राहुल गांधी इन दिनों विदेश दौरे पर हैं। दो दिन जर्मनी में रहने के बाद 24 अगस्त को उन्होंने लंदन में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटिजिक स्टडीज को संबोधित किया। कांग्रेस अध्यक्ष ने वहां भारत की विदेश नीति का मजाक उड़ाया। इसके बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बारे में अमर्यादित टिप्पणी करते हुए कहा कि वे अधिकतर समय वीजा बनाने में व्यस्त रहती हैं। विदेश नीति पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘’अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाए रखना यह भारत की विदेश नीति का अहम लक्ष्य होना चाहिए।‘’ उन्होंने मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति को भी कठघरे में खड़ा किया है।
जाहिर है राहुल गांधी ने अपनी ‘समझ’ के अनुसार जवाब दिया। हालांकि इस दौरान वह भारत का कितना नुकसान कर गए, शायद उन्हें नहीं पता। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह दिन रात मेहनत कर विदेशों में भारत की साख बनाई है, राहुल गांधी उसमें पलीता लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री पद के लिए लालयित राहुल गांधी को यह भी नहीं पता अमेरिका और चीन से अलग भारत की अपनी विदेश नीति है।
मोदी सरकार के दौरान भारत स्वयं एक महाशक्ति के तौर पर उभर चुका है और जिस संतुलन की बात राहुल गांधी कर रहे हैं, वह समय के साथ अपना स्थान भी प्राप्त कर चुका है। बहरहाल राहुल गांधी अपनी ‘बुद्धि’ के अनुसार वक्तव्य देते हैं, और कई बार देश की फजीहत करवा चुके हैं।
राहुल गांंधी की विदेश नीति की कितनी समझ है इसका सबूत तब भी सामने आया था जब बीते साल 15 अक्टूबर को उन्होंने एक ट्वीट किया था।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 15 अक्टूबर को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्वीट साझा किया, इस ट्वीट में ट्रंप ने पाकिस्तान और अमेरिका के बीच अच्छे हो रहे संबंध का जिक्र किया है। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा एक अमेरिकी-कनाडाई दंपती को हक्कानी आतंकी नेटवर्क से मुक्त कराने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा था कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते विकसित करने की शुरुआत कर दी है, लेकिन इस ट्वीट को राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसने के लिए उपयोग किया जिसमें कहा, “मोदी जी जल्दी कीजिए, लग रहा है डोनाल्ड ट्रंप को एकबार और गले लगाने की जरूरत है।”
Modi ji quick; looks like President Trump needs another hug pic.twitter.com/B4001yw5rg
— Office of RG (@OfficeOfRG) October 15, 2017
प्रणब दा को पसंद है पीएम मोदी की विदेश नीति
अब राहुल गांधी ने ट्रम्प के ट्वीट को कितना समझा इस पर तो सवाल नहीं उठाए जा सकते, लेकिन वे अपने देश और उसकी विदेश नीति को कितना समझते हैं इस पर सवाल जरूर उठ रहे हैं। दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने इंट्रेस्ट की बातें की, जो हर देश करता है और करना भी चाहिए। राहुल गांधी को इसमें अपने देश का अपमान दिखा और वे सीधे प्रधानमंत्री मोदी का अपमान करने लगे, लेकिन राहुल गांधी की बात को इस देश के लोग कितनी गंभीरता से लेते हैं ये तो जगजाहिर है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरीके से देश की विदेश नीति में जान डाली है उसकी तारीफ तो स्वयं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी करते हैं।
विदेश नीति में डाल दी नयी जान
NDTV को दिए इंटरव्यू में पूर्व राष्ट्रपति ने खुले दिल से स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश नीति में नयी जान डाल दी है। उन्होंने कहा, ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशासन, राजनैतिक गतिशीलता तथा विदेश नीति की जटिलताओं को संसद का कोई भी अनुभव हुए बिना समझ लिया। याद रखना चाहिए, उनके लिए संसद का कुछ साल का भी अनुभव पाए बिना एक राज्य से यहां आना आसान नहीं था।”
पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को लेकर प्रधानमंत्री की समझ के बारे में उदाहरण देते हुए डॉ मुखर्जी ने कहा, ”प्रधानमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ लेने से पहले उन्होंने (नरेंद्र मोदी ने) सुझाव दिया था कि समारोह में सभी सार्क देशों के प्रमुखों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए। यह अनूठा सुझाव था, और मैं तुरंत तैयार हो गया।” अब जब देश के पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठतम नेता रह चुके प्रणब मुखर्जी भी प्रधानमंत्री की विदेश नीति की प्रशंसा करते नहीं थक रहे तो राहुल गांधी पीएम मोदी की विदेश नीति पर किस समझ के साथ सवाल उठा रहे हैं? ये सभी जानते हैं कि बांग्लादेश से चालीस साल पुराना विवाद पीएम मोदी के नेतृत्व में ही समाप्त हुआ। नेपाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, म्यांमार, अफगानिस्तान जैसे देशों से भारत के संबध कितने मधुर हो चुके हैं।
48 साल के ‘अपरिपक्व’ राहुल को चीन क्यों पसंद है?
