पूर्वी भारत की राजनीति इन दिनों एक असामान्य करवट ले रही है। विशेषकर पश्चिम बंगाल, जहां सत्ता का समीकरण वर्षों से लगभग स्थिर दिखता था, अब वही जमीन अस्थिर होती जा रही है। एसआईआर ने राज्य की राजनीति को जिस तरह बदल दिया है, वह केवल एक चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है; यह पहचान, सुरक्षा और शासन की विश्वसनीयता से जुड़ा भावनात्मक प्रश्न बन चुका है। बिहार में हुए चुनाव परिणामों और एसआईआर की चर्चा ने एक ऐसा माहौल बना दिया है कि इसके प्रभाव की तरंगें सीधे बंगाल तक पहुंची हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे सामान्य नहीं मान रहे. क्योंकि बंगाल की राजनीति, अपनी जटिलताओं के बावजूद, कभी भी एकाकी नहीं रही। यह हमेशा पड़ोसी राज्यों के प्रभाव और केंद्र–राज्य संबंधों से प्रभावित होती आई है। इसी पृष्ठभूमि में यह सच्चाई भी सामने आने लगी है कि एसआईआर के डर से घुसपैठिए पश्चिम बंगाल छोड़कर भागने लगे हैं। खासकर राज्य के सीमावर्ती जिलों में घुसपैठियों की यह हालत यह आम लोगों की बातचीत का हिस्सा बन चुकी है। एसआईआर की गूंज और घुसपैठ पर सवालिया निशान ने ममता सरकार की बेचैनी और बढ़ा दी है।

तेज रिवर्स माइग्रेशन से कठघरे में ममता बनर्जी की सरकार
पश्चिम बंगाल में एसआईआर के मुद्दे पर अब विमर्श शुरू हो गया है। भाजपा का कहना है कि बांग्लादेशी नागरिकों का पलायन उनके दावे को सच साबित कर रहा है, तो तृणमूल कांग्रेस का पलायन पर बचाव उसे कठघरे में खड़ा कर रहा है। दरअसल, पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर की वजह से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अपने देश लौट रहे हैं। भारत-बांग्लादेश की हकीमपुर सीमा पर जमे बांग्लादेशियों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो 10-15 साल पहले दलालों की मदद से भारत में घुस आए थे। या यह भी कह सकते हैं कि इनको तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था। यही वजह है कि इन्होंने अपने रहने के लिए अस्थायी झुग्गियां बना लीं। फिर दलालों की मदद से आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र भी बनवा लिए। इसके बाद तो कई घुसपैठिए स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। अब जब दो दशक बाद भारत में एसआईआर शुरू हुआ तो बांग्लादेशी नागरिकों ने यहां से पलायन करना शुरू कर दिया। इस रिवर्स माइग्रेशन ने बंगाल में घुसपैठ के विमर्श को धार दे दी है।

नवंबर की शुरुआत से ही लौटने लगे बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी
पश्चिम बंगाल के हकीमपुर में अंतरराष्ट्रीय सीमा से बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों के अपने देश लौटने के मामले में राजनीतिक वाकयुद्ध तेज हो गया है। मतदाता सूची को सुधारने के लिए शुरू किये गये अभियान और घुसपैठ पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आक्रामक रुख अख्तियार किया है। क्योंकि एसआईआर शुरू होने के कुछ ही दिन बाद प्रवासी बांग्लादेशियों के स्वदेश लौटने का सिलसिला शुरू हो गया था। सीमावर्ती जिलों में घुसपैठियों के टोले के टोले की स्वदेश वापसी की तस्वीरें मीडिया में आने लगीं। शुरू में इसे बहुत अधिक तवज्जों नहीं दी गयी, लेकिन अब यह राजनीतिक विमर्श बन गया है, जिसने सीमा चौकी को एक ‘वैचारिक युद्धक्षेत्र’ में बदल दिया है। उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव में भारत-बांग्लादेश सीमा पर, स्थानीय लोगों और सुरक्षाकर्मियों ने बताया कि पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के शुरू होने के बाद नवंबर की शुरुआत से ही बिना दस्तावेज वाले बांग्लादेशियों के वापस लौटने की कोशिशों में वृद्धि हुई है।

