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भगवान श्रीराम और हिंदुओं को कोसने वाली ममता बनर्जी का नया पैंतरा, महाकाल की आड़ में हिंदू वोट लेने का ढकोसला

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पश्चिम बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस और उसकी मुखिया ममता बनर्जी की हालिया चालबाजी ने उसे एक ऐसे नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। ममता बनर्जी लंबे समय तक खुलेआम “तुष्टिकरण की राजनीति” करती रही हैं। यहां तक कि वे हिंदू भावनाओं और भगवान श्रीराम के नाम पर उपहास का माहौल बनाती रही हैं। वही हिंदू विरोधी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब अचानक “महाकाल मंदिर” निर्माण की घोषणा कर रही हैं। सवाल उठना स्वाभाविक है क्या यह वास्तविक अध्यात्म का उद्गम है या मात्र चुनावी मौसम की राजनीतिक ठिठोली मात्र है। सभी को पता है कि अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं। हाल ही में बिहार की जनता ने भाजपा और एनडीए को जितना प्रचंड समर्थन दिया है, उसने ममता बनर्जी को हिलाकर रख दिया है। यही वजह है कि वे अब हिंदू विरोध की राजनीति से कुछ समय तक पल्ला झाड़ने की रणनीति बना रही हैं। ताकि उनका हश्र भी राजद और महागठबंधन जैसा ना हो। इसकी शुरुआत उन्होंने अचानक ‘महाकाल’ के प्रति प्रेम को दर्शाकर आरंभ की है। लेकिन पश्चिम बंगाल की प्रबुद्ध जनता जानती है कि महाकाल मंदिर का कार्ड वास्तव में अध्यात्म नहीं, यह चुनाव का गणित मात्र है।

बिहार में भाजपा की महाविजय ने ममता बनर्जी को बुरी तरह डराया
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ममता बनर्जी की यह रणनीति सिर्फ और सिर्फ चुनावी मौसम के अनुरूप है। बिहार में भाजपा की महाविजय ने ममता बनर्जी को बुरी तरह डरा दिया है। दरअसल, बीते वर्षों में पश्चिम बंगाल में भाजपा के तेजी से उभार के पीछे एक बड़ा निर्णायक वर्ग हिंदू मतदाता भी रहा है। ममता सरकार का कुशासन तो इसका बड़ा मजबूत पहलू है ही। ऐसे में तृणमूल को यह समझ आने लगा है कि बंगाल की राजनीति में राम, दुर्गा और महाकाल अब सब चुनावी विमर्श का केंद्र बन चुके हैं। बंगाल में जिस हिन्दू मतदाताओं ने 2021 में TMC को कड़ी चुनौती दी थी, वही वर्ग अब 2026 के आगामी विधानसभा चुनावों में निर्णायक बन सकता है। ममता की राजनीतिक टीम को इसका पूरा एहसास है। इसलिए अचानक बड़े-बड़े धार्मिक स्थलों की घोषणाएँ, देवी-देवताओं के नाम पर सरकारी कार्यक्रम और अब यह महाकाल मंदिर का कार्ड खेलने की कोशिश कर रही हैं।

चुनाव से पहले जनता के साथ महाकाल कार्ड खेलने की कोशिश
पश्चिम बंगाल की जनता ऐन चुनाव से पहले महाकाल कार्ड खेलने की कोशिश को देख रही है और इसे सफल नहीं होने देगी। दरअसल, सालों तक ममता बनर्जी दुर्गा पूजा विसर्जन से लेकर रामनवमी जुलूस पर प्रतिबंध लगाने या इन हिंदू धार्मिक आयोजन को सीमित करने के षडयंत्र करती रही हैं। यह छवि बंगाल से बाहर तो व्यापक रूप से बनी ही है। अब बंगाल के अंदर भी हिंदू समाज का इससे बहुत आहत हुआ है। इसीलिए उनका मानना है कि महाकाल मंदिर का कार्ड सिर्फ ममता बनर्जी की “छवि सुधार अभियान” का हिस्सा मात्र है। हकीकत में वह अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से एक इंच भी पीछे हटने वाली नहीं है। विरोधियों का कहना है कि जब कभी भगवान श्रीराम का नाम जनता के बीच ताकत से उठा है, ममता बनर्जी का पहला रिएक्शन “भगवान को राजनीति में घसीटने” की शिकायत करना होता है। लेकिन अब विडंबना देखिए आज वही सरकार धार्मिक आस्थाओं का सहारा लेराजनीतिक संदेश दे रही है।