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर जिस तरह से देश के अंदरूनी मुद्दों पर अपनी बात रखते हैं उसी तरह का उनका रवैया संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी दिखता है। 6 अक्टूबर को उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट को शेयर करते हुए ट्वीट कर प्रधानमंत्री से उस पर जवाब की मांग कर दी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि डोकलाम पर अभी भी 500 से अधिक चीनी सैनिक तैनात हैं, लेकिन डोकलाम में ऐसा कुछ था ही नहीं। ऐसे में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या देश का प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे युवराज को देशहित की इतनी भी समझ नहीं। इससे पहले भी डोकलाम विवाद के बीच चीन के राजदूत से जाकर मिलना युवराज की अपरिपक्वता ही तो दिखाती है। चीनी दूतावास के WeChat अकाउंट ने 8 जुलाई को राहुल की बैठक की पुष्टि की थी, जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी की चीनी राजदूत से मुलाकात करने की खबरों को ‘फर्जी’ करार देते हुए इसे सिरे से खारिज किया था, लेकिन बाद में कांग्रेस ने इसे स्वीकार भी किया। जाहिर है हर मोर्चे पर पीएम मोदी की मात से बौखलाए युवराज ने एक बार फिर देशहित से खिलवाड़ किया था।
अमेरिका से बेहतर हुए संबंध
2014 से पहले का वह दौर याद कीजिए जब भारत और अमेरिका के रिश्ते हिचकोले खा रहे थे। विदेश मामलों से लेकर घरेलू मुद्दों पर अमेरिकी थिंक टैंक भारत के साथ सहज नहीं था। कई मोर्चों पर तल्खी बढ़ रही थी और आर्थिक मोर्चे पर सहयोग में भी अस्थिरता थी। आतंकवाद के मामले में अमेरिका भारत के पक्ष को समझ तो रहा था, लेकिन खुलकर साथ नहीं आ रहा था। रूस के साथ भारत के बेहतर संबंध अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग में आड़े आ रहा था। इसके साथ ही वैश्विक परिदृश्य में दो ध्रुवीय शक्ति के कमजोर पड़ने के साथ ही अप्रासंगिक हो चुकी भारत की ‘गुटनिरपेक्ष’ नीति भी कन्फ्यूजन के दौर से गुजर रही थी। लेकिन प्रधानमंत्री के चार अमेरिका दौरों के बाद दोनों देशों के बीच जो बैरियर थे वो ब्रिज बन गए हैं। अब अमेरिका की अधिकतर नीतियों में भारत को प्राथमिकता दी जा रही है और भारत-अमेरिका के बीच आपसी विश्वास और परस्पर सहयोग नये मुकाम पर पहुंच गया है।
इजरायल जाने वाले पहले पीएम
”जागो दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण पीएम आ रहे हैं।” 28 जून को बिजनेस डेली ‘द मार्कर’ छपे इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इस वक्तव्य से पता चलता है कि इजरायल भारत को कितना महत्व देता है। ठीक वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तेल अवीव के दौरे से ठीक पहले कहा कि उनका यह दौरा दोनों देशों के बीच रिश्तों की प्रगाढ़ता के लिए विशेष महत्व का है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो इजरायल के दौरे पर गए हैं। देश में तुष्टिकरण की राजनीति के तहत इजरायल जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी को दरकिनार करना अब भारत का हिस्सा नहीं है। भारत ने इजरायल के साथ सकारात्मक संबंध बनाए हैं और आज दुनिया में कोई एक देश जो पूरे दिल से भारत के साथ खड़ा है तो वो इजरायल है। 20 सितंबर को यूएन में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की।
सार्क सेटेलाइट से नयी विदेश नीति
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरुरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है, लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।
