कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए लगता है प्रधानमंत्री की कुर्सी सपना ही रह जाएगी। कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वे प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन चुनाव परिणाम ने लगता है कि राहुल की हसरतों पर पानी फेर दिया है। यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए जेडीएस को समर्थन देने के बाद भी देशभर के दूसरे विपक्षी दलों के बीच राहुल गांधी का कद बढ़ा नहीं है बल्कि आज भी उन्हें केंद्रीय राजनीति के लिए अपरिपक्व नेता ही माना जा रहा है। पिछले दो-तीन दिनों में कई विपक्षी नेताओं ने जिस तरह एचडी कुमारस्वामी को सरकार बनाने के लिए बधाई दी है और राहुल गांधी का नाम तक नहीं लिया उससे तो यही प्रतीत हो रहा है।
कर्नाटक के परिणाम ने राहुल के दावे को कमजोर किया
कर्नाटक के चुनाव परिणाम से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए समा बांध रहे थे और उनसे कह रहे थे बस कर्नाटक में जीत के साथ ही राहुल गांधी विपक्ष के सबसे बड़े नेता बन जाएंगे। राहुल गांधी भी अपने इर्द-गिर्द घिरे लोगों की तारीफों से फूले नहीं समा रहे थे। कर्नाटक के परिणाम ने राहुल के सपनों को चकनाचूर कर दिया। कर्नाटक में दूसरे नंबर की पार्टी बनने के साथ ही राहुल गांधी ने चुनाव हारने का जो रिकॉर्ड बनाया है, उसने विपक्ष की अगुवाई करने और 2019 में प्रधानमंत्री बनने के उनके दावे को कमजोर किया है।
ममता समेत कई दिग्गजों को राहुल की अगुवाई मंजूर नहीं
जब से राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, उन्हें विपक्ष के सबसे बड़े नेता के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेसी नेताओं की एक पूरी लॉबी राहुल गांधी को एक गंभीर और देश के मुद्दों से जुड़ा नेता साबित करने में जुटे हैं। इसके लिए उनकी मां सोनिया गांधी भी विपक्षी दलों के नेताओं को डिनर पर बुला चुकी हैं। पर कांग्रेस की रणनीति अब तक कामयाब नहीं हो पाई है। टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, टीआरएस के चंद्रशेखर राव समेत कई क्षेत्रीय दिग्गज हैं जिन्होंने साफ कह दिया है कि उन्हें किसी भी विपक्षी फ्रंट में राहुल गांधी की अगुवाई मंजूर नहीं है।
Democracy wins. Congratulations Karnataka. Congratulations DeveGowda Ji, Kumaraswamy Ji, Congress and others. Victory of the ‘regional’ front
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) 19 May 2018
ममता ने कुमारस्वामी को बधाई दी, राहुल को नहीं
कर्नाटक में चुनाव परिणाम के बाद ममता बनर्जी ने अपने इरादे एक बार फिर साफ कर दिए। रीजनल पार्टियों के मोर्चे की कवायद में जुटी ममता बनर्जी ने कर्नाटक में जीडीएस की अगुवाई में सरकार के गठन का रास्ता साफ होने के बाद ट्वीट कर जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी को बधाई दी। ममता बनर्जी ने इस ट्वीट में राहुल गांधी का जिक्र भी नहीं किया। जाहिर है कि कुमारस्वामी कांग्रेस के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बन रहे हैं। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि ममता बनर्जी किसी भी रूप में राहुल गांधी को तवज्जो नहीं देना चाहती हैं। पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का अभियान चला रही थी, तब भी ममता बनर्जी ने कांग्रेस को झटका देते हुए महाभियोग प्रस्ताव के लिए दिए गए नोटिस का समर्थन नहीं किया था। ममता ने कहा था कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस देना गलत था।
आज का दिन भारतीय राजनीति में धनबल की जगह जनमत की जीत का दिन है. सबको खरीद लेने का दावा करने वालों को आज ये सबक मिल गया है कि अभी भी भारत की राजनीति में ऐसे लोग बाकी हैं, जो उनकी तरह राजनीति को कारोबार नहीं मानते हैं. नैतिक रूप से तो केंद्र की सरकार को भी इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) 19 May 2018
अखिलेश और चंद्रबाबू ने भी नहीं किया राहुल का जिक्र
कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने पर कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने ट्वीट किए और बधाई दी, लेकिन ज्यादातर ने इसका श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को नहीं दिया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और राहुल गांधी के साथ मिलकर यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने वाले अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में कर्नाटक में मिली कामयाबी को लोकतंत्र की जीत बताया, लेकिन राहुल का जिक्र नहीं किया। इसी तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने भी अपने ट्वीट में राहुल गांधी का नाम नहीं लिया।
Resignation of BS Yeddyurappa as Karnataka’s CM is a true victory for democracy. Entire nation is happy with the current turn of events. As a Chief Minister and a firm believer of democracy, I am expressing my happiness.
— N Chandrababu Naidu (@ncbn) 19 May 2018
उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के रहमोकरम पर
कभी कांग्रेस पार्टी का पूरे देश पर शासन था, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। कांग्रेस पार्टी सिर्फ तीन-चार राज्यों में सिमट कर रह गई है। उत्तर भारत के राज्य, जहां से केंद्र की सत्ता निर्धारित होती है, वहां कांग्रेस पार्टी सिकुड़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे अहम राज्यों में कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पर निर्भर है। जाहिर है लोकसभा चुनाव के लिहाज से इतने अहम राज्यों में कांग्रेस पार्टी का अपना कोई अस्तित्व नहीं है। 2014 में यूपी जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस पार्टी सिर्फ 2 सीटें जीत पाई थी।
2019 में विपक्षी मोर्चा बना भी तो उसमें राहुल की भूमिका नगण्य होगी
मतलब साफ है कि 2019 में भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दल जो मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हैं, उसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कोई भूमिका नहीं होगी। ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, चंद्रशेखर राव जैसे दिग्गज नेताओं ने विपक्ष के नेता के रूप में राहुल की भूमिका को पूरी तरह से नकार दिया है। क्षेत्रीय दलों के इन नेताओं के रूख से स्पष्ट है कि राहुल गांधी 2019 की लड़ाई में अलग-थलग पड़े दिखाई देंगे। अपना अस्तित्व बचाने के लिए कर्नाटक में 37 सीटों वाली जेडीएस के सामने जिस तरह कांग्रेस ने घुटने टेके हैं, 2019 में भी कुछ इसी तरह का नजारा देखने को मिले, तो कोई अचंभा नहीं होना चाहिए।