मनोवैज्ञानिक दबाव से हर दिन सैकड़ों लोग वापस लौट रहे बांग्लादेश
बीएसएफ के अधिकारियों के मुताबिक एसआईआर के चलते लगभग 150-200 लोग हर दिन बांग्लादेश लौट रहे हैं। कई बार यह संख्या दोगुनी भी हो जाती है। 30 नवंबर 2025 तक लगभग आठ-दस हजार लोग सीमा पार कर चुके हैं। दिसंबर माह में स्वदेश वापसी में और तेजी आने वाली है। बंगाल और बांग्लादेश की सीमा दशकों से संवेदनशील रही है। यहां अवैध आव्रजन कोई नया संकट नहीं, बल्कि ऐसी समस्या है जिसने धीरे-धीरे जनसंख्या संतुलन, रोजगार, स्थानीय राजनीति और कानून-व्यवस्था को प्रभावित किया है। अब एसआईआर के नाम पर छिड़ी राष्ट्रीय बहस ने एक ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा कर दिया है कि सीमावर्ती इलाकों में हलचल साफ देखी जा सकती है। स्थानीय सूत्र बताते हैं कि कई अवैध प्रवासी अपने ठिकानों से गायब हो रहे हैं, और कुछ समूह बांग्लादेश की ओर लौटने की कोशिश में निरंतर लगे हुए हैं।

जीरो लाइन की ओर बढ़ते लोग अवैध घुसपैठ की पुष्टि कर रहे – भाजपा
भाजपा का कहना है कि अपने छोटे-छोटे बैग और बच्चों को थामे जीरो लाइन की ओर बढ़ते लोगों की तस्वीरें पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ के उसके दावे को पुख्ता करती हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी यही तो कह रही है। एसआईआर ने घुसपैठियों को हिलाकर रख दिया है। आखिरकार सच्चाई सामने आ रही है। वे इसलिए जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पकड़े जाने का डर है। भाजपा का कहना है कि अवैध रूप से बसे बांग्लादेशियों ने चुनावी जनसांख्यिकी को बदला है। अब एसआईआर ने रिवर्स माइग्रेशन को तेजी दी है। भाजपा का मानना है कि ये दृश्य उसके इस दावे को पुष्ट करते हैं कि ‘अवैध रूप से बसे बांग्लादेशियों’ ने दशकों से पश्चिम बंगाल की चुनावी जनसांख्यिकी को बदल दिया है। भाजपा प्रवक्ता कीया घोष ने कहा कि बांग्लादेशियों का वापस जाना उनके दावे को किसी संदेह के परे साबित करता है। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची से हजारों नामों का हटना भी भाजपा की बात को साबित करता है।

तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला ममता बनर्जी का खेमा बहुत बैचेन
इसके राजनीतिक निहितार्थ बहुत गहरे हैं। क्योंकि ऐसा मानना है कि तुष्टिकरण की नीति के चलते स्थानीय सरकार ने इन्हें प्रश्रय दिया हुआ था। इसीलिए सबसे ज्यादा बेचैनी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक खेमे में देखी जा रही है। ममता सरकार की राजनीति एक लंबे समय से विशिष्ट समुदायों के समर्थन पर टिकी रही है, और विपक्ष का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस ने “तुष्टिकरण” की नीति को शासन का स्थायी सूत्र बना दिया। यही कारण है कि जैसे ही घुसपैठ का सवाल राष्ट्रीय विमर्श में उभरा, तृणमूल कांग्रेस के भीतर असहजता बढ़ने लगी। ममता बनर्जी का एसआईआर के खिलाफ तीखा रुख इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा उनके पारंपरिक वोट बैंक को अस्थिर कर सकता है। बंगाल की सामाजिक संरचना में अवैध प्रवासियों का प्रश्न हमेशा से संवेदनशील रहा है, लेकिन इस बार कथा बदल चुकी है। अब यह केवल सुरक्षा या पहचान का सवाल नहीं, बल्कि सीधा राजनीतिक अस्तित्व का सवाल बन गया है।

