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बिहार में PM Modi के ऐतिहासिक कमाल के बाद अब पश्चिम बंगाल की बारी, एनडीए की प्रचंड जीत से CM Mamata के होश उड़े

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में बिहार में एनडीए की ऐतिहासिक विजय केवल एक चुनाव का रिजल्ट नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक बढ़त है, जिसकी गूंज पश्चिम बंगाल में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों में सुनाई देना तय है। बिहार की जनता-जनार्दन ने विकास, सुशासन और देश में स्थिर नेतृत्व की राजनीति को जिस प्रचंडता से स्वीकार किया है, वह बंगाल के मतदाताओं में तुलना की नई भावना भरने वाला है। पीएम मोदी फैक्टर की आक्रामक अपील, महिला मतदाताओं का निर्णायक समर्थन और जंगलराज बनाम विकास नैरेटिव, ये तीनों फैक्टर बंगाल के चुनावी माहौल को भी गहराई से प्रभावित करेंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इसका आभास हो चला है। इसलिए तृणमूल कांग्रेस और उसकी नेता के होश अभी से उड़े हुए हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की लगातार जीत का यह ट्रेंड पूर्वी भारत के दूसरी राज्यों— पश्चिम बंगाल और झारखंड पर भी प्रभाव डाल सकता है। इसलिए, यह महाविजय ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए एक रणनीतिक चुनौती बन गई है। बिहार चुनाव परिणाम का संदेश स्पष्ट है- भावनात्मक राजनीति से ऊपर उठकर मतदाता अब सुरक्षा, अवसर और परिवर्तन की राह देख रहा है।

बिहार की निर्णायक जीत में व्यापक राजनीतिक संदेशवाहक भी समाहित
बिहार की महाविजय को केवल किसी राज्य के चुनावी नतीजों के नजरिए से नहीं देखा जा सकता। यह साधारण नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की बनती-बिगड़ती धाराओं का संकेत है। यह जीत जितनी निर्णायक है, उतनी ही व्यापक राजनीतिक संदेशवाहक भी है। बिहार का यह जनादेश अपने भीतर वह ऊर्जा, विश्वास और मनोवैज्ञानिक प्रभाव रखता है, जिसकी प्रतिध्वनि अगले साल पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में सुनाई देने वाली है। सवाल यह नहीं कि इसका कितना असर होगा या फिर होगा भी या नहीं। असल चुनौती यह समझने की है कि यह असर कैसे, कितना और किस रूप में राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेगा। बिहार में जिस तरह विकास, सुशासन और नेतृत्व की स्वीकार्यता ने भावनात्मक और जातीय राजनीति को कई स्तरों पर पीछे छोड़ा, उससे पश्चिम बंगाल में भाजपा को यह कहने का और बड़ा आधार मिला है कि परिवर्तन केवल कल्पना-मात्रा नहीं, बल्कि सप्रयास प्राप्त किया जा सकने वाला विकल्प है।

बिहार में विकास और सुशासन को प्रचंड समर्थन तो बंगाल क्यों नहीं?
मनोवैज्ञानिक रूप से देखें, तो यह संदेश अत्यंत प्रभावी प्रतीत होता है। बिल्कुल पड़ौस के प्रदेश में जब मतदाता विकास-प्रधान राजनीति को प्रचंड समर्थन दे सकते हैं, तो बंगाल क्यों नहीं?दरअसल, किसी भी चुनाव में जीत का पहला असर मनोबल पर पड़ता है। एक पक्ष का उभार, दूसरे पक्ष का दबाव। बिहार की जीत ने भाजपा और एनडीए को केवल सीटों का अंकगणित नहीं दिया, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण नैरेटिव की मजबूती दी है। बंगाल में लड़ाई न केवल जमीन पर, बल्कि दिल-दिमाग के भीतर भी होगी। बिहार का जनादेश ऐसे समय आया है जब बंगाल की राजनीति बड़े विमर्शों में उलझी है। क्या पश्चिम बंगाल का मतदाता परिवर्तन की प्रबल इच्छा रखता है? क्या वह तृणमूल सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों से आजिज आ चुका है? क्या ममता बनर्जी का मां, माटी और मानुष का नारा खोखला पड़ चुका है?

