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भारत ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को फिर किया Expose, रक्षामंत्री राजनाथ ने चीन में एससीओ के संयुक्त बयान पर नहीं किए हस्ताक्षर

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति का असर अब हर तरफ देखा जा रहा है। पहलगाम आतंकी हमले का आक्रामक जवाब भारत के द्वारा ऑपरेशन सिंदूर से दिया गया। इसके बाद सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के आउटरीच अभियान के तहत दुनिया के कई देशों में आतंक के आका पाकिस्तान का कुत्सित चेहरा उजागर किया गया। पीएम मोदी की खींची उसी लकीर पर चलते हुए अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन में चीन के ही दोस्त पाकिस्तान को आतंकवाद पर जबरदस्त अंदाज में घेरा है। उन्होंने साफ किया कि आतंकवाद पर दोहरे रवैये को किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दरअसल, एससीओ के संयुक्त बयान में पहलगाम में हुए उस बर्बर आतंकी हमले का जिक्र ही नहीं था, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए थे। दूसरी ओर इसमें पाकिस्तान के बलोचिस्तान में आतंकी गतिविधियों का जिक्र किया गया था। राजनाथ सिंह ने एससीओ रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में इस पर कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने आतंकवाद को राज्य नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की भी निंदा की। रक्षा मंत्री ने एक बार फिर पाकिस्तान को एक्सपोज करते हुए वहां के आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा के हमले का उल्लेख किया।

एससीओ के संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से भी साफ इनकार
आतंकवाद और आतंकी हमलों पर भारत की सख्ती का अंदाजा उसकी सफल सर्जिकल और एयर स्ट्राइक से लगाया जा सकता है। इसी लीक पर चलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के क़िंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में आतंकवाद को लेकर कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने एससीओ के संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से भी साफ इनकार कर दिया। संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं करने का असर यह हुआ कि आतंकवाद के मुद्दे पर मतभेद के कारण SCO ने संयुक्त बयान जारी ही नहीं किया। SCO शिखर सम्मेलन में चीन, रूस, पाकिस्तान और भारत सहित संगठन के दस सदस्य देशों के रक्षा से जुड़े नेता शामिल हुए। इसमें क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग और सदस्य देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। बताया जा रहा है कि राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से भी मुलाकात नहीं की।आतंकवाद को प्रायोजित करने वालों के खिलाफ हो सामूहिक कार्रवाई
राजनाथ सिंह ने बैठक में आतंकवाद को स्टेट पॉलिसी टूल के रूप में इस्तेमाल करने की कड़ी निंदा की। उनका इशारा पाकिस्तान की ओर था। उन्होंने हाल ही में हुए पहलगाम हमले जैसी आतंकी घटनाओं का जिक्र किया। इन हमलों में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था, जो पाकिस्तान स्थित एक आतंकी समूह है। राजनाथ सिंह ने कहा कि आतंकवाद का मुकाबला करने में कोई सहनशीलता या दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस की नीति रही है और इसका मुकाबला सभी को एकजुट होकर करना होगा। इसमें किसी तरह का पक्षपात और दोहरा रवैया हरगिज बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने उन लोगों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया जो आतंकवाद को प्रायोजित करते हैं, बढ़ावा देते हैं और संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले देशों की आलोचना करने में SCO को हिचकिचाना नहीं चाहिए।

आतंकी गतिविधियों पर दोहरे मापदंडों के लिए कोई जगह नहीं
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ-साफ कहा, “कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं और आतंकवादियों को आश्रय देते हैं। ऐसे दोहरे मापदंडों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। SCO को ऐसे देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए।” उनके बयान में इस बात पर जोर दिया गया कि शांति और समृद्धि आतंक के साथ नहीं रह सकते। उन्होंने SCO सदस्यों से इस खतरे के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का आग्रह किया। रक्षा मंत्री ने आगे कहा, “आतंकवाद के किसी भी कृत्य को आपराधिक और अनुचित ठहराया जाता है, चाहे उनकी प्रेरणा कुछ भी हो, कभी भी, कहीं भी और किसी के द्वारा भी किया गया हो। SCO सदस्यों को इस बुराई की स्पष्ट रूप से निंदा करनी चाहिए। हम आतंकवाद के निंदनीय कृत्यों के अपराधियों, आयोजकों, फाइनेंसरों और प्रायोजकों, जिनमें सीमा पार आतंकवाद भी शामिल है, को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की आवश्यकता को दोहराते हैं।”

पहलगाम की बर्बरता का जिक्र नहीं, बलोचिस्तान को शामिल किया
एससीओ के संयुक्त बयान में पहलगाम में हुए उस बर्बर आतंकी हमले के बारे में कुछ भी नहीं लिखा था, जिसमें आतंकियों ने धर्म पूछकर 26 पर्यटकों ही नृशंसता से हत्या कर दी थी। लेकिन इसमें पाकिस्तान के बलोचिस्तान में आतंकी गतिविधियों का जिक्र किया गया था। इस दोहरे रवैये के चलते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बयान पढ़ने के बाद इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। एससीओ सम्मेलन में भारत का संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना बहुपक्षीय मंचों में उसके पिछले स्वतंत्र रुख के अनुरूप था। यहां उसने चीन के एजेंडे के साथ पूरी तरह से जुड़ने के प्रयासों का विरोध किया। भारत ने पहले 2023 एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का समर्थन करने वाले पैराग्राफों का समर्थन करने से इनकार कर दिया था और चीन के प्रस्तावित ब्रिक्स मुद्रा बास्केट योजना का विरोध किया था।

