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Explainer: राहुल-तेजस्वी का SIR पर सवाल उठाना गलत, नाम हटाने में कोई पक्षपात नहीं, वो 65 लाख फर्जी वोटर हटे जो लालू-राज में बनाए

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बिहार में मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के पहले चरण के बाद यह साफ हो गया है कि राहुल-तेजस्वी ने जो बौखलाहट दिखाई है, वह पूरी तरह से अनावश्यक और गैर-जरूरी है। चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित मसौदा-सर्वेक्षण और विवरण कम से कम इस बात का तो स्पष्ट संकेत देते हैं कि यह प्रक्रिया एकदम निष्पक्ष थी। मतदाता सूची से अधिक और कम नाम हटाने वाले जिलों को किसी राजनीति के चश्म में नहीं देखा गया है। बल्कि बोगस वोटर के हिसाब से ही नाम कटे हैं। आयोग के आंकड़ों में किसी भी तरह का पक्षपात नजर नहीं आता। अलबत्ता यह जरूर साफ हो गया है कि बिहार में लालू-राबड़ी राज के दौरान फर्जी मतदाता बनाने के लिए कई कारगुजारियां की गईं, जिनकी इस पुनरीक्षण में पोल खुल गई है। चुनाव जीतने के लिए उनके राज में ऐसे-ऐसे लोगों के बोगस मतदाता पहचान पत्र बना दिए गए, जो बिहार में रहते ही नहीं हैं। इतना ही नहीं जांच में अब मृतकों तक के वोटर आईकार्ड मिले हैं, जिनके माध्यम से राजद उम्मीदवारों को जिताने के प्रयास किए जाते थे। चुनाव आयोग के अनुसार करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं।

पुनरीक्षण में 22 लाख से ज्यादा तो मृत मतदाताओं की पहचान हुई
बिहार में मतदाता पुनरीक्षण के लिए एक महीने चले विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में बिहार के 7.89 करोड़ में से 7.24 करोड़ मतदाताओं (91.69 प्रतिशत) ने गणना प्रपत्र जमा करा दिए हैं। निर्वाचन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस दौरान 22 लाख (2.83 प्रतिशत) ऐसे मतदाताओं की पहचान हुई है, जिनकी मौत हो चुकी है। 36 लाख (4.59 प्रतिशत) लोग या तो पिछले पते से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए है या उनका पता नहीं चला। सात लाख (0.89 प्रतिशत) मतदाताओं ने कई जगह पंजीकरण कराया हुआ है। इनके नाम हटाए जाएंगे। इधर बिहार की तर्ज पर विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 2025 (एसआईआर) को राजस्थान में भी लागू कराने का खाका चुनाव आयोग ने तैयार कर लिया है। सिर्फ औपचारिक तिथि का ऐलान बाकि है। इसके तहत राजस्थान के 5 करोड़ 48 लाख वोटरों में से 2 करोड़ 57 लाख 14461 वोटरों को इस दायरे में लाया जाएगा।

मतदाताओं के नाम सामाजिक या राजनीतिक आधार पर नहीं हटाए गए
मतदाता सूची पुनरीक्षण के बाद चुनाव आयोग ने वोटर्स के नाम हटाने के कारणों का भी उल्लेख किया है। इसमें मतदाता की मृत्यु हो जाना, अस्थायी या स्थायी रूप से बाहर होने के कारण पते पर न मिलना या दो अलग-अलग जगहों पर पंजीकृत होना आदि शामिल हैं। जिन जिलों में नाम हटाने का अनुपात अधिक रहा, वे हैं गोपालगंज, मधुबनी, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर, पटना, मुजफ्फरपुर, सारण, वैशाली, गया और दरभंगा। इसके विपरीत, जिन जिलों में नाम हटाने का अनुपात सबसे कम रहा, वे हैं शिवहर, जमुई, मुंगेर, खगरिया, बक्सर, लखीसराय, जहानाबाद, कैमूर, अरवल और शेखपुरा। इन तमाम जिलों का सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषण वोटरों के नाम हटाने में किसी विशेष पूर्वाग्रह का का प्रमाण या सबूत नहीं है। मतदाताओं के नाम सामाजिक या राजनीतिक आधार पर नहीं, बल्कि उपरोक्त कारणों से हटाए गए हैं।

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के नाम काटने के दावे हवा-हवाई
राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस समेत अन्य दलों के इन हवा-हवाई दावों में कोई दम नहीं है कि अधिक नाम हटाने वाले जिले किसी पार्टी के गढ़ हैं और कम नाम हटाने वाले जिलों में किसी अन्य दल का वर्चस्व है। 2020 के विधानसभा चुनाव नतीजों का विश्लेषण करें तो ऐसी किसी बात के कोई संकेत नहीं मिलते। सबसे अधिक नाम हटाने वाले दस जिलों में 2020 के चुनाव के दौरान 57.4 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि सबसे कम नाम हटाने वाले दस जिलों में 57.1 प्रतिशत वोट डले थे। शेष में मतदान 57.6 प्रतिशत रहा। सबसे ज्यादा नाम हटाने वाले जिलों में एनडीए को 38.9 प्रतिशत और सबसे कम नाम हटाने वालों में 31.7 प्रतिशत वोट मिले। बाकी में 37.2 प्रतिशत मत मिले। इसी तरह, सबसे ज्यादा नाम हटाने वाले जिलों में महागठबंधन को 37.6 प्रतिशत और सबसे कम नाम हटाने वालों में 35.5 प्रतिशत वोट मिले। बाकी में 37.4 प्रतिशत मिले। पुनरीक्षण प्रक्रिया की यह कहकर बेवजह ही आलोचना की जा रही है कि नाम हटाने में किसी तरह का पक्षपात हो सकता है। लेकिन उपरोक्त आंकड़ों से एकदम साफ है कि वोटरों के नाम न्यायसंगत प्रक्रिया के तहत ही हटे हैं।