पश्चिम बंगाल के बदलते सियासी मौसम में तृणमूल कांग्रेस की बैचैनी
ममता बनर्जी के विरोधियों का साफ-साफ तर्क है कि यह सब एक सुनियोजित, पर बेहद हड़बड़ी में तैयार की गई रणनीति है। ताकि कम से कम प्रतीकात्मक रूप से ही सही, हिंदू वोट बैंक में अपनी साख कुछ बचाई जा सके। राजनीतिक पंडित साफ कहते हैं कि यह हड़बड़ी तृणमूल कांग्रेस को फायदा पहुंचाने वाली नहीं है। दरअसल, लोकसभा चुनावों के बाद से पश्चिम बंगाल में भी भाजपा के हिंदुत्व-मुख्य एजेंडे का प्रभाव बढ़ा है और तृणमूल अपनी जमीन खिसकती देख रही है। ममता बनर्जी द्वारा मंदिरों, आरती, पूजा और धार्मिक प्रतीकों का उपयोग तब और संदिग्ध लगता है जब उन्हें यह करते वर्षों में पहली बार देखा जा रहा है। इसलिए यह शीशे की तरह साफ है कि पश्चिम बंगाल की जनता इस दिखावटी अध्यात्म और नकली आस्था का चुनाव में पुरजोर जवाब देने वाली है।

तुष्टिकरण की राजनीति और “हिंदू विरोधी छवि” के लिए मशहूर
यह स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल का मतदाता—भोला नहीं, बल्कि सजग, प्रबुद्ध और आस्थावान है। बंगाल की राजनीति इन दिनों केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि यह प्रतीकों, आस्थाओं और भावनाओं का अखाड़ा बन चुकी है। इसी अखाड़े के बीच खड़े होकर ममता बनर्जी ने अचानक “महाकाल मंदिर” का कार्ड खेलने को मजबूर हो चुकी हैं। “तुष्टिकरण की राजनीति” और घोर “हिंदू विरोधी छवि” के बीच ममता बनर्जी ने अब सिलीगुड़ी में 17.4 एकड़ भूमि पर महाकाल मंदिर की घोषणा की है। यह ऐन चुनावी वर्ष से पहले की केवल रणनीतिक घोषणा है। जिसका उद्देश्य उनके माथे पर लगा हिंदू विरोध के दाग को धोना है। लेकिन बंगाल का हिंदू मतदाता उनके इस राजनीतिक पैंतरे को समझ गया है। दरअसल, ममता ने बरसों तक “हिंदुत्वात्मक प्रतीकों से दूरी” बनाए रखी। लेकिन अब जब भाजपा का हिंदू मतदाता आधार बंगाल की राजनीति में निर्णायक बनता जा रहा है, तभी अचानक ममता को “महाकाल” याद आने लगे हैं।

महाकाल मंदिर मजाक- बिना प्रोजेक्ट लागत के जमीन आवंटित
सवाल यह भी है कि यह हिंदू विरोधी मानसिकता वाली ममता के मन में अध्यात्म किस गति से जागृत हुआ? बंगाल कैबिनेट ने अक्टूबर 2025 में महाकाल मंदिर निर्माण के लिए भूमि को पर्यटन विभाग को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। 25.15 एकड़ जमीन में से 17.4 एकड़ केवल मंदिर परिसर के लिए निर्धारित कर दी गई। लेकिन सबसे बड़ा मजाक देखिए, प्रोजेक्ट लागत जो किसी भी सरकारी परियोजना की पारदर्शिता का मुख्य तत्व होती है—अब तक घोषित नहीं की गई है। इतने बड़े पैमाने पर भूमि आवंटन हो गया, सरकारी पहल की प्रेस कॉन्फ़्रेंसें हो गईं। राजनीतिक संदेश देने की खोखली कोशिश भी हो गई, पर असल परियोजना व्यय का कोई ठोस आंकड़ा सार्वजनिक मंचों पर नहीं रखा गया। क्या यह जल्दबाजी और हड़बड़ी का संकेत नहीं है?

