प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किसानों की आर्थिक उन्नति की दिशा में सरकार गंभीरता से काम कर रही है। किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलाने के साथ-साथ उनकी आय के वैकल्पिक साधनों को बढ़ाने पर पूरी ध्यान दिया जा रहा है। पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन जैसे क्षेत्रों में बीते चार वर्षों में अभूतपूर्व कार्य किए गए हैं। अब मोदी सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए मत्स्य पालन के क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 7,522 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने फिसरीज एंड एक्वाकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफआइडीएफ) को मंजूरी दे दी गई। इसके तहत वर्ष 2022-23 तक सालाना दो करोड़ टन मछली का उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मोदी सरकार के इस फैसले से मत्स्य पालन को बढ़ावा मिलेगा और इस क्षेत्र में 9.4 लाख नए रोजगार सृजित होंगे। एफआइडीएफ के तहत 5,266 करोड़ रुपये रियायती कर्ज से मिलेंगे, जबकि 1,316 करोड़ रुपये का निवेश लाभार्थी खुद करेंगे।
मत्स्य पालन के लिए गठित फंड का उपयोग समुद्री मछली पालन से लेकर देश के अंदरूनी हिस्से में मछली पालन में किया जा सकेगा। इसका उद्देश्य वर्ष 2020 तक 1.5 करोड़ टन मछली का उत्पादन करना और नीली क्रांति को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है। मोदी सरकार मछली उत्पादन को बढ़ाकर आठ से नौ फीसद तक पहुंचाना चाहती है। गौरतलब है कि देश में फिलहाल सालाना 1.2 करोड़ टन मछली का उत्पादन होता है।
मोदी सरकार हमेशा खेती-किसानी की बेहतरी के बारे में सोचती है। केंद्र सरकार के लिए किसान कल्याण सर्वोपरि है। यही वजह है कि कृषि के क्षेत्र में देश लगातार नए मकाम हासिल कर रहा है। एक नजर डालते हैं किसान कल्याण के लिए उठाए गए सरकार के अहम कदमों पर और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया पर
किसान कल्याण को समर्पित मोदी सरकार, रबी फसलों की MSP में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने, फसल की उचित कीमत दिलाने और फसल की लागत को कम करने में लगी हुई है। बीते चार वर्षों में मोदी सरकार ने किसान कल्याण को लिए अनेक कदम उठाए हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही खरीफ की फसलों की एमएसपी डेढ़ गुना से अधिक करने बाद मोदी सरकार ने रबी की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाने का ऐलान किया है।
रबी की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य | ||
फसल का नाम | वृद्धि(रुपये/क्विंटल) | नई MSP (प्रति क्विंटल) |
गेहूं | 105 रुपये | 1,840 रुपये |
जौ | 30 रुपये | 1,440 रुपये |
चना | 220 रुपये | 4,620 रुपये |
मसूर | 225 रुपये | 4,475 रुपये |
सरसों | 200 रुपये | 4,200 रुपये |
सूरजमुखी | 845 रुपये | 4,945 रुपये |
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में रबी की फसलों का एमएसपी बढ़ाने का निर्णय लिया गया। सरकार के ताजा फैसले के मुताबिक, गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 105 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दिया गया है। वहीं, चने की एमएसपी 220 रुपये प्रति क्विंटल, मसूर की 225 रुपये प्रति क्विंटल और सरसों की एमएसपी प्रति क्विंटल 200 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाई गई है। कुल मिलाकर मोदी सरकार ने रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में रिकॉर्ड 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।
किसानों को होगा 62,635 करोड़ रुपये का फायदा
मोदी सरकार के इस फैसले से देश के किसानों को 62,635 करोड़ रुपये का फायदा होगा। आपको बता दें कि मौजूदा फसल वर्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का फैसला कृषि लागत एवं कीमत आयोग (सीएसीपी) के सुझाव पर लिया गया है। जाहिर है कि रबी फसलों की एमएसपी में वृद्धि का फैसला, किसानों की आमदनी बढ़ाने के केंद्र सरकार के संकल्प को दिखाता है। रबी की सभी फसलों की एमएसपी उनकी उत्पादन लागत के 50 से लेकर 112 प्रतिशत तक है।
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध मोदी सरकार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार हर पल किसानों की उन्नति के लिए कार्य कर रही है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध मोदी सरकार ने पिछले महीने ही नई अनाज खरीद नीति को मंजूरी दी है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (PM-AASHA) के तहत राज्यों को एक से ज्यादा स्कीमों का विकल्प दिया जाएगा। अगर, बाजार की कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे जाती हैं तो सरकार एमएसपी को सुनिश्चित करेगी और किसानों के नुकसान की भरपाई भी करेगी। यह स्कीम राज्यों में तिलहन उत्पादन के 25% हिस्से पर लागू होगी।
कैबिनेट ने आज ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (PM-AASHA) को मंजूरी दे दी है। इस अंब्रेला स्कीम से हमारे किसान और अधिक सशक्त होंगे, जिससे कृषि क्षेत्र को और मजबूती मिलेगी। https://t.co/Vhw1fcqzTo
— Narendra Modi (@narendramodi) 12 September 2018
धान के एमएसपी में इस साल 200 रुपये की बढ़ोतरी
इस साल बजट में सरकार ने कहा था कि किसानों को समर्थन मूल्य का फायदा दिलाने के लिए पुख्ता व्यवस्था की जाएगी। समर्थन मूल्य नीति के तहत सरकार हर साल खरीफ और रबी की 23 फसलों के समर्थन मूल्य तय करती है। सरकार ने जुलाई में फसल की लागत का डेढ़ गुनाम दाम दिलाने का वादा पूरा किया था। इसके तहत धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 200 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ा दिया था।
देश का हर नागरिक हमारे मेहनतकश किसानों का आभारी है। हम 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के सपने को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। किसानों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। pic.twitter.com/2t8A65g46H
— Narendra Modi (@narendramodi) 12 September 2018
कैबिनेट के कुछ और अहम फैसले
*एथेनॉल के दाम तय करने का तरीका बदलेगा
*सी-हेवी शीरे के दाम घटाकर 43.46 रुपए लीटर
*बी-हेवी शीरे के दाम बढ़ाकर 52.43 रुपए लीटर
*चीनी की जगह एथेनॉल बनाने पर फायदा
*एथेनॉल बनाने वाली मिलों के लिए दाम 59.19 रुपए लीटर
मोदी सरकार ने किसानों से किए गए वादे को किया पूरा। मा. प्रधानमंत्री श्री @narendramodi के नेतृत्व में मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) को दी मंजूरी। अब किसानों को मिलेगा अपनी फसल का उचित दाम। #DoublingFarmersIncome #CabinetDecision #Cabinet pic.twitter.com/LZrPiyldnh
— Radha Mohan Singh (@RadhamohanBJP) 12 September 2018
