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मोदी सरकार के ‘गले लगाने’ की कोशिश को विफल करने की साजिश !

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को स्पष्ट कहा था कि कश्मीर की समस्या न गोली, से न गाली… गले लगाने से हल होगी। उनका संदेश स्पष्ट था कि कश्मीर से संबंधित सभी स्टेक होल्डर्स से बात करके इस समस्या का समाधान निकाला जाएगा। इसी सिलसिले में केंद्र सरकार ने दिनेश्वर शर्मा को विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया है। वे कश्मीर पहुंच भी चुके हैं, लेकिन लगता है कि केंद्र के प्रयासों को विफल करने की कोशिशें भी शुरू हो चुकी हैं। कश्मीर में शांति की पहल को विफल करने की साजिशों के पीछे जहां ISI का हाथ है, वहीं देश के भीतर छिपे बैठे ‘गद्दार’ भी इनकी मदद करने में लगे हैं।

कांग्रेस परस्त नेताओं की साजिश
कश्मीर में शांति मिशन किसी भी तरह से फेल हो जाए इसके लिए कांग्रेस ने साजिश रचनी शुरू कर दी है। उधर दिनेश्वर शर्मा कश्मीर पहुंचे नहीं कि कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने इस पहल को विफल भी करार दे दिया। कांग्रेस ने यह भी कह दिया कि कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के पास ना नीति और ना दिशा। तो क्या कांग्रेस यह कहना चाहती है कि बिना किसी ठोस योजना के ही केंद्र सरकार ने ये कवायद की है? केंद्र सरकार की गंभीर कोशिश को इतने हल्के में कैसे खारिज कर सकती है कांग्रेस? क्या काग्रेस ने इस पहल को विफल करने की साजिश रच दी है? दरअसल कांग्रेस की मुश्किल यह है कि पिछले 70 सालों से जिस तरह से कश्मीर समस्या को वह देखती रही है इसने देश का नुकसान ही किया है। अब जब केंद्र सरकार ने नई पहल की है तो वह इसे डिरेल करने के अभियान में जुट गई है।

फारुक अब्दुल्ला ने नहीं मानी बात
कांग्रेस की सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस तो यह तय करके बैठी है कि केंद्र सरकार के प्रयास को किसी भी तरह से कामयाब नहीं होने देना है। पी चिदंबरम ने एक हफ्ते पहले ही कश्मीर की स्वायत्तता को लेकर बयान दिया था तो यह समझ में आने लगा था कि कांग्रेस क्या चाहती है। अब नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष सांसद फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में स्वायत्तता से ही सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इतना ही नहीं वह कश्मीर को लेकर भारत पर पाकिस्तान से भी बात करने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन हम सब यह क्यों भूल जाएं कि कश्मीर में आजादी के बाद से अधिकतर समय उनके ही परिवार का शासन रहा है। आखिर उन्होंने कश्मीर को लेकर आज तक क्या किया है?

हुर्रियत ने बातचीत से किया इनकार
अलगाववादी कश्मीर में शांति के मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं। सैयद अली शाह गिलानी की अगुवाई वाले हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े ने दावा किया कि राज्य सरकार के एक अधिकारी ने गिलानी और शर्मा की बैठक कराने को लेकर उनसे संपर्क साधा है। उन्होंने कहा कि जबरन कराई जा रही बातचीत को राजनीतिक या नैतिक आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। यहां एक बात साफ करना आवश्यक है कि दिनेश्वर शर्मा ने कहा है कि जो बात करना चाहेगा उन्हीं से बात की जाएगी, लेकिन हुर्रियत का ये दावा कि जबरन बातचीत कराई जा रही है, क्या सही लगता है? जाहिर है हुर्रियत शांति मिशन के विरुद्ध माहौल बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ ही न पाए। 

पाक परस्त नेताओं से बात फिर क्यों?
केंद्र सरकार खुले मन से कश्मीर में अमन लाना चाहती है। कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरित के मूलमंत्र पर आगे बढ़ते हुए कश्मीर वासियों में नया विश्वास जगाना चाहती है, लेकिन पाक परस्त नेता इसे नाकाम करने में जुटे हुए हैं। फारूक अब्दुल्ला तो पहले इस बात का खुलासा कर चुके हैं कि कांग्रेस के शासन काल में पाक परस्त नेताओं को पैसे खिलाए जाते थे, अलगाववादियों से उनकी सेटिंग थी। यानी कांग्रेस परस्त नेताओं का तो यही दस्तूर भी रहा है कि खाना हिंदुस्तान का और गाना पाकिस्तान का। ऐसे में केंद्र सरकार ने अब तक जिन नीतियों को अपनाया है उसपर ही आगे बढ़ने की जरूरत है। अलगाववादियों पर शिकंजा और आतंकवादियों का सफाया। ये वो नीति है जिसने पाक परस्त नेताओं की कमर तोड़ दी है। अब केंद्र सरकार द्वारा खुले दिल से की गई इस पहल डिरेल करने की कोशिश जारी है।

370 हटाना ही एकमात्र विकल्प है क्या?
बातचीत का रास्ता अगर विफल होता है और कश्मीर में अमन स्थापित नहीं हो पाता है तो केंद्र सरकार को एक बड़ा निर्णय अब ले ही लेना चाहिए। दरअसल धारा 370 वो अड़चन है जिसने कश्मीर को पूरे हिंदुस्तान से अलग स्टेटस दे रखा है। दरअसल जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल को अंधेरे में रखकर धारा-370 लागू करवा दिया था, जिसका खामियाजा देश आज तक भुगत रहा है। जम्मू-कश्मीर भारत के दूसरे राज्यों की तरह नहीं है। इसे सीमित संप्रभुता मिली हुई है और इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान परस्त नेता जम्मू-कश्मीर की आजादी की मांग करते हैं। जाहिर है अब वक्त आ गया है कि शांति की आखिरी कोशिश कर ली जाए… अगर विफल रहे तो धारा 370 को खत्म करने का निर्णय भी ले ही लिया जाए।

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