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समाजसेवी अन्ना हजारे से 10 सवाल

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समाजसेवी अन्ना हजारे एक बार फिर फॉर्म में हैं। पहले की सरकारों की तरह एक बार फिर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहे हैं। मैं पिछली बार अन्ना के आंदोलन में कई बार शामिल हुआ था, हर मोर्चे पर एक नागरिक के नाते उनके साथ खड़ा रहा। लेकिन आज भी क्या वैसे ही हालात हैं। अन्ना हजारे के त्याग, बलिदान और उनकी नीयत पर तो सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता। लेकिन जिस प्रकार की भाषा और शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए वो सीधे-सीधे इस देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री को चुनौती दे रहे हैं, उसकी वजह से उन्हें भी कुछ सवालों के जवाब जरूर देने चाहिए।

सवाल नंबर 1 – अचानक आंदोलन करने का फैसला क्यों?
अन्ना हजारे जी, पहला सवाल तो यह है कि आज अचानक ऐसा क्या हो गया या फिर पिछले तीन साल की सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के ऐसे कौन से आरोप केंद्र सरकार पर लगे हैं, जिसकी वजह से आपने आंदोलन करने का फैसला किया है?

सवाल नंबर 2 – केजरीवाल के भ्रष्टाचार पर चुप्पी क्यों?
पिछले तीन सालों में आपको अपने चेले अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार नहीं दिखे? यहां तक कि रिश्तेदारों के साथ वो घोटाले में फंसे, भ्रष्टाचार के आरोप में कई मंत्रियों की कुर्सी गई, लेकिन क्या कभी आपको इन लोगों के खिलाफ आंदोलन करने का मन नहीं किया? आखिर क्यों?

सवाल नंबर 3 – ममता बनर्जी सरकार के भ्रष्टाचार पर आंदोलन क्यों नहीं?
अन्ना हजारे जी, क्या आपको ममता बनर्जी के मंत्रियों के भ्रष्टाचार भी नहीं दिखे? आपने तो खुद ममता के साथ आंदोलन को बढ़ाने का फैसला किया था? तो क्या माना जाए कि इस देश के नेताओं को अब आपसे ईमानदारी के सर्टिफिकेट लेने पड़ेंगे?

सवाल नंबर 4 – संवैधानिक मर्यादा का पालन क्यों नहीं हो?
अन्ना हजारे खुद एक पूर्व सैनिक हैं यानी की वो संविधान की मर्यादा समझते हैं। लेकिन क्या वो लोकपाल की नियुक्ति संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर करना चाहते हैं? सवाल यह है कि जब कानून के मुताबिक लोकपाल के चयन में नेता विपक्ष का होना जरूरी है तो क्या सरकार संवैधानिक नियमों को दरकिनार कर लोकपाल की नियुक्ति कर दे?

सवाल नंबर 5 – प्रधानमंत्री या सरकार, देश की जनता के प्रति जवाबदेह है या फिर आपके प्रति?
अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री मोदी को जो चिठ्टी लिखी है, उससे लगता है कि प्रधानमंत्री केवल अन्ना हजारे के प्रति ही जवाबदेह है? जरा पत्र की भाषा पर गौर कीजिए। वो लिखते हैं – “मैने आपको याद दिलाने के लिए पिछले तीन साल में कई बार पत्र लिखा। लेकिन आपने कार्रवाई के तौर पर ना तो पत्र का जवाब दिया, ना ही अमल किया।“ अन्ना हजारे को यह अवश्य जानना चाहिए कि आजादी के बाद अगर आम जनता को सबसे ज्यादा पत्र लिखकर किसी ने जवाब दिया है तो वो नरेंद्र मोदी ही हैं।

सवाल नंबर  6 – संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को धमकी देने का अधिकार आपको किसने दे दिया?
अन्ना हजारे ने जो चिट्ठी लिखी है, वह संवाद से ज्यादा धमकी भर है। जरा चिट्ठी की भाषा पर ध्यान दीजिए। उन्होंने लिखा है कि, “इसके पहले 28 मार्च, 2017 को मैने आपसे पत्र लिखा था कि अगर लोकपाल और लोकायुक्त कानून पर अमल नही होता तो मेरा अगला पत्र दिल्ली में होनेवाले आंदोलन के बारे में होगा। उसी पत्र के मुताबिक मैंने समाज और देश की भलाई के लिये दिल्ली में आंदोलन करने का निर्णय लिया है।“ क्या इस पत्र की भाषा को मर्यादित भाषा कही जा सकती है? जिस सरकार पर जनता ने 30 साल बाद इतना विश्वास किया है, उसके लिए इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना ठीक है?