बिहार में भाजपा की जीत की हवा बदले बंगाल में भी जमीनी समीकरण
यह भी सच है कि पड़ौसी राज्य बिहार में भाजपा-एनडीए की प्रचंड जीत ने इस बहस में एक नई परत जोड़ दी है। वहां के चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया कि नागरिकता, सीमा सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संतुलन जैसे मुद्दे अब केवल भाषणों में नहीं रह गए। ये सीधे मतदान को प्रभावित कर रहे हैं। रिजल्ट को प्रभावित कर रहे हैं। बिहार में भाजपा की सफलता और एसआईआर के प्रति सकारात्मक रुझान ने बंगाल में भाजपा को नई ऊर्जा दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार की हवा ने बंगाल में भी जमीन के समीकरण बदलने शुरू कर दिए हैं। भाजपा अब घुसपैठ और एसआईआर को एक केंद्रीय मुद्दे के रूप में पेश कर रही है, और तृणमूल कांग्रेस इस सच्चाई को रोक पाने में फिलहाल कमजोर दिख रही है।

ममता की स्थिति इधर गिरे को कुआ, उधर गिरे तो खाई जैसी
दरअसल, ममता बनर्जी की सरकार पहले ही कई स्तरों पर दबाव झेल रही है। सत्ता-विरोधी भावनाएं स्वाभाविक रूप से बढ़ रही थीं, ऊपर से भ्रष्टाचार के आरोप, कट-मनी संस्कृति, शिक्षक भर्ती घोटाले और प्रशासनिक विफलताएं लगातार तृणमूल कांग्रेस की छवि को चोट पहुंचा रही हैं। और अब एसआईआर तथा घुसपैठ का मुद्दा इस दबाव को और तीखा कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि यदि वह अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाती है, तो उसका पारंपरिक वोट खिसक सकता है। और यदि विरोध करती है, तो भाजपा इस मुद्दे को और तेजी से भुनाएगी। तृणमूल कांग्रेस की स्थिति कुआ और खाई वाली हो गई है। यही कारण है कि ममता सरकार की प्रतिक्रिया कभी आक्रामक, कभी बचाव का रूप ले रही है। लेकिन इस सबसे उनकी राजनीतिक असुरक्षा को साफ तौर पर उजागर हो रही है।

भाजपा संगठनात्मक, रणनीतिक और आक्रामकता के साथ मैदान में उतरी
इसके विपरीत भाजपा का अंदाज पहले से ज्यादा आत्मविश्वासपूर्ण दिखाई देता है। वह घुसपैठ को सीधे बंगाल की “पहचान” और “सुरक्षा” से जोड़ रही है, और एसआईआर को इस समस्या का समाधान बताने में कोई संकोच नहीं कर रही। पूरी तरह सच में लिपटा यह नेरेटिव राज्य के उस बड़े वर्ग को प्रभावित कर रहा है, जो वर्षों से अवैध आव्रजन के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से परेशान रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह चर्चा और गहरी है, जहां जनसंख्या संतुलन में तेज बदलाव महसूस किया गया है। भाजपा इस असंतोष को संगठित राजनीतिक ऊर्जा में बदलने की कोशिश कर रही है, और बिहार का परिणाम उसे यह विश्वास दिलाता है कि यह रणनीति काम कर सकती है। अब सवाल यह है कि इन बदलते समीकरणों का बंगाल के चुनावी भविष्य पर क्या असर पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस इस बार उतनी सहज स्थिति में नहीं है जितनी पहले रही है। भाजपा संगठनात्मक, रणनीतिक तौर पूरी आक्रामकता के साथ मैदान में उतर चुकी है। उसकी संगठनात्मक शक्ति बढ़ी है, और केंद्रीय नीतियों के प्रति जनता का विश्वास उसे ऊर्जा दे रहा है। वहीं तृणमूल कांग्रेस आंतरिक चुनौतियों, भ्रष्टाचार के आरोपों और नेतृत्व की विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है। ऐसे में घुसपैठ और एसआईआर का मुद्दा चुनावी समीकरण को निर्णायक रूप से प्रभावित करेगा।