ब्रिक्स देशों ने भारत की बात मानी
चीन में ब्रिक्स सम्मेलन में संयुक्त घोषणापत्र में आतंकवाद पर निशाना साधा गया। इसकी सबसे खास बात तो यह रही कि इस सम्मेलन में कई पाकिस्तानी आतंकी संगठनों पर भी निशाना साधा गया। घोषणापत्र में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हक्कानी नेटवर्क और तहरीक-ए-तालिबान जैसे आतंकी संगठनों का जिक्र किया गया। जैश की निंदा किए जाने वाले इस घोषणापत्र पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी मंजूरी है, लेकिन ये इतना आसन नहीं था। ज्वाइंट स्टेटमेंट में चीन लगातार कोशिश कर रहा था कि वह आतंकवाद पर कोई बात न हो सके। सम्मेलन से दो दिन पहले चीन ने कहा कि ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान के काउंटर आतंकवाद पर चर्चा करना सही नहीं है, लेकिन पीएम मोदी की कूटनीति में घिरे चीन को भी भारत की बात माननी पड़ी और आतंकवाद का मुद्दा शामिल करना पड़ा।
विश्व बिरादरी में पाक अलग-थलग
जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैठ को तबाह किया। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं।
पाकिस्तान के मुद्दे पर वैश्विक समर्थन हो या फिर योग से लेकर पर्यावरण तक जैसे संवेदनशील विषय – हर जगह प्रधानमंत्री मोदी ने भारत का मान बढ़ाया है। Perform India ने इस विषय पर गहन रिसर्च करने के बाद जो जानकारी हासिल की, वो चौंकाने वाली है। विश्व के कई ऐसे महत्वपूर्ण देश हैं, जहां दशकों से हमने उदासीन रवैया अपना रखा था, जहां भारत का कोई प्रधानमंत्री कई दशकों तक नहीं गया, बल्कि इजराइल जैसे देश में तो कभी कोई प्रधानमंत्री आज तक गया ही नहीं। हमने ऐसे ही सभी देशों की लिस्ट खंगाली है, जिसे देखकर आप प्रधानमंत्री मोदी के लिए गर्व कर सकते हैं और विदेश नीति में जादुई छड़ी का एहसास कर सकते हैं।
आइए, एक नजर डालते हैं पिछले तीन सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे कौन-कौन से देशों की यात्रा की है, जहां दशकों से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था।
21 साल बाद दावोस की यात्रा – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व आर्थिक मंच की बैठक में शामिल होने के लिए दावोस में हैं। पीएम मोदी करीब 21 साल बाद दावोस जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री है। उनसे पहले 1997 में एचडी देवेगौड़ा दावोस गए थे। मुख्य अतिथि के रूप में वहां पहुंचने वाले श्री मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। क्योंकि आजादी के बाद से अबतक किसी भारतीय प्रधानमंत्री को यह अवसर नहीं मिला।
17 वर्ष बाद नेपाल की यात्रा -3 अगस्त से 5 अगस्त 2014 के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल की यात्रा की। यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पिछले 17 साल में नेपाल की पहली यात्रा थी। नेपाल जैसे महत्वपूर्ण पड़ोसी देश की यात्रा करने में 17 साल का अंतराल होना, एक आश्चर्य की बात है।
20 वर्षों बाद किर्गिस्तान का दौरा- पिछले 20 वर्षों में प्रधानमंत्री का यह पहला दौरा था। प्रधानमंत्री मोदी 12 जुलाई ,2015 को किर्गिस्तान के दौरे पर गये।
12 वर्षों बाद ताजिकिस्तान की यात्रा- प्रधानमंत्री मोदी ने 12 और 13 जुलाई, 2015 को ताजिकिस्तान का दौरा किया। नवम्बर, 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा प्रधानमंत्री के तौर पर ताजिकिस्तान की यात्रा की गई थी, उसके बाद किसी प्रधानमंत्री ने दौरा नहीं किया।