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पीएम मोदी की नीतियों से देश में ऊर्जा परिवर्तन के संकेत

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हमारे पास प्राकृतिक संसाधन हैं क्योंकि हमारी पहले की पीढ़ियों ने इन संसाधनों को संजोया है। हमें भावी पीढ़ियों के लिए ऐसा ही करना होगा-नरेंद्र मोदी

पीएम मोदी अक्सर कहते हैं कि दुनिया को आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक खतरा है। वे इसकी चिंता करते हैं तो उनका एक्शन भी इन समस्याओं के निराकरण के लिए होता है। आतंकवाद के विरुद्ध विश्व के देशों को सतर्क करने में सफल हुए तो पर्यावरण रक्षा को लेकर भी बड़ी लकीर खींच रहे हैं। केंद्र सरकार के प्रयासों से ही भारत में कोयला खपत वृद्धि में कमी आई है जो कि भारत का पेरिस समझौते के प्रति पीएम मोदी की संजीदगी को दिखाता है।

भारत में कोयले की कम हो रही मांग: ग्रीनपीस
ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब भारत में कोयला खपत वृद्धि में तेजी से कमी आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2016 और 2017 को समाप्त हुए दो वित्तीय वर्षों में कोयला खपत में 2.2 प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई है। जबकि इससे पहले 10 वर्षों में 6% से अधिक की औसत वृद्धि हुई थी। इसमें सीमेंट और इस्पात कारखानों का बड़ा योगदान है, क्योंकि कम खपत ने ईंधन के धीमा इस्तेमाल में योगदान दिया है। इसके साथ ही यह भी एक तथ्य है कि बिजली संयंत्रों और ईंधन के सबसे बड़े उपभोक्ता अपनी क्षमता से कम बिजली का उपयोग कर रहे हैं।

ऊर्जा परिवर्तन के मिलने लगे संकेत
ग्रीनपीस के मुताबिक “यह कहना बहुत जल्दी होगा कि नवीनतम प्रवृत्ति भारत में ऊर्जा परिवर्तन ला सकती है। लेकिन ये संकेत हैं कि यह एक लंबी गिरावट की शुरुआत हो सकती है।” दरअसल भारत के बिजली संयंत्र अपनी क्षमता का लगभग 60 प्रतिशत उपयोग कर रहे हैं क्योंकि पैसे ना होने की वजह से प्रांतीय बिजली के खुदरा विक्रेता उनसे पर्याप्त बिजली नहीं खरीद पा रहे हैं। सौर और पवन ऊर्जा के घटते टैरिफ भी कोयला परियोजनाओं पर पुनर्विचार कर रही हैं।

कोयले पर निर्भरता घटेगी
दरअसल भारत का काम अभी कोयला के बिना नहीं चल सकता है। इसलिए कोयले पर निर्भरता दशकों तक जारी रहेगी, लेकिन वायु प्रदूषण पर बढ़ती चिंता से सरकार और कंपनियों को ईंधन का उपयोग अधिक विवेकपूर्ण ढंग से करने के लिए मजबूर कर रहा है। जाहिर है भारत सरकार जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित है और इसे रोकने को कटिबद्ध है। इसलिए ऊर्जा के नये स्रोतों, नये विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।

 

विकसित देशों की बड़ी जिम्मेदारी
चीन और अमेरिका के बाद भारत कार्बन उत्सर्जन में तीसरे नंबर पर जरूर है, लेकिन प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन में इन दोनों देशों और अन्य कई देशों से बहुत कम है। बावजूद इसके भारत सरकार पर्यावरण के प्रति अपनी भूमिका निभा रही है और कोयले के समग्र उपयोग में धीरे-धीरे गिरावट निश्चित रूप से भारत को पेरिस समझौते के तहत अपना लक्ष्य हासिल करने की दिशा में बढ़ रही है।

गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा
भारत ने ग्लोबल डील के तहत 2030 तक ऊर्जा के गैर-जीवाश्म स्रोतों से अपनी बिजली का 40% उत्पादन करने के लिए प्रतिबद्ध किया है। इसलिए, 2021-22 तक 2016-17 से 175 गीगावॉट तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 30 जीडब्ल्यू के अतिरिक्त लक्ष्य को बढ़ाने के लिए योजना बनाई गई है।
ऐसी उम्मीद है कि सौर और पवन ऊर्जा की लागत प्रतियोगिता के कारण निश्चित तौर पर भारत में नवीकरणीय उत्पादकता बढ़ी है।

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