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टाइम्स मेगा पोल: 79 प्रतिशत लोगों ने माना 2019 में फिर पीएम बनेंगे नरेंद्र मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रियता के शिखर पर बने हुए हैं। कोई भी नेता उन्हें चुनौती देता नहीं दिख रहा है। टाइम्स डिजिटल मेगा पोल में भाग लेने वाले 79% लोगों का मानना है कि 2019 में फिर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनेगी। केवल 16% लोग ही मानते हैं कि 2019 में राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

आज चुनाव हुए तो मोदी क प्रचंड बहुमत
टाइम्स ग्रुप की नौ भाषाओं की 10 साइटों पर किए गए सर्वे में भाग लेने वाले पांच लाख लोगों में से करीब 76% लोगों ने बताया कि अगर आज आम चुनाव हुए तो वे फिर नरेंद्र मोदी को वोट देंगे, जबकि केवल 20% लोगों ने ही कहा कि वह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट डालेंगे। सिर्फ चार प्रतिशत लोगों ने अन्य के समर्थन में अपना वोट दिया।

आज चुनाव हुए तो… किसे वोट देंगे  
नरेंद्र मोदी 76%
राहुल गांधी 20%
अन्य 4 %

 

2019 में किसकी सरकार?
नोटबंदी और जीएसटी जैसे कठोर फैसले लेने के बाद भी लोगों का भरोसा उन पर बरकरार है। सर्वे में शामिल 75 प्रतिशत से अधिक लोगों ने यानी हर चार में से तीन लोगों ने कहा कि अगर आज चुनाव होता है तो वह प्रधानमंत्री मोदी को अपना समर्थन देंगे। 79 प्रतिशल लोगों ने साफ कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से मोदी सरकार आएगी। सिर्फ 16 प्रतिशत लोगों ने कहा कि राहुल गांधी की कांग्रेस सरकार बनेगी, जबकि 5 प्रतिशत लोगों का मानना है कि तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी।

2019 में किसकी सरकार?  
नरेंद्र मोदी 79%
राहुल गांधी 16%
तीसरा मोर्चा 5%

अध्यक्ष बनने के बाद भी राहुल विकल्प नहीं
टाइम्स मेगा पोल में जब लोगों से पूछा गया कि क्या राहुल गांधी के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कांग्रेस 2019 में एक विकल्प बन गई है, तो सिर्फ 21 प्रतिशत लोगों ने हां कहा, जबकि 73 प्रतिशत ने इससे इनकार किया। साफ राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद भी करीब तीन-चौथाई लोग कांग्रेस को विकल्प मानने के लिए तैयार नहीं है।

अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी बनेंगे विकल्प  
हां 21%
नहीं 73%
अन्य 6%

12 से 15 दिसंबर के बीच कराए गए इस मेगा पोल में करीब पांच लाख लोगों ने हिस्सा लिया। लोगों ने जिस तरह से अपना समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में दिखाया है उससे यह साफ हो जाता है कि उनकी लोकप्रियता के करीब पहुंच पाना किसी भी नेता के बस की बात नहीं है। आइए जानते हैं कि श्री नरेंद्र मोदी आखिर अब तक के सबसे बेहतर प्रधानमंत्री कैसे हैं-

विभाजनकारी राजनीति के विरुद्ध खड़े हुए
2002 में जब गोधरा में 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया तो गुजरात में हिंसा भड़क उठी और हजारों लोग मारे गए, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 72 घंटे के भीतर पूरे राज्य को नियंत्रण में ले लिया। ये इतना आसान नहीं था। दंगे के दौरान उन्होंने महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों से सहायता मांगी, लेकिन उन्हें सहायता नहीं दी गई। इन मुश्किलों के बावजूद इस पर नियंत्रण पा लिया। दरअसल आजादी के बाद से भारत में अब तक सैकड़ों दंगे हुए हैं, लेकिन गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है जहां अपराधियों को जांच का सामना करना पड़ा और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। यही नहीं एक राज्य के मुख्यमंत्री से एसआइटी ने पूछताछ की और उन्हें क्लीन चिट भी दे गई। गुजरात में रहने वाले कई मुस्लिमों ने उन्हें समर्थन दिया। जब केंद्र की सत्ता में वे आए तो उन्होंने अपनी नीति सबका साथ, सबका विकास की बनाई। उन्होंने ऐसे तत्वों को करारा जवाब दिया जो जाति, पंथ और धर्म का इस्तेमाल राजनीति के एक उपकरण के तौर पर करते हैं। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी विभाजनकारी राजनीति में विश्वास नहीं करते हैं। उन्होंने समय-समय पर दिखाया है कि वह छोटी राजनीति से ऊपर उठकर भारत का नेतृत्व करते हैं।

