Home पोल खोल …तो अब पी चिदंबरम भी जाएंगे जेल !

…तो अब पी चिदंबरम भी जाएंगे जेल !

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यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए पी चिदंबरम ने फर्जीवाड़ों और घोटालों के जो खेल किए उसके परिणाम अब जल्दी ही दिखने वाले हैं। दरअसल जांच एजेंसियों की राडार चढ़ चुके चिदंबरम के लिए मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं। कहा तो जा रहा है कि पूर्व वित्त मंत्री ही अनेकों घोटालों के सूत्रधार रहे हैं, क्योंकि उन्होंने जानकारी होने के बावजूद ऐसे कई काम किए जो देश के खजाने को नुकसान पहुंचाने वाले थे। खबर ये है कि अब जल्दी ही जेल भी जा सकते हैं!

सोना आयात स्कीम में फर्जीवाड़ा
तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने यूपीए सरकार के दौरान गोल्ड इम्पोर्ट स्कीम में 80:20 औसत की छूट दी थी। जिसका बैंक फ्रॉड के आरोपियों ने बखूबी फायदा उठाया। गौर करने वाली बात ये भी है चिदंबरम ने आचार संहिता लागू होने और 16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित होने से ठीक पहले 13 मई 2014 को मोडिफाइड स्कीम को मंजूरी दी थी। इससे देश में सोने के आयात में वृद्धि हुई और इस वजह से वित्त वर्ष 2012-13 के करंट अकाउंट डेफिसिट पर दबाव बढ़ा। 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान कंपनियों को यह छूट दिए जाने के कारण उन्हें केवल 6 महीने में 4,500 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ हुआ।

80-20 नीति का नाजायज लाभ
अगस्त, 2013 में यूपीए-2 की सरकार ने 80:20 नियम लागू किया था। इस नियम के तहत व्यापारी उसी स्थिति में सोने का आयात कर सकते थे, जबकि उन्होंने अपने पिछले आयात का 20 प्रतिशत सोना निर्यात किया हो। लेकिन इस योजना के क्रियान्वयन में चिदंबरम ने ‘अनैतिक’ रास्ता अपनाया और अपने चहेतों को लाभ पहुंचाया। दरअसल 16 मई 2014 को जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आ रहे थे और कांग्रेस नीत यूपीए की हार हो चुकी थी, उसी दिन तत्कालीन वित्त मंत्री ने 7 कंपनियों को गोल्ड स्कीम में एंट्री दे दी। सवाल उठ रहे हैं कि पी चिदंबरम ने ऐसा क्यों किया?

सीएजी की रिपोर्ट पर एक्शन नहीं
2013 में लॉन्च की गई 80:20 गोल्ड आयात स्कीम को लेकर राजस्व खुफिया महानिदेशालय (डीआरआई) ने आपत्ति की थी, लेकिन इसके बावजूद उसे लागू किया गया। गौरतलब है कि डीआरआई ने इस आधार पर इस स्कीम का विरोध किया था कि इससे काले धन की राउंड ट्रिपिंग (काला धन को सफेद बनाना) और मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा मिलेगा। इतना ही नहीं सीएजी ने वित्त मंत्रालय को यह जानकारी दे दी थी कि सीएजी रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि जूलर्स को 1 अमेरिकी डॉलर की कमाई के लिए सरकार को ड्यूटी के रूप में 221.75 रुपये का खर्च वहन करना पड़ता है। बावजूद इसके इस स्कीम को आने दिया गया और कारोबारियों को फायदा पहुंचाया गया।

नीरव मोदी-मेहुल चोकसी से ‘अनैतिक रिश्ते’
80:20 स्कीम के तहत जिन 7 कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया उनके भगोड़े घोटालेबाज नीरव मोदी और मेहुल चोकसी से संबंध हैं। दरअसल इस योजना का इस्तेमाल चोकसी सहित अन्य जूलर्स ने ब्लैक मनी की राउंड ट्रिपिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया। राउंड ट्रिपिंग का मतलब है कि कालाधन देश के बाहर जाता है और व्हाइट बनकर वापस लौटता है। बड़ी बात ये है कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम इससे अवगत थे और उन्हों ने इस अनियमितता को खुलेआम होने भी दिया।

फर्जीवाड़े की होगी सीबीआई जांच
सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्कीम को नवंबर, 2014 में में ही बंद कर दिया था। सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली लोक लेखा समिति (पीएसी) की एक उप समिति ने तत्कालीन वित्त मंत्री द्वारा इस स्कीम को लॉन्च करने की प्रक्रिया की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश करने का फैसला किया है।

एयरसेल-मैक्सिस डील में किया घोटाला
2006 में मलयेशियाई कंपनी मैक्सिस द्वारा एयरसेल में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के मामले में रजामंदी देने को लेकर चिदंबरम पर अनियमितताएं बरतने का आरोप है। इस डील के लिए तयशुदा प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया। इसके तहत, एफडीआई से संबंधित प्रस्ताव को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी को मंजूरी के लिए भेजा जाना था। हालांकि, ऐसा नहीं किया गया, जबकि यह डील 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की थी। एफआइपीबी नियम के तहत वित्तमंत्री केवल 600 करोड़ रुपये तक विदेशी निवेश को मंजूरी दे सकते थे, इससे अधिक के क्लीयरेंस के लिए आर्थिक मामलों का मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी जरूरी है। लेकिन वित्तमंत्री रहते हुए पी चिदंबरम ने एयरसेल में मैक्सिस ग्रुप को 3500 करोड़ रुपये के विदेश निवेश को मंजूरी दे दी। इसके बाद एफआइपीबी क्लीयरेंस की सभी फाइलों की पड़ताल शुरू हुई, तो एक-के-बाद एक घोटाले के सूत्र उजागर होने लगे।

सात अन्य मामलों में दर्ज हो सकती है FIR
दरअसल पी चिदंबरम यूपीए सरकार में मई 2004 से 2009 और अगस्त 2012 से मई 2014 के बीच दो बार वित्तमंत्री थे। ईडी ने पी चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते हुए दिये गए कुल 2721 एफआइपीबी क्लीयरेंस की पड़ताल की थी। इनमें 54 मामले संदेहास्पद पाए थे। ईडी ने इन सभी मामले की फाइल एफआइपीबी से तलब की और उनकी गहन पड़ताल की। यही नहीं, एफआइपीबी के तत्कालीन अधिकारियों को भी तलब कर पूछताछ की गई। अंत में कुल आठ ऐसे मामले मिले जिनमें सीधे तौर पर गड़बड़ी के सबूत मिले थे। ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा जिन आठ मामले को सीबीआइ के पास जांच शुरू करने के लिए भेजा गया है, उन सभी मामलों में एफआइपीबी क्लीयरेंस पाने वाली कंपनियों की ओर से कार्ति चिदंबरम और उनकी सहयोगी की कंपनियों में निवेश किया गया था।

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