मोदी सरकार का ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे मोटे अनाज की पैदावार बढ़ाने पर जोर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार जहां एक तरफ किसानों की आय बढ़ाने में लगी है, वहीं दूसरी तरफ जन-जन को पोषक भोजन उपलब्ध कराने के लिए भी काम कर रही है। मोदी सरकार ने किसानों और देश के विकास के लिए एक बड़ा प्लान तैयार किया है। इस प्लान के तहत गेहूं और चावल के बाद देश की खाद्य सुरक्षा का पूरा दारोमदार अब पोषक मोटे अनाज पर होगा। सरकार ने इसके लिए पोषक अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए उप मिशन शुरु किया है। इसके तहत देश के 14 राज्यों के दो सौ से अधिक जिलों को चिन्हित किया गया है। इन राज्यों की जलवायु मोटे अनाज की खेती के अनुकूल है। सरकार की तरफ से अब मोटे अनाज वाली फसलों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसी को देखते हुए वर्ष 2018 को पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है।
सूखा प्रभावित जिलों में मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन
अपको बता दें कि मोदी सरकार ने पहली बार मोटे अनाज वाली फसलों के समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोतरी की है। सरकार के इस फैसले के बाद देश में इन फसलों की बुआई का क्षेत्र बढ़ने की संभावना है। पिछले फसल वर्ष के दौरान रिकॉर्ड 4.70 करोड़ टन मोटे अनाज का उत्पादन हुआ था। सरकार इसे और बढ़ाना चाहती है और इसके लिए उन 200 जिलों को चिन्हित किया गया है, जो ज्यादातर सूखे की चपेट में रहते हैं। जाहिर है कि मोटे अनाज की खेती में अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। इसके तहत मोदी सरकार ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी और जौ जैसी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए उन्नत प्रजाति के बीज मुहैया कराएगी। जाहिर है कि इससे इन फसलों की पैदावार बढ़ेगी। आपको बता दें कि सरकार ने स्वास्थ्य की दृष्टि से मोटे अनाज को पौष्टिक अनाज की श्रेणी में डाला है, इससे इन फसलों की मांग में तेजी से इजाफा हो रहा है।
मोदी सरकार की नीतियों से देश में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने बीते चार वर्षों में खेती-किसानी के क्षेत्र में इतना काम किया है, जितना पहले किसी भी सरकार ने नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी की सोच रही है कि बीज से लेकर बाजार तक किसानों को वो हर सुविधा मिले जिससे फसल का उत्पादन बढ़े और किसानों की आय बढ़े। बीचे चार वर्षों से की जा रही कोशिशों का नतीजा भी अब सामने आ गया है। फसल वर्ष 2017-18 में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 28.48 करोड़ टन रहा है, जो अब तक का सबसे अधिक उत्पादन है। कृषि मंत्रालय ने मानसून सामान्य रहने के बाद गेहूं, चावल, मोटे अनाज और दालों का भी रिकॉर्ड उत्पादन होने की उम्मीद जताई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017-18 में गेहूं का उत्पादन 9.97 करोड़ टन, चावल का उत्पादन 11.29 करोड़ टन और दाल उत्पादन 2.52 करोड़ टन होने का अनुमान है। आपको बता दें कि वर्ष 2016-17 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 27.51 करोड़ टन रहा था।
कृषि मंत्रालय की ओर से जारी चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में मक्का का भी रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। इस साल देश में मक्का उत्पादन 2.87 करोड़ टन अनुमानित है। मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक, 2017-18 में कुल दलहन उत्पादन 2.52 करोड़ टन अनुमानित है, जिसमें 1.12 करोड़ टन चना और 35.6 लाख टन उड़द है। पिछले साल देश में 2.31 करोड़ टन दलहन का उत्पादन हुआ था। वर्ष 2017-18 के लिए मोटे अनाज का उत्पादन अनुमान 21.2 लाख टन बढ़ाकर रिकॉर्ड चार करोड़ 70 लाख टन किया गया है। यह उत्पादन अनुमान वर्ष 2016-17 के दौरान चार करोड़ 38 लाख टन के उत्पादन से अधिक है।
2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना आसान: नाबार्ड सर्वे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर यानि कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य तय कर रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनकी सरकार ने किसान हितैषी कई योजनाओं पर प्रभावी तरीके से अमल करके दिखाया है। इसका परिणाम ये आया है कि लक्ष्य तय समयसीमा से पहले भी पूरा होने की उम्मीद है। इस बात की तस्दीक करती है हाल में आई राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (NABARD) की एक सर्वे रिपोर्ट।
सर्वे नतीजों में छुपी किसानों की तरक्की
नाबार्ड के सर्वे के जो नतीजे हैं वे देश में किसानों की तरक्की की कहानी कहते हैं। सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि पहले के मुकाबले देश के छोटे और सीमांत किसानों की आय में उत्साहजनक वृद्धि देखी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में 48 प्रतिशत किसान परिवार हैं जिनकी 2015-16 में वार्षिक आय 1.07 लाख रुपये हो गई। 2012-13 में यह आय महज 77.11 हजार रुपये थी। 29 राज्यों में से 19 में आय में बढ़ोतरी की दर 12 प्रतिशत से ऊपर दर्ज की गई जबकि बाकी में 10.5 प्रतिशत।
मौजूदा रफ्तार से आय दोगुनी से भी ऊपर होगी
नाबार्ड हर तीन साल में यह सर्वे कराता है। इस अखिल भारतीय समावेश सर्वेक्षण (NAFIS) के आधार पर रिपोर्ट जारी की जाती है। यह सर्वेक्षण 2016-17 में देश भर में किया गया था जिसमें 40,327 ग्रामीण परिवार शामिल थे। इस सर्वे से सामने आई 12 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर सीधे-सीधे यही बता रही है कि अगर मौजूदा रफ्तार भी बनी रही तो, 2022 में किसानों की आय दोगुनी से कहीं आगे भी जा सकती है। गौर करने वाली बात है कि अन्नदाताओं की आय को दोगुना करने के लिए 10.4 प्रतिशत की वृद्धि दर की ही जरूरत है।
मोदी सरकार की कृषि नीतियों पर मुहर
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर अशोक दलवई का कहना है कि नाबार्ड की रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए मोदी सरकार की नीतियां सही दिशा में जा रही हैं। उनका कहना है कि किसानों की उपज को आय में तब्दील करने के प्रयासों के उम्मीद से बेहतर नतीजे सामने आ रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आय वृद्धि दर 10.4 प्रतिशत रखी गई है और जो सर्वे से जो वृद्धि दर सामने आई है वह उससे कहीं अधिक है।
लागत से डेढ़ गुना एमएसपी भरेगी नई रफ्तार
गौर करने वाली बात है सरकार ने किसानों की डबल इनकम के लिए कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही ऐसे कई और उपाय किए हैं जिनसे उनकी अतिरिक्त आय हो सके। सरकार के कदमों में सबसे नया है एमएसपी को लागत का डेढ़ गुना किया जाना। कुछ फसलों के मामलों में तो इसे लागत के दोगुने तक भी किया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसानों को डेढ़ गुना मूल्य देने के लिए बाजार मूल्य और एमएसपी में अंतर की रकम सरकार वहन करेगी। सरकार का पूरा प्रयास है कि खेत से उपभोक्ता तक सामान की जो कीमत बढ़ती है उसका लाभ किसानों को मिले।