महाविजय में मोदी फैक्टर, नेरेटिव, नारे और भाषणशैली निर्णायक
बिहार की जीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति, नेरेटिव, नारे और भाषणशैली निर्विवाद रूप से निर्णायक रही। चुनाव प्रचार के दौरान उनकी रैलियों की उमड़ी भीड़। इन मतदाताओं से संवादशैली में संबंध बनाने की कला, उनके शब्दों की धार और प्रति-संदेशों का असर, इन सबने मिलकर जमीन पर एनडीए के उम्मीदवारों के लिए माहौल बनाया। बंगाल में यह असर और भी अधिक होने की संभावना इसलिए भी है, क्योंकि वहां भाजपा अभी मजबूत “विकल्प” बनने की यात्रा में है। मोदी की लोकप्रियता वहां भाजपा को वह आधार दे सकती है, जो परंपरागत संगठनात्मक ढांचे की कमी को आंशिक रूप से भर देगा। इसके अलावा बिहार के ऐतिहासिक नतीजों ने भाजपा थिंक टैंक को यह कहने का नैतिक अधिकार दिया है कि मोदी पर विश्वास केवल एक राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि व्यापक चुनावी स्थिरता का संकेत है। उनकी राष्ट्रीय नेतृत्व की शानदार छवि ममता बनर्जी के समानांतर एक शक्तिशाली धुरी निर्मित कर सकती है।

मां गंगा के जैसे महाविजय भी बिहार से पश्चिम बंगाल तक जाएगी
पीएम मोदी ने इशारों में कह दिया है कि जैसे मां गंगा बिहार से बंगाल तक जाती है, वैसे ही बिहार की जीत भी बंगाल तक जाएगी। इस जीत में राज्य सरकार के शोषण की शिकार महिलाएं और रोजगार को तरसते युवा (MY फैक्टर) निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं। दरअसल, महिला सुरक्षा, सशक्तिकरण, स्वरोजगार से आर्थिक मजबूती और लाभार्थी राजनीति का नया समीकरण नारीशक्ति को भाजपा की ओर आकर्षित कर रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए पांच विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं की बढ़-चढ़कर वोटिंग इसकी साक्षी हैं। इसके अलावा वंशवाद और भ्रष्टाचार को लेकर भी टीएमसी सरकार पर निशाना साधने का फैसला किया गया है। बीजेपी मुस्लिम तुष्टीकरण को लेकर भी टीएमसी को घेरने की रणनीति पर काम कर रही है। बीजेपी नेताओं के अनुसार राज्य की 120 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने कभी न कभी जीती हैं। अब पार्टी की रणनीति इन सीटों के अलावा अन्य 50-60 सीटों पर पूरी ताकत लगाने की है, ताकि 180 सीटों को जीता जा सके।

अब महिला सुरक्षा और सम्मान बड़े पैमाने पर मुख्य चुनावी मुद्दा
बंगाल में महिला मतदाता ऐतिहासिक रूप से हमेशा चुनावी समीकरण का बड़ा हिस्सा रही हैं और ममता बनर्जी ने उन्हें अपने सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों से लंबे समय तक अपने पक्ष में रखा है। लेकिन बिहार का संदेश यह है कि जब महिला सुरक्षा, स्थिरता और सम्मान का प्रश्न बड़े पैमाने पर मुख्य मुद्दा बनता है, तो उसका सत्ता-विरोधी प्रभाव भी हो सकता है। संदेशखाली से लेकर आरजी मेडिकल और लॉ कालेज तक में दुष्कर्म की दास्तानें ममता बनर्जी की सत्ता के पाए हिला रही हैं। बिहार की जीत ने यह साबित किया कि महिलाओं का वोट अब भावनात्मक नहीं, बल्कि ठोस वादों और अनुभवों पर आधारित हो रहा है। यह प्रवृत्ति बंगाल में भाजपा के लिए अनुकूल हो सकती है।

 

