पश्चिम बंगाल कभी पूरे भारत के कारोबार का प्रमुख केंद्र माना जाता था, लेकिन आज ममता बनर्जी सरकार की गलत नीतियों के चलते यह उद्योगों की कब्रगाह बनता जा रहा है। एक तो वहां पहले से ही उद्योगों के आने में मुश्किलें दिख रही हैं और अब पश्चिम बंगाल सरकार ने एक ऐसा कानून बना दिया है, जिसके बाद कोई भी उद्योगपति वहां अपनी इंडस्ट्री लगाने से पहले 100 बार सोचेगा। हालात इतने खराब हो गए हैं कि अल्ट्राटेक, ग्रासिम और डालमिया सहित कई कंपनियां ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ कोलकाता हाईकोर्ट पहुंच चुकी हैं। उनका कहना है कि इस कानून से उद्योगों पर गहरा असर पड़ेगा। दरअसल, पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल में एक बिल पास किया है, जो कंपनियों को मिलने वाले अनुदान और प्रोत्साहन योजनाओं को खत्म करता है। इस कानून को सदन में पास भी किया जा चुका है। यह एक्ट कंपनियों को मिलने वाले सभी प्रोत्साहन को न सिर्फ खत्म करता है, बल्कि इसे साल 1993 से ही खत्म मान रहा है और तब से अब तक मिले सभी तरह की छूट और प्रोत्साहनों को वापस लौटाना होगा। इसका मतलब है कि पिछले 32 साल में जितनी भी स्कीम के तहत कंपनियों को छूट मिली होगी, सब सरकार को वापस करनी होंगी।
पहले नारीशक्ति को शोषण, अब उद्योगों को कब्रिस्तान बनाने वाला फैसला
महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद ममता बनर्जी के राज में महिलाओं के खिलाफ तो खूब ज्यादतियां हो ही रही हैं। अब ये सरकार उद्यमियों के खिलाफ भी मैदान में उतर आई है। सरकार ने उद्योग-धंधों की कब्रिस्तान बनाने वाला यह फैसला इस सच्चाई के बाद जानबूझकर लिया है कि ममता राज के 14 साल में 6500 सौ से ज्यादा कंपनियों ने बंगाल को ‘बाय-बाय’ बोल दिया है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2011-12 से वर्ष 2024-25 के बीच पश्चिम बंगाल से 6688 कंपनियां राज्य छोड़ कर चली गई हैं। मंत्रालय के अनुसार, इनमें से एक तिहाई यानी 2200 से अधिक कंपनियां वर्ष 2019 के बाद से राज्य छोड़ कर गई हैं। यह आंकड़े भले ही चौंकाने वाले हों, लेकिन उद्योग-धंधों का पलायन और पश्चिम बंगाल का पुराना रिश्ता है। देश के बड़े कारोबारी घरानों के अपना मुख्यालय शिफ्ट करने से बड़े ब्रांड्स के फैक्ट्री बंद करने तक यही हाल बीते कई सालों से है। इसमें एक कारण ममता बनर्जी सरकार का उद्योग विरोधी रुख और राज्य की खस्ताहाल कानून-व्यवस्था है।
उद्योग-धंधों के खिलाफ कानून 32 साल पहले से लागू माना जाएगा
पश्चिम बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम की घटना तो याद ही होगी, जहां टाटा कंपनी के प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था। अब एक बार फिर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने एक ऐसा कानून पास किया है, जिससे उद्योगों पर निश्चित रूप से बड़ा असर पड़ने वाला है। इसलिए कंपनियों और उद्यमियों ने इस कानून को असंवैधानिक बताया है। उनका आरोप है कि सरकार ने कानून बनाया अभी है, लेकिन इसे लागू कर रही है 32 साल पहले से यानी रेट्रोस्पेक्टिव से कर रही है, जो पूरी तरह असंवैधानिक है। क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल में जो बिल पास किया है, जो कंपनियों को मिलने वाले अनुदान और प्रोत्साहन योजनाओं को खत्म करता है। यह एक्ट कंपनियों को मिलने वाले सभी प्रोत्साहन को न सिर्फ खत्म करता है, बल्कि इसे साल 1993 से ही खत्म मान रहा है और तब से अब तक मिले सभी तरह की छूट और प्रोत्साहनों को वापस लौटाना होगा। इसका मतलब है कि करीब तीन दशक में जितनी भी स्कीम के तहत कंपनियों को छूट मिली है, सब सरकार को वापस लौटानी पड़ेगी।
वामपंथियों के बाद ममता सरकार लिख रही उद्योगों के अवसान की पटकथा