‘बीज से बाजार’ तक की महत्वपूर्ण पहल
किसानों को सशक्त करने के लिए ‘बीज से बाजार तक’ मोदी सरकार की एक अनुपम पहल है। जैसा कि नाम से भी स्पष्ट है, इस पहल के अंतर्गत पूरे फसल चक्र में किसानों के लिए कृषि कार्य को आसान बनाने की व्यवस्था है। यानि किसानों के लिए बीज हासिल करने से लेकर उपज को बाजार में बेचने तक का प्रावधान है। इस व्यवस्था में सबसे पहले बुआई से पहले किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखा गया है जिसमें कृषि ऋण की उपलब्धता महत्वपूर्ण है। मोदी सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के बजट में कृषि ऋण के रूप में रिकॉर्ड 11 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है।
उपज की उचित बिक्री के इंतजाम पर जोर
देश में 86 प्रतिशत से ज्यादा छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए इन्हें ध्यान में रखते हुए मौजूदा सरकार का इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर है। इसके लिए सरकार 22 हजार ग्रामीण हॉट को ग्रामीण कृषि बाजार में बदलने की तैयारी चल रही है जिसके बाद इन्हें APMC और e-NAM प्लेटफॉर्म के साथ इंटीग्रेट कर दिया जाएगा। 2,000 करोड़ रुपये से कृषि बाजार और संरचना कोष का गठन होगा। e-NAM को किसानों से जोड़ा गया है, ताकि किसानों को उनकी उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके। अब तक देश की लगभग 585 मंडियों को ऑनलाइन जोड़ा जा चुका है। e-Nam से जुड़ने वाली हर मंडी को 75 लाख रुपये की मदद का प्रावधान है। इसके साथ ही कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य भी सरकार ने रखा है।
किसान संपदा योजना से सप्लाई चेन को मजबूती
मोदी सरकार प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के जरिए खेत से लेकर बाजार तक पूरी सप्लाई चेन को मजबूत कर रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना शुरू की गई जिसका उद्देश्य कृषि उत्पादों की कमियों को पूरा करना, खाद्य प्रसंस्करण का आधुनिकीकरण करना है। 6,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना से वर्ष 2019-20 तक करीब 334 लाख मीट्रिक टन कृषि उत्पादों का संचय किया जा सकेगा। इससे देश के 20 लाख किसानों को लाभ होगा और बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी निकलने वाले हैं। गौर करने वाली बात है कि इस योजना को फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में 100 प्रतिशत FDI के सरकार के फैसले से भी नया बल मिला है।
प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. स्वामिनाथन ने की मोदी सरकार की किसान कल्याण नीति की तारीफ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कृषि के विकास और किसानों के कल्याण के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है। मोदी सरकार ने बीज से लेकर बाजार तक किसानों को हर कदम पर मदद करने की योजनाएं बनाई हैं और उन पर गंभीरता से अमल भी किया जा रहा है। खरीफ की फसलों की एमएसपी डेढ़ गुना करने का फैसला हो या फिर 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य, मोदी सरकार हर दिशा में काम कर रही है। अब देश के जाने-माने कृषि वैज्ञानिक और देश में हरित क्रांति के जनक डॉ.एम एस स्वामिनाथन ने मोदी सरकार की कृषि नीति और किसान कल्याण के लिए उठाए गए कदमों की तारीफ की है।
यूपीए सरकार ने नहीं किया किसान आयोग की रिपोर्ट पर अमल
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे डॉ. स्वामिनाथन के लेख के मुताबिक 2004 में बीजेपी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने देश में पहली बार राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था और बाद में कृषि मंत्री बने शरद पवार ने उन्हें किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया। इस आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें न केवल कृषि की प्रगति, बल्कि किसान परिवारों के आर्थिक कल्याण के लिए सुझाव भी दिए गए। इस आयोग ने किसानों के लिए एक राष्ट्रीय नीति भी प्रस्तुत की। जिसमें किसानों के लिए न्यूनतम आय सुनिश्चित करने, भूमि सुधार के एजेंडे को पूरा करने, कृषि को आर्थिक रूप से लाभदायक बनाते हुए युवाओं को खेती के लिए प्रेरित करना, कृषि पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों को पुनर्गठित करने जैसे सुझाव दिए गए थे। डॉ. स्वामिनाथन के अनुसार किसान आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2006 में ही तत्कालीन यूपीए सरकार के सामने प्रस्तुत कर दी थी, लेकिन उसने 2006 से 2014 तक इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की। 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के गठन के बाद इस पर कार्रवाई शुरू की गई और बीते चार वर्षों के दौरान किसानों की स्थिति और आमदनी में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।
मोदी सरकार के फैसलों ने बदली किसानों की किस्मत
डॉ. स्वामिनाथन ने मोदी सरकार की किसान नीति की तारीफ करते हुए कहा है कि सभी किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड जारी करना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से लघु-सिंचाई को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से स्वदेशी नस्ल की पशुओं का संरक्षण करना। इलेक्ट्रानिक राष्ट्रीय कृषि बाजार के माध्यम से ऑनलाइन व्यापार को बढ़ावा देना, ग्रामीण कृषि बाजार स्थापित करने जैसे मोदी सरकार के फैसलों ने किसानों की उन्नति का द्वार खोल दिए हैं। डॉ. स्वामिनाथन के अनुसार कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन अधिनियम, 2017 और कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन अधिनियम, 2018 से किसानों को बहुत राहत मिली है। किसान आयोग की सिफारिश के आधार पर डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना और एमएसपी पर और ज्यादा फसलों की खरीद को सुनिश्चित करने से किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने मोदी सरकार द्वारा किसानों को कृषि के अलावा आय के दूसरे साधनों जैसे मुधमक्खी-पालन, मशरूम की खेती, बांस उत्पादन, कृषि-वानिकी, वर्मी-कम्पोस्ट और कृषि-प्रसंस्करण जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देने की भी तारीफ की है।
केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर करना होगा काम
कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वामिनाथन के मुताबिक किसानों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जो भी योजनाएं बनाई गई हैं, यदि उन पर प्रभावी तरीके से अमल किया जाता है तो कृषि और किसानों का भविष्य संवर जाएगा। इतना ही नहीं भारत खाद्य और पोषण सुरक्षा दोनों में अग्रणी बन सकेगा। उन्होंने कहा है कि कृषि के लिए उठाए गए कदमों पर केंद्र और राज्य मिलकर सही तरह अमल करते हैं तो किसानों की संपन्नता के साथ कृषि का विकास सुनिश्चित हो सकता है।