मुस्लिम आबादी बहुल जिलों में वोटरों के नाम हटाने की संख्या बहुत कम
बिहार के जिलों की सामाजिक संरचना के विश्लेषण में भी टारगेटेड रूप से नाम हटाने का कोई सबूत दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। जिन जिलों में सबसे ज्यादा मतदाता हटाए गए हैं, वहां के आंकड़ों में विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व है। कुछ जिलों में मुसलमान व दलित वोटर महत्वपूर्ण अनुपात में दिखाई देते हैं, हैं, वहीं कुछ अन्य में सवर्ण, यादव और शहरी आबादी। नाम हटाने की प्रक्रिया के किसी एक समूह, जाति या समुदाय तक सीमित नहीं है। पटना, गया, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जैसे जिलों में जहां सबसे ज्यादा नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं- सामाजिक प्रोफाइल मिली-जुली है। पटना में जहां दलितों की संख्या 16 प्रतिशत है, वहीं शहरी मतदाताओं की संख्या 43 प्रतिशत और सवणों की संख्या 21 प्रतिशत है। गया में दलितों की संख्या 30 प्रतिशत और यादवों की 20 प्रतिशत है। मुसलमानों की संख्या सिर्फ 11 प्रतिशत ही है। अररिया (43%), किशनगंज (68%), पूर्णिया (38%), कटिहार (44%) में मुस्लिम आबादी बहुत है, लेकिन इन जिलों से वोटरों के नाम हटाने की संख्या बहुत कम है। राहुल-तेजस्वी के आरोपों में अगर दम होता और वे सही होते तो इनमें नाम हटाने का प्रतिशत भी अधिक होता।

राहुल गांधी वोट चोरी का हलफनामा दें या देश से माफी मांगें
दूसरी ओर चुनाव आयोग ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से कहा है कि वे बिहार में वोट चोरी के अपने दावे को सही मानते हैं तो हलफनामे पर साइन करके दें। अगर उन्हें अपने दावों पर भरोसा नहीं है तो देश से माफी मांगें। चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)के पहले चरण के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक बिहार में अब 7.24 करोड़ वोटर हैं। पहले यह आंकड़ा 7.89 करोड़ था। वोटर लिस्ट रिवीजन के बाद 65 लाख नाम सूची से हटा दिए गए हैं। हटाए गए नामों में वे लोग शामिल हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं या फिर कहीं और स्थायी रूप से रह रहे हैं या जिनका नाम दो वोटर लिस्ट में दर्ज था। इनमें से 22 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। 36 लाख मतदाता स्थानांतरित पाए गए, जबकि 7 लाख लोग अब किसी और क्षेत्र के स्थायी निवासी बन चुके हैं।

तेजस्वी के दोहरे वोटर कार्ड से SIR तक उल्टे पड़े सारे दांव
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से लेकर दोहरे वोटर कार्ड तक पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और इंडी गठबंधन के सारे दांव उल्टे पड़ गए हैं। तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की कथित पोल खोलने के लिए पीसी की थी और अपना नाम मतदाता सूची के कटने का दावा किया था। अब सामने आया है कि तेजस्वी यादव के एक नहीं, बल्कि दो-दो वोटर कार्ड हैं। इससे तेजस्वी यादव पर फर्जीवाड़े का शक गहरा गया है। चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव को दो बार नोटिस भेजकर दूसरे वोटर कार्ड की जांच शुरू कर दी है। भारत में एक व्यक्ति के पास दो वोटर कार्ड होना कानूनन अपराध है। यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत एक गंभीर उल्लंघन माना जाता है। दूसरी ओर बिहार में 65 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटने पर हायतौबा मचा रहे आरजेडी और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट दी है। आयोग ने कहा है कि जो भी नाम छूट गया है या फिर गलत जुड़ गया, वह बताइये। हम 7 दिन में ठीक कर देंगे। बिहार में विपक्षी दलों के 65,000 से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट (BLA) हैं, लेकिन चार दिनों में इन दलों की एक भी शिकायत ना आने से एसआईआर पर राहुल-तेजस्वी के हल्ले का गुब्बारा ही फूट गया है।

