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केजरीवाल सरकार की दोगली नीति देखिए, घुसपैठिए रोहिंग्या को हर सुविधाएं, वैध रूप से नागरिकता प्राप्त हिन्दू शरणार्थियों से भेदभाव

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दिल्ली की केजरीवाल सरकार तुष्टिकरण के गंभीर रोग से पीड़ित है। एक खास समुदाय का वोट हासिल करने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इसके लिए हज हाउस बनाना हो या चाहे देश की सुरक्षा खतरे में डालकर रोहिंग्या को बसाना हो, केजरीवाल सरकार हर हथकंडा अपना रही है। केजरीवाल सरकार जहां वोट बैंक के लिए अवैध रूप से देश में घुसे रोहिंग्याओं से सहानुभूति रखती है और हर सुविधाएं देती हैं, वहीं पड़ोसी देशों से आए हिन्दू शरणार्थियों की अनदेखी करती है। 

दरअसल केजरीवाल सरकार हिंदू शरणार्थियों से भेदभाव करती है, क्योंकि उसे इनमें कोई वोट बैंक दिखाई नहीं देता है। उसे लगता है कि पाकिस्तान या अन्य पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना झेलकर भारत आए इन हिंदुओं को न्यूनतम सुविधाएं देने के कारण उसके अल्पसंख्यक वोटर नाराज हो सकते हैं। इस लिए न्यूनतम सरकारी सुविधाएं मुहैया कराने की बात पर बगलें झांकने लगती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि दिल्ली में कुछ स्थानों पर बसे ये हिन्दू शरणार्थी अमानवीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।

दिल्ली के यमुना किनारे मजनू का टीला इलाके में पाकिस्तान के सिंध प्रांत से लौटे 150 हिंदू शरणार्थी परिवार रहते हैं। कुल मिलाकर यहां 700 लोग हैं। यहां बिजली की भी कोई सुविधा नहीं है। मच्छर रात-रात भर सोने नहीं देते। वो कहते हैं कि कोविड से तो बच गए हैं लेकिन सरकार की बदइंतजामी और अनदेखी मार रही है। इन शरणार्थियों का कहना है कि केजरीवाल सरकार को चिट्ठी लिख-लिखकर हाथ दुख गए, लेकिन किसी ने सुध तक नहीं ली। हालांकि भारत के सरकारी दस्तावेजों में ये अभी भी पाकिस्तान के नागरिक ही हैं, लेकिन इन्हें सीएए के तहत वैध नागरिकता मिलने का इंतजार है।

हैरानी बात यह है कि इन शरणार्थियों को सरकारी सुविधाएं देने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका पर आए फैसले में कोर्ट की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा कि नागरिकता मिलने के बाद भारत आए हिंदू शरणार्थी हर उस सुविधा के हकदार हैं, जो भारत के किसी और नागरिक को मिलती है। ऐसे में नैतिकता और नियमों के तहत केजरीवाल सरकार पर यह जिम्मेदारी आती है कि वह इन नागरिकों को न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध कराए।

केजरीवाल सरकार को वैध शरणार्थियों को सुविधाएं देने के लिए कोर्ट को आदेश देने पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अवैध रूप से भारत में रहने वाले रोहिंग्या मुस्लिमों को हर सुविधाएं कैसे मिल जाती हैं? दिल्ली में रोहिंग्या मुस्लिमों को भोजन और रहने की व्यवस्था के साथ ही वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड और राशन कार्ड भी आसानी से मिल जाता है। यहां तक कि उन्हें सरकारी जमीनों पर कब्जा कर सुनियोजित तरीक से बसाया जाता है, ताकि वे आगे चलकर देश के वैध नागरिक के साथ-साथ वोटबैंक भी बन सके। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने बुल्डोजर चलाकर रोहिंग्याओं के कब्जे से करीब 5 एकड़ अपनी जमीन को मुक्त कराया।

सीएए कानून आने से पहले ज्यादा लोगों को पता नहीं था कि देश में पड़ोसी देशों में सताये हुए हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई शरणार्थी भी भारत में रहते हैं, जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है और दैनीय हालात में जीवन बसर करने को मजबूर है। रोहिंग्या के लिए आवाज बुलंद करने वाले संगठनों और बुद्धिजीवियों को आज तक इन शरणार्थियों के लिए आवाज उठाते हुए नहीं देखा गया है। आखिर ये संगठन भी एक खास एजेंडे के तहत काम करते हैं, जिन्हें राजनीतिक दलों और देश के बाहर की ताकतों से फंड और प्रोत्साहन मिलता है। 

 

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