 

बंगाल की जनता-जनार्दन के मन में बिहार की शानदार जीत बैठी
इस राजनीतिक जल्दबाजी के पीछे कारण भी उतने ही स्पष्ट हैं। बंगाल की जनता-जनार्दन के मन में बिहार की शानदार जीत से भाजपा की धार्मिक अपील गहरी पैठ बना चुकी है। राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, शानदार शुरुआत और अब भगवा शिखर ध्वजारोहण ने राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू आस्था की एक नई ऊर्जा पैदा की—जो बंगाल में भी शिद्दत से महसूस की जा रही है। यह असर तृणमूल कांग्रेस के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक समर्थन मिला था, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ हिंदू मतदाता संख्या अधिक है। और 2026 की ओर बढ़ते हुए यह समर्थन और प्रभाव दोनों ही बढ़ते दिख रहे हैं। ऐसे में ममता बनर्जी का महाकाल मंदिर निर्माण कार्ड विरोधियों के लिए तो केवल एक “राजनीतिक औजार” है। ऐसा औजार जिसे मजबूरी में उठाया गया है।

ममता को 14 वर्षों में कभी महाकाल का ख्याल क्यों नहीं आया?
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे दिलचस्प पहलू है, महाकाल मंदिर बनाने के लिए समय का चुनाव। अगर ममता बनर्जी को महाकाल में इतनी ही आस्था थी तो यह विचार पिछले 14 वर्षों में कभी क्यों नहीं आया? क्यों यह घोषणा ठीक उसी समय आई जब हिंदू मतदाता का झुकाव विपक्ष की ओर तेजी से बढ़ रहा है? क्यों वही नेता, जिन्होंने रामनवमी जुलूस, दुर्गा विसर्जन, रथ यात्रा जैसे आयोजनों पर कहाँ–कहाँ पर प्रतिबंध या प्रतिबंध–समान व्यवस्थाएँ लागू की थीं, आज मंदिर निर्माण की अगुआई कर रही हैं? क्या यह किसी अचानक हुए आध्यात्मिक परिवर्तन का परिणाम है, या फिर यह चुनावी मजबूरी की तपिश में तैयार की गई रणनीति है? बंगाल के राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस कदम के पीछे सत्ता खोने का डर भी है। क्योंकि जनता सजग हो चुकी है। वह जानती है कि जब आस्था वास्तविक होती है तो सरकार के निर्णय लंबे समय तक धार्मिक समुदायों के विश्वास को मजबूत करते हैं। और जब निर्णय केवल चुनावी समय में, अचानक, बिना किसी व्यापक परामर्श या स्पष्ट योजना के आते हैं, तो वे आस्था से अधिक राजनीति की गंध देते हैं।

मंदिर आस्था का स्मारक या चुनावी मौसम में खोला राजनीतिक मंच
यहां सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या बंगाल की जनता इसे स्वीकार करेगी? क्या वह इस मंदिर को आस्था का स्मारक मानेगी, या इसे चुनावी मौसम में खोला गया एक राजनीतिक मंच समझेगी? बंगाल के मतदाता को भावुक अवश्य कहा जा सकता है, पर भोला नहीं। यह वह जनता है जिसने साम्प्रदायिक तनावों, राजनीतिक झगड़ों और सांस्कृतिक संघर्षों के बीच भी अपनी राजनीतिक समझ को अक्षुण्ण रखा है। वह नेता की भक्ति और सत्ता की भूख में फर्क करना जानती है। ममता बनर्जी चाहे कितना भी इसे धार्मिक पहल बताए, लेकिन भाजपा नेता साफ-साफ इसे चुनावी छलावा बता रहे हैं। उनका तर्क है कि अगर यह पहल सचमुच धार्मिक होती, तो इसकी घोषणा उतनी ही शांति और स्वाभाविकता के साथ आती जितनी अन्य विकास परियोजनाएँ आती हैं। लेकिन जिस अंदाज़ में महाकाल मंदिर को एक विशाल परियोजना के रूप में उछाला जा रहा है, वह इसे एक राजनीतिक हथियार जैसा दिखाता है।

