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मोदी राज में नई इस्पात नीति से भारत ने बचाए 5,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था लगातार ऊंचाई की ओर अग्रसर है। ढांचागत बदलाव के साथ सतत सुधारवादी नीतियां भी मोदी सरकार की प्राथमिकता में शामिल हैं और इसके परिणाम सामने आ रहे हैं। मई, 2017 में नई इस्पात नीति लागू होने के बाद से भारत ने 5,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बचाए हैं। इसके साथ ही पिछले चार वर्षों में कच्चे इस्पात उत्पादन क्षमता में करीब 2.4 करोड़ टन की वृद्धि की है। इस्पात सचिव अरुणा शर्मा ने कहा कि इस वर्ष भारत ने जापान को पछाड़कर दूनिया के दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक के रूप अपनी जगह बनाई है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष पेश हुई महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) के तहत हमने इस्पात क्षमता को 2030 तक बढ़ाकर 30 करोड़ टन और 25 करोड़ टन कच्चे इस्पात का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 

आइए इस बहाने एक दृष्टि डालते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था की प्रमुख उपलब्धियों पर।

विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है भारत
आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) के मुताबिक फ्रांस को पीछे धकेल कर भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इंडियन इकोनॉमी का आकार अब 2.6 लाख करोड़ डॉलर हो गया है।अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और भारत… ये वर्तमान में विश्व की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स बिजनेस एंड रिसर्च यानी सीईबीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2029 में ही भारत तीसरे पायदान पर पहुंच जाएगा। सीईबीआर के अनुसार 2030 में भारत की अनुमानित जीडीपी 10, 133 अरब डॉलर की होगी।

मोदी सरकार में बढ़ता गया शेयर बाजार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती के साथ बढ़ रही है। 23 जनवरी को शेयर बाजार ने इतिहास रच दिया। 50 शेयरों के एनएसई सूचकांक निफ्टी ने पहली बार 11000 का आंकड़ा पार किया तो 30 शेयरों का बीएसई सूचकांक सेंसेक्स भी 36,000 का ऐतिहासिक स्तर पार कर गया। जाहिर है यह भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों के भरोसे को दिखाता है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान अप्रैल 2014 में सेंसेक्स करीब 22 हजार के आस-पास रहता था।

विनिवेश से जुटाई रिकॉर्ड रकम
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लगातार मजबूत हो रही अर्थव्यवस्था के कारण सरकार ने पहली बार विनिवेश के जरिये एक बड़ी रकम जुटाई है। वित्त वर्ष 2017-18 में अभी तक विनिवेश से 54,337 करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं। यह एक रिकॉर्ड है। इससे उत्साहित वित्त मंत्री आम बजट 2018-19 में विनिवेश के जरिये लगभग एक लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रख सकते हैं। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में रणनीतिक हिस्सेदारी बेचकर भी अच्छी खासी रकम जुटाई है। साथ बीमा कंपनियों को शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराकर भी धनराशि प्राप्त की गयी है।

 

मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ 5 साल में सबसे ज्यादा
देश में दिसंबर, 2017 में भी मैन्युफैक्चरिंग ऐक्टिविटीज में तेजी का रुख रहा। नये ऑर्डरों और उत्पादन में तेज बढ़ोतरी के दम पर देश के विनिर्माण क्षेत्र ने दिसंबर में तेज उड़ान भरी और इसका निक्कई पीएमआई सूचकांक नवंबर के 52.6 से बढ़कर 54.7 पर पहुँच गया। दिसंबर में उत्पादन वृद्धि की रफ्तार पांच साल में सबसे तेज रही जबकि नये ऑर्डरों में अक्टूबर 2016 के बाद की सबसे तेज बढ़ोतरी दर्ज की गयी। कंपनियों ने नये रोजगार भी दिये और रोजगार वृद्धि दर अगस्त 2012 के बाद के उच्चतम स्तर पर रही।

कोर सेक्टर में दर्ज की गई 6.8 प्रतिशत की रफ्तार
आठ कोर सेक्टरों में नवंबर 2017 के महीने में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत दर्ज की गई है। यह एक साल में सबसे ऊपरी स्तर पर है। रिफाइनरी, इस्पात और सीमेंट जैसे क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन की वजह से बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर बढ़ी है। एक साल पहले इसी माह में इन उद्योगों की उत्पादन वृद्धि 3.2 प्रतिशत थी। कोर सेक्टरों की वृद्धि दर अक्तूबर, 2016 के बाद सबसे अधिक है। रिफाइनरी, इस्पात तथा सीमेंट जैसे क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन से बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर अच्छी रही। इस बार नवंबर में रिफाइनरी उत्पाद की 8.2 प्रतिशत, इस्पात की 16.6 प्रतिशत और सीमेंट क्षेत्र की वृद्धि दर सालाना आधार पर 17.3 प्रतिशत रही। कोर सेक्टरों में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट तथा बिजली उत्पादन को रखा गया है।

