Home विशेष पीएम मोदी के नेतृत्व में परवान चढ़ता ‘मेक इन इंडिया’ अभियान

पीएम मोदी के नेतृत्व में परवान चढ़ता ‘मेक इन इंडिया’ अभियान

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू हुआ ‘मेक इन इंडिया’ अभियान परवान चढ़ता जा रहा है। धीरे-धीरे प्रधानमंत्री की इस महात्वाकांक्षी योजना का परिणाम भी सामने आने लगा है। पीएम मोदी ने दूसरे क्षेत्रों के साथ ही रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भी स्वदेशी की बढ़ावा देना शुरू किया था। प्रधानमंत्री ने मिसाइल, गोला-बारूद, टैंक आदि निर्मित करने के लिए विदेशी कंपनियों के बजाय स्वदेशी कंपनियों को तरजीह देने के निर्देश दिए थे। आज ‘मेक इन इंडिया’ के जरिए रक्षा मंत्रालय ने एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत की है। यह पैसा पिछले दो वर्षों में छह एयर डिफेंस और एंटी टैंक मिसाइल प्रोजेक्ट को किसी विदेशी कंपनी के बजाय स्वदेशी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) को देने की वजह से बचा है। सिर्फ यही प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि रक्षा मंत्रालय की तमाम ऐसी परियोजनाएं हैं जिन्हें स्वदेशी कंपनियों को दिया गया है और आने वाले दिनों में इनसे करोड़ों रुपये की बचत होगी। बात सिर्फ रुपये की बचत की नहीं है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल की वजह से भारत रक्षा क्षेत्र में ग्लोबल मैन्युफेक्चरिंग हब बनता जा रहा है।

स्वदेशी को बढ़ावे से आयुध कंपनियों की अार्थिक स्थिति सुधरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन की वजह से स्वदेशी आयुध निर्माण कंपनियों की आर्थिक स्थिति काफी सुधर रही है। पहले जिन प्रोजेक्टों के लिए विदेश कंपनियों को पैसा दिया जाता था, वो आज स्वदेशी कंपनियों के पास जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि पीएम मोदी ने पहले मनोहर पर्रिकर, अरुण जेटली और अब निर्मला सीतारमण, जिन्हें भी रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है, वह भी स्वदेशी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के समर्थक रहे हैं। सरकार ने विदेशी कंपनियों की बजाय जिन प्रोजेक्ट्स के लिए डीआरडीओ पर भरोसा किया उसमें आर्मी और नेवी के लिए जमीन से आसमान में मार सकने वाली छोटी रेंज की मिसाइल (SR-SAMs), आर्मी के लिए जमीन से आसमान में मार सकने वाली और जल्दी एक्शन लेने वाली (QRSAM), आर्मी के लिए एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM), हेलिकॉप्टर से लॉन्च की जाने वाली एंटी टैंक मिसाइल आदि शामिल हैं।

इसके अलावा भी कई ऐसी रक्षा परियोजनाएं हैं जिनमें पीएम मोदी की पहल पर स्वदेशी को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसके लिए नीतिगत बदलाव भी किया गया है। डालते हैं एक नजर

नीतिगत पहल और निवेश
रक्षा मंत्रालय आज जो स्वदेशी को बढ़ावा देकर करोड़ों रुपये की बचत कर रहा है, उसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाई गई नीतियां जिम्मेदार हैं। रक्षा उत्पादों का स्वदेश में निर्माण के लिए मोदी सरकार ने 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी हुई है। इसमें से 49 प्रतिशत तक की FDI को सीधे मंजूरी का प्रावधान है, जबकि 49 प्रतिशत से अधिक के FDI के लिए सरकार से अलग से मंजूरी लेनी पड़ती है।

इजरायल से 500 मिलियन डॉलर का सौदा रद्द किया
रक्षा उत्पादन में स्वदेशी को बढ़ाने के मकसद से हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने इजरायल के साथ हुए 500 मिलियन डॉलर की सौदे को रद्द कर दिया। भारत और इजरायल के बीच यह डील मैन-पॉर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एमपीएटीजीएम) के लिए की गई थी। रक्षा मंत्रालय को लगता है कि बगैर किसी दूसरे देश की तकनीकी सहायता के भारतीय आयुध निर्माता अगले 3-4 साल में इसे बनाने मे सक्षम हो जाएंगे। भारत को यह स्पाइक एटीजीएम मिसाइलें, राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम बनाने वाली इजरायली कंपनी सप्लाई करने वाली थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस डील को रद्द करने का निर्णय स्वदेशी कार्यक्रमों की रक्षा करने के लिए गया है। अगर ये मिसाइल विदेशी कंपनियों से मंगाई जाती तो जाहिर है कि डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन पर असर पड़ता।