बेरोजगारी और पलायन ने युवा मतदाताओं में जगाई परिवर्तन की प्यास
बिहार में युवा मतदाताओं ने “स्टार्ट-अप, नॉट हैंड्स-अप” जैसे संदेशों को अभूतपूर्व समर्थन दिया। यह विमर्श केवल नारेबाजी नहीं था, बल्कि युवा आकांक्षाओं की राजनीति का प्रतीक बन गया। पश्चिम बंगाल में बेरोजगारी, उद्योगों का पलायन, नई आर्थिक अवसरों की कमी ये मुद्दे लंबे समय से असंतोष का कारण रहे हैं। यह तृणमूल के अलावा किसी भी पार्टी के लिए शक्तिपुंज साबित हो सकता है कि वह युवा मतदाताओं के बीच परिवर्तन का अधिक ठोस और विश्वसनीय विकल्प बनकर उभरे। बंगाल में ममता सरकार की उपलब्धियों के बावजूद युवाओं के मन में एक बड़ा प्रश्न हमेशा मौजूद रहा है- “क्या मेरी आगे बढ़ने की जगह बंगाल में है? और क्या मेरे लिए इस राज्य में पर्याप्त अवसर हैं?” बिहार का चुनाव यह उम्मीद जगाता है कि यदि वहां जंगलराज से सुशासन और सुशासन से समृद्धि तक का परिवर्तन हुआ है, तो पश्चिम बंगाल में भी हो सकता है।

कद्दावर नेताओं को जिम्मेदारी, 70 हजार बूथों पर समितियों का गठन
बिहार में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद अब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के लिए रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। बीजेपी ने बंगाल में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देव और आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय को सौंपी है। वहीं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल पिछले तीन वर्षों से राज्य में पार्टी संगठन को मजबूत करने में लगे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने बतौर बीजेपी अध्यक्ष कहा था कि बीजेपी का पूरा उत्कर्ष तब होगा, जब वह पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के लिए फिलहाल बिना किसी चेहरे के सामूहिक नेतृत्व और प्रधानमंत्री मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। बीजेपी का जोर अपने संगठन को मजबूत करने पर है। राज्य के 91 हजार बूथों में से बीजेपी अभी करीब 70 हजार बूथों पर बूथ समितियों का गठन कर चुकी है।

संगठनात्मक ऊर्जा से विपक्षी दलों टीएमसी और वामपंथ पर दबाव
यह भी शाश्वत सत्य है कि भाजपा नेताओं की लोकप्रियता एक तरफ है और भाजपा का कुशल संगठनात्मक ढांचा एक तरफ है। अपरोक्ष रूप से आरएसएस भी भाजपा के लिए काम करता है। पश्चिम बंगाल में तो वह बिहार चुनाव से पहले ही सक्रिय हो चुका है। बूथ और पन्ना प्रमुख तक भाजपा का संगठन पार्टी और एनडीए के कार्यकर्ताओं में असाधारण आत्मविश्वास जगाता है। बंगाल के चुनाव हमेशा उच्च-ऊर्जा वाले, भावनात्मक और संघर्षपूर्ण होते हैं; ऐसे में संगठन का मनोबल आधी लड़ाई तय कर देता है। दूसरी ओर बंगाल में प्रतिद्वंद्वी दलों विशेषकर टीएमसी और वामपंथ पर अतिरिक्त दबाव बनेगा कि वे बिहार के संदेश की काट खोजें। लेकिन बिहार की जीत ने भाजपा को नैरेटिव सेट करने की बढ़त दे दी है।SIR का भी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा प्रभाव
बिहार की ही तरह पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर के बाद मतदाता सूचियों का शुद्धिकरण होगा और बड़ी संख्या में मृत मतदाताओं के नामों को हटाया जाएगा। एक बीजेपी नेता के अनुसार लेफ्ट पार्टियां साइंटिफिक रिगिंग कर राज्य में चुनाव जीतती थीं जिसमें मृतक मतदाताओं के नाम मतदाता सूचियों में शामिल रख उनके नाम पर अपने कार्यकर्ताओं से वोट कराना शामिल था, लेकिन अब एसआईआर के बाद इसमें बड़े पैमाने पर कमी आने की संभावना है। इसके साथ ही राज्य नेताओं को बेवजह की बयानबाजी से बचने को कहा गया है। उनसे कहा गया है कि वे टीएमसी के जाल में न उलझें और अपना नैरिटेव बनाएं, ताकि राज्य की जनता को साथ लिया जा सके। एकजुटता का संदेश देने के लिए राज्य के अलग-अलग इलाकों से यात्राएं निकालने पर विचार हो रहा है, जिनकी अगुवाई प्रदेश के वरिष्ठ बीजेपी नेता करेंगे।

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