विकास के चैंपियन, विकास ही मिशन
विकास का मिशन प्रधानमंत्री मोदी की खासियत है। सत्ता में आने के बाद उन्होंने ‘जन धन योजना’, ‘उज्ज्वला योजना’ ‘स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया’, ‘स्मार्ट सिटीज’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल की। मेक इन इंडिया की पहल के कारण एफडीआई के प्रवाह में काफी तेज वृद्धि हुई है। बॉम्बार्डियर, फॉक्सकॉन और ऐप्पल जैसी कंपनियां भारत में निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो रोजगार और विकास लाएंगी। दरअसल किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि एक 10 साल के यूपीए शासन के दौरान अनगिनत नियम और नीतियां थीं, जिसे पीएम मोदी ने समाप्त करते हुए एकरूपता दी। दरअसल पीएम मोदी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जो इतने कम समय में अर्थव्यवस्था को बदल सकती है। लेकिन इतना सत्य है कि दिशा सही है, लेकिन हमें धैर्य रखना होगा। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि – अगर एक तेज गति से यात्रा करने वाली कोई ट्रेन U-Turn लेना चाहती है, तो यह पहले धीमी हो जाएगी। यही बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में समान है। भारतीय अर्थव्यवस्था अभी U-Turn ले रही है और इसकी गति धीमी है लेकिन इसके पश्चात नयी गति, नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ती जाएगी।

अन्त्योदय की अवधारणा के साथ विकास
26 मई 2014 को जब देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने शपथ ली तो यह महज राजनीतिक परिवर्तन की तारीख नहीं थी। यह सवा सौ करोड़ देशवासियों की उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं की जिम्मेदारी के दायित्वबोध की तारीख भी थी। इसी कारण मोदी सरकार ने पहले दिन से अपनी कार्य प्रणाली के केंद्र में समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को प्रमुखता दी। बीजेपी के अंत्योदय की अवधारणा को एक नयी धारणा देने का प्रयास किया। स्वतंत्रता के सात दशक बीतने के बावजूद समाज के अंतिम छोर पर खड़ा एक विशाल तबका मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सका था। वर्ष 1969 में बैंकिग क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के बावजूद 45 वर्ष बाद भी देश में एक बड़ा तबका ऐसा था जिसका बैंक खाता तक नहीं खुल सका था। वर्ष 2011 की जनगणना तक देश के लगभग 42 प्रतिशत परिवार ऐसे थे जिनमें किसी भी सदस्य के पास बैंक खाता नहीं था। ये आंकड़े साफ बताते हैं कि स्वतंत्रता के पैसठ वर्षों में देश की बड़ी जनसंख्या को अर्थतंत्र का हिस्सा ही नहीं बनाया गया। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने जनधन योजना के माध्यम से देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था से जोड़ने का एक अभियान शुरू किया।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़े और कड़े कदम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए दृढ़ता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। प्रतिबद्धता के साथ मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों और जनता का शोषण करने वालों पर कार्रवाई की जा रही है। सरकारी योजनाओं में दूर​दर्शिता और समयबद्धता के साथ पारदर्शिता भी स्पष्ट दिखने लगी है। बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 को बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधित अधिनियम, 2016 के माध्यम से व्यापक रूप से संशोधित किया। हजारों करोड़ रुपये की बेनामी संपत्तियों को कुर्क किया गया है, नोटबंदी के बाद लाखों करोड़ रुपये जो कभी banking system में वापस नहीं आते थे वो बैंकों में आ गए हैं। ई-रिटर्न भरने की संख्‍या में वृद्धि हुई है।

तैयार कर रहे अर्थव्यवस्था का पुख्ता आधार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की आर्थिक दशा-दिशा बदलने का प्रयास सतत रूप से जारी है। अर्थव्यवस्था की ‘सफाई’ के साथ ढांचागत बदलाव भी किए जा रहे हैं। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी और विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी जैसे निर्णयों में भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने की क्षमता है। जीएसटी के माध्यम से ‘पूरा देश एक बाजार’ के कंसेप्ट को 01 जुलाई, 2017 से अपना चुका है और वन नेशन, वन टैक्स के दायरे में आ चुका है। वहीं नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को नियमशील यानी formalist होने के लिए मजबूत आधार तैयार किया है। इसके साथ ही कई अन्य तरह के ढांचागत बदलाव हो रहे हैं जो आने वाले समय में भारत के आर्थिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल देंगे।

