- जिन्होंने राज्यपाल रहकर पश्चिम बंगाल को बर्बाद कर दिया, उसे लेफ्ट नेता उपराष्ट्रपति क्यों बनाना चाहते हैं?
- जिस शख्स ने पश्चिम बंगाल में वाम दलों की हार की स्क्रिप्ट लिखी, आज उसी पर लेफ्ट का प्रेम क्यों उमड़ रहा है?
- जिस पर उद्योगों के लिए खून बहाने का आरोप लगाया, वो देश की सत्ता के दूसरे शिखर पर बैठकर क्या करेगा?
ये महत्त्वपूर्ण सवाल गोपाल कृष्ण गांधी से जुड़े हैं, जिन्हें कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया है। हालांकि इसमें लेफ्ट दलों की भूमिका विचित्र है, क्योंकि लेफ्ट ने जिस तरीके से उपरोक्त सनसनीखेज इल्जाम गोपाल गांधी पर लगाए हैं, अब इसका जवाब खुद लेफ्ट को देना होगा। दरअसल मोदी के खिलाफ ये दल जिस प्रकार की नफरत भरी राजनीति कर रहे हैं, उसका एक जीता जागता नमूना है गोपाल गांधी का समर्थन। आइये कुछ तथ्यों के जरिए आपको बताते हैं कि आखिर लेफ्ट ने गोपाल गांधी पर किसी तरीके से बेहद संवेदनशील इल्जाम लगाए हैं।
वामपंथियों की मौकापरस्ती
नंदीग्राम में फायरिंग पर बुद्धदेब-गोपाल गांधी आमने-सामने
नंदीग्राम के मुद्दे पर तो राज्यपाल गोपाल गांधी और मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य में ठन सी गई थी। फायरिंग के बाद भड़की हिंसा पर भी बुद्धदेव भट्टाचार्य ने गोपाल कृष्ण गांधी की भूमिका पर सवाल उठाए थे, उन्होंने लिखा कि ‘राज्यपाल गांधी जानते है कि लोग वहां निर्दयतापूर्वक मारे गए हैं और कानून व्यवस्था बनाए रखने की पुलिस की कार्रवाई का समर्थन करने के बजाए अपनी(गांधी) सीमाएं पार करते हुए ऐसा बयान जारी कर दिया। आखिर वह किसको खुश करना चाहते थे’?
नंदीग्राम घटना पर ‘गोपाल गांधी की संदिग्ध भूमिका’
नंदीग्राम के मामले पर ही पर सीपीआई ने एक कमेटी बना दी। इस कमेटी ने अक्टूबर 2008 में अपनी रिपोर्ट दी। पार्टी की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि नंदीग्राम मुद्दे पर राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी का रोल संदिग्ध बताया। रिपोर्ट में लिखा है “played a dubious role”. यही नहीं रिपोर्ट में लिखा कि गोपाल गांधी ने कांग्रेस के प्रियरंजनदास मुंशी के साथ मिलकर प्रोजेक्ट को तबाह करने का काम किया।
बुद्धदेब ने गांधी पर फोड़ा बंगाल में हार का ठीकरा
वामपंथियों ने हमेशा महात्मा गांधी का विरोध किया
वामपंथी शुरू से ही गांधी के और उनकी विचारधारा के घोर विरोधी रहे है। वामपंथियों ने गांधी जी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का भी विरोध किया था। यही नहीं वामपंथी शुरू से ही देश के विभाजन के पक्ष में थे जबकि गांधी जी इसके विरोध में थे। गांधी जी को हमेशा से ही वामपंथियों की मंशा पर शक रहता था इसीलिए उन्होंने 11 जून 1944 को वामपंथी नेता पी सी जोशी को पत्र लिखकर प्रश्न पूछा था कि आप दूसरे देशों से धन लेकर मजदूर संघों के नेताओं को गिरफ्तार करवाने का काम क्यों कर रहे हो लेकिन उनके प्रश्न का कोई जवाब नहीं मिला।
इतना घोर विरोध और इतना प्रलाप करने के बाद भी जिस तरीके से लेफ्ट ने अपनी ही विरोधी पार्टी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के साथ मिलकर गोपाल गांधी का सपोर्ट करने का फैसला किया है, वो भारतीय राजनीति के लिए एक दोहरे चरित्र का सशक्त उदाहरण है।