भारत-चीन सैन्य हॉटलाइन को फिर से शुरू करने पर भी हुई चर्चा
रक्षा मंत्री राजनाथ की चीन यात्रा में उनके चीनी समकक्ष एडमिरल डोंग जून के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी शामिल थी। इसका उद्देश्य भारत-चीन सैन्य हॉटलाइन को फिर से शुरू करने सहित सैन्य संचार चैनलों को बेहतर बनाना था। 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद रक्षा मंत्री की यह पहली चीन यात्रा है। यह तनाव के बावजूद तनाव कम करने और बातचीत के लिए सतर्क आशावाद का संकेत है। गौरतलब है कि वर्ष 2024 में एससीओ समिट की अध्यक्षता पाक ने की थी। तब विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन-पाक का नाम लिए बिना कहा था कि सभी देशों को एक दूसरे की सीमाओं का सम्मान करने की जरूरत है। इससे पहले, 2023 में भारत ने अध्यक्षता की थी और आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई की जरूरत जताई थी।

इन 4 बड़े कारणों से साझा बयान पर हस्ताक्षर से मना किया
1. बिल्कुल तथ्यपरक नहीं है: एससीओ समिट के साझा बयान में कोई तथ्य नहीं थे। भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले को इस दस्तावेज में शामिल करने की मांग की थी। मगर इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया।
2. भेदभावपूर्ण और असंतुलित: हैरानी की बात है कि साझा बयान में पहलगाम का जिक्र नहीं किया था, लेकिन बलूचिस्तान का था। वहां आतंकवादी गतिविधियों और विशेष रूप से जफर एक्सप्रेस हाईजैकिंग की घटना का जिक्र था। यह साफ तौर पर भेदभाव दर्शाता है।
3. पारदर्शिता नहीं है: साझा बयान पर हस्ताक्षर न करने की एक वजह ये थी कि इसमें पारदर्शिता नहीं थी। इसके अलावा, जारी किए गए साझा बयान में यह भी नहीं बताया गया कि इसे कैसे बनाया था?
4. उद्देश्य ही पूरा नहीं करता: एससीओ का उद्देश्य सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक सहयोग बढ़ाना व आतंकवाद, उग्रवाद, ड्रग तस्करी और साइबर अपराध जैसे मुद्दों पर साझा रणनीति बनाना है। इस बारे में स्पष्ट ही नहीं कि क्या चाहते हैं?

विदेश मंत्री जयशंकर ने हस्ताक्षर ना करने का किया मजबूती से समर्थन
इस बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर ना करने के फैसले का मजबूती से समर्थन किया है। मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में जयशंकर ने इस मुद्दे पर विस्तार से बात की और भारत के आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख को जिक्र किया। उन्होंने कहा कि SCO का मुख्य एजेंडा आतंकवाद से लड़ना था, लेकिन एक देश ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र संयुक्त बयान में शामिल करने से इनकार कर दिया। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे। रक्षा मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि अगर भारत के आतंकवाद का उल्लेख नहीं होगा, तो भारत बयान को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने बताया कि बयान में पहलगाम हमले का उल्लेख न होने और बलूचिस्तान में उग्रवादी गतिविधियों को शामिल करने की कोशिश से भारत की स्थिति कमजोर हो रही थी।आतंक को प्रायोजित करने वाले देशों को जवाबदेह ठहराना ही होगा
विदेश मंत्री जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत का यह कदम केवल एक कूटनीतिक विरोध नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सिद्धांतों की रक्षा का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि आतंकवाद और शांति एक साथ नहीं चल सकते। SCO जैसे मंचों को उन देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए जो आतंकवाद को नीति के रूप में इस्तेमाल करते हैं। भारत की इस दृढ़ता ने SCO में उसकी स्थिति को और मजबूत किया है। अब यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि पहलगाम हमले को लश्कर-ए-तैयबा की छद्म शाखा ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने अंजाम दिया था। भारत ने इसके जवाब में 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें सीमा पार आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने इस कार्रवाई से साबित किया कि आतंकवाद के गढ़ अब सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने SCO के मंच पर भारत के रुख को दोहराया कि आतंकवाद को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इसे प्रायोजित करने वाले देशों को जवाबदेह ठहराना होगा।

कब बना SCO और इसके गठन का उद्देश्य क्या है
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 2001 में शंघाई, चीन में की गई थी। SCO के सदस्य देशों में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं। बाद में इस संगठन का विस्तार किया गया। भारत साल 2005 से इस संगठन का सदस्य था और 2017 में इसका स्थायी सदस्य बन गया। इसी साल पाकिस्तान ने भी इसकी सदस्यता ले ली। साल 2017 में ईरान भी एससीओ का सदस्य बन गया। वर्तमान में एससीओ के सदस्य देशों में पूरी दुनिया की करीब 40 फीसदी आबादी निवास करती है। पूरी दुनिया की जीडीपी में इन देशों की 20 प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी है। यही नहीं, दुनिया भर में मौजूद तेल रिजर्व का 20 प्रतिशत हिस्सा भी इन्हीं देशों में है। शंघाई सहयोग संगठन सदस्य देशों के बीच वार्ता और सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक, व्यापार, निवेश और परिवहन के क्षेत्र में सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना, साथ ही आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ संयुक्त रूप से लड़ाई करना है।

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