कभी एशिया की बड़ी औद्योगिक ताकतों में से एक गिने जाने वाले कोलकाता के अवसान की यह पटकथा ममता बनर्जी खुद अपने हाथों से लिख रही हैं। हालांकि वामपंथियों ने भी ऐसा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। इसी कारण राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आई। लेकिन ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इस पटकथा को अंतिम रूप दिया है और उद्योग-धंधों में इजाफा करने के बजाय उनके ताबूत में आखिरी कील ठोंकने की कसर पूरी कर दी है। राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, पहले कंपनियों को टैक्स, भूमि अधिग्रहण, बिजली, ब्याज के भुगतान आदि पर सब्सिडी मिलती थी। अब प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों को कोई भी प्रोत्साहन, वित्तीय लाभ, सब्सिडी, ब्याज माफी, शुल्क या टैक्स में छूट आदि नहीं दी जाएगी। अब किसी भी कंपनी को अपने किसी भी तरह के बकाया राशि पर दावा करने का कोई अधिकार नहीं रहेगा।
डालमिया, अल्ट्राटेक, ग्रासिम जैसी कई कंपनियां हाइकोर्ट पहुंची
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर उद्योगों और ममता बनर्जी सरकार के बीच टकराव गहरा गया है। राज्य सरकार ने हाल ही में एक ऐसा कानून पारित किया है जो उद्योग और उद्यमियों के खिलाफ है। इस फैसले के खिलाफ कई कंपनियों को कोलकाता हाईकोर्ट में याचिका लगानी पड़ी है। राज्य सरकार के मुताबिक अब किसी भी औद्योगिक इकाई को टैक्स छूट, ब्याज माफी, बिजली या भूमि अधिग्रहण पर सब्सिडी और किसी भी प्रकार का वित्तीय प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा। कंपनियों को किसी भी बकाया राशि पर दावा करने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया है। सरकार के इस कानून के खिलाफ अल्ट्राटेक सीमेंट, इलेक्ट्रोस्टील कास्टिंग लिमिटेड, ग्रासिम इंडस्ट्रीज, नुवोको विस्टास और डालमिया सीमेंट ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दाखिल की है। सभी कंपनियों ने इसके खिलाफ अलग-अलग अपील दाखिल की है, लेकिन हाईकोर्ट इन सभी पर 7 नवंबर को सुनवाई करेगी। कंपनियों का कहना है कि यह कानून उद्योग-विरोधी है और प्रावधान यह कहता है कि इसे पूरी तरह निरस्त किया जाए।
कंपनियों को तीन दशक में मिली छूट सरकार को वापस देनी पड़ेगी
इस कानून को पारित करते समय सरकार ने दावा किया था कि इसका मकसद राज्य में चल रही तमाम कल्याणकारी योजनाओं को वित्तीय मदद उपलब्ध कराना है। लेकिन असल में राज्य सरकार ने इस कानून को लाकर उद्यमियों को मिल रही कल्याणकारी योजनाओं का रास्ता ही बंद कर दिया है। सरकार ने कंपनियों को छूट और रियायत बंद करते उद्योगों और उद्यमियों के पेट पर लात मारी है। उद्योग मामले एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बिल पास होने के बाद कंपनियों ने इससे कारोबार में समस्या आने की बात कही थी। तब सरकार ने उन्हें बताया कि वह इस समस्या को हल करने के लिए नई औद्योगिक नीति बना रही है। लेकिन इंडस्ट्री फ्रेंडली कोई नीति लाने के बजाए उद्योग-विरोधी कानून को लागू कर दिया गया। जब सरकार ने उद्यमियों की कोई बात नहीं सुनी, तो मजबूरन उन्हें कोर्ट जाना पड़ा है।
देश आगे बढ़ रहा, बंगाल में साढ़े छह हजार कंपनियों का पलायन
