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आपातकाल : अत्याचारों का पर्याय बना मीसा, एक लाख से अधिक लोगों पर बरपा कहर

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भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के पन्नों में 25 जून, 1975 को एक काला अध्याय जोड़ा गया, जिसे पढ़कर आज भी खौफ उत्पन्न होता है। इस दिन समूचे देश में थोपा गया आपातकाल एकतरफा सरकारी अत्याचारों का पर्याय बन गया। इंदिरा गांधी ने अपने विरोधियों के दमन के लिए Maintenance of internal security (MISA) यानि आंतरिक सुरक्षा अधिनियम का इस्तेमाल किया। 25 जून की रात (26 जून) को 1.30 बजे जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर लिया गया। इस कानून के तहत विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडीज, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद तक शामिल थे।

राजनीतिक विरोधियों के दमन के लिए MISA का इस्तेमाल

MISA साल 1971 में लागू किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया। इस कानून में आपातकाल के दौरान कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने इसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया।

कानून लागू करने वाली संस्थाओं को मिले असीमित अधिकार

MISA के माध्यम से इंदिरा सरकार ने कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्थाओं को असीमित अधिकार दे दिए थे। पुलिस और सरकारी एजेंसियां किसी की भी, किसी भी समय प्रीवेंटिव गिरफ्तारी कर सकती थी। किसी की भी तलाशी के लिए वारंट की भी जरूरत नहीं रह गई थी। और सरकार के लिए फोन टैपिंग को भी इसके जरिए लीगल बना दिया गया था। बगैर किसी चार्ज के किसी को भी उठाकर जेल में डाला जा सकता था। इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि न्यायपालिका में बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी। कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे।

सुरक्षा के नाम पर किए गए जुल्म

MISA लागू होने के बाद राजनीतिक बंदियों को बड़े पैमाने पर जेलों में ठूंस दिया गया। Defense of India rules यानि डीआईआर (DIR) के तहत एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। राजनीतिक लोगों के नागरिक अधिकार खत्म करने के साथ ही इस कानून के जरिये सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित करने का काम ज्यादा किया गया। उनकी संपत्ति छीनी गई। उन्हें परेशान करने के नए-नए बहाने तलाश किए गए।

पुलिस ने बेहोश होने तक लाठियों से पीटा

इस कानून के तहत सभी प्रकार के विरोध प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी गई। यहां तक कि आम आदमी को भी नहीं बख्शा गया और सिर्फ आपातकाल या इंदिरा या सरकार की आलोचना करने पर गिरफ्तारी हो रही थी। ऐसे कई उदाहरण थे, जहां व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिशोध के लिए मीसा कानून का दुरुपयोग किया गया था। गिरफ्तार लोगों की संख्या जेलों की सीमा से अधिक थी, ऐसे में कई लोगों को सिर्फ खंभे और जंजीरों से बांध दिया गया था। शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। पुलिस ने बेहोश होने तक लाठियों से पीटा। हाथ, पैर तक तोड़ दिए थे।

तिहाड़ जेल में मीसा बंदी बने अरुण जेटली 

मोदी सरकार में मंत्री रहे स्वर्गीय अरुण जेटली भी मीसा बंदी रह चुके थे। उन दिनों को याद करते हुए जेटली ने लिखा था, ‘मुझे 26 जून 1975 की सुबह एकमात्र विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का गौरव मिला और मैं आपातकाल के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया। मुझे यह महसूस नहीं हुआ कि मैं 22 साल की उम्र में उन घटनाओं में शामिल हो रहा था जो इतिहास का हिस्सा बनने जा रही थीं। इस घटना ने मेरे जीवन का भविष्य बदल दिया। शाम तक, मैं तिहाड़ जेल में मीसा बंदी के तौर पर बंद कर दिया गया था।’ तब चारों ओर इसी तरह के हालात थे। जो भी सरकार के खिलाफ मुंह खोल देता था, उसे जेल का मुंह देखना पड़ता था।

प्रेस पर लागू की गई सेंसरशिप, दफ्तरों की काटी गई बिजली  

प्रेस सेंसर कर दिया गया था। अगले दिन प्रकाशित करने से पहले सभी समाचार पत्रों को सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजना जरूरी था। अखबार (संपादकों) द्वारा आपातकाल के विरोध में किसी तरह की सामग्री छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इतना ही नहीं कई अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई, इससे समाचार पत्र प्रिंटर भी ठहर गए। वहीं, कई समाचार पत्रों के संपादकों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कई तरह की रणनीतियों का भी इस्तेमाल किया। 

जनता पार्टी की सरकार ने खत्म किया MISA

इस काले कानून के तहत अत्याचार का सिलसिला तब थमा, जब सन् 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी। इसी सरकार ने इस काले कानून को खत्म किया। MISA लाना कांग्रेस की एक बड़ी राजनीतिक भूल थी। खुद कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने दबे शब्दों में इस बात को स्वीकारा।

मीसा बंदियों को मिली पेंशन

आपातकाल के दौरान भी गैर कांग्रेसी राज्यों की सरकार मीसा में बंद किए गए लोगों को पेंशन देने का काम करती थी। उसके बाद भी कई गैर कांग्रेसी राज्य सरकारें मीसा बंदियों को पेंशन देती रहीं। छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान की बीजेपी सरकारों ने मीसा में बंद लोगों को पेंशन देने का काम शुरू किया। लेकिन इन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें आने के बाद इस पेंशन को बंद कर दिया गया।

 

 

 

 

 

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