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राष्ट्रद्रोह के नारे से लेकर “मोदी सूत्र” की परिचर्चा तक – धुल गया JNU का कलंक

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ठीक एक साल पहले वो 9 फरवरी, 2016 की तारीख ही थी, जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से ऐसी तस्वीर आई, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय कहे जाने वाले और पूरी दुनिया में विख्यात JNU में राष्ट्रद्रोह के नारे लग रहे थे। यह बातें किसी के लिए भी हजम करने लायक नहीं थी। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़े होने की वजह से इतना तो हम जानते ही थे कि यहां के विद्यार्थी बड़ी बातें करते हैं, भव्य सपनों की बात करते हैं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर छात्र संघ का चुनाव लड़ते हैं। लेकिन ये जानकारी पूरी दुनिया को पहली बार पता चली कि यहां के छात्रों में देशद्रोह की भावना जगाई जा रही है, छात्रों को अपने ही देवी देवताओं के अपमान करने की कला सिखाई जा रही है। देशद्रोह के नारे वाले वीडियो के बाद इस बात को प्रचारित भी किया गया।

अब चाहे इसे JNU को बदनाम करने की साजिश कहें या कुछ और, लेकिन ये सच है कि उस वीडियो से JNU बदनाम हुआ। JNU के हजारों छात्रों को चंद गद्दार छात्रों की वजह से अपमानित होना पड़ा। ऐसे में जब मेरी नई पुस्तक ‘मोदी सूत्र’ के विमोचन और परिचर्चा की बात सामने आई, तो मैं यह समझ नहीं पा रहा था कि इसके लिए कौन सी लोकेशन बेहतर हो। मुंबई के इंडियन मर्चेट चैम्बर ऑफ कॉमर्स से लेकर दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर, कॉन्स्टीट्यूशन क्लब तक मेरी किताबों के विमोचन हो चुके हैं। इस बार मैं कुछ नया करना चाहता था। ऐसे में जब JNU की बात आई तो मैं सहज ही मान गया।

यकीन मानिए फरवरी महीने को मैंने इसलिए चुना क्योंकि इस देशद्रोही घटना को एक साल पूरे हो रहे थे। मैं यह जानता था कि अगर 3 फरवरी को मेरी पुस्तक का विमोचन सफलतापूर्वक हो गया तो JNU पर लगे दाग धुल सकेंगे। चाहता था कि JNU के छात्र-छात्राएं परिचर्चा में भाग लें और इस बात को सिद्ध करें कि JNU में राष्ट्रद्रोही नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी रहते हैं। शुरू में मुझे थोड़ी झिझक भी थी, क्योंकि मैं विवादों से दूर रहना चाहता हूं। मैं उन लेखकों में नहीं हूं जो विवादों को जन्म देकर लाइमलाइट में रहे और यकीन मानिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में “मोदी सूत्र” का विमोचन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। ये सिर्फ इस वजह से कह रहा हूं क्योंकि इस विमोचन समारोह और परिचर्चा में न सिर्फ दिग्गज एकेडमिशियन और पत्रकार पहुंचे, बल्कि छात्र-छात्राओं ने भी इसका स्वागत किया।

“मोदी सूत्र’ जीवन को बदलने और प्रेरित करने वाली पुस्तक है। ऐसे में हर विद्यार्थी की ये कोशिश थी कि अपने विश्वविद्यालय में हो रही परिचर्चा में शरीक हों और उसे अपने जीवन में उतार सकें। मैं अपनी किताब की बड़ी सफलता तब मानता हूं जब पढ़ने वाले उसे अपने जीवन में लागू कर पाएं। लेकिन जिस तरीके से JNU के विद्यार्थियों ने “मोदी सूत्र” पुस्तक की परिचर्चा में भाग लिया, मैं मानता हूं कि मेरा ये पुस्तक लिखना सफल हो गया।

– हरीश चन्द्र बर्णवाल
(लेखक से उनकी वेबसाइट के जरिये संपर्क कर सकते हैं www.harishburnwal.com)

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