मोदी सरकार देशभर में किसानों की आर्थिक उन्नति और कृषि लागत को कम करने के लिए लगातार प्रयासरत है। एक नजर डालते हैं पिछले 4 वर्षों में मोदी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों पर-
बढ़े एमएसपी पर उपज खरीद सुनिश्चित करने की तैयारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिन-रात किसान कल्याण के बारे में ही सोचते हैं। पिछले चार वर्षों में मोदी सरकार ने किसानों के हित में जितना काम किया है, उतना किसी भी सरकार ने नहीं किया। आजादी के बाद पहली बार मोदी सरकार ने खरीफ फसलों के लिए किसानों को लागत मूल्य का डेढ़ गुना से अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है। मोदी सरकार सिर्फ एमएसपी की घोषणा तक ही नहीं रुकना चाहती है। अब समर्थन मूल्य के बाद उपज की खरीद सुनिश्चित करने और इसका लाभ देश के सभी किसानों को दिलाने के लिए खरीद गारंटी योजना की तैयारी चल रही है।
कृषि मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार कृषि उपज की प्रस्तावित खरीद गारंटी योजना मौजूदा खरीद प्रणाली से अलग और व्यापक होगी। प्रस्तावित प्रणाली के मसौदे में मंडियों में निजी व्यापारियों को खुले बाजार के भावों पर बेची जाने वाली जिंसों का ब्यौरा होगा। इसमें एमएसपी और बाजार भाव के अंतर को किसानों के खाते में जमा कराया जाएगा। मूल्य के अंतर वाली धनराशि को केंद्र व राज्यों को मिलकर वहन करना पड़ सकता है। बताया जा रहा है कि नई खरीद प्रणाली की रुपरेखा तैयार करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में नौ वरिष्ठ मंत्रियों का एक समूह गठित किया गया था। मंत्री समूह ने सिफारिशें पेश कर दी है, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर उन सिफारिशों पर अभी मुहर नहीं लग पाई है। इस प्रस्ताव पर जल्द ही मुहर लगने की उम्मीद है।
मोदी सरकार ने की खरीफ फसलों की एमएसपी में ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की प्राथमिकाता में हमेशा देश का किसान रहा है। मोदी सरकार ने 4 जुलाई को कैबिनेट की बैठक के बाद किसानों को एक बड़ा तोहफा दिया। केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी की है। सरकार ने खरीफ फसलों की लागत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुना या उससे ज्यादा बढ़ा दिया है। सरकार ने धान की फसल पर सबसे ज्यादा 200 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। पहले किसान को एक क्विंटल धान के लिए 1550 रुपए मिलते थे लेकिन उन्हें 1750 रुपए दिए जाएंगे। कपास (मध्यम आकार का रेशा) का एमएसपी 4,020 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,150 रुपये प्रति क्विंटल और कपास (लंबा रेशा) का एमएसपी 4,320 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,450 रुपये प्रति क्विंटल पर कर दिया गया। इसी तरह अरहर का एमएसपी 5,450 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,675 रुपये प्रति क्विंटल, मूंग का एमएसपी 5,575 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 6,975 रुपये प्रति क्विंटल और उड़द का एमएसपी 5,400 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,600 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है।
कैबिनेट ने जिन 14 फसलों का एमएसपी बढ़ाया है, उसमें- धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी बीज, सोयाबीन, तिल, रामतिल और कपास शामिल है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि, ‘कृषि क्षेत्र के विकास और किसान कल्याण के लिए जो भी पहल जरूरी हैं, सरकार उसके लिए प्रतिबद्ध है। हम इस दिशा में लगातार कदम उठाते आए हैं और आगे भी आवश्यक कदम उठाते रहेंगे।’
कृषि क्षेत्र के विकास और किसान कल्याण के लिए जो भी पहल जरूरी हैं, सरकार उसके लिए प्रतिबद्ध है। हम इस दिशा में लगातार कदम उठाते आए हैं और आगे भी आवश्यक कदम उठाते रहेंगे।
— Narendra Modi (@narendramodi) July 4, 2018
प्रधानमंत्री ने एक अन्य ट्वीट में कहा कि, ‘मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि किसान भाइयों-बहनों को सरकार ने लागत का 1.5 गुना MSP देने का जो वादा किया था, आज उसे पूरा किया गया है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस बार ऐतिहासिक वृद्धि की गई है। सभी किसान भाइयों-बहनों को बधाई।’
मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि किसान भाइयों-बहनों को सरकार ने लागत के 1.5 गुना MSP देने का जो वादा किया था, आज उसे पूरा किया गया है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस बार ऐतिहासिक वृद्धि की गई है। सभी किसान भाइयों-बहनों को बधाई।
— Narendra Modi (@narendramodi) July 4, 2018
देश में करीब 25 करोड़ लोग खेती से जुड़े हैं और मोदी सरकार के इस फैसले से 12 करोड़ किसानों को सीधा फायदा पहुंचेगा।
गन्ना किसानों के लिए राहत पैकेज
एक तरफ जहां मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में काम कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कृषि में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में शिद्दत से लगी है। मोदी सरकार ने हाल ही में देश के गन्ना किसानों को राहत देने के लिए 8,500 के पैकेज का ऐलान किया है। सरकार का कहना है कि चीनी की कीमत बढ़ाए बगैर किसानों को बड़ी राहत पहुंचाई जाएगी। गन्ना किसानों के लिए राहत पैकेज में चीनी का 30 लाख टन का बफर स्टॉक बनाने के लिए 1200 करोड़ रुपए दिए जाने की घोषणा की गई। जाहिर है कि पिछले महीने सरकार ने गन्ना किसानों को भुगतान में मिलों की मदद के लिए 1,540 करोड़ रुपए प्रोडक्शन-लिंक्ड सब्सिडी देने की घोषणा की थी, इसे भी मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। गन्ना किसानों की मदद के लिए सरकार पहले ही गन्ने पर आयात शुक्ल को दोगुना कर चुकी है, जो कि अब 100% है। इसके अलावा निर्यात शुल्क कम किया गया है।
111 आकांक्षी जिलों में चलाया जा रहा है कृषि कल्याण अभियान
प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने जब से देश की सत्ता संभाली है, उनकी प्राथमिकता में देश का किसान रहा है। किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 1 जून, 2018 से 31 जुलाई, 2018 के बीच कृषि कल्याण अभियान की शुरूआत की है। इसके तहत किसानों को उत्तम तकनीक और आय बढ़ाने के बारे में सहायता और सलाह प्रदान की जा रही है। कृषि कल्याण अभियान आकांक्षी जिलों के 1000 से अधिक आबादी वाले प्रत्येक 25 गांवों में चलाया जा रहा है। जिन जिलों में गांवों की संख्या 25 से कम है, वहां के सभी गांवों को (1000 से अधिक आबादी वाले) इस योजना के तहत कवर किया जा रहा है।
कृषि आय बढ़ाने और बेहतर पद्धतियों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है, जो इस तरह है:
- स्वाइल हेल्थ कार्डों का सभी किसानों में वितरण।
