Home नरेंद्र मोदी विशेष प्रधानमंत्री मोदी ने वेद-उपनिषद के जरिए दुनिया को दिया संदेश

प्रधानमंत्री मोदी ने वेद-उपनिषद के जरिए दुनिया को दिया संदेश

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मंच से वेद-उपनिषद के श्लोकों के जरिए दुनिया को कई संदेश दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने शांति और सहयोग के साथ संदेश दिया कि भारत सबको साथ लेकर, सबके साथ चलना चाहता है। उन्होंने कहा कि साथ मिलकर ही सभी देश वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। श्री नरेन्द्र मोदी ने संस्कृत के श्लोकों को पढ़ा और उसका मतलब भी बताया।

“वसुधैव कुटुम्बकम्”
दावोस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, ‘भारत में हम अनादिकाल से मानव मात्र को जोड़ने में विश्वास करते आये हैं, उसे तोड़ने में नहीं, उसे बांटने में नहीं। हज़ारों साल पहले संस्कृत भाषा में लिखे गये ग्रंथों में भारतीय चिंतकों ने कहा: “वसुधैव कुटुम्बकम्”। यानि पूरी दुनिया एक परिवार है। तत्वतः हम सब एक परिवार की तरह बंधे हुए हैं, हमारी नियतियां एक साझा सूत्र से हमें जोड़ती हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् की यह धारणा निश्चित तौर पर आज दरारों और दूरियों को मिटाने के लिए और भी ज्यादा सार्थक है।’

“भूमि माता, पुत्रो अहम् पृथ्व्याः”
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, ‘मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है जलवायु परिवर्तन का। आर्कटिक की बर्फ पिघलती जा रही है। द्वीप डूब रहे हैं, या डूबने वाले हैं। बहुत गर्मी और बहुत ठंड, बेहद बारिश और बाढ़ या बहुत सूखा– एक्स्ट्रीम वेदर का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। आपने अनेक बार सुना होगा भारतीय परम्परा में प्रकृति के साथ गहरे तालमेल के बारे में। हजारो साल पहले हमारे शास्त्रों में मनुष्यमात्र को बताया गया- “भूमि माता, पुत्रो अहम् पृथ्व्याः” यानि, we the human are children of Mother Earth.यदि हम पृथ्वी की संतान हैं तो आज मानव और प्रकृति के बीच जंग-सी क्यों छिड़ी है?

‘तेन त्यक्तेन भुन्जीथा, मागृधःकस्यस्विद्धनम्।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, ‘हज़ारों साल पहले भारत में लिखे गए सबसे प्रमुख उपनिषद ‘इशोपनिषद’ की शुरुआत में ही तत्त्वद्रष्टा गुरु ने अपने शिष्यों से परिवर्तनशील जगत के बारे में कहा: ‘तेन त्यक्तेन भुन्जीथा, मागृधःकस्यस्विद्धनम्। यानि संसार में रहते हुए उसका त्याग पूर्वक भोग करो, और किसी दूसरे की सम्पत्ति का लालच मत करो। ढाई हज़ार साल पहले भगवान् बुद्ध ने अपरिग्रह यानि आवश्यकता के अनुसार इस्तेमाल को अपने सिद्धांतों में प्रमुख स्थान दिया। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का trusteeship का सिद्धांत भी आवश्यकता यानि need के अनुसार उपयोग और उपभोग करने के पक्ष में था।’

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यंतु, माकश्चिद् दुख भाग भवेत्
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि, ‘भारत ने कोई राजनैतिक या भौगोलिक महत्वाकांक्षा नहीं रखी है। हम किसी भी देश के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण नहीं करते बल्कि उस देश के लिए उसके साथ मिलकर उनका विकास करते हैं। भारतीय भूभाग में हज़ारों साल से विविधता के सौहार्दपूर्ण सह अस्तित्व का सीधा नतीजा यह है कि हम बहु-सांस्कृतिक संसार में और मल्टी-पोलर विश्व-व्यवस्था में विश्वास रखते हैं। भारत ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र, विविधता का सम्मान, सौहार्द्र और समन्वय, सहयोग और संवाद से सभी विवादों और दरारों को मिटाया जा सकता है। भारत के चिंतकों ने, ऋषि मुनियों ने प्राचीन काल से ही सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यंतु, माकश्चिद् दुख भाग भवेत्– यानी सब प्रसन्न हों, सब स्वस्थ हों, सबका कल्याण हों और किसी को दुःख ना मिले– यह सपना देखा है और इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए, इस सपने को साकार करने के लिए रास्ता भी दिखाया है।

सहनाऽवतु, सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहे।
तेजस्विनाधीतमस्तु मा विद्विषावहे।
उन्होंने कहा कि, ‘इस हजारोंसाल पुरानी भारतीय प्रार्थना का अभिप्राय है कि हम सब मिलकर काम करें, मिलकर चलें, हमारी प्रतिभाएं साथ-साथ खिलें और हमारे बीच कभी भी द्वेष न हो।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस में कहा कि, ‘भारत और भारतीयों ने पूरे विश्व को एक परिवार माना है। विभिन्न देशों में भारतीय मूल के 3 करोड़ लोग रह रहे हैं। जब हमने पूरी दुनिया को अपना परिवार माना है, तो दुनिया के लिए भी हम भारतीय उनका परिवार हैं। मैं आप सबका आह्वान करता हूं कि अगर आप वेल्थ के साथ वैलनेस चाहते हैं, तो भारत में काम करें। अगर आप हेल्थ के साथ जीवन की होलनेस यानि समग्रता चाहते हैं तो भारत में आयें। अगर आप प्रोस्पेरिटी के साथ पीस चाहते हैं तो भारत में रहें। आप भारत आएं, भारत में हमेशा आपका स्वागत होगा।

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