घुसपैठ का सवाल अब सुरक्षा, पहचान और भावनाओं से जुड़ा
यह कहना गलत नहीं होगा कि बंगाल अब एक ऐसी राजनीतिक दहलीज़ पर खड़ा है जहां एक छोटी सी हवा का झोंका भी बड़ी करवट का कारण बन सकता है। सीमाओं से लेकर गांवों तक, और कोलकाता से लेकर उत्तर बंगाल तक चर्चाओं का एक नया स्वर उभर रहा है। सुरक्षा, पहचान और शासन की विश्वसनीयता। और इसी स्वर ने राजनीति की धारा बदलनी शुरू कर दी है। आने वाले महीनों में बंगाल की राजनीति और अधिक तीखी और धारदार होने वाली है। घुसपैठ का सवाल अब सिर्फ एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं रहा; यह अब उन लोगों की भावनाओं से जुड़ा है जो अपनी सांस्कृतिक विरासत, जनसंख्या संतुलन और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। तृणमूल कांग्रेस के लिए यह संकट किसी एक मोर्चे का नहीं, बल्कि बहुआयामी है। और भाजपा के लिए यह अवसर किसी एक चुनाव का नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला है।

ममता सरकार और टीएमसी नेता बीएलओ को तरह-तरह से धमका रहे
पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR का काम शांतिपूर्वक पूरा ना हो, इसके लिए ममता सरकार और टीएमसी नेताओं द्वारा बीएलओ को तरह-तरह से धमकाकर इसमें अड़चने पैदा की जा रही हैं। चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने बुधवार को इस बारे में जानकारी दी। अधिकारी ने बताया है कि पश्चिम बंगाल में नवीनतम वोटर लिस्ट की तुलना जब पिछली SIR प्रक्रिया के दौरान साल 2002 और 2006 के बीच विभिन्न राज्यों में तैयार की गई लिस्ट से की गई। तब जाकर वोटर लिस्ट की ये विसंगति सामने आई है कि 26 लाख से अधिक वोटर्स के नाम 2002 की वोटर लिस्ट से मेल नहीं खा रहे हैं। निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार, राज्य में वर्तमान में जारी SIR की प्रक्रिया के तहत बुधवार दोपहर तक पश्चिम बंगाल में छह करोड़ से अधिक गणना प्रपत्र अपलोड कर दिए गए थे।

अब तक प्रदेश के 26 लाख से अधिक वोटर्स के नामों का मिलान नहीं
चुनाव आयोग के अधिकारी ने बताया है- “पोर्टल पर अपलोड होने के बाद, इन प्रपत्रों को ‘मैपिंग’ प्रक्रिया के तहत लाया जाता है, जहां इनका मिलान पिछले एसआईआर रिकॉर्ड से किया जाता है। शुरुआती निष्कर्षों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में लगभग 26 लाख से अधिक मतदाताओं के नामों का मिलान अब भी पिछले एसआईआर चक्र के आंकड़ों से नहीं किया जा सका है।” चुनाव आयोग ने हाल ही में जानकारी दी थी कि विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR के दूसरे चरण का आयोजन पश्चिम बंगाल समेत 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जाएगा, जहां अगले साल चुनाव होने है। SIR की प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू होकर 4 दिसंबर तक चलेगी। मतदाता सूची का मसौदा 9 दिसंबर को जारी किया जाएगा और अंतिम मतदाता सूची 7 फरवरी को प्रकाशित की जाएगी।

एसआईआर के 10.33 लाख फॉर्म जमा नहीं कराए गए – CEO
इससे पहले भी राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) मनोज कुमार अग्रवाल ने कहा कि लाखों फॉर्म जमा नहीं हुए हैं। ये इसलिए ‘जमा नहीं कराए जा सके’ क्योंकि वोटर या तो गैर-हाजिर रहे, डुप्लीकेट थे या फिर वोटर्स की मौत हो चुकी है या हमेशा के लिए ये लोग कहीं और चले गए हैं। सीईओ अग्रवाल ने कहा कि एसआईआर फॉर्म के जमा कराने और डिजिटलाइज का काम जारी है। अभी तक इनमें से 10.33 लाख फॉर्म ऐसे रहे जिन्हें वापस जमा नहीं कराया गया है। यह रियल-टाइम डेटा है।” उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल में अब तक 7.64 करोड़ एसआईआर फॉर्म बांटे जा चुके हैं। जमा कराने वाले फॉर्म के बारे में विस्तार से बताते हुए सीईओ ने कहा कि अभी के लिए, ‘जमा नहीं कराए गए’ फॉर्म बांटे गए कुल फ़ॉर्म का महज 1.35 फीसदी है। अग्रवाल ने वोटर रोल के SIR प्रक्रिया में लगे बूथ-लेवल ऑफिसर (BLO) की भूमिका की भी तारीफ की और कहा कि वे इस काम के असली हीरो हैं।