पश्चिम बंगाल की हिंदू विरोधी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदुओं की आस्था पर कई सालों से लगातार प्रहार करती रही हैं। ममता राज में पूरी तरह से तालिबानी शासन है। पश्चिम बंगाल में हिंदू देवी-देवताओं का नाम लेना अपराध बन गया है। आइए, हिंदू विरोधी ममता बनर्जी की तानाशाही पर डालते हैं एक नजर…

सबूत नंबर-21
राम नाम मास्क बांटने पर बीजेपी नेता गिरफ्तार
पश्चिम बंगाल के हुगली में जय श्रीराम मास्क बांटना ममता बनर्जी की पुलिस को रास नहीं आया। पुलिस मास्क बांटने वाले बीजेपी नेताओं को पकड़कर ले गई। हुगली के सेरामपुर में बीजेपी नेता अमनिश अय्यर लोगों को ‘जय श्रीराम’ लिखा मास्क बांट रहे थे। इसी दौरान पुलिस वहां पहुंची और बीजेपी नेता को गिरफ्तार करके ले गई। इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने विरोध जताते हुए जमकर जय श्रीराम के नारे लगाए। बीजेपी ने मास्क बांटने पर पार्टी नेता को गिरफ्तार करने को पूर्ण तानाशाही करार दिया है।

सबूत नंबर-20
भगवा टीशर्ट पहनने और जय श्रीराम बोलने से रोका
इसके पहले 7 फरवरी, 2021 को भगवा टीशर्ट पहनने और जय श्रीराम बोलने वालों को धमकाया गया। कोलकाता के इको पार्क में पुलिस के एक अधिकारी ने लोगों से साफ कहा कि आप लोग यहां जय श्री राम का नारा नहीं लगा सकते हैं।

सबूत नंबर-19
पार्टी नेता ने जय श्रीराम बोलने वालों को धमकाया
हाल ही में उनकी पार्टी के एक नेता ने जय श्रीराम बोलने वालों को धमकाया। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के एक नेता ने लोगों को धमकाते हुए कहा कि अगर बंगाल में रहना चाहते हो तो यहां ‘जय श्री राम’ के नारे नहीं लगा सकते। वीडियो में किसी सभा को संबोधित करते हुए टीएमसी नेता ने बंगाली में कहा कि राज्य में जय श्री राम बोलने की अनुमति नहीं है। यहां इन सब चीजों की अनुमति नहीं दी जाएगी। जो लोग इसका जाप करना चाहते हैं वे मोदी के राज्य गुजरात में जाकर ये कर सकते हैं।

सबूत नंबर-18
मुर्शिदाबाद में काली मां की मूर्ति जला डाला
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण और वोटबैंक को लेकर इतनी अंधी हो चुकी है कि राज्य में हिन्दू विरोधी हरकतों पर कुछ भी एक्शन नहीं लेती हैं। कभी मंदिर में पूजा करने पर पिटाई की जाती है तो कभी हिन्दुओं के घर और मंदिर जला दिए जाते हैं। कभी रामनवमी और दुर्गापूजा पर तो कभी सरस्वती पूजा पर रोक लगा दी जाती है। इससे राज्य को मुसलमानों का हौसला बुलंद है और जब भी मौका मिलता है हिंदुओं को प्रताड़ित करते रहते हैं। हाल ही में 1 सितंबर, 2020 को मुर्शिदाबाद के एक मंदिर में काली मां की मूर्ति जला दिया गया। बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने एक ट्वीट कर आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद इलाके के एक मंदिर पर हमला कर मां काली की मूर्ति जला दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि दीदी की राजनीति का जिहादी स्वरूप अब हिंदू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने पर तुला हुआ है।


सबूत नंबर-17
मंदिर में पूजा करने पर पुलिस ने की पिटाई
ममता राज में तो हिन्दुओं को मंदिरों में भी पूजा करने की आजादी नहीं है। 5 अगस्त, 2020 को जब पूरे विश्व के हिन्दू अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन को लेकर उत्साहित थे। वहीं पश्चिम बंगाल की पुलिस लॉकडाउन के बहाने हिन्दुओं पर जुल्म ढा रही थी। मंदिर में पूजा कर रहे लोगों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया। 