 

यूपीए सरकार से काफी ज्यादा है ग्रोथ रेट
यूपीए सरकार के अंतिम तीन सालों की अर्थव्यवस्था की गति पर गौर करें तो ये 2011-12 में 6.7, 2012-13 में 4.5 और 2013-14 में 4.7 प्रतिशत थी। वहीं बीते तीन साल के मोदी सरकार के कार्यकाल पर गौर करें तो 2014-15 में 7.2, 2015-16 में 7.6 थी, वहीं 2016-17 में 7.1 है। जाहिर है बीते तीन सालों में जीडीपी ग्रोथ रेट 7 से ज्यादा रही है। जबकि यूपीए के अंतिम तीन सालों के औसत जीडीपी ग्रोथ रेट 5.3 ही रही है।

विदेशी ऋण में 2.7 प्रतिशत की कमी
केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का विदेशी ऋण 13.1 अरब डॉलर यानि 2.7% घटकर 471.9 अरब डॉलर रह गया है। यह आंकड़ा मार्च, 2017 तक का है। इसके पीछे प्रमुख वजह प्रवासी भारतीय जमा और वाणिज्यिक कर्ज उठाव में गिरावट आना है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च, 2017 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और विदेशी ऋण का अनुपात घटकर 20.2% रह गय, जो मार्च 2016 की समाप्ति पर 23.5% था। इसके साथ ही लॉन्ग टर्म विदेशी कर्ज 383.9 अरब डॉलर रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 4.4% कम है।

 

बेहतर हुआ व्यापार संतुलन
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जुलाई 2013-14 में अनुमानित व्‍यापार घाटा 62448.16 मिलियन अमरीकी डॉलर का था, वहीं अप्रैल-जनवरी, 2016-17 के दौरान 38073.08 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। जबकि अप्रैल-जनवरी 2015-16 में यह 54187.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के व्‍यापार घाटे से भी 29.7 प्रतिशत कम है। यानी व्यापार संतुलन की दृष्टि से भी मोदी सरकार में स्थिति उतरोत्तर बेहतर होती जा रही है और 2013-14 की तुलना में लगभग 35 प्रतिशत तक सुधार आया है।

बेहतर हुआ कारोबारी माहौल
पीएम मोदी ने सत्ता संभालते ही विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गति तेज की और देश में बेहतर कारोबारी माहौल बनाने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इसी प्रयास के अंतर्गत ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति देश में कारोबार को गति देने के लिए एक बड़ी पहल है। इसके तहत बड़े, छोटे, मझोले और सूक्ष्म सुधारों सहित कुल 7,000 उपाय (सुधार) किए गए हैं। सबसे खास यह है कि केंद्र और राज्य सहकारी संघवाद की संकल्पना को साकार रूप दिया गया है।

 

पारदर्शी नीतियां, परिवर्तनकारी परिणाम
कोयला ब्लॉक और दूरसंचार स्पेक्ट्रम की सफल नीलामी प्रक्रिया अपनाई गई। इस प्रक्रिया से कोयला खदानों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 के तहत 82 कोयला ब्लॉकों के पारदर्शी आवंटन के तहत 3.94 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आय हुई।

जीएसटी ने बदली दुनिया की सोच
जीएसटी, बैंक्रप्सी कोड, ऑनलाइन ईएसआइसी और ईपीएफओ पंजीकरण जैसे कदमों कारोबारी माहौल को और भी बेहतर किया है। खास तौर पर ‘वन नेशन, वन टैक्स’ यानि GST ने सभी आशंकाओं को खारिज कर दिया है। व्यापारियों और उपभोक्ताओं को दर्जनों करों के मकड़जाल से मुक्त कर एक कर के दायरे में लाया गया।

कैशलेस अभियान से आई पारदर्शिता
रिजर्व बैंक के अनुसार 4 अगस्त तक लोगों के पास 14,75,400 करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में थे। जो वार्षिक आधार पर 1,89,200 करोड़ रुपये की कमी दिखाती है। जबकि वार्षिक आधार पर पिछले साल 2,37,850 करोड़ रुपये की वृद्धि दर्ज की गई थी।

 

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