80,600 बीएलओ लगाए, कनेक्टिविटी के लिए Wi-fi हब बनाए
उन्होंने कहा कि कई बूथ-लेवल ऑफिसर ऐसे भी हैं जो वोटर्स तक पहुंचने और फॉर्मैलिटी पूरी करने के लिए ऑफिस टाइम के बाद भी लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “बूथ-लेवल ऑफिसर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। SIR प्रक्रिया के असली हीरो यही लोग हैं। यह प्रक्रिया 4 नवंबर को शुरू की गई थी और महज 20 दिनों के अंदर, वे 7 करोड़ से ज्यादा वोटर्स तक पहुंच गए, जो कोई आसान काम नहीं है।” राज्य में SIR के लिए 80,600 से अधिक बीएलओ, के साथ-साथ 8,000 सुपरवाइजर, 3,000 असिस्टेंट इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर और 294 इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स को लगाया गया है। इस प्रक्रिया के दौरान बीएलओ को आसानी से कनेक्टिविटी के लिए Wi-fi हब बनाए गए हैं। उनका कहना है कि BLO को डेटा एंट्री में मदद करने के लिए DM, ERO और BDO ऑफिस में हेल्प डेस्क भी हैं, जहां कहीं भी इंटरनेट की दिक्कतें हैं, वहां अलग से Wi-fi हब हैं।”

पश्चिम बंगाल की वोटर लिस्ट में फर्जी नाम 1.04 करोड़ से ज्यादा- रिपोर्ट
मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर देशभर में सियासी हलचल तेज हो गई है। बीजेपी का आरोप है कि यह महज लापरवाही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों की सुनियोजित साजिश है, जिसका मकसद लोकतंत्र को कमजोर करना है। बिहार में चुनावी साल के बीच पश्चिम बंगाल में यह मुद्दा और भी गंभीर हो गया है, जहां ममता बनर्जी की सरकार पर फर्जी वोटरों के सहारे चुनाव परिणाम प्रभावित करने का आरोप लगाया जा रहा है। बीजेपी का कहना है कि बंगाल में फ्री एंड फेयर चुनाव तभी संभव है, जबकि एसआईआर पूरी तरह से सुनिश्चित हो। एक स्टडी रिपोर्ट ने बीजेपी के इन आरोपों को और बल दिया है। रिपोर्ट में सामने आए तथ्य के आधार पर चुनाव आयोग से तुरंत सख्त कार्रवाई की मांग हो सकती है। अगस्त 2025 में आई इस स्टडी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल की 2024 की वोटर लिस्ट में करीब 1.04 करोड़ फर्जी नाम दर्ज हैं। यह कुल वोटरों का लगभग 13.7% हिस्सा है। रिपोर्ट में सामने आया है कि 2004 में 4.74 करोड़ वोटर थे, 2024 तक 6.57 करोड़ (जनसंख्या, उम्र,मौत और नए 18 साल के वोटरों को जोड़कर) होने चाहिए थे। इस रिपोर्ट को एस पी जैन, इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च, मुंबई के विधु शेखर और आईआईएम विशाखापट्टनम के मिलन कुमार ने तैयार किया। इस स्टडी में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिसमें बहुत से मृत लोगों के नाम अब भी वोटर लिस्ट में दर्ज हैं। कई नाबालिग और राज्य छोड़ चुके लोग भी वोटर के तौर पर मौजूद हैं। कुछ जिलों में तो वोटरों की संख्या वहां की वास्तविक आबादी से भी ज्यादा पाई गई।