- प्रत्येक गांव में खुर और मुंह रोग (एफएमडी) से बचाव के लिए सौ प्रतिशत बोवाइन टीकाकरण।
- भेड़ और बकरियों में बीमारी से बचाव के लिए सौ फीसदी कवरेज।
- सभी किसानों के बीच दालों और तिलहन की मिनी किट का वितरण।
- प्रति परिवार पांच बागवानी/कृषि वानिकी/बांस के पौधों का वितरण।
- प्रत्येक गांव में 100 एनएडीएपी पिट बनाना।
- कृत्रिम गर्भाधान के बारे में जानकारी देना।
- सूक्ष्म सिंचाई से जुड़े कार्यक्रमों का प्रदर्शन।
- बहु-फसली कृषि के तौर-तरीकों का प्रदर्शन।
इसके अलावा, सूक्ष्म सिंचाई और एकीकृत फसल के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी दी जाएगी। साथ ही किसानों को नवीनतम तकनीकों से परिचित कराया जाएगा। आईसीएआर/केवीएस प्रत्येक गांव में मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती और गृह उद्यान के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों में महिला प्रतिभागियों और किसानों को प्राथमिकता दी जा रही है।
हर कदम पर किसानों के साथ खड़ी है मोदी सरकार
मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर कार्य कर रही है। इसके लिए किसानों को बुवाई से लेकर फसल की कटाई और फिर बाजार में फसल का उचित मूल्य दिलाने तक योजनाएं चलाई जा रही हैं। मोदी सरकार का मानना है कि जब देश का किसान खुशहाल होगा तभी सही मायने में देश का विकास होगा। मोदी सरकार ने किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने का भी ऐलान किया है। खेती के अलावा पशुपालन, मत्स्यपालन, मधुमक्खी पालने जैसे आय के स्रोत बढ़ाने के वैकल्पिक साधनों पर ध्यान दिया जा रहा है। यानि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में मोदी सरकार देश के किसानों का सशक्त बनाने की दिशा में शिद्दत से लगी हुई है और इसके परिणाम भी सामने आने लगे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की समस्याओं के समाधान को निश्चित समय में लागू करने के लिए कई ऐतिहासिक निर्णय लिए। कांग्रेस की सरकारों में किसानों के लिए पानी, बिजली, खाद आदि से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए योजनाएं तो बनीं, लेकिन उनके क्रियान्वयन की समयसीमा को निश्चित नहीं किया गया, इसका परिणाम यह हुआ कि समस्या हमेशा बनी ही रही। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके विपरीत किसानों की पानी, बिजली, बीज, खाद, कृषि से जुड़े अन्य धंधों, बाजार, बीमा आदि से जुड़ी योजनाओं को निश्चित समय में लागू करने निर्णय लिया। प्रधानमंत्री का संकल्प है कि देश के किसानों की आय को 2022 तक दोगुना कर देंगे। किसानों की समस्याओं का समाधान करते हुए, आय दोगुनी करने का संकल्प मोदी सरकार से पहले इस देश में किसी सरकार ने नहीं लिया।
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए डबल किया बजट
प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय को दोगुना करने के संकल्प को 2022 तक पूरा करने के लिए केंद्रीय बजट में खेती को दिए जाने वाले धन को भी दोगुना कर दिया है। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने जहां 2009 से 2014 के दौरान मात्र 1 लाख 21 हजार 82 करोड़ रुपये दिए थे वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने 2014-18 के बीच, चार सालों में ही, 2 लाख 11 हजार 694 करोड़ रुपये दे दिए। संकल्प को पूरा करने के लिए उठाये गये कदम बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जो कहते हैं, उसे पूरा करते हैं।
कृषि कार्य के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी किसानों की समस्याओं को सुलझाने के उपायों को लागू करने के लिए भी धन को रिकॉर्ड मात्रा में उपलब्ध कराया गया है। इससे साफ होता है कि आय को दोगुना करने का संकल्प मजबूत है।
किसानों को ऋण लेने में आने वाली दिक्कतों को दूर किया
किसान को खेती के लिए जरूरत में धन सही समय पर उपलब्ध कराने का काम किया गया है। बैकों से मिलने वाला ऋण, एक साल के लिए मात्र 7 प्रतिशत की ब्याज दर पर मिल रहा है। छोटे किसानों को भी, बैकों से यह धन मिले, इसके लिए छोटे किसानों के छोटे से छोटे समूहों को बैकों से ऋण लेना आसान हो गया है। केन्द्रीय बजट से निकला धन किसानों तक बैंकों के माध्यम से पहुंचाने का रास्ता सरल और आसान हो चुका है।
सिंचाई के पानी की समस्या खत्म हुई
खेती के लिए, किसानों के पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए फाइलों में बंद पड़ी योजनाओं को लागू किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की सोच है कि देश में योजनाओं की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति और कर्मठता की कमी रही है,जिसे वह पिछले चार सालों से पूरा कर रहे हैं। हर खेत को पानी पहुंचाने के लिए 50,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ नहरों और बांधों पर काम चल रहा है। इसके साथ पानी का खेती के कामों में उचित उपयोग हो, ड्रिप सिंचाई की तकनीक को चार सालों के अंदर ही 26.87 लाख हेक्टेयर खेतों तक पहुंचा दिया गया है।
सॉयल हेल्थ कार्ड से खेतों की पैदावार की ताकत बढ़ाई
प्रधानमंत्री मोदी की किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने के संकल्प के प्रति कितनी निष्ठा है, इसका अंदाजा मात्र एक ऐतिहासिक योजना से लग जाता है। सॉयल हेल्थ कार्ड खेतों की उपज शक्ति मापने का किसानों के हाथ में जबरदस्त हथियार है। अब तक किसी सरकार ने किसानों के खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में खेतों की ताकत के बारे में कभी नहीं सोचा था। सॉयल हेल्थ कार्ड, किसान को यह बता देता है कि उसके खेत में किस तरह के उर्वरक की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी का इस छोटी सी लेकिन महत्वपूर्ण समस्या के समाधान के बारे में सोचना और योजना को लागू करना,यह साबित करता है कि 2022 तक किसानों की आय दो गुनी होने से कोई नहीं रोक सकता है।
अब किसानों को आसानी से मिलती है खाद
कांग्रेस की सरकारों के दौरान किसानों को खेती के लिए उर्वरक लाने में जान के लाले पड़ जाते थे। सरकारी खाद की दुकानों पर किसानों का अधिक समय लाइन लगाने और खाद लाने में बीत जाता था। इन लाइनों में खाद न मिलने के कारण कई राज्यों में अनेकों बार हिंसक घटनाएं हुईं। लेकिन अब देश में यह बीते दिनों की बातें हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने नीम कोटिंग का ऐतिहासिक फैसला लेकर कालाबजारी को पूरी तरह से बंद कर दिया, अब रासायनिक उर्वरकों का उपयोग केवल खेतों में ही हो सकता है, पहले की तरह उद्योगों में इसका उपयोग होना बंद हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरा ऐतिहासिक कदम यह उठाया कि सभी बंद पड़े उर्वरक संयंत्रों को उत्पादन के लायक बनाकर, देश में उर्वरक उत्पादन को बढ़ा दिया। कांग्रेस की सरकारों के समय से बंद पड़े कई उर्वरक संयंत्रों को पुर्नजीवित किया जा रहा है।
मोदी सरकार की नीतियों से अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन
प्रधानमंत्री मोदी की योजनाएं, किसानों तक सही समय पर पहुंच रही हैं इसका अंदाजा इस तथ्य से लगता है कि पिछले चार साल में देश में किसानों ने अपने खेतों से अनाजों का रिकॉर्ड उत्पादन किया है। इस रिकॉर्ड उत्पादन से जहां किसानों की आय बढ़ी है, वहीं देश अनाजों के मामले में आत्मनिर्भर होने के साथ ही साथ, विश्व के दूसरे देशों को निर्यात करने वाला भी बन गया है।
किसानों को लगभग मुफ्त में फसल बीमा का लाभ मिला है
आज किसानों को खरीफ फसलों के लिए 2 प्रतिशत और रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत के प्रीमियम पर बीमा मिल रहा है, शेष 98 प्रतिशत प्रीमियम राज्य और केन्द्र सरकारें देती हैं। फसल बीमा से खेती में अचानक हुए किसी भी तरह के नुकसान की भरपाई बैंक कर रहे हैं। फसल बीमा से किसानों को खेती की अनिश्चितता से होने वाली चिंता खत्म हुई है। इससे छोटे -छोटे किसान भी बड़ी तेजी से फसल बीमा कराके चिंताओं से मुक्त हो रहे हैं।
किसानों को खेत से ही फसल बेचने की सुविधा
देश में सभी अनाज और फल-सब्जी मंडियों के कानून में संशोधन करके, इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा जा रहा है। पूरे देश की अनाज और फल की मंडियों के एक हो जाने से किसी भी गांव का किसान देश में उपज कहीं भी बेच सकता है। 2022 तक यह पूरी तरह से व्यवस्थित होकर एक हो जाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। अब तक 585 मंडियों को e-NAM से जोड़ा जा चुका है जिस पर 87.5 लाख किसान अपना उपज बेच रहे हैं। अब तक e-NAM पर 164.5 लाख टन कृषि उपज बेचा जा चुका है, जिससे किसानों को 41, 591 करोड़ रुपये मिले हैं।
किसानों की वैकल्पिक आय के साधन बढ़ाए, दुग्ध उत्पादन बढ़ा
बीते चार वर्षों में देश में दूध उत्पाद रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ा है। पूरे विश्व में दूध उत्पादन की वृद्धि दर दो प्रतिशत है, जबकि भारत ने चार वर्षों में दूध उत्पादन में 4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है।
प्रधानमंत्री मोदी ने देश के किसानों की आय को दोगुना करने और उन्हे आत्मनिर्भर करने का जो संकल्प लिया है, उससे किसान उस शोषण के तंत्र से स्वतः ही मुक्त हो जायेंगे, जिसे पिछले 48 सालों में कांग्रेस की सरकारों ने तैयार किया था। किसानों की समस्याओं को लेकर देश में होने वाली राजनीति समस्याओं का समाधान नहीं चाहती है, बल्कि उसके बल पर देश की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करती है, जैसा पिछले 48 सालों में कांग्रेस और उसके जैसी सोच रखने वाले क्षेत्रीय दल करते रहे हैं।
मोदी सरकार किसानों की बेहतरी के लिए लगातार प्रयासरत है। एक नजर डालते हैं केंद्र सरकार के उन फैसलों पर, जिनसे किसानों की राह आसान हुई है और उनकी इनकम भी बढ़ रही है।
सूक्ष्म सिंचाई योजना के लिए 5000 करोड़ मंजूर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है। किसानों को फसल की लागत कम करने, उन्हें उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराने और उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। अब मोदी सरकार ने देश में सिंचाई सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के लिए 5,000 करोड़ रुपये का सूक्ष्म सिंचाई कोष गठित करने को मंजूरी दे दी है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने सूक्ष्म सिंचाई कोष (एमआईएफ) स्थापित करने के लिए नाबार्ड के साथ 5000 करोड़ रुपये की आरंभिक राशि देने की मंजूरी दे दी।
एमआईएफ की प्रमुख बातें-
*नाबार्ड राज्य सरकारों को ऋण का भुगतान करेगा। नाबार्ड से प्राप्त ऋण राशि दो वर्ष की छूट अवधि सहित सात वर्ष में लौटाई जा सकेगी। एमआईएफ के अंतर्गत ऋण की प्रस्तावित दर 3 प्रतिशत रखी गई है जो नाबार्ड द्वारा धनराशि जुटाने की लागत से कम है।
*सूक्ष्म सिंचाई कोष प्रभावशाली तरीके से और समय पर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के पर ड्रॉप मोर क्रॉप (पीडीएमसी) के प्रयासों में वृद्धि करेगा।
इस अतिरिक्त निवेश से करीब दस लाख हेक्टेयर जमीन इसके अंदर आएगी।
*एमआईएफ से यह उम्मीद की जाती है कि ऐसे राज्य जो सूक्ष्म सिंचाई अपनाने में पीछे चल रहे हैं उन्हें किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए धनराशि का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
*सूक्ष्म सिंचाई पर कार्य बल ने सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत 69.5 मिलियन हेक्टेयर की संभावना का अनुमान लगाया है, जो अब तक केवल करीब 10 मिलियन हेक्टेयर (14 प्रतिशत) है।
सॉयल हेल्थ कार्ड से इनकम बढ़ाने की योजना
केंद्र सरकार देशभर में छोटे किसानों को उपज का सही दाम दिलाने के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड का प्रयोग एक उपकरण की तरह करने की तैयारी में है। करीब चार करोड़ किसानों का आंकड़ा जुटा चुके इस प्लेटफार्म से खाद्य क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक उद्यमों को जोड़ा जाएगा। ये उद्यम किसानों को उपज की सही कीमत मुहैया कराने की मुहिम में सरकार का साथ देने को तैयार हैं। सरकार ने हाल ही में किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का ऐलान किया है। इसके लिए कृषि मंत्रालय और नीति आयोग लगातार काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत कई अन्य राज्यों में सामाजिक उद्यमी किसानों से सीधे उपज खरीदने का काम कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नीति आयोग ने इन उद्यमियों से बातचीत की है और सॉयल हेल्थ कार्ड को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचने के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल करने पर विचार किया जा रहा है। किसान और सामाजिक उद्यमों समेत अन्य, जो सीधे तौर पर किसान से खरीद करना चाहते हैं, उन्हें सॉयल हेल्थ कार्ड के जरिए एक दूसरे से मिलाया जा सकता है। बताया जा रहा है कि इससे छोटे और सीमांत किसानों को बड़ा फायदा होगा।
बिचौलियों के जाल से किसानों के मिलेगी मुक्ति
मौजूदा समय में किसान दूर तक अनाज ढोने समेत तमाम समस्याओं के मद्देनजर बिचौलिए को अनाज बेचता है और इससे किसानों को 30 से 40 प्रतिशत का नुकसान हो जाता है। जाहिर है कि सॉयल हेल्थ कार्ड के माध्यम से सामाजिक उद्यमी किसानों से सीधे संपर्क स्थापित कर सकते हैं। सॉयल हेल्थ कार्ड में 3.80 करोड़ किसान अब तक जुड़ चुके हैं। नीति आयोग के सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने खास तौर पर आयोग से देशभर के सामाजिक उद्यमों को इस मुहिम के लिए आगे लाने को कहा है, ताकि छोटे किसानों को उपज की सही कीमत मिले और अनाज की मंडियों का एकाधिकार समाप्त हो और वह एक समानांतर इकाई बने।
‘हरित क्रांति-कृषोन्नति योजना’ जारी रखने की स्वीकृति