आतंकवाद और सुरक्षा खतरों पर सतर्क
2008 में, पाकिस्तानी आतंकवादियों के समूह ने मुंबई के ताज महल होटल, सीएसटी, लियोपोल्ड कैफे, नरीमन हाउस और अन्य स्थानों पर हमला कर दिया और आग लगा दी। उन्होंने जाति, पंथ या धर्म को बिना देखे हमले में 300 निर्दोष लोगों की जान ले ली। इनमें से ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। 26/11 के हमलों ने आंतरिक सुरक्षा की कमियों को उजागर कर दिया। एनएसजी कमांडो, पुलिस और सेना के कुछ हिस्सों के बाद 72 घंटों में आतंकवादियों को खत्म कर दिया लेकिन पाकिस्तान का कुछ नहीं कर सके। लेकिन दूसरा दृश्य यह है कि 2 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान में नवाज शरीफ से मिले और फिर लौट आए। लेकिन इसी बीच पठानकोट एयरबेस में आतंकवादियों ने हमला कर दिया। भारतीय संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया। उसके बाद उरी में आर्मी कैंप पर हमला किया गया। भारत ने धैर्य तो दिखाया लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान को करारा जवाब दे दिया। आज पाकिस्तान विश्व समुदाय में अकेला है, उसे पूछने वाला कोई नहीं। अमेरिका, जर्मनी, इजरायल, रूस जैसे देश भी पाकिस्तान की लानत-मलामत कर रहे हैं। पाकिस्तान के कई आतंकियों पर नकेल कसा जा रहा है और कई आतंकवदी संगठनों पर प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं। आतंकवाद को लेकर भारत की बात विश्व समुदाय सुन रहा है और उसे खत्म करने की कई कवायद भी की जा रही है।

सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए प्रयास
2014-15 में प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न देशों की यात्राएं कीं। कई लोगों ने इन यात्राों पर तंज भी कसे और कुछ ने तो उन्हें ‘एनआरआई प्रधानमंत्री’ तक कह डाला, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इसपर बिना ध्यान दिये अपनी यात्रा को व्यापक बना रहे थे। इन यात्राओं में वे तीन प्रमुख एजेंडों के साथ आगे बढ़ रहे थे। देशों के साथ संबंधों में सुधार, निवेश आमंत्रित करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) में भारत की स्थायी सीट के लिए समर्थन जीतना उनका प्रमुख उद्देश्य था। दरअसल भारतीय इतिहास में कोई अन्य प्रधानमंत्री नहीं है जिन्होंने भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए इतनी मेहनत की है। अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों से राजदूत और नेताओं को यात्रा और आमंत्रित करने के बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए लगभग सभी देशों का समर्थन हासिल कर लिया। यह समर्थन इस अंतरराष्ट्रीय मंच की स्थिति के लिए भारत की पात्रता दिखाने के उनके प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम था।

भारत की प्राचीन संस्कृति पर गौरव का अनुभव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 21 जून, 2015 को विश्व के 192 देश जब ‘योगपथ’ पर चल पड़े तो सारे संसार में योग का डंका बजने लगा। आधुनिकता के साथ अध्यात्म का मोदी मंत्र दुनिया के देशों को भी भाया और इसी कारण पीएम मोदी की पहल को 192 देशों का समर्थन मिला। 177 देश योग के सह प्रायोजक के तौर पर इस आयोजन से जुड़ भी गए। अब पूरी दुनिया योग शक्ति से आपस में जुड़ी हुई महसूस होने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनथक प्रयास से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह अनायास नहीं है कि पूरी दुनिया में योग का डंका बज रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत की नीति और भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति से प्रभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है। भारत ने विश्व को आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। शून्य की तरह विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन योग को माना जा रहा है। दरअसल योग एक विचार नहीं बल्कि भारतीय जीवन पद्धति है जिसमें भारतीय जीवन मूल्य यानि संस्कृति समाहित हैं।

दरअसल एक ‘चाय बेचने वाले’ से भारत के प्रधानमंत्री तक की यात्रा तय करने वाले नरेंद्र मोदी ने करोड़ों भारतीयों की कल्पनाओं को पंख लगाए हैं। कई लोग मानते हैं कि वर्तमान में हर कहीं भारत की पहचान और उसका सम्मान प्रधानमंत्री मोदी के कारण है। भारत का मान, भारत की पहचान प्रधानमंत्री मोदी से है… मोदी भारत को भगवान की देन हैं।

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