खड़गपुर में स्थानीय लोग राम मंदिर शिलान्यास के उत्सव में मंदिर में पूजा कर रहे थे। लेकिन ममता की पुलिस को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। इससे सार्वजनिक व्यावस्था और लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं हो रहा था। फिर भी शांतिपूर्वक पूजा कर रहे लोगों को पुलिस ने घसिटकर मंदिर से बाहर निकाला। लोग पुलिस से पूजा करने का आग्रह करते रहे, लेकिन पुलिस ने उन्हें पूजा करने की अनुमति नहीं दी।

बीजेपी कार्यकर्ता ने नारायणपुर इलाके में ‘यज्ञ’ आयोजित करने का प्रयास किया लेकिन ममता के गुंडों ने उन्हें रोक दिया। हिन्दुओं और ममता के गुंडों के बीच झड़प हो गई। जिसके बाद पुलिस ने लोगों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया। जिसमें कई लोगों को चोटें आईं। उधर खड़गपुर में श्री राम मंदिर के लिए पूजा का आयोजन किया गया था। लेकिन ममता बनर्जी की पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, महिलाओं को भी नहीं छोड़ा।

सबूत नंबर-16
तेलिनीपाड़ा में जला दिए गए हिन्दुओं के घर और मंदिर
राज्य के हुगली जिले के चंदर नगर के तेलिनीपाड़ा में मई, 2020 के महीने में कई दिनों तक हिंदुओं के खिलाफ खुलकर हिंसा हुई। हिंदुओं के घर जलाए गए। जिले के तेलिनीपाड़ा के तांतीपारा, महात्मा गांधी स्कूल के पास शगुनबागान और फैज स्कूल के पास जमकर हिंसा, आगजनी और लूटपाट की गई। प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। मालदा के शीतला माता मंदिर में भी तोड़फोड़ और आगजनी की गई।

सबूत नंबर-15
पुस्तक मेले में हनुमान चालीसा के वितरण पर लगाया प्रतिबंध
पश्चिम बंगाल में ममता की पुलिस ने कोलकाता में 44वें अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा बांटी जा रही हनुमान चालीसा की पुस्तकों पर रोक लगा दी। पुलिस ने बताया कि हनुमान चालीसा के वितरण से शहर में कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है और पुस्तक मेले में आने वाले लोग भावनाओं में बह सकते हैं।

विहिप के अधिकारियों ने पुलिस के इस कार्रवाई का विरोध किया। साथ ही पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जब मेले में कुरान और बाइबिल की पुस्तकें बांटी जा सकती हैं तो हनुमान चालीसा की क्यों नहीं? बढ़ते विरोध को देखते हुए कोलकाता पुलिस बैकफुट पर आ गई और हनुमान चालीसा के वितरण से रोक को हटा लिया। विहिप ने कहा कि हनुमान चालीसा धार्मिक पुस्तक है और इसमें किसी भी तरह की आपत्तिपूर्ण सामग्री नहीं है। लेकिन ममता राज में हिंदुओं की धार्मिक पुस्तक का विरोध किया जा रहा है।

सबूत नंबर-14
ममता बनर्जी ने स्कूली बच्चों को धर्म के नाम पर बांटा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों गंभीर हताशा और निराशा में हैं। लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद उन्हें विधानसभा चुनाव में भी भयानक हार पहले से ही दिखाई देने लगी है। यही वजह है कि ममता बनर्जी अपना वोट बैंक बचाने के लिए जोरशोर से मुस्लिम तुष्टिकरण में जुट गई हैं।

ममता बनर्जी ने राजनीतिक निर्लज्जता की सभी सीमाओं को पार करते हुए स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी मजहब के नाम पर बांट दिया। ममता बनर्जी की सरकार ने राज्य के स्‍कूलों को निर्देश दिया कि वे मुस्लिम स्‍टूडेंट्स के लिए अलग से मिड-डे मील हॉल रिजर्व करें। यह आदेश राज्‍य के उन सरकारी स्‍कूलों पर लागू होगा जहां पर 70 प्रतिशत या उससे ज्‍यादा मुस्लिम छात्र हैं। राज्‍य अल्‍पसंख्‍यक और मदरसा शिक्षा विभाग की ओर उन सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्‍त स्‍कूलों का नाम मांगा, जहां पर 70 प्रतिशत से ज्‍यादा मुस्लिम बच्‍चे पढ़ते हैं। इन सरकारी स्‍कूलों में अल्‍पसंख्‍यक बच्‍चों के लिए अलग से मिड-डे मील डायनिंग हॉल बनाया जाएगा।