सवाल नंबर 7 – क्या अन्ना हजारे खुद को कानून से ऊपर समझते हैं?
अपने पत्र में अन्ना हजारे बार-बार याद दिलाते हैं कि उन्होंने दिल्ली में किस प्रकार आंदोलन किया और कैसे संसद को कार्रवाई करनी पड़ी। एक बार फिर वो चाहते हैं कि जैसा वो कह रहे हैं, उनकी बात को उसी तरीके से मान ली जाए। तो क्या यह माना जाए कि वो खुद को कानून से ऊपर समझते हैं?

सवाल नंबर 8 – क्या आपको लगता है कि इस देश में सिर्फ आप ही ईमानदार हैं?
अन्ना हजारे जी ने चिट्ठी में जिस तरीके से आरोप लगाए हैं, उससे यही लगता है कि उनके अलावा कोई ईमानदार है ही नहीं। सरकार सिर्फ अपने लिए काम कर रही है। जबकि सच्चाई यह है कि तीन साल गुजर जाने के बाद भी अब तक किसी भी विपक्षी दल ने प्रधानमंत्री मोदी तो दूर सरकार के किसी भी मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगाया है?

सवाल नंबर 9 – राजनीतिक दलों की तरह सरकार पर आरोप लगाने के पीछे आपकी मंशा क्या है?
जिस प्रकार कुछ राजनीतिक दल विद्वेष में आकर मोदी सरकार पर उद्योगपतियों की सरकार होने का बेसिर-पैर आरोप मढ़ देते हैं, ठीक उसी प्रकार अन्ना हजारे भी बात कर रहे हैं। वो लिखते हैं, “आप जितनी चिन्ता कम्पनी मालिक और उद्योगपतियों के बारे में करते दिख रहे हैं, उतनी चिन्ता किसानों के बारे में नही करते।“ आखिरकार अन्ना हजारे किसी राजनीतिक दल को फायदा पहुंचाने के लिए तो ऐसा आरोप नहीं लगा रहे, जबकि सच्चाई यह है कि पिछले तीन सालों में ऐसा कोई भी वाकया सामने नहीं आया है।

सवाल नंबर 10 – अगर मोदी सरकार अच्छा काम नहीं कर रही है तो जनता उन पर विश्वास क्यों कर रही है?
इस सवाल का जवाब अन्ना हजारे को इसलिए देना चाहिए क्योंकि तीन साल से जितने भी चुनाव हुए हैं। उसमें अपवाद स्वरूप कुछ को छोड़कर हर चुनाव में आम जनता ने नरेंद्र मोदी पर अपना विश्वास जताया है। जबकि दूसरी तरफ अन्ना हजारे आरोप लगाते हुए लिखते हैं कि, “आपके अंदर गरीबों और किसानों के प्रति संवेदनशीलता नहीं है।”
सच यह है कि तीन साल में मोदी सरकार के सारे कार्यक्रम गरीबों, दलितों, किसानों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। ऐसे में उन्हें वोट देने वालों में सबसे ज्यादा गरीब तबके से जुड़े लोग हैं।

जाहिर है अन्ना हजारे को अगला कोई भी कदम उठाने से पहले इन सवालों के जवाब जरूर तलाशने चाहिए, वर्ना कहीं ऐसा न हो कि सालों की अर्जित की गई विश्वसनीयता वो चंद पलों में गंवा दें।

बड़ी बात यह है कि जिस प्रकार का त्याग अन्ना हजारे ने किया है, उस स्थिति में नरेंद्र मोदी का त्याग उनसे किसी भी प्रकार से कम नहीं है। आज नरेंद्र मोदी चाहें तो क्या कुछ नहीं कर सकते, क्या कुछ हासिल नहीं कर सकते हैं, लेकिन हर भौतिकतावादी चीजों को त्यागकर, परिवार का मोह दूरकर उन्होंने स्वयं को देश के लिए समर्पित कर दिया है। अन्ना हजारे को इस बात का एहसास जरूर होना चाहिए।

-हरीश चन्द्र बर्णवाल

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