बड़बोले बयानों और बेसिर-पैर के दावों से सुर्खियों में तेजस्वी
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अपने बड़बोले बयानों के लिए सुर्खियों में हैं। तेजस्वी ने बैसिर-पैर का दावा किया कि बिहार की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में उनका नाम ही नहीं है। उन्होंने जो EPIC नंबर (RAB2916120) शेयर किया, वो रिकॉर्डस में डेटा ‘नो फाउंड’ शो कर रहा था। इस पर चुनाव आयोग तत्काल एक्शन मोड में आया और प्रमाणों के साथ तेजस्वी यादव के दावे को खारिज कर दिया। आयोग ने तत्काल ही तेजस्वी के EPIC नंबर (RAB0456228) के साथ वोटर लिस्ट शेयर की है, जिसमें तेजस्वी का नाम साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता यादव ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकारों को अपना वोटर आईडी कार्ड दिखाया था। इस मामले में आयोग ने कहा कि दिखाया गया कार्ड चुनाव आयोग द्वारा जारी नहीं किया गया।

बिहार में 7.9 करोड़ में से 91 प्रतिशत फॉर्म जमा, 22 लाख मृतकों की पहचान
बिहार में इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव के दौरान शत-प्रतिशत सही वोटिंग के लिए चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 2025 (एसआईआर) शुरू किया था। इस पर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल समेत विपक्षी पार्टियों ने काफी हायतौबा मचाई। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय तक में याचिका दायर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिन पहले वोटर लिस्ट रिवीजन जारी रखने की अनुमति दे दी। अदालत ने इसे संवैधानिक जिम्मेदारी बताया। चुनाव आयोग की ओर से यह विशेष अभियान 24 जून 2025 को शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य फर्जी, दोहरे नामांकन और स्थानांतरित मतदाताओं को सूची से हटाना और नए योग्य मतदाताओं को जोड़ना था। निर्वाचन आयोग ने एसआईआर की जारी रिपोर्ट बताया है कि 36 लाख लोग या तो पिछले पते से स्थायी स्थानांतरित हो गए हैं या उनका पता नहीं है। इसके साथ ही 7 करोड़ से ज्यादा फॉर्म जमा हुए हैं और अब तक 22 लाख मृत वोटरों की पहचान हो चुकी है।

व्यापक स्तर पर चला अभियान, 5.7 करोड़ नंबरों पर भेजे मैसेज
चुनाव आयोग के मुताबिक विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 2025 (एसआईआर) व्यापक स्तर पर चलाया गया। इसके तहत करीब 5.7 करोड़ मोबाइल नंबरों पर पुनरीक्षण समझाने वाले एसएमएस भेजे गए। बिहार के प्रवासियों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से देशभर में 246 अखबारों में विज्ञापन दिए गए। कुल 29 लाख गणना फॉर्म ऑनलाइन भरे गए। इसमें 16 लाख से अधिक फॉर्म ऑनलाइन, जबकि 13 लाख से अधिक फॉर्म डाउनलोड किए गए। बिहार के सभी 261 शहरी व स्थानीय निकायों के सभी 5683 वाडों में विशेष शहरी शिविर लगाए गए। आयोग ने यह भी तय किया कि बिना किसी स्पष्ट आदेश और वाजिब कारण के ड्रॉफ्ट मतदाता सूची से कोई भी नाम नहीं हटाया जाएगा। चुनाव आयोग के मुताबिक, बूथ स्तर के अधिकारियों को ये मतदाता नहीं मिले और न ही उन्हें गणना फार्म वापस मिले, क्योंकि या तो वे अन्य राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता बन गए थे, या वहां मौजूद नहीं थे। इनकी वास्तविक स्थिति 1 अगस्त तक फॉमों की जांच के बाद पता चलेगी। आयोग ने कहा है कि 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। साथ ही हर बूथ की मुद्रित और डिजिटल प्रतियां सभी 12 दलों को दी जाएगी। कोई मतदाता या दल 1 अगस्त से 1 सितंबर तक अपने दावे आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं।

व्यापक पुनरीक्षण के तहत 7.24 करोड़ नागरिकों के वैधता फॉर्म इकट्ठे
इस व्यापक पुनरीक्षण के तहत 7.24 करोड़ नागरिकों के वैधता फॉर्म इकट्ठे किए गए। इसके लिए बूथ स्तर अधिकारी (BLO) और बूथ स्तर एजेंट (BLA) ने अहम भूमिका निभाई। इन्होंने घर-घर जाकर नागरिकों से आवश्यक जानकारी एकत्र की। 25 जुलाई 2025 तक पहले चरण को 99.8% कवरेज के साथ सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया। अब चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पहले चरण के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक बिहार में अब 7.24 करोड़ वोटर हैं। पहले यह आंकड़ा 7.89 करोड़ था। वोटर लिस्ट रिवीजन के बाद 65 लाख नाम सूची से हटा दिए गए हैं। हटाए गए नामों में वे लोग शामिल हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं या फिर कहीं और स्थायी रूप से रह रहे हैं या जिनका नाम दो वोटर लिस्ट में दर्ज था। इनमें से 22 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। 36 लाख मतदाता स्थानांतरित पाए गए, जबकि 7 लाख लोग अब किसी और क्षेत्र के स्थायी निवासी बन चुके हैं।

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