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि क्षेत्र में छतरी योजना ‘हरित क्रांति-कृषोन्नति योजना’ को 12वीं पंचवर्षीय योजना से आगे यानी 2017-18 से 2019-20 तक जारी रखने को मंजूरी दी है। इसमें कुल केंद्रीय हिस्सा 33,269.976 करोड़ रुपये का है। छतरी योजना में 11 योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य समग्र और वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर तथा उत्पाद पर बेहतर लाभ सुनिश्चत करके किसानों की आय बढ़ाना है। ये योजनाएं 33,269.976 करोड़ रूपये के व्यय के साथ तीन वित्तीय वर्षों यानी 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के लिए जारी रहेंगी। इन 11 योजनाओं का फोकस उत्पादन संरचना सृजन, उत्पादन लागत में कमी और कृषि तथा संबंद्ध उत्पाद के विपणन पर है। ये योजनाएं अलग-अलग अवधि के लिए पिछले कुछ वर्षों से क्रियान्वित की जा रही हैं।
एक साल में बांटा 10 लाख करोड़ का कृषि ऋण
किसानों को फसल उत्पादन में मदद के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में 10 लाख करोड़ रुपये का ऋण बांटा है। सरकार ने जमीन पर मालिकाना हक रखने वाले किसानों को ही कर्ज नहीं दिया है, बल्कि बटाईदार यानी दूसरे के खेतों को किराए पर लेकर खेती करने वाले किसानों को भी बड़ी संख्या में ऋण वितरित किया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक सरकार छोटे और सीमांत किसानों के लिए ऋण सुविधा बेहतर करने पर भी ध्यान दे रही है। 10 लाख करोड़ के कृषि ऋण में से 6.8 लाख करोड़ रुपये छोटी अवधि के फसली ऋण में दिए गए हैं। इतना ही नहीं इस 6.8 लाख करोड़ रुपये में से आधी रकम छोटे और सीमांत किसानों को बांटी गई है। 2017-18 में 10 लाख करोड़ का ऋण बांटने का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में बढ़ाकर 11 लाख करोड़ कर दिया गया है।
2020 तक जारी रहेगी यूरिया सब्सिडी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों की आर्थिक उन्नति, फसल की लागत कम करने और उन्हें उपज का उचित मूल्य दिलाने के कार्य में लगी है। फसल की पैदावार बढ़ाने में यूरिया की अहम भूमिका है। हाल ही में मोदी सरकार ने किसानों के हित में महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए यूरिया पर सब्सिडी को 2020 तक बढ़ाने का फैसला लिया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने उर्वरक सब्सिडी को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी के माध्यम से किसानों तक पहुंचाने का भी निर्णय लिया है। डीबीटी के माध्यम से सब्सिडी का पैसा सीधे किसानों के खाते में भेजने से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। आपको बता दें कि इस वर्ष केंद्र सरकार किसानों को दी जा रही यूरिया सब्सिडी पर 42,748 करोड़ रुपये खर्च कर रही हैं, जबकि 2018-19 में यूरिया सब्सिडी 45,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वर्ष 2020 तक किसानों को यूरिया सब्सिडी देने पर कुल 1,64,935 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। उर्वरक मंत्रालय सालाना आधार पर यूरिया सब्सिडी मंजूर करता है, लेकिन मोदी सरकार ने किसानों के हित में फैसला लेते हुए पहली बार तीन वर्षों के लिए यूरिया सब्सिडी को मंजूरी दी है।
अब छोटे पैक में मिलेगा यूरिया
किसानों की सहूलियत का ख्याल रखते हुए सरकार यूरिया के छोटे बैग मुहैया कराने पर विचार कर रही है। वर्तमान में किसानों को यूरिया 50 किलो के बैग में मिलता है। सरकार का प्रयास बैग के आकार को छोटा कर 45 किलो करने का है। सरकार मानना है कि इससे यूरिया की बचत होगी। दरअसल किसान अपने फसल में यूरिया की मात्रा तौल कर नहीं डालते हैं। बैग में यूरिया की मात्रा कम करने से इसकी खपत कम होगी।
यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर हो रहा भारत
एक वक्त था जब यूरिया की कालाबाजारी से किसान परेशान रहते थे। लेकिन मोदी सरकार की नीतियों से इसपर रोक लग गई है। दूसरी ओर सरकार ने देश को यूरिया उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का निर्णय लिया है। इस प्रयास में पुराने कारखानों को शुरू करने के साथ नए कारखानों की भी शुरुआत हुई है। कई राज्यों में बन रहे यूरिया कारखानों के निर्माण में भी कार्य तेज गति से चल रहा है। भारत सरकार गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी, तालचर और रामागुण्डम स्थित पांच उर्वरक संयत्रों का पुनरूद्धार कर रही है। गोरखपुर में निर्माणाधीन फैक्ट्री में यूरिया का उत्पादन वर्ष 2022 से शुरू हो जाएगा। इन संयत्रों में 65 लाख टन यूरिया का उत्पादन होना है। गौरतलब है कि देश में सालाना लगभग 310 लाख टन उर्वरक की जरुरत होती है। करीब 55 लाख टन उवर्रक आयात करना पड़ता है।
नीम कोटिंग यूरिया से खेती बढ़ी, खाद का उपयोग घटा
नीम कोटेड यूरिया की पहल जमीन पर रंग ला रही है। इससे यूरिया की खपत में तो कमी आई ही है साथ में किसानों को खेती की लागत में कमी आई है। नीम कोटेड यूरिया के चलते खाद की बिक्री में कमी देखने को मिली है लेकिन अनाज की पैदावार में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। साल 2012-13 से 2015-16 के बीच यूरिया की बिक्री 30 से 30.6 मिलियन टन के बीच रही। लेकिन 2017 में यह आंकड़ा 28 मिलियन टन पर आ गया और 2018 में इसके और घटने की संभावना है। यूरिया के अलावा केंद्र सरकार ने कई ऐसी योजनाएं बनाईं हैं जो किसानों के हित के लिए हैं। आइये देखते हैं इन्हीं में से कुछ महत्वपूर्ण कदम।
गोबर-धन योजना से गांवों का होगा विकास
सरकार ने ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने के अपने प्रयासों के तहत बजट 2018-19 में गोबर-धन यानि गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट, बायो-गैस और बायो-सीएनजी में परिवर्तित किया जाएगा। समावेशी समाज निर्माण के दृष्टिकोण के तहत सरकार ने विकास के लिए 115 जिलों की पहचान की है। इन जिलों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, सिंचाई, ग्रामीण विद्युतीकरण, पेयजल, शौचालय जैसे क्षेत्रों में निवेश करके निश्चित समयावधि में विकास की गति को तेज किया जाएगा और ये 115 जिले विकास के मॉडल साबित होंगे।
गांवों में ही किसानों को मिलेगा उपज का बाजार
देश में 86 प्रतिशत से ज्यादा छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए सरकार इन्हें में ध्यान रखकर इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेगी। इसके लिए सरकार 22 हजार ग्रामीण हॉट को ग्रामीण कृषि बाजार में बदलेगी। 2,000 करोड़ से कृषि बाजार और संरचना कोष का गठन होगा। ई-नैम को किसानों से जोड़ा गया है, ताकि किसानों को उनकी उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके। 585 EMPC को ई-नैम के जरिए जोड़ा जाएगा। यह काम मार्च 2019 तक ही खत्म हो जाएगा।कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य भी सरकार ने रखा है। पीएम कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी उपलब्ध कराने की योजना चलाई जा रही है. इसके तहत सिंचाई के पानी की कमी से जूझ रहे 96 जिलों को चिन्हित कर 2,600 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