राज्य के उद्योगों के खिलाफ ममता बनर्जी का यह रुख पहली बार नजर नहीं आया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य औद्योगिक बदहाली के कगार पर है। कभी देश के औद्योगिक परिदृश्य में अग्रणी रहा पश्चिम बंगाल आज गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ममता राज में 2011 से 2025 के बीच सिर्फ 14 वर्षों में राज्य से 6,688 कंपनियां या तो बंद हो चुकी हैं या अन्य राज्यों में चली गई हैं। इन कंपनियों में 110 ऐसी भी थीं, जो देश के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड थीं। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि राज्य के औद्योगिक पतन की दयनीय गाथा है। सवाल उठता है कि आज जब पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों के कारण आर्थिक विकास और रोजगार सृजन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत दुनिया की सबसे बड़ी चौथी अर्थव्यवस्था बन चुका है, तब आखिर पश्चिम बंगाल क्यों लगातार पिछड़ता जा रहा है? आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो राज्य कभी उद्योगों का केंद्र था, वह आज मजदूरों और पूंजीपतियों दोनों के लिए असुरक्षित और अव्यवहारिक बन गया है।
ब्रिटानिया को कोलकाता की 77 वर्ष पुरानी फैक्ट्री को बंद करना पड़ा
कुछ समय पहले ही एक बार फिर सिंगूर सुर्खियों में आया था। पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में सिंगूर वही जगह है, जहां टाटा मोटर्स ने अपनी महत्वाकांक्षी नैनो परियोजना का संयंत्र लगाने का फैसला किया था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस और खासकर ममता बनर्जी की इंडस्ट्री विरोधी विजन के कारण टाटा को आखिरकार यहां से इस परियोजना को समेटना पड़ा था। बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस तोलाबाजी, अवैध वसूली और कमीशनखोरी के कारण लगातार उद्योग धंधे राज्य से बाहर जा रहे हैं। अब देश में बिस्किट बनाने वाली प्रमुख कंपनी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित अपनी 77 वर्ष पुरानी फैक्ट्री को बंद करने का निर्णय लिया है। कंपनी को राज्य सरकार की नीतियां रास नहीं आ रही हैं। पश्चिम बंगाल से टाटा नैनो को हटाकर सत्ता पर काबिज होने वाली ममता बनर्जी का प्रदेश बिजनेस के लिहाज से अनुकूल नजर नहीं आता।टाटा मोटर्स की तरह ब्रिटानिया ने भी पश्चिम बंगाल से कारोबार समेटा
टाटा के बहुचर्चित नैनो कार प्लांट के खिलाफ मूवमेंट करके ममता बनर्जी खुद को सुर्खियों में आ गई थीं, लेकिन इससे राज्य को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। प्रदेश को करोड़ों के निवेश से हाथ धोना पड़ा, बल्कि बड़े रोजगार के अवसर भी छिने। वर्ष 2006, में बंगाल की वामपंथी सरकार ने सिंगूर और हुगली में लगभग 1,000 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी। इसके बाद, इसने राज्य में रोजगार बढ़ाने के लिए यह जमीन टाटा मोटर्स को दे दी थी। टाटा मोटर्स यहां नैनो कार का प्लांट लगाना चाहती थी। तब बंगाल में विपक्ष की नेता और तृणमूल कॉन्ग्रेस मुखिया ममता बनर्जी ने नैनो कार प्लांट लगाने का विरोध किया। टाटा मोटर्स के शोरूम पर तक हमले हुए थे। परिणामस्वरूप, टाटा मोटर्स को सिंगूर प्लांट को स्थगित करना पड़ा था। बंगाल में हुए इस हंगामे के बाद टाटा मोटर्स को गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने राज्य में प्लांट लगाने के लिए आमंत्रित किया। टाटा मोटर्स ने गुजरात में इस प्लांट का 2010 में उद्घाटन किया। टाटा नैनो के साणंद प्लांट का उद्घाटन गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी और टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने किया था।कोलकाता में 1947 में शुरू हुई थी बिस्कुट की मशहूर कंपनी ब्रिटानिया