स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस
मेक इन इंडिया के जरिये लगातार रक्षा क्षेत्र में विदेशी निर्भरता खत्म करने की कोशिश की जा रही है। और पिछले कुछ सालों में इसका बहुत ही अधिक लाभ भी मिल रहा है। रक्षा मंत्रालय ने भारत में निर्मित कई उत्पादों का अनावरण किया है, जैसे HAL का तेजस (Light Combat Aircraft), composites Sonar dome, Portable Telemedicine System (PDF),Penetration-cum-Blast (PCB), विशेष रूप से अर्जुन टैंक के लिए Thermobaric (TB) ammunition, 95% भारतीय पार्ट्स से निर्मित वरुणास्त्र (heavyweight torpedo) और medium range surface to air missiles (MSRAM)।

मेक इन इंडिया के दो युद्धपोत
अभी तक सरकारी शिपयार्डों में ही युद्धपोतों के स्वदेशीकरण का काम चल रहा था, लेकिन देश में पहली बार नेवी के लिए प्राइवेट सेक्टर के शिपयार्ड में बने दो युद्धपोत पानी में उतारे गए हैं। रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ने 25 जुलाई, 2017 को गुजरात के पीपावाव में नेवी के लिए दो ऑफशोर पैट्रोल वेसेल (OPV) लॉन्च किए, जिनके नाम शचि और श्रुति हैं।

F-16 का मेनटेनेंस हब बनेगा भारत
अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी लॉकहीड मार्टिन को अगर भारत में एफ-16 विमान बनाने की अनुमति मिल गई तो भारत एफ-16 विमानों के रखरखाव का ग्लोबल हब बन सकता है। ऐसी उम्मीद है कि लॉकहीड मार्टिन टाटा के साथ मिलकर भारत में एफ-16 के ब्लॉक 70 का निर्माण करेगी। दरअसल इस वक्त दुनिया में करीब 3000 एफ-16 विमान हैं। भारत इनकी सर्विसिंग का केंद्र बन सकता है।

भारत में बनाओ, भारत में बना खरीदो
इस नीति के तहत रक्षा मंत्रालय ने 82 हजार करोड़ की डील को मंजूरी दी है। इसके अतर्गत Light Combat Aircraft (LCA), T-90 टैंक, Mini-Unmanned Aerial Vehicles (UAV) और light combat helicopters की खरीद भी शामिल है। इस क्षेत्र में MSME को प्रोत्साहित करने के लिए कई सुविधाएं दी गई हैं।

स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से होगी 20 हजार करोड़ रुपए की बचत

जाहिर है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में ही अधिकतर रक्षा उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग शुरू हो रही है। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट को मंजूरी दी है। इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से सरकार को हर साल कम से कम 20 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी। इस बुलेटप्रुफ जैकेट को भारतीय वैज्ञानिक ने ही बनाया है। 70 साल के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब सेना स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट पहनेगी। यह विदेशी जैकेट से काफी हल्का और किफायती भी है। विदेशी जैकेट का वजन 15 से 18 किलोग्राम के बीच होता है जबकि इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट का वजन सिर्फ 1.5 किलोग्राम है। इस जैकेट को अमृता यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रमुख प्रोफेसर शांतनु भौमिक ने तैयार किया है। कार्बन फाइबर वाले इस जैकेट में 20 लेयर हैं। इसे 57 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी पहना जा सकता है। इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट से सेना को एक लाख रुपए की बचत भी होगी। विदेशी 1.5 लाख रुपए में मिलने वाली जैकेट की जगह यह सिर्फ 50 हजार रुपए में मिलेंगे।

टेक्नोलॉजी एंड टैलेंट में भारत आगे
बीते कुछ वर्षों में भारत ने साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। ISRO द्वारा एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च के करने के बाद भारत की धाक बढ़ी है। भारत ने पूरे विश्व में अपने इंजीनियर और साइंटिस्ट के लिए बड़ी मांग पैदा की है। दुनिया में अब भारत से टॉप स्तर के टेक्नोलॉजी और साइंटिफिक ब्रेन को अपने यहां खींचने की होड़ लग गई है।

 

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