देश भर में किसानों को निर्बाध बिजली
खेती-किसानी में बिजली का अहम योगदान होता है, क्योंकि खेतों में ट्यूबबेल चलाने, सिंचाई के लिए बिजली जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बाखूबी समझते हैं। हालांकि किसानों के लिए बिजली की अलग फीडर लाइन पर पिछले डेढ़ दशक से चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी के दखल के बाद इस पर अमल की प्रक्रिया शुरू हो गई है। देश में “पीएम सहज बिजली हर घर योजना” लांच की गई है। इसका फायदा खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में होगा, लेकिन किसानों को बिजली का असली फायदा देने के लिए अब फीडर लाइन को अलग किया जाएगा। अलग बिजली फीडर होने से किसानों को बिजली सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने की व्यवस्था शुरू करने में भी काफी आसानी होगी। साथ ही किसानों को समय पर पर्याप्त बिजली आपूर्ति भी सुनिश्चित होगी।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का उद्देश्य ही यह है कि ‘हर खेत में पानी।‘ शायद ही इस कारण की जटिलता को पहले किसी और सरकार ने इस गंभीरता से समझा हो, जितना मोदी सरकार ने कि भारतीय खेती की सिंचाई संबंधी निर्भरता बहुत बड़े स्तर पर वर्षा पर है। वर्षा की अनिश्चितता सीधे तौर पर फसलों के उत्पादन को प्रभावित करती है, जिससे किसान का हित प्रभावित होता है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सिंचाई योजना इसी समस्या का सशक्त समाधान है।
प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना
किसी भी कार्य का व्यावसायिक तथा व्यावहारिक प्रशिक्षण उस कार्य में प्रगति की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा देता है। प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि से संबंधित विस्तृत प्रशिक्षण प्रदान करवाना है। विशेषकर ऐसे युवाओं को, जो बीच में पढ़ाई छोड़ चुके हैं अथवा खेती से विमुख हो रहे हैं। इस प्रशिक्षण द्वारा कुशल कामगारों को विकसित किया जाता है। इसके अंतर्गत पाठ्यक्रमों में सुधार करना, बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रशिक्षण में अन्य पहलुओं के साथ व्यवहार कुशलता और व्यवहार में परिवर्तन भी शामिल है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
किसानों के हित में बनने वाली किसी भी अन्य योजना के मुकाबले इस योजना का महत्त्व कई गुना अधिक इसलिए है, क्योंकि यह अन्य योजनाओं की समीक्षा कर, उसके गुण-दोषों की विवेचना के आधार पर बनाई गई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों की फसल को प्राकृतिक आपदाओं के कारण पहुंची क्षति को प्रीमियम के भुगतान द्वारा एक सीमा तक कम किया जा सकेगा। इसके अंतर्गत 8,800 करोड़ रुपये खर्च होंगे, ताकि किसानों के प्रीमियम का भुगतान देकर एक सीमा तक कम किया जा सके। यह खरीफ और रबी की फसल के अतिरिक्त वाणिज्यिक और बागवानी फसलों को भी सुरक्षा प्रदान करेगी। खराब फसलों के विरूद्ध किसानों द्वारा दी जा रही बीमा की फसलों को बहुत नीचे रखा गया है।
कृषि एप का लाभ
मौसम से जुड़ी सही-सही जानकारी को समय पर किसानों को उपलब्ध कराना इस योजना का उद्देश्य है। मौसम में बदलाव, वर्षा अथवा इस विषय से संबंधित सभी महत्वपूर्ण सूचनाएं इस एप पर उपलब्ध हैं।
ई-कृषि मंडी योजना
कड़ी से कड़ी मेहनत और उत्पादन का कोई लाभ नहीं, यदि किसान को उसके उत्पादन के सही दाम न मिलें। यही वह विषय है, जो पूरी कृषि-प्रक्रिया का सबसे संवेदनशील पक्ष है। बिचौलियों के वर्चस्व के चलते किसानों का हित हमेशा से प्रभावित होता रहा है। इसी समस्या के समाधान के तौर पर इ-कृषि मंडी योजना की रूपरेखा तय की गई, ताकि किसान अपनी उपज के सही दाम जानकर उसी पर फसल बाजार में बेच पाएं।
परंपरागत कृषि विकास योजना
परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) को लागू किया जा रहा है ताकि देश में जैव कृषि को बढ़ावा मिल सके। इससे मिट्टी की सेहत और जैव पदार्थ तत्वों को सुधारने तथा किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
भंडार गृह की सुविधा
किसानों द्वारा मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने को हतोत्साहित करने और उन्हें अपने उत्पाद भंडार गृहों की रसीद के साथ भंडार गृहों में रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे छोटे और मझौले किसानों को ब्याज रियायत का लाभ मिलेगा, जिनके पास फसल कटाई के बाद के 6 महीनों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड होंगे।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) को सरकार उनकी जरूरतों के मुताबिक राज्यों में लागू कर सकेगी, जिसके लिए राज्य में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। राज्यों को उऩकी जरूरतों, प्राथमिकताओं और कृषि-जलवायु जरूरतों के अनुसार योजना के अंतर्गत परियोजनाओँ/कार्यक्रमों के चयन, योजना की मंजूरी और उऩ्हें अमल में लाने के लिए लचीलापन और स्वयत्ता प्रदान की गई है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), केन्द्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत 29 राज्यों के 638 जिलों में एनएफएसएम दाल, 25 राज्यों के 194 जिलों में एनएफएसएम चावल, 11 राज्यों के 126 जिलों में एनएफएसएम गेहूं और देश के 28 राज्यों के 265 जिलों में एनएफएसएम मोटा अनाज लागू की गई है ताकि चावल, गेहूं, दालों, मोटे अऩाजों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सके। एनएफएसएम के अंतर्गत किसानों को बीजों के वितरण (एचवाईवी/हाईब्रिड), बीजों के उत्पादन (केवल दालों के), आईएनएम और आईपीएम तकनीकों, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकीयों/उपकणों, प्रभावी जल प्रयोग साधन, फसल प्रणाली जो किसानों को प्रशिक्षण देने पर आधारित है, को लागू किया जा रहा है।
राष्ट्रीय तिलहन और तेल मिशन कार्यक्रम
राष्ट्रीय तिलहन और तेल (एनएमओओपी) मिशन कार्यक्रम 2014-15 से लागू है। इसका उद्देश्य खाद्य तेलों की घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए तिलहनों का उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना है। इस मिशन की विभिन्न कार्यक्रमों को राज्य कृषि/बागवानी विभाग के जरिये लागू किया जा रहा है।
बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन
बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच), केन्द्र प्रायोजित योजना फलों, सब्जियों के जड़ और कन्द फसलों, मशरूम, मसालों, फूलों, सुगंध वाले वनस्पति,नारियल, काजू, कोको और बांस सहित बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 2014-15 से लागू है। इस मिशन में ऱाष्ट्रीय बागवानी मिशन, पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए बागवानी मिशन, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, नारियल विकास बोर्ड और बागवानी के लिए केन्द्रीय संस्थान, नागालैंड को शामिल कर दिया गया है।