अब नई खबर यह आई है कि बिस्कुट बनाने के लिए मशहूर कंपनी ब्रिटानिया ने बंगाल में अपनी एक ऐतिहासिक फैक्टरी बंद करने का फैसला लिया है। यह कोलकाता में 1947 में खुली थी और प्रदेश की शान थी। कोलकाता के तारातला में बनी इस फैक्टरी में डेढ़-दौ सौ कर्मचारी काम भी कर रहे थे। ब्रिटानिया के ये बिस्किट अपने डायजेस्टिव-फ्रेंडली फॉर्मूलेशन के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय थे। मतलब लोग मानते थे कि ये बिस्किट आसानी से हजम हो जाते हैं। इसके विज्ञापन का जिंगल था- दादू खाए, नाती खाए… ब्रिटानिया थिन एरोरूट बिस्कुट। संदेश यही था कि ब्रिटानिया के इस बिस्कुट को हर उम्र के लोग पसंद करते हैं। मगर अब बंगाल की इस फैक्ट्री के बिस्कुट का स्वाद न तो दादू और न ही नाती चख पाएंगे।
टीएमसी सरकार की नीतियों और मनमानी मुनाफा कमाने में बनी चुनौतियां
ब्रिटानिया कंपनी के प्रबंधकों की ओर से कोलकाता की फैक्ट्री को बंद करने के इस निर्णय के संबंध में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया है। ब्रिटानिया ने हाल ही में स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में बताया है कि कोलकाता के तारातला स्थित फैक्ट्री के स्थायी कर्मचारियों को कम्पनी द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी जा रही है। तारातला फैक्ट्री, मुंबई के बाद ब्रिटानिया की भारत में दूसरी सबसे पुरानी फैक्ट्री है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ब्रिटानिया प्रबंधन ने कम्पनी के संविदा कर्मचारियों के साथ VRS को लेकर चर्चा भी शुरू कर दी है। तारातला फैक्ट्री के बंद होने का असर करीब डेढ़ सौ कर्मचारियों पर पड़ने की उम्मीद है। ब्रिटानिया का यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है, जब राज्य की टीएमसी सरकार की नीतियों और मनमानी के चलते कम्पनी लागत के मुकाबले मुनाफा निकालने की चुनौतियों से जूझने लगी थी।
Today’s shutdown of Britannia Industries’ factory starkly epitomizes the descent of Bengal—a region once renowned for its cultural richness and intellectual prowess—into profound disarray.
The Britannia factory, once a beacon of industrial vitality in Bengal, suffered… pic.twitter.com/K8HCxUlrZG
— Amit Malviya (@amitmalviya) June 24, 2024
पहले CPM ने बर्बाद किया और फिर TMC ने इसके ताबूत में आखिरी कील ठोंकी
ब्रिटानिया ने 2018 में इस फैक्ट्री के 11 एकड़ के प्लॉट के लिए लीज को रिन्यू किया था। यह लीज 2048 तक वैध है। हालांकि, ब्रिटानिया ने अब इस फैक्ट्री में उत्पादन जारी रखना लागत के अनुरूप नहीं पाया है। तब फैक्ट्री को बंद नहीं किया गया था। इस बीच, ब्रिटानिया के निकलने पर राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी हमला बोला है। भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कहा है कि बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस ‘तोलाबाजी’ (अवैध वसूली या कमीशन लेना) और ‘यूनियनबाजी’ में लगी हुई है, जिसके कारण लगातार उद्योग धंधे राज्य से बाहर जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले CPM ने इसे बर्बाद किया और फिर TMC ने इसके ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी।
WB छोड़कर महाराष्ट्र और यूपी में जा रहीं हैं कंपनियां
साल 2011 से 2025 के बीच राज्य से पलायन करने वाली 6,688 कंपनियां इस बात का साफ संकेत हैं कि बंगाल का कारोबारी माहौल अब भरोसेमंद नहीं रहा। महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों ने इन कंपनियों को आकर्षित किया। ममता की नीतियों के कारण अकेले महाराष्ट्र में 1,308 कंपनियां शिफ्ट हुईं, जबकि 1,297 कंपनियां दिल्ली और 879 उत्तर प्रदेश चली गईं। ये आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि अन्य राज्य जहां निवेश के लिए बेहतर नीति और प्रशासनिक सहयोग दे रहे हैं, वहीं बंगाल में उद्योग लगातार उपेक्षा, अस्थिरता और अनिश्चितता का शिकार हो रहे हैं।
🚨 𝟔,𝟔𝟖𝟖 𝐂𝐎𝐌𝐏𝐀𝐍𝐈𝐄𝐒 𝐇𝐀𝐕𝐄 𝐅𝐋𝐄𝐃 𝐖𝐄𝐒𝐓 𝐁𝐄𝐍𝐆𝐀𝐋 𝐈𝐍 𝐉𝐔𝐒𝐓 𝟏𝟒 𝐘𝐄𝐀𝐑𝐒!