सबूत नंबर-13
ममता बनर्जी ने ‘जय श्रीराम’ बोलने वालों को दी धमकी
मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी को जय श्रीराम का उद्घोष अब गाली की तरह लगने लगा है। राज्य के 24 परगना जिले में ममता बनर्जी का काफिला गुजर रहा था तभी रास्ते में भीड़ में खड़े लोगों ने जय श्रीराम का उदघोष कर दिया। जय श्रीराम सुनते ही ममता बनर्जी को गुस्सा आ गया और गाड़ी से उतरकर उन्होंने लोगों को धमकाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने जय श्रीराम कहने वालों को गिरफ्तार करने की धमकी भी दी और उन्हें दूसरे प्रदेश का बता दिया। यह कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले चुनाव के दौरान भी ममता बनर्जी ने इसी तरह जय श्रीराम कहने वालों को जेल में डालने की धमकी दी थी। 

सबूत नंबर-12
ममता बनर्जी का जय श्रीराम बोलने से इंकार, बताया गाली
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा कि वे किसी हाल में जय श्रीराम नहीं बोलेंगी। ममता का कहना है कि जय श्रीराम बीजेपी का नारा है लेकिन पीएम नरेन्द्र मोदी लोगों को यह बोलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। सच्चाई यह है कि देश में जय श्रीराम बोलने की सदियों पुरानी परंपरा है। इसके एक दिन पहले ही बंगाल में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें तृणमूल कार्यकर्ता जय श्रीराम का नारा लगा रही भीड़ को खदेड़ रहे हैं। पूरे राज्य में हिंदुओं को इसी तरह प्रताड़ित किया जा रहा है। ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के इस रवैये से बंगाल के लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। राज्य में जगह-जगह पर इसका विरोध हो रहा है और इसका असर वोटिंग पर भी पड़ना तय है। दरअसल, राज्य में अपनी पार्टी की खिसकती जमीन से ममता परेशान हो गई हैं। इससे घबराई ममता अब राज्य में धार्मिक आधार पर वोटों को बांटने की कोशिश कर रही हैं। हिंदुओं के खिलाफ बयानबाजी कर मुसलमान वोटर्स को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं।

सबूत नंबर-11
मुस्लिम प्रेम और हिंदू विरोध में देवताओं को बांटने पर तुली ममता बनर्जी
हिंदुओं के धार्मिक रीति-रिवाज, पूजा-पद्धति और पर्व-त्योहार पर लगाम लगाने के बाद ममता बनर्जी हिंदू देवी-देवताओं को बांटने में भी लग गई। हिंदुओं को बांटने के लिए ममता बनर्जी ने कहा कि हम दुर्गा की पूजा करते हैं, राम की पूजा क्यों करें? झरगाम की एक सभा में ममता ने कहा कि, ‘बीजेपी राम मंदिर बनाने की बात करती है, वे राम की नहीं रावण की पूजा करती है। लेकिन हमारे पास हमारी अपनी देवी दुर्गा है। हम मां काली और गणपति की पूजा करते हैं। हम राम की पूजा नहीं करते।’

सनातन संस्कृति में शस्त्रों का विशेष महत्त्व है। अलग-अलग पर्व त्योहारों पर धार्मिक यात्राओं में तलवार, गदा लेकर चलने की परंपरा रही है, लेकिन ममता बनर्जी ने धार्मिक यात्राओं और शस्त्र को भी साम्प्रदायिक और सेक्युलर करार दिया। गौरतलब है कि जब यही शस्त्र प्रदर्शन मोहर्रम के जुलूस में निकलते हैं तो सेक्युलर होते हैं, लेकिन रामनवमी में निकलते ही साम्प्रदायिक हो जाते हैं।

सबूत नंबर-10
राम के नाम से नफरत कई बार हो चुकी है जाहिर
ममता बनर्जी कई बार हिंदू धर्म और भगवान राम के प्रति अपनी असहिष्णुता जाहिर करती रही हैं। हालांकि कई बार कोर्ट ने उनकी इस कुत्सित कोशिश को सफल नहीं होने दिया। वर्ष 2017 में जब लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ ने 22 मार्च को रामनवमी पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया तो राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद जब समिति ने कानून का दरवाजा खटखटाया तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।


