प्रधानमंत्री मोदी पर उल जलूल बातें लिखकर टीआरपी बटोरने वाले विवादास्पद पत्रकार विनोद कापड़ी एक बार फिर विवादों में है। इस बार मामला एक लावारिश बच्ची को गोद लेने से जुड़ा है। पत्रकारों का आरोप है कि विनोद कापड़ी नई जन्मी मासूम की तकलीफ को ‘बेचकर’ अपनी इमेज की मार्केटिंग करने में जुट गए हैें। ट्विटर पर एक के बाद एक ट्वीट किया गया और लोगों की सहानुभूति को बटोरी गई। चीख चीखकर उस बच्ची को गोद लेने का ढोल पीटा जाने लगा। टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने भी फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा है जो इन टीआरपी के भूखे पत्रकारों विनोद कापड़ी और साक्षी कापड़ी को आइना दिखाता है। आप भी देखिए –
पहले देखिए विनोद कापड़ी और साक्षी का टीआरपी वाला ट्वीट –
मुझे नहीं लगता कि 14जून से बड़ा दिन जीवन में कभी आया है या कभी आएगा- जब सिर्फ ये एहसास भर है कि घर में ये प्यारी बच्ची आने वाली है।हमें एहसास है कि देश में गोद लेने की प्रकिया जटिल और लंबी है।पर उम्मीद है कि आप लोगों की दुआओं और प्यार हर मुश्किल को पार करेगा और ये बिटिया घर आएगी। pic.twitter.com/RyNeMJlITL
— Vinod Kapri (@vinodkapri) June 14, 2019
Our daughter is safe now. Thank u all for helping us find her. https://t.co/26wRCqPxvn
— Sakshi Joshi (@sakshijoshii) June 14, 2019
अभिषेक उपाध्याय का इन पत्रकारों को आइना दिखाता ये पोस्ट भी पढ़िए-
मैं ये पोस्ट क्यों लिख रहा हूँ? शायद इसलिए कि ट्विटर और फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस पर सुबह से लगातार एक नई जन्मी मासूम की तकलीफ को “बेचकर” अपनी इमेज की मार्केटिंग करने और फिर शाम होते होते उससे “पल्ला झाड़कर” किसी नई स्क्रिप्ट की वोदका में डूब जाने वालों पर ब्लू डार्ट के कूरियर में पैक करके लानतें भेजी जाएं। हुआ यूं कि एक मासूम सी नवजात अनाथ जो झाड़ियों में पाई गई। ज़ख्मो से चीखती रोती। अचानक ही ट्विटर पर उसके नए माँ बाप पैदा हो जाते हैं। चीख चीखकर उसे गोद लेने का एलान करते हैं। एक ट्वीट। दो ट्वीट। तीन ट्वीट….रेल बना देते हैं, ट्वीट्स की। फिर क्या था, उसी ट्विटर पर ही उनके पिछलग्गुओं का उत्सव शुरू हो जाता है। “अरे गज़ब” “वाह-वाह” “अद्भुत काम कर रहे हैं आप” “आप पर गर्व है”..”महान हैं आप”.. पिछलग्गुओं की दी गई एक के बाद दूसरी महान उपमाएं आपस मे टकराने लगती हैं। उनकी टकराहट से पैदा हुआ घर्षण ट्विटर पर तेजी से फैलती उनकी यशोगाथा के मानसून का आवाहन बन जाता है। मगर दिन बीतते बीतते दबाव भी बढ़ने लगता है कि गोद लेने की प्रक्रिया अब शुरू की जाए। मने एक कदम ही बढाया जाए पर कुछ तो किया जाए। जनता पलक पाँवड़े बिछाए इंतज़ार करती है। मगर शाम होते होते ट्विटर के ये सिराजुद्दौला प्लासी की लड़ाई को लड़े बगैर ही आत्मसमर्पण कर देते हैं, इस बयान के साथ कि उनकी दुआ है कि उस बच्ची को उसका परिवार मिल जाए। शाम तक ट्विटर के पर्याप्त लाइक्स और फॉलोवर गिन चुकने के बाद वे साफ कर देते हैं कि गोद लेना बहुत मुश्किल प्रक्रिया है, ये हो न पाएगा।
मैं कितनो को जानता हूँ जो चुपचाप बच्चा गोद लेते हैं और ज़िंदगी भर उसे कलेजे से लगाए रखते हैं। न उसे ही और न समाज को ही, ये मालूम होने देते हैं कि बच्चा कोख का नही, गोद का है। ऐसे में जब बच्ची का वीडियो डालकर उसे गोद लेने का जयकारा सुना, उसी वक़्त ज़ेहन में सवाल पैदा हो गया था।
देवी माँ, अल्लाह पाक, प्रभु यीशु, वाहे गुरु, सबसे दुआ है कि उस बच्ची की मदद करें और उन्हें सद्बुद्धि दें जो संकट में घिरी एक मासूम के दर्द, उसकी तड़प को भी 70 एमएम की फ्लॉप फ़िल्म बनाकर बेच देते हैं। ये पोस्ट कोई दुश्मनी का वारंट नही है। क्या पता ये पोस्ट ही “सामाजिक दबाव” और “सामाजिक शर्म” दोनों का हथियार बन जाए और ट्विटर के स्वघोषित माता पिता उस मासूम को वाकई गोद ले लें!! अगर ऐसा हुआ तो ये पोस्ट लिखना सफल हो जाएगा।