Home विशेष केंद्र सरकार और पनगढ़िया के बीच मतभेद की झूठी खबर फैला रहा...

केंद्र सरकार और पनगढ़िया के बीच मतभेद की झूठी खबर फैला रहा है इंडियन एक्सप्रेस

झूठी खबरें फैलाकर मीडिया को क्यों बदनाम कर रहे हैं कुछ अखबार?

SHARE

अर्थशास्त्री डॉ अरविंद पनगढ़िया ने मंगलवार यानी एक अगस्त को नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे के बाद अरविंद केवल 31 अगस्त तक ही उपाध्यक्ष पद का भार सम्भालेंगे और फिर नीति आयोग में दूसरे उपाध्यक्ष की नियुक्ति करनी होगी। इस बीच कुछ समाचार पत्रों ने पनगढ़िया के अचानक पद छोड़ने को लेकर सवाल उठाए हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने ‘Arvind Panagariya raised red flags, couldn’t stop power centres within’ नाम से लेख लिखा है जिसमें पनगढ़िया के सरकार से मतभेदों की ओर इशारा किया गया है। लेकिन क्या यही सच है?

पीएम मोदी को दी थी जानकारी
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि अरविन्द पनगढ़िया और मोदी सरकार के बीच कई मामलों पर तालमेल नहीं बन रहा था और इसके संकेत कई बार सावर्जनिक मंचों पर भी मिले थे। इसलिए पनगढ़िया ने सरकार में सबसे अहम जिम्मेदारी वाले पद से खुद को अलग करना ही ठीक समझा। अखबार की रिपोर्टिंग से अलग पनगढ़िया ने स्वयं ही साफ किया है कि पीएम मोदी को उन्होंने अपने फैसले की जानकारी दो महीने पहले ही दे दी थी। पीएम मोदी की मंजूरी मिलने के बाद ही वे ये पद छोड़ रहे हैं।

मतभेद की बात है मनगढ़ंत
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि पनगढ़िया ने नोटबंदी के बाद करदाताओं की परेशानी को लेकर पीएम मोदी को जनवरी, 2017 में पत्र लिखा था क्योंकि वे जमा करने का दायरा ढाई लाख करना चाहते थे। लेकिन अखबार को यह क्यों लग रहा है कि यह मतभेद है। दरअसल सरकार के भीतर प्रशासनिक अमला सरकार को सलाह देता रहता है। ऐसे में अरविंद पनगढ़िया ने भी सलाह दी थी, सरकार ने बात मानी या नहीं मानी यह अलग बात है लेकिन इसमें मतभेद की बात तो कहीं नहीं आती।

मुद्दों पर अलग राय होना गुनाह तो नहीं !
इंडियन एक्सप्रेस ने जी-20 में जलवायु समझौते को लेकर मतभेद, कई मामलों में स्वदेशी जागरण मंच की दखलअंदाजी को लेकर एतराज और लोगों को बुनियादी सुविधाओं को लेकर पनगढ़िया की सरकार से अलग राय की बात लिखी है। लेकिन अखबार ने ये साफ नहीं किया है कि इसको लेकर सरकार से कोई विवाद भी हुआ था। जाहिर तौर पर पीएम मोदी की सरकार ने ही अरविंद पनगढ़िया को उपाध्यक्ष बनाया था और उनके काम काज से पीएम खुश थे। लेकिन यह भी सच है कि पीएम मोदी विकास की गति में और तेज रफ्तार चाहते हैं। ऐसे में न तो मतभेद की बात सही है और न मनभेद की।

पीएम के ‘न्यू इंडिया’ से जुड़े रहेंगे पनगढ़िया
अरविंद पनगढ़िया ने कहा है कि अभी तक के कार्यकाल में मुझे सभी का साथ मिला था। प्रधानमंत्री के न्यू इंडिया कार्यक्रम में वह आगे भी भूमिका निभाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि दो देशों की दूरी से संबंध कमजोर नहीं होगा। जाहिर तौर पर पनगढ़िया की खुद कही गई ये बातें इंडियन एक्सप्रेस की झूठी खबर की पोल खोलती हैं। बहरहाल पनगढ़िया ने कहा कि नीति आयोग में हमने उन सभी शंकाओं को दूर कर दिया है, जिनमें कहा जाता था कि राज्यों और केंद्र के बीच बातचीत कम हो रही है। नीति आयोग राज्य में जाकर ही विकास के मुद्दे पर बात करता है।

मजबूरी में देना पड़ा इस्तीफा-पनगढ़िया
अरविंद पानगढ़िया ने स्वयं ही साफ किया है कि वे कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पहले से टीचर रहे हैं और यहां वे छुट्टी लेकर आए थे। यूनिवर्सिटी ने उनकी छुट्टी बढ़ाने से मना कर दिया था, हालांकि इस संबंध में दो महीने से प्रधानमंत्री से बात हो रही थी। प्रधानमंत्री की सलाह पर उन्होंने यूनिवर्सिटी को यह अनुरोध किया था कि उनकी छुट्टी बढ़ा दे। लेकिन यूनिवर्सिटी तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था क्योंकि मुझे शिक्षण कार्य से लगाव है, इसलिए यह निर्णय लेना पड़ा। 

एक पड़ाव था, मंजिल नहीं
पनगढ़िया ने कहा कि मैं पहले कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था, मुझे भारत माता की सेवा करने का मौका मिला था। यह सिर्फ एक पड़ाव था, मंजिल नहीं थी। यूनिवर्सिटी में मेरा कार्यकाल जीवनपर्यंत है। साथ ही मेरा परिवार भी अमेरिका में है और मैंने लंबा समय वहीं बिताया है। इसलिए मेरे लिए यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी छोड़ना आसान नहीं था। मजबूरी में मुझे यह फैसला लेना पड़ा है।

सजग है मोदी सरकार
पनगढ़िया ने स्पष्ट किया है कि विकास के क्षेत्र में भारत का नाम आज बड़े सम्मान से लिया जाता है। आने वाले समय में विकास दर और भी तेज होगी। सरकार की नीतियों में लचीलापन लाने की पहल और सधे हुए फैसलों से इंडस्ट्री उत्साहित है। प्रधानमंत्री की डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की पहल और नीति, एयर इंडिया जैसे बीमार सरकारी उपक्रमों पर ठोस निर्णयों ने साफ कर दिया कि मोदी सरकार राजकोषीय घाटे पर सजग है।

नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष हैं पनगढ़िया
भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री और कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढिया पांच जनवरी, 2015 को नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष बने थे। उस समय योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग बनाया गया था। पनगढ़िया ने कहा कि मुझे सरकार और नौकरशाही का हर संभव साथ मिला। कई बार तो अफसरों का उत्साह और सरकार का समर्थन मेरी जरूरत से भी ज्यादा रहा।

Leave a Reply Cancel reply