सबूत नंबर-9
बंगाल सरकार ने पाठ्यक्रम में रामधनु को कर दिया रंगधनु 
भगवान राम के प्रति ममता बनर्जी की घृणा का अंदाजा इस बात से भी जाहिर हो गई, जब तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब ‘अमादेर पोरिबेस’ (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर ‘रंगधनु’ कर दिया गया। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। दरअसल साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन मुस्लिमों को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया गया।

सबूत नंबर-8
हिंदुओं के हर पर्व के साथ भेदभाव करती हैं ममता बनर्जी
ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ कि ममता बनर्जी ने हिंदुओं के साथ भेदभाव किया। कई ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने अपना मुस्लिम प्रेम जाहिर किया है और हिंदुओं के साथ भेदभाव किया है। सितंबर, 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से ममता बनर्जी का हिंदुओं से नफरत जाहिर होता है। कोर्ट ने तब कहा था,  ”आप दो समुदायों के बीच दरार पैदा क्यों कर रहे हैं। दुर्गा पूजन और मुहर्रम को लेकर राज्य में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है। उन्‍हें साथ रहने दीजिए।”


सबूत नंबर-7
दशहरे पर शस्त्र जुलूस निकालने की नहीं दी थी अनुमति
हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है। लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी हिंदुओं की धार्मिक आजादी छीनने की हर कोशिश करती रही हैं। सितंबर, 2017 में ममता सरकार ने आदेश दिया कि दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पुलिस प्रशासन को इस पर सख्त निगरानी रखने का निर्देश दिया गया। हालांकि कोर्ट के दखल के बाद ममता बनर्जी की इस कोशिश पर भी पानी फिर गया।

सबूत नंबर-6
कई गांवों में दुर्गा पूजा पर ममता बनर्जी ने लगा रखी है रोक
10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है ममता बनर्जी ने हिंदुओं को अपने ही देश में बेगाने करने के लिए ठान रखी है। बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव ममता बनर्जी के दमन का भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया, जो अब तक कायम है।

सबूत नंबर-5
छठ पूजा मनाने पर लगा दी रोक
ममता राज में साल 2017 में राज्य के सिलीगुड़ी में महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर रोक लगा दी गई। जनसत्ता अखबार की खबर के अनुसार दार्जिलिंग की डीएम ने एनजीटी के आदेश का हवाला देकर महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर बैन कर दिया। दार्जिलिंग की जिलाधिकारी ने नदी में छठ के लिए अस्थायी घाट बनवाने से भी इनकार कर दिया और कहा कि जो कोई भी यहां छट मनाते देखा गया उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। एनजीटी ने एक अजीबोगरीब तर्क दिया कि छठ के कारण नदी में प्रदूषण हो रहा है। जबकि छठ में ऐसा कुछ भी नहीं होता जिससे नदी प्रदूषित हो। भगवान सूर्य को अर्घ्य के रूप में नदी का ही पानी अर्पित किया जाता है उसमें थोड़े से फूल और पत्ते और चावल के दाने होते हैं। ये सब प्राकृतिक चीजे हैं जिन्हें नदी में पलने वाली मछलियां और दूसरे जीव खाते हैं। ये सारी चीजें सूप में रखकर चढ़ाई जाती हैं, यानी पॉलीथिन फेंके जाने की भी आशंका नहीं होती।

सबूत नंबर-4
ममता बनर्जी ने सरस्वती पूजा पर भी लगाया प्रतिबंध
एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया तो एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली आ रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए।

सबूत नंबर-3
हनुमान जयंती पर निर्दोषों को किया गिरफ्तार, लाठी चार्ज 
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए, लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए। जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।

सबूत नंबर-2
ममता राज के 8000 गांवों में एक भी हिंदू नहीं
पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं का उत्पीड़न जारी है। दरअसल ममता राज में हिंदुओं पर अत्याचार और उनके धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक के पीछे तुष्टिकरण की नीति है। लेकिन इस नीति के कारण राज्य में अलार्मिंग परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।

सबूत नंबर-1
ममता राज में घटती जा रही हिंदुओं की संख्या
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं ज्यादा दर से बढ़ी है।

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