Once a thriving hub of industry and enterprise and a thought leader for the nation, Bengal is now witnessing a mass exodus of businesses and ideas. From 2011 to 2025, thousands… pic.twitter.com/Tj2exUhGFo
— BJP (@BJP4India) July 22, 2025
उद्योग-विरोधी नीतियों और बेशुमार भ्रष्टाचार से उद्यमी हुए लाचार
बंगाल में औद्योगिक पतन के कई कारण हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है नीतिगत पंगुता। नई परियोजनाओं को मंजूरी देने की प्रक्रिया लंबी, जटिल और अपारदर्शी है। सिंगूर में टाटा नैनो प्रोजेक्ट के विफल होने के बाद निवेशकों में यह विश्वास जड़ से हिल गया कि बंगाल में भूमि अधिग्रहण और सरकारी समर्थन स्थिर नहीं है। इसके अलावा, प्रशासनिक भ्रष्टाचार और नौकरशाही की सुस्ती ने औद्योगिक विकास की संभावनाओं को गहरी चोट पहुंचाई है। उद्योगपतियों को छोटी-छोटी मंजूरियों के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है और कई बार उन्हें कट की व्यवस्था करनी पड़ती है। राज्य की छवि एक उद्योग विरोधी प्रशासन के रूप में बन गई है, जो निर्णय लेने की क्षमता से ज्यादा राजनीतिक बयानबाजी में उलझा रहता है।
राजनीतिक अस्थिरता और मजदूर आंदोलन की छवि
बंगाल की राजनीति में ट्रेड यूनियनों का वर्चस्व और आंदोलनों की संस्कृति निवेशकों के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रही है। कई बार देखा गया है कि स्थानीय स्तर पर नेताओं की मिलीभगत से उद्योगों को रंगदारी और अवैध ठेकेदारी का सामना करना पड़ता है। टीएमसी सरकार पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वह उद्योगपतियों को सुरक्षा और भरोसे का वातावरण नहीं दे पा रही। इससे राज्य में राजनीतिक स्थिरता की कमी और उद्योगों के लिए अनुकूल वातावरण का अभाव साफ दिखाई देता है।
बुनियादी ढांचे की विफलता और लॉजिस्टिक कमजोरियां
बंगाल का भूगोल ऐसा है कि वह पूर्वोत्तर भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे बाजारों तक पहुंच के लिए एक रणनीतिक द्वार बन सकता था। लेकिन राज्य सरकार इस संभावना का उपयोग नहीं कर पाई। कोलकाता पोर्ट, हल्दिया डॉक, हाइवे और रेलवे नेटवर्क जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को समय के साथ विकसित नहीं किया गया। औद्योगिक पार्क, स्पेशल इकनॉमिक जोन (SEZ) और लॉजिस्टिक हब जैसी योजनाएं भी अधूरी रहीं या राजनीतिक कारणों से रोकी गईं।
रोजगार का संकट और युवाओं का पलायन
इस औद्योगिक पतन का सबसे बड़ा प्रभाव राज्य की युवा पीढ़ी पर पड़ा है। राज्य में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, 2024 में यह दर 7.5 प्रतिशत को पार कर गई थी। बंगाल के कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों से निकलने वाले युवा छात्रों को अपने ही राज्य में रोजगार नहीं मिल रहा, और वे दिल्ली, पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु जैसे शहरों में पलायन को मजबूर हैं। दूसरी ओर, छोटे शहरों और गांवों से मजदूर वर्ग अब केरल, पंजाब, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी और निर्माण कार्य करने जा रहे हैं। यह पलायन सिर्फ श्रमिकों का नहीं, बल्कि संभावनाओं का भी है।
