके कहने पर बोलें पीएम
एक रिपोर्ट आती है कि छोड़ी गयी औरतो की संख्या तीन तलाक पीड़िताओं से ज्यादा है। यह रिपोर्ट चिंता करने का विषय है। चिंता करेंगे, तभी तो चिंता दूर करेंगे। पर कविता के लिए तो यह मोदी पीएम मोदी के खिलाफ हथियार है यह रिपोर्ट। वह बोलती हैं कि मोदी उनके लिए भी बोलें। अब पीएम मोदी कविता कृष्णन के कहने से कुछ बोलें। कविता मैडम, जब आपको कहा जाता है कि वन्दे मातरम् बोलिए तब तो बोलती हैं कि मेरी मर्जी बोलूं या ना बोलूं, चुप रहूं या ना रहूं, मेरी देशभक्ति की परीक्षा दूसरा कोई क्यों लें? ये मेरे बोलने की आजादी है। लेकिन जब अपनी बातें दूसरों के मुंह में ठूंसनी होती है तो ये भी बोलिए, वो भी बोलिए। अरी मैडम, तीन तलाक की पहल, उसमें हलाला जैसी घृणित परंपरा, बेहसारा मुस्लिम औरतों के हक की आवाज़ आपने कभी क्यों नहीं उठाई? अब जब मोदी जी उठा रहे हैं तो ये भी बोलिए, वो भी बोलिए। तीन तलाक को घुमा फिराकर समर्थन क्यों कर रही हैं मैडम? गलत है तो गलत बोलिए ना।
छोड़ी गई औरतों की संख्या तीन तलाक़ पीड़िताओं से ज़्यादा, मोदी उनके लिए भी बोलें: https://t.co/2YamqsXmQ8 via @thewirehindi
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 22, 2017
मीडिया को टुच्ची खबर की आड़ में शर्मनाक बता देती हैं कविता
मीडिया की प्रस्तुति में कमी का जिक्र कर कविता कृष्णन महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटना को बहस में लाती हैं। मीडिया सवाल करता है पीड़िता से कि क्या वे सुरक्षित महसूस करती हैं? इस सवाल को पीड़िता के खिलाफ और मीडिया के लिए शर्मनाक बताकर पेश किया जाता है। झूठी हमदर्दी का हर एक बहाना कविता कृष्णन के पास है। पर, उनके निशाने पर भगवा और मीडिया ही हैं।
Yes. After violence on women, minorities – asking victim blaming ‘questions’ has become okay for media? Shame. @bhupendrachaube @CNNnews18 https://t.co/XsWpcnBU3i
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 22, 2017
जेल में बंद आसाराम भी ‘मसाला’, विरोधियों को कविता बताती हैं ‘ब्रेव’
आसाराम बापू के खिलाफ कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। कई सालों से वे जेल में हैं, जमानत तक नहीं मिल रही है। उनके भक्त इसे ‘परीक्षा का दौर’ बता रहे हैं, लेकिन कविता कृष्णन के लिए आसाराम ‘मसाला’हैं। आसाराम के ट्रायल के हर पहलू पर, उनसे जुड़ी छपी खबरों पर उनकी कितनी पैनी नजर है, आप देख सकते हैं।
Must read @writetopd on the nightmarish, brave struggle to bring Asaram, Narayan Sai to justice for sexual violence https://t.co/pSVy8N24Cx
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 21, 2017
शहीद हेमंत के बहाने NIA पर सवाल
कविता कृष्ण साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित मामले में भी पूरी दिलचस्पी लेती हैं। कहीं वे बच न जाएं। अगर बच गये तो ‘हिन्दू आतंकवाद’का इस्तेमाल करने का मौका जो हाथ से निकल जाएगा। अब देखिए शहीद हेमंत गडकरी को इस मामले में किस तरह अपने मकसदपूर्ण बयान के लिए इस्तेमाल कर रही है्ं। आरोप NIA पर पक्षपात का है कि वे कर्नल पुरोहित को रिहा करानेे के लिए पक्षपात कर रहा है। यानी एजेंडा साफ है।
Since Hemant Karkare is no more, he is a convenient scapegoat for the NIA to blame now, as they are desperate to save Purohit #SanghiTerror https://t.co/GNw19ln5ZJ
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 21, 2017
दलित-गैरदलित भावना भड़काने का प्रयास
दलित-गैरदलित का मुद्दा भी कविता कृष्णन के लिए प्रिय विषय रहा है। इसलिए तमिलनाडु में अम्बेडकर जयंती पर प्रशासनिक फैसले पर सवाल उठाकर किस तरह मामले को नया एंगल दे रही हैं आप भी देखिए। इस मामले को वह ‘गैर दलित इलाके में अम्बेडकर जयंती नहीं मनाने देने’ के तौर पर पेश करती दिख रही हैं।
Making Ambedkar untouchable in Tamil Nadu: police prevent Ambedkar Jayanti from being held in areas where non-Dalit communities reside! https://t.co/vPFaHOZD82
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 21, 2017
सेना पर आरोप लगाने का मौका नहीं छोड़तीं कविता
भारतीय सेना पर सवाल उठाना कविता कृष्णन की आदत रही है। सेना को विलेन के तौर पर पेश करना, उसे मानवाधिकार के उल्लंघन का दोषी बताना..ये उनकी आदत में शुमार रहा है। बाढ़ के समय में सेना जब कश्मीरियों की जान बचाती है तो समर्थन में उनकी जुबान नहीं खुलती। सशस्त्र होकर भी जब जवान नागरिक से मार खाता है, सैल्यूट करने वाली चुप्पी रखता है फिर भी कविता चुप रहती हैं। लेकिन, सेना पर आरोप लगाने का वह कोई मौका नहीं छोड़तीं।
‘Do not question the soldier on the border if you are patriotic. However, if the soldier on the border questions, dismiss him, silence him’ https://t.co/730jHQmmS2
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 20, 2017
शहादत याद नहीं रहती, ‘एनकाउन्टर’ के आंकड़े याद है कविता को
एनकाउन्टर में कितने लोग मारे गये, ये आंकड़े कविता को याद है। मणिपुर से लेकर कश्मीर तक के आंकड़े याद हैं। मगर, जवानों की शहादत का जिक्र तक नहीं करती हैं कविता।
1528 youth, incl children, killed in fake encounters in Manipur, 1000s of mass graves in Kashmir – this IS the norm, not the aberration https://t.co/I5eVaFWCdN
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 20, 2017
नक्सली तो बाद में कविता कब आएंगी मुख्य धारा में?
शाबाश कविता कृष्णन। एक अांख बंद रखिए। पर, जरा सोचिए इस कानी दृष्टि से आप किसका भला कर रही हैं। नफरत फैलाकर कौन सा समाज गढ़ रही हैं। अच्छा ये होता कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ में आप भी जुट जातीं। नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने की जरूरत है मगर उससे पहले आप जैसे लोग तो मुख्य धारा में आएं।