6688 Companies Left West Bengal in the last 14 Years. Bengal’s loss is rest of India’s gain (rightly so). Let’s have a look at the states where the companies went:
Maharashtra – 1308
Delhi – 129
Uttar Pradesh – 879
Chhattisgarh – 511
Gujarat – 423
Rajasthan – 333Reasons… pic.twitter.com/YopPPHQxA1
— Pamela Goswami (@pamelagoswami9) July 22, 2025
सिंगूर और हल्दिया से लेकर छोटे उद्योगों तक असर
बंगाल के औद्योगिक पराभव के प्रतीक बन चुके हैं कुछ ऐतिहासिक घटनाक्रम। सिंगूर में टाटा नैनो कारखाने को भारी विरोध और राजनीतिक आंदोलन का सामना करना पड़ा, जिससे टाटा समूह को परियोजना बंद कर गुजरात के साणंद में जाना पड़ा। इस एक घटना ने बंगाल को लंबे समय के लिए एक ‘उद्योग विरोधी राज्य’ की छवि दे दी। हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स जैसे बड़े उद्यम में बार-बार प्रबंधन परिवर्तन और सरकारी हस्तक्षेप ने निवेशकों का भरोसा तोड़ा। इसके अलावा, पश्चिम मेदिनीपुर, नादिया, और मुर्शिदाबाद जैसे जिलों के छोटे और मंझोले उद्योग- जैसे माचिस, बुनाई, और चमड़ा एक-एक कर बंद हो गए।
अन्य राज्यों से तुलना में बंगाल की स्थिति
जब गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य निवेशकों को तेजी से भूमि, बिजली, टैक्स में छूट और श्रम सुधार जैसी सुविधाएं दे रहे हैं, तब बंगाल में इन बातों पर राजनीतिक बहसें ज्यादा और क्रियान्वयन बहुत कम दिखाई देता है। बंगाल में न केवल श्रम सुधार धीमे हैं, बल्कि भूमि अधिग्रहण अब भी राजनीतिक रूप से संवेदनशील बना हुआ है। इसके चलते कोई भी बड़ी कंपनी बंगाल में निवेश करने से पहले कई बार सोचती है।
पश्चिम बंगाल सरकार की घोषणाएं और जमीनी हकीकत
राज्य सरकार ने ‘बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट’ जैसे आयोजनों के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की है कि वह निवेश के लिए तैयार है। लेकिन 2023 में किए गए 3 लाख करोड़ रपये के निवेश MOU में से 85 प्रतिशत से अधिक परियोजनाएं धरातल पर नहीं उतर सकीं। निवेशकों के लिए एकल खिड़की सिस्टम की सुविधा भी केवल कागजों तक सीमित रही है। शिकायत निवारण और मंजूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता अब भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। जिस राज्य ने एक समय देश को औद्योगिक दिशा दी, ममता बनर्जी के नेतृत्व में वह आज पिछड़ता जा रहा है। बंगाल को ममता के नारे नहीं, ठोस फैसले चाहिए – ताकि उसके युवाओं को अपना भविष्य तलाशने दूसरे राज्यों की ओर न भागना पड़े। बंगाल को उद्योग चाहिए, रोजगार चाहिए, और सबसे बढ़कर एक भरोसेमंद शासन चाहिए।